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देश को देश की जनता चलाती है

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नौ हजार करोड़ की विशाल धनराशि को लेकर भाग चुके माल्या पर भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन अरूंधति भट्टाचार्य ने हंसते हुए कहा था कि माल्या से एक-एक पाई वसूल करूंगी. परन्तु इतना समय बीत जाने के बाद भी इसे छोड़िये, भारत सरकार भी नहीं बता पा रही है कि आखिर माल्या से कितने धनराशि की वसूली हो पाई है. वहीं इसी अरूंधति भट्टाचार्य ने कर्ज के बोझ से आत्महत्या कर रहे किसानों के संदर्भ में भारतीय उद्योग परिसंघ (सी0आई0आई0) के एक कार्यक्रम में गाज उगलते हुए कही है कि ‘‘कृषि ऋण की माफी से लोग इसे अपनी आदत बना लेते हैं. इससे बैंक और कर्जदारों के बीच का अनुशासन बिगड़ता है और ऋण माफी के लिए लोगों को चुनाव का इंतजार रहता है.’’

भारतीय स्टेट बैंक की खाये-पिये-अघाये चेयरपर्सन अरूंधति भट्टाचार्य जो नहीं जानती वह यह है कि इस देश को इस देश का मजदूर और किसान अपनी तमाम जमापूंजी और मेहनत से चला रहा है. इन खाये-पिये-अघाये लोगों को यह भ्रम हो गया है कि इस देश को अंबानी-अदानी और माल्या जैसे दलाल पूंजीपति चलाते हैं और मुफ्तखोर जनता इनके पैसों पर पलती है. कुछ दिन पूर्व भारत का वित्त मंत्री अरूण जेटली जो चुनाव हार चुके हैं और पिछले दरवाजे से देश के वित्त मंत्री बन बैठे हैं, ने कहा था कि इस देश की करोड़ों की आबादी का पेट ‘‘कुछ लाख टैक्स देने वाले भरते हैं.’’

यह तो साफ पता चलता है कि ये चंद लोग जो खुद को देश का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं इन्हें देश के बारे में कुछ नहीं पता है. देश की अर्थव्यवस्था कैसे चलती है नहीं जानते हैं अथवा देश के लोगों को भ्रम में रखने का प्रयास करते हैं.

देश के मेहनतकश आम जनता पर कर्ज-वसूली के नाम पर प्रलय की तरह टुट पड़ने वाली यह जनविरोधी सरकार बड़े-बड़े व्यपारियों, दलाल पूंजीपतियों के चरणों में जिस प्रकार दण्डवत् है, वह निश्चित रूप से देश को आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक तौर पर गुलामी के दलदल में घंसाने का ही उपक्रम है. बल्कि यौं कहा जाये यह आजाद देश का लक्षण बिल्कुल ही नहीं है.

शायद यह विश्व का पहला देश होगा जिसकी सरकार इस देश की जनता को देशद्रोही मानती है और उद्योगपतियों को देशभक्त. पर भारत माता की जय की रट लगाने वाले माल्या का कौन सा देश है, क्या सरकार ने कभी यह जानने की कोशिश की है. बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में सुदीप्तों डे की एक रिपोर्ट पर यकीन किया जाय तो साल 2016 में 6000 करोड़पति इस देश को छोड़कर चले गये. जबकि वर्ष 2015 में देश छोड़कर जानेवाले करोड़पतियों की संख्या 5000 थी. यकीनन सरकार जिस दलाल पुंजीपतियों को देशभक्त होने का तगमा देकर देश की आम गरीब जनता, छात्रों को देशद्रोही बताया जा रहा है, वे देशभक्त आखिर इस देश को छोड़कर क्यों जा रहे हैं ?

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One Comment

  1. praveen kumar tiwari

    March 17, 2017 at 2:32 am

    वो कुडे जिसे हर रोज सफाई कर फेंक देते हैं उसमें छमता है कि बहुतों कुडे चुन अपना पेट पालते हैं और वो ब्यक्ति जिसे देश की ५८प्रतिशत भुभाग पर लोगों ने पसंद कर सासन करने का मौका दिया है उसमें बाकि लोगों से ज्यादा ईमानदारी , देशभक्ति,ऊर्जा जरुर है।जहातक बात बिरोध की है वो तो लोगों ने गांधी की हत्या कर अपनी-अपनी मानसिकता काम परीचय दें दिया है। कुल मिलाकर में ये कहना चाहूंगा कि देश प्रगति के पथ पर है।

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