1
तुमने कभी
चौपायों के खुरदुरे
खुर से
किसी हरी पगडंडी को
धूसर नहीं होते हुए पाया होगा
जैसे वे हो जाते हैं
उन्हीं चौपायों की मरी हुई खाल में लिपटे
दोपायों के क़दमों के बोझ तले
2.
शहर एक बहुत बड़ी जीभ है
सब कुछ लीलने के लिए
या एक घूर्णी है
क्या बताएगी वह नदी
जो सूखती जा रही है लगातार
शहर को अपनी बांहों में
समेटने की कोशिश में ?
3
तुमने देखा
मैंने देखा
उसने देखा
सबने देखा
सपने सबने देखा
हक़ीक़त में जीते हुए
सबने अपनी अपनी पीठ पर से
मरे हुए केंचुल को उतरते देखा
पुनर्जन्म एक शारीरिक सच है !
4
बेरुत की बारूद भरी हवाओं से लेकर
मूत्र उत्सर्जन की सभ्यता के निशाने पर
जो कोई भी है
वही तो वह आदमी है
जिसने न कभी बंदूक़ छुआ है
और न कभी देखा है किसी को
असीम घृणा से !
5
मौसम का खटराग
ख़ंदकों पर बेअसर होता है
जहां छुपे हुए हैं हम और तुम
यहां पढ़ने के लिए
न तो फ़ुरसत है
और न ही रोशनी
यहां पर
रात भर ज़िंदा बच जाने के लिए
आदमी को बनना होता है
सरीसृप
कभी बंदूक़ थामे हुए
कभी बंदूक़ पर सोते हुए !
6
समय अक्षुण्ण है
कहा था तुमने
इसलिए मैंने समय में जीना सीखा
और पीछे छोड़ आया मौत !
- सुब्रतो चटर्जी
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