अहमदाबाद के अस्पताल में दो लोग पीपीई किट पहनकर दाखिल होते हैं. कोरोना से मरी लाशों से गहने उतारकर और मोबाईल फोन लेकर गायब हो जाते हैं. कोरोना से मरी डेड बॉडी वैसे भी सील कर दी जाती हैं. घरवाले भी खोलकर नहीं देखते. जिनके आदमी गये वो गहनों को क्या रोयेंगे ? सीसी टीवी फूटेज की छानबीन से पता चला ये लोग हैं – अमित शर्मा और अशोक पटेल.
कुछ दिन पहले जब पूरा देश मुंबई एल्फिंस्टन ब्रिज हादसे में मारे गये 23 लोगों का शोक मना रहा था, वहीं कुछ लोग आपदा में अवसर तलाश कर मृतकों का सामान और लाशों से गहने चुरा रहे थे. पुलिस ने सीसी टीवी की फुटेज के आधार पर मृत महिलाओं के शरीर से गहने चुराते एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया, जिसका नाम अजीत दुबे था.
ये उसी गैंग का था जो उत्तराखंड आपदा के वक़्त लाशों से गहने चुरा रहे थे, घायलों को लूट रहे थे. जो मुम्बई और चेन्नई में आयी बाढ़ के वक़्त भी गहनों के लिए लाशों को नोचते पकड़े गए थे. आपदा में अवसर तलाशने वाली गैंग को तो आप जानते ही होंगे. दूसरी तरफ भूख से मरते हुए मजदूर भी ऐसा नहीं कर रहें !
सोशल मीडिया पर तैरते उपरोक्त भारत की पहचान यानी आपदा में अवसर की तलाश बहुत पुरानी है. परन्तु आपदा में अवसर की तालाश को पहली बार सरकारी मुहर लग गई है, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस ‘अवसर’ सरेआम मुहर लगाई और पीएम केयर फंड के नाम से एक असंवैधानिक’झोला’ बनाकर देश से कोरोना संकट के नाम पर कभी झूठ बोलकर तो कभी जबरन लोगों से पैसे वसूलने शुरु किये.
आपदा में अवसर तलाशते मोदी ने एक खबर के अनुसार हजारों करोड़ रुपया इकठ्ठा किया और अपने उद्योगपति मित्रों के खजाने में डाल दिया. हालत यहां तक बन गई कि सड़कों पर बेतहाशा भाग रहे करोड़ों भूखे मजदूरों से भाड़ा के नाम पर हजारों लाखों करोड़ रुपये वसूली की गई. न देने पर पुलिस ने सैकड़ों लोगों को पीटपीटकर मार डाला. उनके सामान लूट लिए.
इतना ही नहीं, इन करोड़ों लोगों की पीड़ा को देखकर लाखों लोगों ने अपनी जमा पूंजी को इकट्ठा कर इन भूखे लोगों की सहायता के लिए सड़कों आदि पर निकल आये. तब मोदी सरकार और उसके पुलिसिया तंत्र ने लाठी के कानून का इस्तेमाल करते हुए कहा कि तुम नहीं बांट सकते लोगों को खाना-पानी. ये सभी सामग्री या तो मुझे (पुलिस को) दो या फिर पीएम केयर फंड में जमा करो.
इसके लिए बकायदा पुलिस ने, राज्य सरकार ने, केन्द्र सरकार ने काफी हाथ पांव मारे कि लोग इन भूखे प्यासे मजदूरों की सहायता न कर सके. परन्तु, भारी पुलिसिया जुल्म को झेलते हुए लोगों ने जब इन भूखे प्यासे प्रवासी मजदूरों की सहायता करना बंद नहीं किया तब मोदी सरकार ने ट्रेनों को पूरे देश में घुमाना शुरु कर दिया. 2 दिन के सफर को 9 दिन में पूरा किया. परिणामतः दर्जनों की तादाद में बेहाल मजदूर भूख, प्यास और थकान से मर गये.
पुलिसिया क्रूरता को इसी से समझ लीजिए बिहार के बरौनी जंक्शन पर पहुंचे एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन के भूखे प्यासे प्रवासी मजदूरों को जब हजारों लोगों ने मिलकर खाना-पानी का इंतजाम करने लगे तब क्रूर पुलिस ने पहले तो डंडे बरसाये, फिर सैकड़ों लोगों पर फर्जी मुकदमा कर दिया.