दुनिया में सबसे भ्रष्ट और चोरों में सबसे अब्बल दर्जा पाने को आतुर हमारा यह प्यारा देश दलाली के एक अद्भूत संक्रमण काल से गुजर रहा है. सत्ता के शिखर से लेकर नीचे आम जनता तक तेजी से फिसल रही यह दलाली की आदतें सम्पूर्ण देश के जनमानस में समा गयी है. यही कारण है कि यहां कोई भी भ्रष्टाचार का खुलासा किसी प्रकार का कोई हलचल पैदा नहीं करता. जिस राष्ट्र का नाम सहित संस्कृति और अर्थव्यवस्था तक विजेताओं और आक्रांताओं के इच्छानुसार रखा जाता है, उसका कोई एक नाम, संस्कृति और अर्थव्यवस्था हो ही नहीं सकता. हमारा देश इसका सर्वोत्तम उदाहरण है.
भारत का सम्पूर्ण इतिहास ही विजेताओं और आक्रांताओं का इतिहास है. प्रत्येक विजेता और आक्रांताओं ने इसे अपने इच्छानुसार अलग-अलग नाम से, संस्कृति से और अर्थव्यवस्था से नवाजा है, जो इसके विभिन्न नामों से स्पष्ट होता है. अभी जब हमारे देश के लोग अमरीका की दलाली करने में मशगुल है, इसका एक नया नामकरण दिये जाने की भी मांग कुछ समय पहले उठा था – संयुक्त राष्ट्र अमरिका के तर्ज पर संयुक्त राष्ट्र इंडिया. पर यह नाम स्वीकार नहीं किया गया. यह हमारी दलाल मानसिकता को दर्शाता है. यह नया प्रायोजित नाम अपने नये विजेता और आक्रांता संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के स्वागत में रखने की कोशिश का एक अद्भूत नमूना था.
इस मिश्रित और संकर संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था हमारे समाज को अनेक टुकड़ों में तोड़ कर अलग-अलग करता है. यही कारण है कि इस देश की संस्कृति और अर्थव्यवस्था चोरों और दलालों के लिए बेहद उपजाऊ बन जाती है, यही कारण है कि इस देश में किया गया बड़ा से बड़ा घपला भी किसी को विस्मित नहीं करता, किसी के चेहरे पर शिकन तक नहीं आती. दलाली की सीमा को कब का पार कर चुका मुख्य धारा की पत्रकारिता भी इसके महिमामंडन और गुणगान में सबसे आगे रहती है, बस केवल थोड़ी सी चोरी के रकम में से हिस्सा भर मिल जाये. यही कारण है कि विजय माल्या सरीखे चोर ने देश की जनता का 9 हजार करोड़ रूपये का कर्ज समेत अपने तमाम धन लेकर आराम से इस देश से न केवल निकल ही जाता है, वरन् चोरों के सम्मेलन स्थल (राज्य सभा) के सदस्यता से भी इस चोर को बर्खास्त नहीं कर उससे इस्तीफा देने हेतु विनम्र आग्रह किया जाता है. इसके उलट चोरों और दलालों के खिलाफ लड़ रही आम आदमी पार्टी सरीखे संस्था को दिन-रात बदनाम किया जा रहा है. मुख्य धारा के अतिरिक्त सोशल मीडिया पर भी अपने दलालों को बिठा कर विरोध करने वालों को अश्लीलतम गालियों से खामोश किया जा रहा है.
अभी चोरों और दलालों के जिस गिरोहों ने इन तमाम सत्ता प्रतिष्ठान पर कब्जा कर रखा है, वह तो अद्भूत है. इसको स्पष्ट करने के लिए सन् 1941 ई0 में कुक्रीनिक्सी’ नाम से प्रसिद्ध 3 व्यंगचित्रकारों ने मिलकर नाजियों के खिलाफ जो एक कार्टून बनाया था और उसके साथ एक कविता – ‘महापशुता’ भी जोड़ा था, वह समीचीन ही होगा. इस कार्टून के साथ छपी कविता का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है:
आर्य रक्त की शुद्धता
सम्मान पाती है गोमाता में.
शुद्ध रक्त वाली प्रशियाई गाय
श्रेष्ठ है अन्य सभी नस्लों से.
जर्मन जाति पवित्र भाव से भक्ति करती है,
न तो आईस्टीन की और न हाइने की,
बल्कि गऊ और सांढ़ की,
क्योंकि गऊ स्वामिनी है
प्रबुद्ध मस्तिष्क और स्वस्थ भावनाओं की.
और फिर हाइनेÛ
और आइंस्टीन
आपको न दूध दे सकते हैं न बछड़े.
हम तैयार करेंगे ऐसी स्थितियां,
कि आज के बाद,
हमारा रक्त भी होगा शुद्ध,
गोमाता की तरह.
और हमें नस्ल बढ़ानी होगी
गोमाता की तरह,
शुद्ध रक्त पशुधन के
रेवड़ के रेवड़ खड़े करने होंगे
ताकि अपने पुत्र को देखकर
पिता गर्व से कह सके:
‘‘एक सच्चा पशु,
ठीक अपने पिता और माता की तरह.’’
B khan
April 2, 2017 at 6:28 pm
बिल्कुल सही कहा।।। यहाँ जनता बनाती है सरकार ।। और सरकार चराती है जनता को।।।
S. Chatarjee
April 8, 2017 at 4:01 am
दलाली और भ्रष्टाचार का चोली दामन का रिश्ता है। दर असल ऐसा सिस्टम बनाया गया है जिससे सरकारी एजेंसियों को आम आदमी से दूर रखा गया। सरकार और जनता के बीच मालिक नौकर का रिश्ता बनाया गया। काम करवा देना अपने आप में एक काम बन गया। नियम ऐसे कि मानने जाओ तो कुछ नहीं कर पाओगे। स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार के सारे उपादानों को पोषते हुए हम अरण्य रोदन करते हैं। ऐसे में ईमानदारी एक गाली बन जाती है।
Saurabh Bajpai
April 9, 2017 at 2:00 am
Rohit, you have been writing very well. But there is a humble suggestion. Can you change the name for the sake of making your website more attractive, please. I think the present name sounds like a personal blog. Contrary to it, you are writing for public consumption. Hope you will take my suggestion in good spirit,
Rohit Sharma
April 9, 2017 at 2:11 am
सर, मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं पर एक बात जो वितृष्णा पैदा करती है वह है गजब ढाने वाले नामों के नीचे झूठी पूंजीवादी व्यवस्था का गुणगान. वामपंथी धारा वालों के द्वारा सामंती चोला धारणकर मजदूरों और किसानों के खिलाफ पूंजीवादियों का मददगार. नंदीग्राम में CPM नंगी रुप में उभर कर सामने आई. यही कारण है कि मैंने इसे अलग साधारण से नामों के साथ शुरु किया है. बहरहाल मैं आपके सजेशन से पूरी तरह सहमत हूं.
Saurabh Bajpai
April 9, 2017 at 2:01 am
सर, मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं पर एक बात जो वितृष्णा पैदा करती है वह है गजब ढाने वाले नामों के नीचे झूठी पूंजीवादी व्यवस्था का गुणगान. वामपंथी धारा वालों के द्वारा सामंती चोला धारणकर मजदूरों और किसानों के खिलाफ पूंजीवादियों का मददगार. नंदीग्राम में CPM नंगी रुप में उभर कर सामने आई. यही कारण है कि मैंने इसे अलग साधारण से नामों के साथ शुरु किया है. बहरहाल मैं आपके सजेशन से पूरी तरह सहमत हूं.
Saurabh Bajpai
April 9, 2017 at 2:03 am
बिल्कुल सही कह रहे हैं आप। लेकिन प्रभाव तभी उत्पन्न किया जा सकता है जब लोग आपको पढ़ें। और लोग आपको तभी पढ़ेंगे जब आप उन्हें आकर्षित करेंगे। इसलिए कहा कि आप अन्य नामों पर भी विचार कीजिये। आप अच्छा लिख रहे हैं तो वो लोगों तक पहुंचना चाहिए।