हिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता
इस चित्र में दीपावली के दीप जलाये जो महिला खडी हैं वे हिन्दू नहीं मुसलमान हैं. इन महिला के पति के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गये थे. इन महिला के पति की हत्या करने वाले लोग हिन्दू थे लेकिन इस महिला के दिल में हिन्दुओं के लिए ज़रा भी नफरत नहीं है.
यह अपने पति के क़त्ल के लिए नफरत फ़ैलाने और हिंसा फ़ैलाने वाले लोगों को दोषी मानती हैं, हिन्दुओं को नहीं. यह आज भी अदालत में इसीलिए लड़ रही हैं कि जिन लोगों ने निर्दोष हिन्दुओं के हाथों से निर्दोष मुसलमानों की हत्या करवाई, उन नफरत की राजनीति करने वाले लोगों को कानूनी सबक सिखाइए ताकि देश में और निर्दोषों की हत्या रुक सके.
दुःख की बात है कि अदालत ने अभी तक इन की बात नहीं मानी है. इनके पति की हत्या करवाने वाले आज भी खुलेआम सत्ता पर बैठे हुए हैं. इस महिला का नाम ज़किया ज़ाफरी है. इनके पति का नाम अहसान ज़ाफरी था. यह लोग अहमदाबाद में रहते थे. अहसान ज़ाफरी कांग्रेस की तरफ से संसद सदस्य थे.
चुनाव आने वाले थे. मोदी की हालत खराब थी. चुनाव में मोदी की हार पक्की थी इसलिए योजना बना कर मोदी और उसके गिरोह ने गुजरात में दंगे भड़का दिए. पहले ट्रेन में आग लगवा कर हिन्दुओं की हत्या करवाई गई. उसके बाद किये जाने वाले दंगों की तैयारी पहले से ही कर ली गई थी. मुसलमान व्यापारियों की दुकानों की लिस्ट टाइप करके फोटो-कापी कर के पार्टी कार्यकर्ताओं में बांट दी गई थीं. इन लिस्टों के हिसाब से ही मुसलमानों की दुकानें जलाई गईं.
भीड़ जब कांग्रेस नेता अहसान ज़ाफरी की हत्या करने के लिए आयी तो अहसान ज़ाफरी ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन पर मदद भेजने के लिए कहा. जवाब में नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘तू मरा नहीं अभी तक.’ इसके बाद भीड़ ने सांसद अहसान जाफरी के टुकड़े कर दिए और घर को आग लगा दी.
उस दंगे के बाद नरेंद्र मोदी ने पूरे गुजरात में घूम कर हिन्दुओं को भडकाया और चुनाव जीत लिया. तब से आज तक नरेंद्र मोदी उसी दंगों की फसल काट रहा है. उन्हीं दंगों से मिली लोकप्रियता के कारण आज नरेंद्र मोदी आज भारत का प्रधानमंत्री है लेकिन ज़किया ज़ाफरी बिना डरे उन दंगों और अपने पति की हत्या के लिए देश की सबसे ऊंची अदालत में लड़ रही हैं.
ज़किया ज़ाफरी, एक अकेली औरत लड़ रही है, बिना डरे, बिना थके, बिना रुके. मैं ज़किया ज़ाफरी से मिला हूंं. इस चित्र को देख कर मेरा दिल कर रहा है कि ज़किया बहन के पास जाकर उनकी थाली से एक दीपक लेकर मुंडेर पर रख दूं और दूर तक जो अंंधेरा फैला है उस अंंधेरे में रोशनी की एक झलक देख कर उनकी ही तरह थोडा-सा मुस्कुरा दूं.
अंंधेरा बहुत है, ग़म बहुत है, काम भी बहुत है रास्ता बहुत लम्बा है लेकिन दिया जलाना और मुस्कुराना कहांं मना है. इसी तरह बहुत सारे चिराग जल जायेंगे मोहब्बत और हिम्मत के तो ये हिंसा, और नफरत के अंंधेरे ज़रूर भाग जायेंगे. इस अंंधेरे में हमें इन चिरागों की रोशनी दिखाने के लिए बहुत शुक्रिया ज़किया बहन.
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