Home गेस्ट ब्लॉग विश्व गुरु का छात्र यूक्रेन में कड़ाही में बर्फ पिघला कर पी रहे हैं पानी

विश्व गुरु का छात्र यूक्रेन में कड़ाही में बर्फ पिघला कर पी रहे हैं पानी

5 second read
0
0
338

विश्व गुरु भारत का छात्र मजबूर होकर यूक्रेन की सड़कों से बर्फ जमाकर कड़ाही में बर्फ पिघला कर पी पानी रहे हैं और ‘राजा’ आलीशान लिबास पहनकर नीरो की तरह डमरू बजा रहा है.

विश्व गुरु का छात्र यूक्रेन में कड़ाही में बर्फ पिघला कर पी रहे हैं पानी

रवीश कुमार

प्रतिबंधों के असर और परमाणु ख़तरे की ख़बरें तेज़ी से बदल रही हैं. इन खबरों से दुनिया को चौकन्ना किया जा रहा है कि युद्ध कभी भी विनाश से महाविनाश की दिशा की तरफ मुड़ सकता है. आज भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि सात हज़ार भारतीय यूक्रेन में फंसे हैं. इतनी बड़ी संख्या में भारतीय फंसे हों और आसमान से बम गिर रहा हो, उनकी हालत से ध्यान नहीं हटाया जा सकता है. गुरुवार की रात सूमी शहर में जब बमबारी होने लगी तब छात्रों ने संदेश आने लगे कि चारों तरफ अंधेरा हो गया है. अब कुछ दिखाई नहीं दे रहा. पता नहीं अगली सुबह देखेंगे या नहीं.

भारत के ये बच्चे बर्फ समेट रहे हैं ताकि कमरे में ले जाकर इसे पिघला कर पी सकें. भारत के ये बच्चे पानी के लिए बर्फ बटोर रहे हैं औऱ यहां कड़ाही में बर्फ गर्म कर रहे हैं ताकि पी सकें. गोदी मीडिया ढिंढोरा पीट रहा है कि भारत विश्व गुरु बन गया है. छात्रों के पास पानी नहीं है. 3 मार्च की रात से पानी की सप्लाई बंद है. बिजली नहीं है कि टैंक का पानी गरम कर पी सकें. वह पीने लायक नहीं है. बोतल का पानी खत्म हो गया है.

यह हालत बता रही है कि सूमी में फंसे भारतीयों को लेकर एक मिनट की देरी नहीं की जा सकती है. रूस ने 24 फरवरी को हमला करते वक्त बयान दिया था कि नागरिकों पर हमला नहीं होगा लेकिन नागरिक खाने और पीने के लिए तरस जाएं, ये पूरी तरह से नागरिकों पर ही हमला है. 4 मार्च की दोपहर तक जब सूमी के भारतीय छात्रों ने देखा कि कही से कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही है तब उनका सब्र फिर से टूटने लगा.

सूमी स्टेट यूनिवर्सिटी के छात्र इस हाल में जमा होने लगे ताकि एक जगह जमा होकर अपनी बात सरकार और सुपर पावरों तक पहुंचा सकें. पिछले 9 दिनों से हॉस्टल से बंकर और बंकर से हास्टल भागते-भागते इनका हौसला जवाब दे रहा है. 3 मार्च की रात बमबारी ने इन्हें हिला दिया है. इनका धीरज जा रहा है. इस हॉल में जमा छात्र यह भी बताना चाहते हैं कि उनकी संख्या कई सौ में है. देखने वाले देख लें और उन्हें यहां से निकालने के लिए कुछ भी करें.

सूमी स्टेट यूनिवर्सिटी के कई छात्रों ने कहा कि नाइजीरिया और इजिप्ट के छात्र हास्टल से जा रहे हैं. छात्रों ने नाइजीरिया के छात्रों से पूछा कि आप लोगों को कौन यहां से लेकर जा रहा है, किस रास्ते से जा रहे हैं तो किसी ने जवाब नहीं दिया. संयुक्त राष्ट्र में नाइजीरिया और इजिप्ट दोनों ने रूस के खिलाफ मतदान किया है. यह साफ नहीं कि सूमी में मिस्र और नाइजीरिया के छात्रों को ले जाने का बंदोबस्त किसने किया है और किसकी मदद से ये छात्र यहां से निकल रहे हैं लेकिन भारतीय छात्रों का कहना है कि उन्हें कुछ नहीं बताया जा रहा है. गुरुवार की रात रूस के हमले ने इस छात्रों को कहीं ज्यादा डरा दिया है. हमले की रफ्तार इतनी अधिक थी कि छात्रों को लगा कि अब उनका बंकर भी सुरक्षित नहीं है. हमला होते ही शहर में बिजली चली गई.

छात्रों का कहना है कि सूमी में बस और ट्रेन नहीं चल रही है. उन्हें पता नहीं कि सड़क पर निकलना सुरक्षित है या नहीं और कितनी दूर तक पैदल ही चलते रहेंगे और घर में रहना भी अब जानलेवा होता जा रहा है. छात्रों के पास मनोबल ही बचा है लेकिन इसके दम पर वे 1400 किलोमीटर पैदल चल कर रोमानिया या हंगरी नहीं पहुंच सकते हैं. एक छात्र ने बताया कि यूक्रेन की सेना ने ही रूसी टैंकों को रोकने के लिए रास्ते के सारे पुल ध्वस्त कर दिए हैं इसलिए सरकार की पहल से ही निकाला जा सकता है. बर्फबारी बमबारी से कम नहीं है. इतनी बर्फ और तेज़ हवा के बीच पैदल चल कर छात्र 1400 किलोमीटर पैदल नहीं जा सकते. रात के वक्त कहां रुकेंगे. कुछ ख़तरा हुआ तब क्या करेंगे.

सूमी में फंसे छात्रों के मां-बाप के होश उड़े हैं. उन्हें लगता है कि मीडिया का ध्यान बड़ी-बड़ी बातों में है, वैसे प्रतिबंधों औऱ परमाणु खतरे की बात को भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता लेकिन इस वक्त में ऐसे मां बाप को तसल्ली हो सके, हम उनके बच्चों से जुड़ी खबरों पर बने हुए हैं ताकि सरकारी प्रयासों में और तत्परता आए और सूमी से भारतीय जल्दी लौटें.

दिल्ली के छतरपुर एक्सटेंशन में रहने वाले हरजोत सिंह कीव शहर से निकले ही थे कि गोली लग गई. 27-28 फरवरी को हरजोत को गोली लगी थी और उसके बाद वे 5-6 घंटे तक सड़क पर ही पड़े रहे. दो मार्च को जब होश आया तो पता चला कि एक गोली छाती में भी लगी है. हरजोत ठीक हैं लेकिन वापस कीव में ही हैं. हरजोत ने बताया कि जब ट्रेन में जगह नहीं मिली तो टैक्सी से ही निकल पड़े. टैक्सी में बैठते ही गोलीबारी शुरू हो गई. होश आने पर हरजोत को पता चला कि एक गोली छाती में भी लगी है.

आप अपने बच्चों को मेरे कंडीशन में रखकर देखना. हरजोत की इस अपील के बाद आप उस सूमी शहर की कल्पना की कीजिए जो कीव से भी दूर है. जहां से निकलने का मतलब 1400 किमी पैदल चलना होगा, कैसे वहां से सात आठ सौ बच्चे आएंगे. इस वक्त जब हर पल तबाही किसी न किसी रुप में आसमान से टूट रही है.

यहां प्रधानमंत्री वाराणसी एयरपोर्ट पर बैठकर बच्चों से बात कर रहे हैं, क्या यह बताने के लिए कि सब कुछ सामान्य हो चुका है, जो बच्चे खुद से यूक्रेन के भीतर से निकल कर सीमा पर पहुंचे हैं, उनसे शुक्रिया कहलवाने के लिए, अगर यूक्रेन के भीतर से ही भारत सरकार निकाल रही है, तब भी सूमी में छात्र अभी तक क्यों फंसे हैं ? इतने परेशान हाल में भी किसी बच्चे ने ऐसा भी नहीं कहा जिससे सरकार को चुभ जाए कि इतना काम किया और किसी ने नाम नहीं लिया लेकिन जब हज़ारों छात्र अभी भी फंसे हों इस तरह के प्रचार से बचा जा सकता था.

खबरों में सरकार के कसीदे कसे जा रहे हैं. इस उत्साह में कुछ ऐसी खबरें भी छप जा रही हैं जिनका वास्तविकता से संबंध नहीं, युद्ध में ऐसा होता है तब यह जिम्मेदारी सरकार की है वह सूचनाओं को सही करे. अखबारों में कुछ ऐसी भी खबरें छप रही हैं कि भारत के कहने पर, प्रधानमंत्री के कहने पर रूस ने खारकीव में छह घंटे के लिए बम बरसाने बंद कर दिए. क्या किसी ने ध्यान दिया कि रूस इतनी मेहरबानी कर ही रहा था तब फिर सूमी में बमबारी बंद क्यों नहीं हई ?

3 मार्च के अमर उजाला की हेडलाइन देखिए. लिखा है भारत की ताकत, भारतीयों को निकालने के लिए खारकीव में छह घंटे तक रोके हमले, रूस ने जंग रोक कर दिया मौका. 3 मार्च को पत्रिका अखबार में खबर छपती है कि रूस युद्ध रोकने को तैयार हो गया है. रूस ने सिर्फ 6 घंटे के लिए ही युद्ध रोकने की सहमति जताई है. युद्ध रोकने की बड़ी वजह भारत है.

पत्रिका ने लिखा है कि दरअसल पीएम मोदी ने बुधवार देर रात रूसी राष्ट्रपति से बातचीत की और भारतीयों की सुरक्षित निकाली को लेकर चर्चा की थी. प्रधानमंत्री की बातचीत के बाद विदेश मंत्रालय ने दो मार्च को प्रेस रिलीज जारी की थी उसमें इतना ही लिखा था कि दोनों नेताओं ने भारतीय नागरिकों के निकले जाने को लेकर बात की. आग्रेनाइज़र वीकली ने भी छह घंटे तक युद्ध रोकने वाली खबर को ट्विट किया था. उस दिन कुछ और पत्रकारों ने भी ट्विट किया था.

क्या इन खबरों को इस लिए संदेह का लाभ दिया गया क्योंकि इनसे हिन्दी के पाठकों के बीच हवा बनती है कि भारत विश्व गुरु बन गया है. भारत की वजह से रूस बम ब्रेक ले रहा है. क्या सरकार को तुरंत इसका खंडन नहीं करना चाहिए था ? क्या हम झूठ का सहारा लेकर सुपर पावर बन रहे हैं ? क्या ये अखबार अपनी वेबसाइट से इन खबरों को हटाएंगे ? अगले दिन स्पष्टीकरण छापेंगे कि यह खबर गलत थी ?

2 मार्च को दूतावास ने जो एडवाइजरी जारी की थी उसमें बमबारी रोकने की बात नहीं थी. मैं अगर बोलने में प्रतिशत की गलती कर दूं तो नोटिस आ जाता है कि जवाब दीजिए. लेकिन ऐसी बेबुनियाद खबरें छप रही हैं, उनका न तो खंडन किया जाता है, न वेबसाइट से हटाने के आदेश दिए जाते है. खंडन तब होता जब सुहासिनी साफ साफ सवाल करती हैं.

पीएम मोदी के कहने पर पुतिन ने युद्ध नहीं रोका था. क्या युद्ध रोकने की खबर कोई मामूली खबर थी ? ऐसा होता तो दुनिया भर की पहली हेडलाइन यही होती. यह कोई प्रतिशत और बिन्दु की गलती नहीं है जिसके होने पर मुझसे सफाई मांगी जाती है. युद्ध रुकवा देने की बात पर तो यूएन में ताली बज जाती. यह खबर एक अखबार ने गलती से नहीं छापी बल्कि कइयों ने इसे छापा और शायद दिखाया भी.

प्रचार करना गलत नहीं है लेकिन फर्जीवाड़े का सहारा लेकर प्रचार तो गलत ही होता है. आपको आइसक्रीम के नाम पर कोई कप में चूना परोस दे तो कैसा लगेगा ? इसके बाद भी कहा जा रहा है कि बमबारी रोकने की बात पर यकीन किया जाए क्योंकि सुष्मा स्वराज ने यमन के युद्ध में सभी पक्षों से बात कर दो घंटे के लिए जंग रुकवा दी थी. अजीब हाल है. तब तो सवाल ये बनता है कि सुष्मा स्वराज ने तो झूठ का सहारा नहीं लिया. उन्होंने जो किया वो बताया, लेकिन यहां तो जो किया ही नहीं वो छप गया और उसे सही बताया जा रहा है.

ऑपरेशन गंगा के ट्विटर हैंडल पर छात्रों ने लिखा है कि खार्किव नेशनल यूनिवर्सिटी के 800 छात्र खार्किव से 14 किलोमीटर दूर पेसोचिन में बेहद मुश्किल हालात में फंसे हैं, कृपया मदद करें. वे मुश्किल हालात क्या है, इसकी चर्चा कम है, ज्यादा इसकी हो रही है कि सब प्रधानमंत्री का धन्यवाद कर रहे हैं.

3 मार्च को ही टाइम्स आफ इंडिया की वेबसाइट पर खबर छप गई कि रूसी सेना के एक अधिकारी ने बताया है कि रूस की सीमा से सटे शहर बेलगोरोद में रूस की 130 बसें खड़ी हैं, जिनसे खार्किव और सूमी शहर में फंसे भारतीय नागरिकों और अन्य देशों के नागरिकों को निकाला जाएगा.

यही खबर 4 मार्च के इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर है लेकिन 4 मार्च दोपहर तक इस मामले में किसी को पता नहीं. कोई प्रगति नहीं. सूमी में छात्र सरकार और रूस से जान बचाने की गुहार करते रहे. अखबारों में लिखा है कि रूस के नेशनल डिफेन्स कंट्रोल सेंटर के प्रमुख मीखेल मीज़िनत सवे ने ऐसा बयान दिया है.

हंगरी की सीमा से यूक्रेन के चॉप के स्टेशन तक ट्रेन चल रही है. यह ट्रेन हंगरी की सरकार चलवा रही है. इस ट्रेन से अपने रिस्क पर भारत के नीरज त्यागी चॉप स्टेशन गए और वहां से कुछ छात्रों को हंगरी लाने में सफल रहे. कम से कम वे चले तो गए. इसके बाद इन छात्रों को बुडापेस्ट की ट्रेन में बिठाने में मदद भी की.

सरकार से अपील है कि सूमी में फंसे छात्रों पर ध्यान दे. जो छात्र यूक्रेन से बाहर आ गए हैं वो आ ही जाएंगे लेकिन जो यूक्रेन के भीतर फंसे छात्रों को लेकर हम एक मिनट भी देर नहीं कर सकते.

Read Also –

मोदी सरकार यूक्रेन में फंसे भारतीयों को रुस के खिलाफ मानव ढ़ाल बना रही है
यूक्रेन संकट में भारतीय : सत्तालोभियों और कायरों का गिरोह है बीजेपी
भारत नहीं, मोदी की अवसरवादी विदेश नीति रुस के खिलाफ है
यूक्रेन युद्ध : पश्चिमी मीडिया दुष्प्रचार और रूसी मीडिया ब्लैक-आउट

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…