यही वह आदमी है-खाऊ, तुंदियल, कामुक लुच्चा, जालसाज़ और रईस, जिसकी सेवा की खातिर इस व्यवस्था और सरकार का निर्माण किया गया है. इसी आदमी के सुख और भोग के लिए इतना बडा़ बाज़ार है और इतनी सारी पुलिस और फौज है…
शिट् ! शाला हांफ रहा है, एक पैर कब्र में लटका है, मोटापे के कारण ठीक से चल नहीं पाता, लेकिन खाए जा रहा है. उसे खाने के लिए अनंत भोज्य पदार्थ चाहिए. उसकी जीभ को अनंत स्वाद चाहिए. सारी दुनिया के वैज्ञानिक उसकी जीभ को संतुष्ट करने के खातिर तमाम प्रयोगशालाओं में शोध कर रहे हैं, उसके लोदे और घृणित थुलथुल शरीर की समस्त इंद्रियों को अनंत-अपार आनंद और बेइंतहा मज़ा और ‘किक’ चाहिए. उसकी हिप्पोपोटेमस जैसे थूथन को तरह-तरह की खुशबू चाहिए. सारी परफ्यूम इंडस्ट्री इसी की नाक की बदबू मिटाने के लिए है. एक कार्बनिक रासायन वैज्ञानिक के नाते मेरा काम होगा, इस भोगी लोदें की एषणाओं और सृजन के द्वारा संतुष्ट करना.
यही वह आदमी है जिसके लिए संसार भर की औरतों के कपड़े उतारे जा रहे हैं. तमाम शहरों के पार्लर्स में स्त्रियों को लिटाकर उनकी त्वचा से मोम के द्वारा या एलेक्ट्रोलियस के जरिये रोय़ें उखाड़े जा रहे हैं, जैसे पिछले समय में गड़रिये भेड़ों की खाल से ऊन उतारा करते थे, राहुल को साफ दिखाई देता कि तमाम शहरों और कस्बों के मध्य-निम्न मध्यवर्गीय घरों से निकल-निकल कर लड़कियाँ उन शहरों में कुकुरमुत्तों की तरह जगह-जगह उगी ब्यूटी-पार्लर्स में मेमनों की तरह झुंड बनाकर घुसतीं और फिर चिकनी-चुपड़ी होकर उस आदमी की तोंद पर अपनी टाँगें छितरा कर बैठ जातीं, इन लड़कियों को टी.वी. ‘बोल्ड एंड ब्यूटीफुल’ कहता और वह लुजलुजा-सा तुंदियल बूढ़ा खुद ‘रिच एंड फेमस’ था.
वह आदमी बहुत ताकतवर था. उसको सारे संसार की महान शैतानी प्रतिभाओं ने बहुत परिश्रम, हिकमत पूँजी और तकनीक के साथ गढ़ा था. उसको बनाने में नयी टेक्नालॉजी की भूमिका अहम थी. वह आदमी कितना शक्तिशाली था. इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि उसने पिछली कई शताब्दियों के इतिहास में रचे-बनाये गये कई दर्शनों, सिद्धान्तों और विचारों को एक झटके में कच़ड़ा बनाकर अपने आलीशान बंगले के पिछवाड़े के कूड़ेदान में डाल दिया था. ये वे सिद्धान्त थे, जो आदमी की हवस को एक हद के बाद नियंत्रित करने, उस पर अंकुश लगाने या उसे मर्यादित करने का काम करते थे.
इससे ज़्यादा मत खाओ, इससे ज़्यादा मत कमाओ, इससे ज़्यादा हिंसा मत करो, इससे ज़्यादा संभोग मत करो, इससे ज़्यादा मत सोओ, इससे ज़्यादा मत नाचो….वे सारे सिद्धान्त, जो धर्म ग्रंथों में भी थे, समाजशास्त्र या विज्ञान अथवा राजनीतिक पुस्तकों में भी. उन्हें कूड़ेदान में डाल दिया गया था. इस आदमी ने बीसवीं सदी के अंतिम में पूँजी सत्ता और तकनीक की समूची ताकत को अपनी मुट्ठियों में भर कर कहा थाः स्वतंत्रता ! चीखते हुए आज़ादी ! अपनी सारी एषणाओं को जाग जाने दो, अपनी सारी इंद्रियों को इस पृथ्वी पर खुल्ला चरने और विचरने दो. इस धरती पर जो कुछ भी है, तुम्हारे द्वारा भोगे जाने के लिए है. न कोई राष्ट्र है, न कोई देश. समूचा भूमण्डल तुम्हारा है. न कुछ नैतिक है. न कुछ अनैतिक. कुछ पाप है. न पुण्य. खाओ पियो और मौज़ करो. नाचो….ऽऽ वूगी. वूगी. गाओ…ऽऽ वूगी.खाओ ! खूब खाओ. कमाओ, खूब कमाओ वूगी….वूगी. इस जगत के समस्त पदार्थ तुम्हारे उपभोग के लिए है. वूगी….वूगी….! और याद रखो स्त्री भी एक पदार्थ है वूगी….वूगी…!
उस ताकतवर भोगी लोंदे ने एक नया सिद्धान्त दिया था जिसे भारत के वित्तमंत्री ने मान लिया था और खुद उसकी पर्स में जमकर घुस गया था. वह सिद्धान्त यह था कि उस आदमी को खाने से मत रोको. खाते-खाते जैसे उसका पेट भरने लगेगा. वह जूठन अपनी प्लेट के बाहर गिराने लगेगा. उसे करोड़ों भूखे लोग खा सकते है. काटीनेंटल, पौष्ठिक जूठन. उस आदमी को संभोग करने से मत रोको, वियाग्रा खा-खाकर वह संभोग करते-करते लड़कियों को अपने बेड से नीचे गिराने लगेगा, तब करोड़ों वंचित देशी छड़े उन लड़कियों को प्यार कर सकते है. उनसे अपना घर परिवार बसा सकते हैं.
यही वह सिद्धान्त था, जिसे उस आदमी ने दुनिया भर के सूचना संजाल के द्वारा चारों ओर फैला दिया था और देखते-देखते मानव सभ्यता बदल गई थी टीवी चैनलों सारे कंप्यूटरों में यह सिद्धान्त बज रहा था, प्रसारित हो रहा था.
बीसवीं सदी के अंत और इक्कसवीं सदी की दहलीज़ की ये वे तारीखें थी जब प्रेमचन्द्र, तॉल्सतॉय, गाँधी या टैगोर का नाम तक लोग भूलने लगे थे. किताबों की दुकानों में सबसे ज़्यादा बिक रही थी बिल गोट्स की किताब ‘दि रोड अहेड’,
वह तुंदियल अमीर खाऊ आदमी, गरीब तीसरी दुनिया की नंगी विश्व सुंदरियों के साथ एक आइसलैंड के किसी मंहगे रिसॉर्ट में लेटा हुआ मसाज करा रहा था अचानक उसे खुद याद आया और उसने सेल फोन उठाकर एक नम्बर मिलाया.
विश्व सुंदरी ने उसे वियाग्रा की गोली दी, जिसे निगल कर उसने उसके स्तन दबाये, ‘हेलो ! आयम निखलाणी, स्पीकिंग ऑन बिहाफ ऑफ द आइ, एम. एफ, गेट मी टु दि प्राइम मिनिस्टर !’
‘येस….येस ! निखलाणी जी ! कहिए कैसे हैं ? मैं प्रधान मंत्री बोल रहा हूँ,
‘ठीक से सहलाओ ! पकड़कर ! ओ. के. !’ उस आदमी ने मिस वर्ल्ड को प्यार से डाटा फिर सेल फोन पर कहा ‘इत्ती देर क्यों कर दी….साईं ! जल्दी करो ! पॉवर, आई टी, फूड, हेल्थ एजुकेशन….सब ! सबको प्रायवेटाइज करो साईं !…ज़रा क्विक ! और पब्लिक सेंक्टर का शेयर बेचो… डिसएन्वेस्ट करो…! हमको सब खरीदना है साईं…!
‘बस-बस ! ज़रा सा सब्र करें भाई…बंदा लगा है डयूटी पर, मेरा प्रॉबलम तो आपको पता है. खिचड़ी सरकार है. सारी दालें एक साथ नहीं गलतीं निखलाणी जी. ’
‘मुंह में ले लो. लोल…माई लोलिट्,’ रिच एंड फेमस तुंदियल ने विश्वसुन्दरी के सिर को सहलाया फिर ‘पुच्च…पुच्च की आवाज़ निकाली, ‘आयम, डिसअपांयंटेड पंडिज्जी ! पार्टी फंड में कितना पंप किया था मैंने, हवाला भी, डायरेक्ट भी…केंचुए की तरह चलते हो तुम लोग, एकॉनमी कैसे सुधरेगी ? अभी तक सब्सिडी भी खत्म नहीं की !’
‘हो जायेगी निखलाणी जी ! वो आयल इंपोर्ट करने वाला काम पहले कर दिया था, इसलिए सोयाबीन, सूरजमुखी और तिलहन की खेती करने वाले किसान पहले ही बरबाद थे. उनके फौरन बाद सब्सिडी भी हटा देते तो बवाल हो जाता…आपके हुकुम पर अमल हो रहा है भाई….सोच-समझ कर कदम उठा रहे हैं,’
‘जल्दी करो पंडित ! मेरे को बी. पी है. ज़्यादा एंक्ज़ायटी मेरे हेल्थ के लिए ठीक नहीं, मरने दो साले किसानों बैंचो….को…ओ…के…’
उस आदमी ने सेल्युलर ऑफ किया, एक लंबी घूंट स्कॉच की भरी और बेचैन हो कर बोला, ‘‘वो वेनेजुएला वाली रनर कहाँ है. उसे बुलाओ. ’
[ 2000 ई. में उदय प्रकाश लिखित पीली छतरी वाली लड़की की कहानी का एक अंश ]
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