बिक चुकी मिडिया और देश के बड़े कॉरपोरेट घरानों का नौकर बनी इस सरकार से सवाल करना आत्मघाती कदम है, फिर भी इस जोखिम को उठाते हुए कुछ पत्रकार ने सवाल उठाते रहे हैं. अभी देश में सैकड़ों ऐसी घटनाएं घट रही है जहां सरकारी भोंपू बनने पर पुरस्कार और सुरक्षा की पुख्ता इंतजाम किया जा रहा है तो वहीं, सरकार से देश के आम आदमी की सुरक्षा की मांग करने वाले जेलों में ठूंसे जा रहे हैं, जिस पर दो पत्रकारों ने अपने सोशल मीडिया पेज पर अपने सवाल खड़े कर रहे हैं क्योंकि उनके अवाजों को मुख्य धारा की बिकी हुई मीडिया उठा नहीं रहा है.
सोशल मीडिया पेज पर सक्रिय पत्रकारों के दो टिप्पणी हम यहां पाठकों के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं. पहले पत्रकार गिरीश मालवीय हैं जिन्होंने आजीवन कारावास की सजा पाये एक हत्यारे और बलात्कारी गुरमीत सिंह राम रहीम को भाजपा को चुनाव जिताने के लिए न केवल पैरोल पर जेल से रिहा ही कर दिया अपितु उसके लिए प्रधानमंत्री के बाद सबसे ताकतवर सुरक्षा व्यवस्था जेड प्लस की सुरक्षा भी मुहैया करा दी है. गिरीश मालवीय लिखते हैं –
साल 2013 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार सत्ता में थी, उसने रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक मुकेश अंबानी को जेड प्लस सुरक्षा देनी चाही इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा क्यों प्रदान की जा रही है जबकि आम आदमी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है.’ आज 2022 में जेल से फरलो (पैरोल) पर छूटे एक दुर्दांत अपराधी राम रहीम को मोदी सरकार जेड प्लस सुरक्षा दे रही है, लेकिन सब मुंह में दही जमाकर बैठे हुए हैं.
देश में इस वक्त मात्र 40 लोगों को ही जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की जा रही है. इस श्रेणी की सुरक्षा में 36 सुरक्षाकर्मी सेवा में तैनात किए जाते हैं, जिनमें एनएसजी के 10 कमांडोज भी शामिल होते हैं. इन कमांडोज को अत्याधुनिक हथियारों के साथ तैनात किया जाता है. इसमें तीन घेरे में सुरक्षा की जाती है. पहले घेरे में एनएसजी सुरक्षा में लगाए जाते हैं, इसके बाद एसपीजी के अधिकारी तैनात किए जाते हैं और इसके साथ ही आईटीबीपी और सीआरपीएफ के जवान भी सुरक्षा में लगाए जाते हैं.
आप सोचकर देखिए कि ऐसी सुरक्षा एक ऐसे अपराधी को दी जा रही है, जिसने रेप और मर्डर जैसे जघन्य अपराध किए हैं. राम रहीम अपनी मृत्यु तक जेल में रहेगा. उसे डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या के मामले में उम्रकैद, पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या में उम्रकैद और अपने आश्रम में आने वाली श्रद्धालु लडकियों से बलात्कार करने के जुर्म में 20 साल जेल की सजा सुनाई जा चुकी है.
रेप के प्रकरण में फैसला देते वक्त सीबीआई अदालत के जज ने कहा कि एक ऐसे व्यक्ति को नरमी पाने का कोई हक नहीं है, जिसे न तो इंसानियत की चिंता है और न ही उसके स्वभाव में दया-करूणा का कोई भाव है. उन्होंने कहा कि किसी धार्मिक संगठन की अगुवाई कर रहे व्यक्ति की ओर से किए गए ऐसे आपराधिक कृत्य से देश में सदियों से मौजूद पवित्र आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संस्थाओं की छवि धूमिल होना तय है.
मात्र अपने राजनीतिक हित साधने के लिए मोदी सरकार ऐसे अपराधी को जेल से निकालती है और उसे जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा देती हैं, ताकि वह अपने अनुयायियों को बीजेपी को वोट देने की अपील कर दे. हरियाणा की बीजेपी सरकार कहती है कि राम रहीम कट्टर अपराधी नहीं है. अगर दो दो मर्डर और रेप का आरोपी कट्टर अपराधी नही हैं तो कट्टर अपराधी आप किसे कहेंगे ? मोदी सरकार घटियापन दिखाने में रोज अपनें ही रिकॉर्ड तोड़ती नजर आती हैं.
भारत की मोदी सरकार जिसका एकमात्र काम चुनाव प्रचार करना और चुनावों में ऐन-केन-प्रकारेण जीत हासिल कर सत्ता पर कब्जा करना है. आईये, अब एक दूसरे पत्रकार रूपेश कुमार सिंह के सवाल को रखते हैं, जिन्हें जनता की सुरक्षा हेतुसरकार से सवाल पूछने के ‘अपराध’ में जेलों में डाल दिया गया था, पर उन्होंने जेल जाने के बाद भी सवाल उठाना बंद नहीं किया. पत्रकार रूपेश कुमार सिंह लिखते हैं –
अभी-अभी मुझे आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता भगवान दास किस्कू के भाई लालचंद किस्कू ने फोन किया और बताया कि भगवान को पुलिस ने 20 फरवरी की रात को ओरमांझी (रांची) से गिरफ्तार किया है.
लालचंद किस्कू ने मुझे बताया कि वे रामटहल चौधरी कॉलेज, ओरमांझी (रांची) के बीए फ़र्स्ट सेमेस्टर के छात्र हैं और वहीं पर बगल के लॉज में रहते हैं. भैया (भगवान दास किस्कू) 20 फरवरी को विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन की बैठक में भाग लेने रांची गये थे. बैठक खत्म होने के बाद वे शाम में मेरे पास आ गये. रात के लगभग डेढ़ बजे सिविल ड्रेस में कुछ लोगों ने दरवाज़ा खटखटाया. दरवाजा खोलने के बाद खुद को पुलिस बताते हुए भैया (भगवान), मुझे व मेरे रूम पार्टनर कान्हू मुर्मू को पकड़ लिया और गाड़ी में बैठाकर वहां से गिरिडीह लेकर आए और यहां किसी अज्ञात जगह पर हाजत में बंद कर दिया.
21 फरवरी को हम दोनों को भैया से अलग कर मधुबन स्थित सीआरपीएफ कैम्प (कल्याण निकेतन) लेते आया. 23 फरवरी तक हम दोनों को यहीं रखा गया. कल यानी 24 फरवरी को हम दोनों को मधुबन थाना ले जाया गया और वहां पर ग्रामीणों के आने पर हम दोनों को छोड़ा गया.
4 दिन बाद पुलिस व सीआरपीएफ की अवैध हिरासत में रहने के बाद कल जैसे ही अखबार देखा तो पता चला कि पुलिस कह रही है कि भैया को 23 फरवरी को खुखरा के पास से गिरफ्तार किया गया है, जो बिल्कुल ही झूठ है.
लालचंद किस्कू जब मुझे यह बता रहे थे, तो मैं सन्न था कि सिर्फ़ अख़बार देखकर कल मैंने भी लिखा था कि ‘भगवान दास किस्कू को 23 फरवरी को गिरफ्तार किया गया है.’ मैं अपने उस लिखे के लिए शर्मिंदा हूं और कल ही भगवान दास किस्कू के घर पर जाकर ग्राउंड रिपोर्ट करूंगा.
झारखंड व देश के प्रगतिशील लोगों से भी अपील है कि झारखंड में लगातार आदिवासी-मूलवासी जनता पर हो रहे राजकीय दमन के ख़िलाफ़ आवाज उठाएं.
अंजनी विशु लिखते हैं झारखंड समेत समूचे देश में खासकर निर्दोष आदिवासियों पर आये दिन रोज पुलिसिया गुंडागर्दी का खबरें आ रही है. आज भी झारखंड में हजारों बेकसूर आदिवासी मूलवासी जेल के अंदर बंद हैं. क्या उग्रवादियों के नाम पर सरकार फिर से सुदूर गांव व जंगल में रह रहे आदिवासियों पर जुल्म ढ़ाहने और जल-जंगल-जमीन की लूट को मजबूती के साथ बढ़ावा देने के लिए समाज में पुलिसिया खौफ पैदा करने की योजना का ही एक हिस्सा नहीं है ये खबर ?
झारखंड में सत्ता पर बैठे हुकूमत हमेशा इस प्रतिस्पर्धा में लगे रहते हैं कि सबसे ज्यादा हम हितैषी हैं पूंजीपति व कॉरपोरेट घरानों का. इस स्पर्धा में पिसे जाते हैं निर्दोष आदिवासी. कोई लैंड बैंक बनाते हैं तो कोई लैंड पूल ! देश के खनिज संपदा का दोहन जिस तरह से जारी है, उसी तरह से यहां के आदिवासी मूलवासी का भी. जबकि जिस जल-जंगल-जमीन और खनिज पदार्थों को लूटेरों से बचाने के लिए लड़ते हुए शहीद हुए और बेसकीमती संपदा को बचाया, आज उसी के वंशज को फिर से उग्रवादियों वो तरह-तरह का तमगा लगाते हुए उसके अस्तित्व को खत्म करते हुए लूट जारी है.
जिन आदिवासी मूलवासी के जीवन में बेहतर बदलाव होना चाहिए आज उनका उग्रवादी, नक्सली व देशद्रोही के नाम पर दमन जारी है. बस इस लूटेरी सरकार के द्वारा हरेक मांह पांच किलो राशन पर उसके जीवन को समेट कर रख देना चाहता है, जबकि उनके पास उनके पुरखों के द्वारा जो जमीन अनाज पैदा करने के लिए तैयार किया गया था, आज वो सैंकडों डैम बनने के बाद भी प्रकृति के पानी पर ही निर्भर है. डैम बनाकर आदिवासी मूलवासी को केवल विस्थापित किया गया. हजारों सपना दिखाकर डैम जब तैयार हुआ तो पता चला वो पानी यहां पूंजीपतियों के कारखानों में जा रहा है.
आप जब डैम व कंपनी के इलाकों में जायेंगे तो आपको वहां के आदिवासी व मूलवासी का दर्द सुनने को मिलेगा, लेकिन सवाल उठता है कि जब आप इन सवालों पर लिखेंगे व बोलेंगे तो आप भी सत्ता के नजर में देशद्रोही व अर्बन नक्सल मान लिये जायेंगे.
कितना विचित्र है न, एक सजायाफ्ता आदतन हत्यारे-बलात्कारी रामरहीम को जेल से निकालकर जेड प्लस श्रेणी की उच्चस्तरीय सुरक्षा दी जा रही है तो वहीं अपने हक-अधिकार के लिए लड़ रहे लोगों को कॉरपोरेट घरानों की यह सरकार चोरों की तरह फर्जी तरीके से घरों से उठाती है और जेलों में बंद करती है, माओवादी होने का आरोप लगाती है और लोगों को एक झूठी कहानी सुना देती है. लज्जा की बात है कि बशर्म सरकार यह सब ‘लोकतंत्र और जनता के हित’ के नाम पर कर रही है.
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