समाजवादी काल में सोवियत संघ (रूस) में महिलाओं की स्थिति कैसी थी ? इसका जवाब यहाँ रामवृक्ष बेनिपुरी की पुस्तक ‘लाल रूस’ से कुछ अंश दे रहा हूँ. यह पुस्तक उन्होंने समाजवादी सोवियत संघ की अपनी यात्रा के बाद 1940 में लिखी व अब गार्गी प्रकाशन ने प्रकाशित की है. उन्होंने लिखा है –
सोवियत संघ में स्त्रीत्व ने एक नये संसार में प्रवेश किया. सोवियत नारियाँ पुरुषों की साथ एक नयी समता का जीवन जीती हैं — चाहे वे जिस क्षेत्र में भी हों — शिक्षा में, राजनीति में, उद्योग में, पद-मर्यादा में, संस्कृति में. ज़ारशाही से बढ़कर स्त्रियों को ग़ुलाम बनाने वाला कोई राज्य संसार में नहीं था. सोवियत शासन से बढ़कर उन्हें उन्मुक्त करने वाली संसार में कोई और शासन पद्धति नहीं है.
लेकिन यह मुक्ति उन्हें मुफ़्त में नहीं मिली है. उन्होंने यह क़ीमती चीज़ अपने हृदयरक्त के दाम पर ख़रीदी है. जार के न्यायमंत्री ने कहा था — ‘क्रांतिकारियों की सफलता का कारण उनके अन्दर स्त्रियों का होना है.’ लेनिन ने कहा था — ‘पेट्रोगाद में, मास्को में, दूसरे शहरों और उद्योग केंद्रों में, देहातों तक में स्त्रियाँ क्रान्ति की इस परीक्षा में सोलह आने सफल उतरी हैं. उनके बिना हम विजयी हो नहीं सकते थे या मुश्किल से होते. यह मेरा सोचा समझा विचार है. उफ़, वे कितनी बहादुर हैं ! उनकी बहादुरी ज़िन्दा रहे.’
सोवियत संघ की स्त्रियों के पास विवाह करने या न करने की पूरी आज़ादी है. शादी के साथ परिवेश या सम्पत्ति के सम्बन्ध को पूरी तरह ख़त्म कर दिया गया है. विवाह के चलते वहाँ स्त्रियों की जीविका नहीं छिनी जाती. पति-पत्नी दोनों आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर व स्वतन्त्र हैं.
वेश्यावृति का तो वहाँ नामोनिशान तक नहीं है. एक पत्नीव्रत या एक परिव्रत रहने को हर तरह से प्रोत्साहित किया जाता है. इसके लिये लेनिन की राय बड़ी उपदेशप्रद है. नये नैतिक नियम के नाम पर उच्छ्रंखल प्रेम को वो बुरी नज़र से देखते थे और उसे पूँजीवादी वेश्यावृति का नया संस्करण मात्र मानते थे. ‘काम पिपासा की शान्ति तो प्यास लगने पर एक गिलास पानी पीने की तरह एक मामूली सी बात है’ जैसी बहकी बातें कहने वालों को उन्होंने जवाब दिया— ‘क्या कोई स्वस्थ आदमी अपने होशो-हवास में, प्यास लगने पर ग़लीज़ में घुसकर गन्दे नाले का पानी पियेगा ? या वह एक ऐसे गिलास में पानी पियेगा, जिसमें कितने ही होंठों के लार व थूक लगे हों !’ यह तो साम्यवाद के दुश्मनों का काम था कि वे संसार में ‘स्त्रियों के समाजीकरण’ या ‘एक ही कम्बल में सभी’ के झूठे नारे देकर लोगों को इस प्रथम साम्यवादी राज्य की ओर मुख़ातिब होने से रोकें.
लोग कहा करते हैं, सोवियत ने पारिवारिक जीवन को ख़त्म कर दिया है. यदि पारिवारिक जीवन का अर्थ हो पति काम करे, कमाये और पत्नी उसी के आश्रय पर घर की गंदगी में मरती रहे या धनी विलासी पति के दिल को लुभाने के लिये तरह-तरह के शृंगार और ढोंग करे, तो निस्सन्देह सोवियत ने पारिवारिक जीवन का ख़ात्मा कर दिया है. लेकिन अगर पारिवारिक जीवन का मतलब हो, पति-पत्नी बराबरी की हैसियत से, बिना एक दूसरे पर बोझ बने, पारस्परिक सहयोग भावना लिए हुए, शुद्द प्रेम के आधार पर, सानंद, सौल्लास जीवनयात्रा तय करें तो संसार में अगर कहीं पारिवारिक जीवन है तो सोवियत रूस में ही है.
- ‘लाल रूस’ पुस्तक से लिये गये कुछ अंश
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