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मनुस्मृति को लागू करने की दिशा में बढ़ता रीढ़विहीन सुप्रीम कोर्ट

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मनुस्मृति को लागू करने की दिशा में बढ़ता रीढ़विहीन सुप्रीम कोर्ट

क्या भारत में अब सैकड़ों साल पुरानी और मिथकीय न्याय प्रणाली लागू की जाएगी ? क्या अब मनु, चाणक्य व याज्ञवल्क्य के रास्ते पर चल कर न्याय दिया जाएगा ? क्या नारद व बृहस्पति जैसे मिथकीय चरित्रों के बताए राह पर चल कर न्यायालय अपने फैसले देंगे ? यह बात काल्पनिक भले लगे, पर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एस. अब्दुल नजीर का तो यही मानना है.

जस्टिस नजीर अयोध्या के अलावा तीन तलाक को गैरकानूनी करार देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी जस्टिस नजीर 5 जजों की बेंच में शामिल रहे हैं. 61 वर्षीय जस्टिस नजीर कर्नाटक हाईकोर्ट में साल 1983 में वकील के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी. उन्हें हाई कोर्ट का एडिशनल जज 2003 में बनाया गया था. 17 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर उन्हें प्रमोट किया गया था.

केंद्र सरकार ने अयोध्या मामले पर फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर और उनके परिवार को जेड कैटेगरी की सुरक्षा देने का फैसला किया है.

जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने रविवार को अखिल भारतीय अधिवक्ता महासंघ के राष्ट्रीय परिषद के एक कार्यक्रम में कहा कि ‘कानून के छात्रों को औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकालने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें मनु, चाणक्य व बृहस्पति की विकसित की हुई न्याय प्रणाली के बारे में पढ़ाया जाए.’

उन्होंने मौजूदा न्याय प्रणाली के बारे में कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि औपनिवेशिक न्याय व्यवस्था भारत की जनता के लिए उपयुक्त नहीं है. समय की जरूरत है कि न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण किया जाए. प्राचीन न्याय प्रणाली उन्होंने मौजूदा न्याय प्रणाली के बारे में कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि औपनिवेशिक न्याय व्यवस्था भारत की जनता के लिए उपयुक्त नहीं है. समय की जरूरत है कि न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण किया जाए.

जस्टिस नजीर ने कहा, हालांकि यह बड़ा काम है और इसमें बहुत समय लगेगा, पर भारतीय समाज, विरासत और संस्कृति के अनुरूप न्याय व्यवस्था को ढालने के लिए यह काम किया जाना चाहिए. जस्टिस नजीर ने कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था से औपनिवेशक व गुलामी मानसिकता दूर करना जरूरी है और इसके लिए यह जरूरी है कि कानून के छात्रों को प्राचीन भारतीय न्याय प्रणाली के बारे में जानकारी दी जाए.

भारतीय न्याय प्रणाली सुप्रीम कोर्ट के इस जज ने कहा कि भारत में कानून का राज और संसदीय लोकतंत्र इस पर निर्भर करता है कि भविष्य के वकीलों और जजों में ज्ञान, योग्यता और देशभक्ति कितनी है. उन्होंने इसके आगे कहा कि इस तरह के वकील और जज भारतीय समाज की पृष्ठभूमि से ही निकलेंगे.

जस्टिस नजीर ने कहा, महान वकील और जज जन्मजात नहीं होते, उन्हें सही शिक्षा और मनु, कौटिल्य, कात्यायन, नारद, याज्ञवल्क्य व बहस्पति जैसे अतीत के महान न्यायविदों की न्याय प्रणाली की शिक्षा देकर तैयार किया जा सकता है. औपनिवेशिक न्याय प्रणाली उन्होंने कहा कि महान न्याय प्रणाली की लगातार उपेक्षा और विदेशी व औपनिवेशिक न्याय प्रणाली से चिपके रहना राष्ट्रीय हितों और संविधान के उद्देश्यों के लिए घातक है.

उन्होंने कहा कि प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था में न्याय माँगने की बात निहित थी, लेकिन इसके उलट ब्रिटिश न्याय व्यवस्था में न्याय की गुहार की जाती है, न्याय के लिए प्रार्थना की जाती है और जजों को ‘लॉर्डशिप’ या ‘लेडीशिप’ कहा जाता है.

सुप्रीम कोर्ट के इस जज ने कहा कि प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था में विवाह एक सामाजिक दायित्व है, जिसका निर्वाह हर किसी को करना है लेकिन पाश्चात्य न्याय प्रणाली में विवाह एक ऐसी साझेदारी बना दिया गया है, जिसमें हर कोई जितना वसूल सकता है, वसूलने की कोशिश करता है.

जस्टिस नजीर ने कहा कि आधुनिक समय में तलाक इसलिए बढ़ रहे हैं कि विवाह में कर्तव्य की पूरी उपेक्षा की जा रही है, जबकि अर्थशास्त्र के अनुशासन पर्व में एक बार भी अधिकार की बात नहीं की गई है.

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ROHIT SHARMA

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