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खंडित भारत का एकमात्र कारण जातिवादी हिन्दू और उसका भक्त

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आर. पी. विशाल

सावधान ! कुछ लोग खुन्नस में देश चला रहे हैं. वे बदलाव करने नहीं बदला लेने के उद्देश्य से काम कर रहे हैं. उनका इतिहास खंगालो तो पता चलेगा सबसे अधिक केस उन पर ही दर्ज हैं. उन्हें पहचान ही अराजकता करने की वजह से मिली अन्यथा समाज, देश, शिक्षा, विकास इत्यादि का कोई सफलतम कार्य नहीं मिलेगा. उनकी न जाने किस-किस से कई पुरानी रंजिशें रही है इसलिए सारा फोकस उन्ही चीजों पर है.

कोई कुछ भी कहे, कोई कुछ भी करे उन्हें फर्क नहीं पड़ता है बस वो लगे पड़े हैं जब तक हैं. वे खुद तो हैं ही कोई अपराधी, कोई तड़ीपार, जमानत पर लेकिन उनको समर्थन भी कुछ ऐसे ही संगठन कर रहे जो देश में कई बार बैन हो चुके हैं और सशर्त जमानत पर चल रहे हैं. वे चाहते तो दो दिनों में शांति स्थापित कर देश की काया पलट सकते थे लेकिन उन्हें जिसमें महारत हो वही तो करेंगे ? स्वभाव भी भला कभी बदल सकता है ?

आम जनमानस भी इन्हीं के समर्थन और विरोध में बंटे हुए हैं और उनकी निजी लड़ाई, बदले की भावना से कार्य करने वाली नीति का भी समर्थन कर रहे हैं. जैसी स्थिति पैदा की गई, एक बार गृहयुद्ध हो जाये शायद उसके बाद ही सब ठीक होगा लेकिन ठीक होगा इसकी उम्मीद ही कम है इसलिए समझदार बनो. कम से कम अपने लोगों को इनसे दूर रखो क्योंकि दंगाई नेताओं के बच्चे विदेशों में सैटल है या मलाईदार पदों पर, वे ही लोग आपके हाथों में हथियार देना चाहते हैं.

भारत सदा क्यों खंडित हुआ और हिन्दू सदा सीमित क्यों हुआ

भारत सदा क्यों खंडित हुआ और हिन्दू सदा सीमित क्यों हुआ, इस विषय पर क्या आरएसएस ने कभी जड़ तक पहुंच कर विमर्श किया होगा ? ऊपरी तौर पर भले ही हम मुगल, अंग्रेज, जयचंद, औरंगजेब, अधर्मी, विधर्मी सबको दोषी माने या फिर मिशनरियों इत्यादि को कोसते जाएं लेकिन क्या कारण हैं जो हिन्दू धर्म आज तक भारत से बाहर नहीं निकल सका ? इसके उलट अपने ही देश में खतरे में रहता है ?

अकबर और अशोक को छोड़कर किसी भी दौर में भारत अखंड नहीं रहा. आजादी के समय में ही 500 से अधिक रियासतें थी जो खुद में एक-एक देश समान थे. एक राजा अपने पड़ोसी रियासत से जाने कब लड़ जाये और यदि पड़ोसी मजबूत राजा हो तब दूर के राजा से समझौता करके षड्यंत्र के तहत पड़ोसी राजा पर आक्रमण कर जाए नहीं पता. कई आक्रमणकारी इसी वजह से भारत लाये गये थे.

इस मित्रता और शत्रुता के असंख्य उदाहरण इतिहास में विद्यमान है, जिनमें हिन्दू-मुस्लिम रिश्तेदारी सबसे अग्रणी है. राजा की हजारों रानियां ही उसकी मुख्य उपलब्धि रही है, बाक़ी तो मौज,मस्ती, अय्याशी और शोषण यही इतिहास रहा है राजप्रथाओं का. कोई राजा ईमानदार हो तो प्रजा का सौभाग्य अन्यथा सीमित रियासत वहां की जनता के लिए काल कोठरी समान भी रहे हैं. उनकी दुनिया, उनका हाई कोर्ट, उनका सुप्रीम कोर्ट सब सीमित था.

हिन्दू धर्म खतरे में रहा क्योंकि इसमें जाति व्यवस्था थी

उसके बाद बात है हिंदुओं की. हिन्दू धर्म खतरे में रहा क्योंकि इसमें जाति व्यवस्था थी. आज भी कोई हिन्दू धर्म अपनाने में अक्षम है क्योंकि बदले में जाति कौन-सी मिलेगी ? देश के गुलाम बनने का मुख्य कारण ही यह जाति व्यवस्था थी. ब्राह्मण पढ़ने, पढ़ाने में असफल रहे, क्षत्रिय बाहरी आक्रमण रोकने में अक्षम रहे, वैश्य धन, सम्पदा सम्भालने में असफल रहे और शूद्रों को अधिकार ही नहीं कोई. ऐसे में लुटेरे सब कुछ लूट ले गये. आज भी वही चल रहा है.

आप हर वर्ष के आंकड़े निकालिए जो भी व्यक्ति सक्षम हो जाता है, वह देश छोड़कर विदेश बस जाता है. अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी सुरक्षा, अच्छा माहौल आज भी यहां एक चुनौती है. ऊपर से जाति व्यवस्था जिसने सरेआम बंटवारे का ऐलान किया हुआ है, ऐसे में एकता, अखंडता कैसे आयेगी ? आत्मसम्मान के लिए लोग इस व्यवस्था को त्याग रहे हैं. क्या आरएसएस ने इस विषय पर चिंतन, मंथन किया होगा ?

धार्मिक एकता का सबसे बड़ा सिद्धांत उसकी उपासना पद्धति

डॉ अंबेडकर ने धर्म के विषय में लिखा था कि धार्मिक एकता का सबसे बड़ा सिद्धांत होता है उसकी उपासना पद्धति. यानि एक समय में, एक साथ बैठकर, एक ईश्वर की उपासना करना ही धार्मिक एकता है लेकिन क्या यह हिन्दू धर्म में सम्भव है ? क्या सभी जाति के लोग एकसाथ, एक ईश्वर की एक समान पूजा कर सकते हैं ? यदि नहीं तो हिन्दू कभी मिशनरी धर्म नहीं बन सकता है इसलिए वह खंडित और सीमित है.

यहां ब्राह्मण जाति के अतिरिक्त कोई अन्य जाति पुजारी नहीं हो सकते हैं जबकि अन्य धर्मों में उपासना पद्धति हो या पुजारी व्यवस्था सबके लिए समान अवसर है. यह अवसर समता, एकता का भाव प्रकट करते हैं. उच्च वर्ण का व्यक्ति अपने धर्म पर गर्व करेगा यह स्वाभाविक है लेकिन निम्न वर्णों की भावना के हिसाब सोचो, समझो, वह केवल अपमानित होने, सेवा करने या भीड़ दिखाने के लिए वहां उपलब्ध है ?

बहुत लोग कहते हैं कि दूसरे धर्मों के लोग लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाते हैं. कितनी विचित्र बात है यह ? जितना धन मन्दिरों के पास है इस लिहाज से वे एक दिन में पूरी दुनिया को हिन्दू बना सकते हैं. अम्बानी और अडानी तो अपने, अपने धर्म खड़ा करते ? जब तक असल मुददों को नहीं समझेंगे तब तक इसी प्रकार के कुतर्क चलते रहेंगे लेकिन वर्णव्यवस्था को समाप्त किये बगैर समता, एकता, बन्धुता, अखंडता नहीं आ सकती है.

भाजपा से कहीं अधिक खतरनाक, भाजपा का भक्त

निनाद वेंगुरलेकर लिखते हैं – भाजपा से कहीं अधिक खतरनाक, भाजपा का भक्त है. वे वामपंथियों, अल्पसंख्यकों, राजनीतिक दलों, दलितों, महिलाओं और उन सभी लोगों के खिलाफ है, जिनसे वह सहमत नहीं है. अपनी घृणा, असुरक्षा और पूर्वाग्रहों को दिशा देने के लिए बीजेपी का इस्तेमाल करता है. बीजेपी में उसे एक ऐसी आवाज मिली है, जिसे वह पिछले 700 सालों से खोज रहा था.

वह मुसलमानों से नफरत करता है, वह ईसाइयों से नफरत करता है, वह उदारवादियों और समतावादियों से नफरत करता है, वह कांग्रेस से नफरत करता है, वह सपा, बसपा, टीएमसी और हर दूसरी पार्टी के नेता से नफरत करता है. उसे अरविंद केजरीवाल से नफरत है. उसे NDTV आदि से नफरत है. वह रवीश कुमार, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, राकेश टिकैत सबसे से नफरत करता है.

वह धर्म के आधार पर देश के हर अच्छे आदमी के इरादों पर शक करता है. उसका मानना है कि आमिर खान, नसीरुद्दीन शाह, जावेद अख्तर, शाहरुख खान देशद्रोही हैं. जब आमिर की पत्नी ने देश में असुरक्षा महसूस होने को लेकर बयान दिया था, तो उन्होंने इसे राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया लेकिन जब उसे पता चलता है कि अक्षय कुमार या अजित डोभाल का बेटा इत्यादि भारतीय ही नहीं तब उसे अधिक फर्क नहीं पड़ता.

उसे मोदी पर बनाए गए चुटकुले जरा भी पसंद नहीं हैं. वह दिल्ली के मुख्यमंत्री को खुजलीवाल और राहुल गांधी को पप्पू कह सकता है, लेकिन वह कुणाल कामरा को मोदी का मजाक उड़ाते हुए कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता. नरेंद्र मोदी की बात आते ही सभी तरह के हास-परिहास और चुटकुलों को बंद करना पड़ेगा क्योंकि इसे वह देश विरोधी विचारधारा मानता है.

वर्ष 2014 में उसका मानना था कि हिंदू खतरे में हैं इसलिए उसने मोदी को वोट दिया. सात साल, 22 राज्यों और 300+ सीटों के बाद, वह अभी भी मानता है कि हिंदू खतरे में है. यदि उससे पूछा जाये कि आखिर उसे किस बात का डर है, तो वह अफगानिस्तान, यूक्रेन आदि में हुए आत्मघाती हमलों की बात करेगा. जब उसे यह बताया जाएगा कि पिछले कई वर्षों में भारत (कश्मीर को छोड़कर) के किसी भी हिस्से में एक भी आत्मघाती हमला नहीं हुआ है, तो वह विषय को बदल देगा.

वह तर्कदोष (किसी कठिन प्रश्न या आरोप का सामना होने पर किसी दूसरे मुद्दे को उठा देना या प्रतिआरोप लगाने) का मास्टर है. यदि बीजेपी अपने मूल्यों और सिद्धांतो के खिलाफ कुछ कार्य करती है, तो वह उसके बचाव में तर्कदोषों की एक पूरी सूची के साथ मौजूद रहता है. इस तर्कदोष के लिए अंग्रेजी भाषा में व्हाटाबॉटरी (Whataboutery) नामक शब्द प्रचलित है.

उसका सामान्य फार्मूला यह है : ​मुस्लिमों ने ऐसा 700 सालों तक किया + नेहरू ने ऐसा 1955 में किया था + कांग्रेस ने 1982 में ऐसा किया था = भाजपा सही है. उसके लिए ​भाजपा हर हाल में, हमेशा सही होती है. वयह बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई सब पर कुछ न कुछ कुतर्क करेगा लेकिन वह हमेशा चुनावी मोड़ में एक्टिव रहकर भाजपा को सबसे श्रेष्ठ साबित करने का भरकस प्रयास करता रहेगा.

वह विरोधाभासों का पुलिंदा है. वह नोटबंदी का समर्थन करते हुए उसे समय की जरूरत बताता है, लेकिन स्वयं नकदी में धड़ल्ले से कारोबार करता रहता है. वह स्कूल और कॉलेज अपने बच्चों के दाखिले के लिए डोनेशन देने में और यातायात के नियमों के उल्लंघन पर ट्रैफिक पुलिस को रिश्वत देने में कोई संकोच नहीं करता है. वह आयकर विभाग को छलने के लिए अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट के साथ देर तक माथामच्ची करता है. यहां तक कि वह स्वच्छ भारत अभियान को बढ़ावा देने के लिए बने शौचालय के इस्तेमाल के बजाए बेधड़क सड़क किनारे पेशाब करता है.

वह देश में बुलेट ट्रेन चलते हुए देखना चाहता है, भले ही वह स्वयं उसमें यात्रा करने योग्य नहीं होगा. वह कांग्रेस के नेता सरदार वल्लभभाई पटेल की दुनिया में सबसे ऊंची प्रतिमा देखाना चाहता है, क्योंकि मोदी ने ऐसा निश्चय किया था. वह उत्तर प्रदेश में राम की मूर्ति बनवाने का औचित्य साबित करेगा, लेकिन वह मोदी से यह नहीं पूछेगा कि वे पिछले 7 वर्षों में सावरकर की एक भी प्रतिमा क्यों नहीं बना पाए ?

उसे राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान बहुत पसंद है लेकिन उससे गाने को कहा जाये तो वह इसे नहीं गा सकता. वह चाहता है कि मुसलमान वंदे मातरम बोलें, लेकिन वह स्वयं इसके एक भी शब्द का अर्थ नहीं जानता. वह एक ऐसा हिंदू है, जिसने उपनिषदों को नहीं पढ़ा है. हिंदू धर्म की उनकी समझ व्हाट्सएप संदेशों तक सीमित है. वह सोचता है कि भगवान स्वर्ग में रहते हैं और इसीलिए राम मंदिर का निर्माण आवश्यक है, और केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश देने पर भगवान श्राप देंगे.

जो लोग नरेंद्र मोदी का समर्थन करते हैं, वे उसके नायक हैं. उसकी नज़र में, बॉलीवुड में अभिनेताओं और निर्देशकों के राजनीतिक विचार उनके अभिनय/ प्रस्तुति से कहीं बढ़कर हैं. अत: विवेक अग्निहोत्री हो या विवेक ओबेरॉय उसके लिए एक रॉकस्टार हैं. वह फिल्म अभिनय क्षेत्र में दिए जाने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार हेतु ‘दंगल’ फिल्म में आमिर खान और ‘अलीगढ़’ फिल्म में मनोज बाजपेयी के अभिनय के बजाय ‘रुस्तम’ फिल्म के लिए अक्षय कुमार का समर्थन करता है. वह ग्रैंड मस्ती जैसी फिल्म को भारतीय मूल्यों के खिलाफ मानता है, लेकिन विवेक ओबेरॉय सिर्फ इसलिए उसके नायक बन जाता है, क्योंकि वह नरेंद्र मोदी की बायोपिक में उनका किरदार निभा रहा है.

भाजपा भक्त दिल से अनुयायी होता है. वह औद्योगिक युग का व्यक्ति है. वह इंटरनेट का उपयोग करता है, लेकिन इंटरनेट अर्थव्यवस्था के आधारों से सहमत नहीं है. उसे अनुशासन, आदेश और अनुपालन पसंद है. वह नेतृत्व करना चाहता है. उसे अपने राजनीतिक नायकों के बारे में प्रश्न सुनना पसंद नहीं है लेकिन जिनसे वह नफरत करता है, उनको हर समय कटघरे में खड़ा रखना चाहता है. वह अभी भी पिछले 60 सालों का हिसाब चाहता है पर आज के 7 सालों पर कोई सवाल नहीं सुनना चाहता.

उसे वादविवाद करना पसंद नहीं है. वह जानता है कि उसके नायक गलत हैं लेकिन वह उनकी गलतियों को सही ठहराता रहता है. जब वादविवाद में उसका पलड़ा हल्का पड़ने लगता है तो वह अपशब्दों का इस्तेमाल करने लगता है. वह व्यक्तिगत हो जाता है. वह नाम लेकर संबोधित करने लगता है. वह मां-बहन की गाली से लेकर कांग्रेसी, वामपंथी होते होते देशद्रोही, गद्दार साबित करने तक पहुंच जाता है. वह कुछ भी करने को आतुर है. वह भाजपा से ज्यादा सांप्रदायिक हैं.

आरक्षण

पंडित जी के पास जाकर पूछो कि मेरी नौकरी नहीं लग रही है तो पंडित जी कहते हैं कि कुंडली में दोष है, मंगल भारी, शनि टेढ़ी चाल चल रहा, गृह दोष अलग से, राहु का भी प्रकोप है, ब्रहस्पति और शुक्र में भी समस्या है, किस्मत रूठी पड़ी है, यज्ञ, हवन, पूजा, दान ध्यान की सख्त जरूरत बताते हैं.

पंडित जी से पूछो आपके बेटे को नौकरी नहीं मिली आखिर क्यों ? पंडित जी कहते हैं वजह आरक्षण है. इसे आर्थिक आधार पर करना होगा. गरीब तो कोई भी हो सकता है. वे कई अमीर, सक्षम दलितों के उदाहरण देंगे. आज तो कोई भी जातपात नहीं मानता फिर भी आरक्षण जाति आधारित है, यह हमारे बच्चों के साथ बहुत बड़ा अन्याय हो रहा है.

पंडित जी से पूछो आप अपने बच्चों की शादी अपनी जाति से बाहर करेंगे ? तब पंडित जी कहते हैं कि ऐसे कैसे हो सकता है ? संस्कृति, परंपरा भी कोई चीज़ है ? पहले दलितों को सक्षम, काबिल बताने वाले पंडित जी अब उन्हीं में गंदगी से लेकर असभ्य होने तक के सौ कमियां निकालेंगे. बच्चों में स्वतंत्र फैसलों की वकालत करने वाले पंडित जी जाति से बाहर सम्बंध के सख़्त खिलाफ हैं.

पंडित जी समान गोत्र के पक्षधर नहीं है. उसके वैज्ञानिक कारण, गुणसूत्र, जीन, डीएनए की वकालत करेंगे लेकिन जाति की बात आते ही अपनी धारणाओं, विचारों, बातों के ख़िलाफ़ हो जाते हैं. पंडित जी अपनी पुश्तैनी पंडिताई को सामाजिक आरक्षण नहीं मानते और न इसे सभी जातियों के लिए खुला करने के पक्षधर हैं पर संवैधानिक आरक्षण के खिलाफ हैं.

पंडित जी जाति नहीं मानते ऐसा कहते हैं पर आज तक एक गिलास पानी किसी दलित के हाथ का नहीं पीया अन्यथा धर्म भ्रष्ट होगा. अपनी पंडिताई पर किसी अन्य जाति का अधिकार नहीं चाहते. पंडित होने के लिए कोई योग्यता की वकालत करे उन्हें बुरा लगता है. पंडित जी किसी गरीब पंडित के लिए भी अपनी जगह छोड़ने को राजी नहीं.

अपनी कमाई का आधा हिस्सा मन्दिर के भिखारियों पर खर्च करने की वकालत करने वालों पर पंडित जी तिलमिला जाते हैं. इस पर वह कोई बहस ही नहीं चाहते. वह दान, दक्षिणा से घर चलाएंगे, बच्चे पढ़ाएंगे फिर बच्चे पढ़ लिखकर संवैधानिक आरक्षण को भीख कहते हैं. मूल विषय पर पंडित जी विमर्श नहीं चाहते अन्यथा इसे अधर्मीयों, विधर्मियों द्वारा हिन्दू-सनातन धर्म पर हमला घोषित कर देंगे.

इसलिए जिन्हें धर्म से लाभ है, उन्हें धर्म की लड़ाई लड़ने दीजिए बाक़ी केवल शिक्षा की लड़ाई लड़ें क्योंकि धर्म से उन्हें कभी कोई सम्मानीय स्थान नहीं मिलेगा. सटीक पुष्टि हेतु पूरा इतिहास खुद से खंगाल डालना. शिक्षा से ही हर स्थान हासिल होगा इसलिए लड़ो पढ़ाई करने को, पढ़ो समाज बदलने को.

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ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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