द कश्मीर फाइल्स के बारे में विवेक अग्निहोत्री का कहना है कि यह फिल्म पूरी तरह से ‘रिसर्च’ करने के बाद बनाई गई है. वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक कार्यक्रम में बताता है कि यह फिल्म ‘सच्ची घटना’ पर आधारित है और जो सत्य है उसे उसी स्वरूप में देश के सामने लाना, यह काम यह फिल्म बखूबी करता है. और इसके बाद से ही इस का पोस्टर लगाने में भाजपा के नेता और कार्यकर्ता जीजान से लग गये.
लेकिन जल्दी ही इस फिल्म की झूठी या आधा सच आधा झूठ बनाकर परोसी गई कहानी का पोस्टमार्टम लोगों ने करना शुरु कर दिया. इसमें आतंकवादियों के साथ-साथ भारतीय सेना की भी एक से बढ़कर एक भयानक क्रूरता की कहानी देश के सामने निकलकर आने लगी, जिसे भारत सरकार ने देश से छिपाकर रखा था.
असलियत में 1990 के कश्मीरी पंडितों के जिस ‘नरसंहार’ और ‘जुल्म’ पर सिनेमाघरों के बाहर टेंसुएं बहाई जा रही है, उसी हत्या और नरसंहार के दौर में मरने वाले कश्मीरी पंडितों की संख्या महज 89 थी, तो वहीं मरने वाले कश्मीरी मुसलमानों की संख्या 1635 थी. आंकड़ों के इस संख्या को यह फिल्म स्पष्ट नहीं करती जिससे यह भ्रम की स्थिति बना दी गई मानो लाखों कश्मीरी पंडितों की हत्या की गई हो.
बहरहाल, यह फिल्म न केवल सच्चाई से परे है बल्कि अधिकांश बर्बर हत्याकाण्डों में भारतीय सेना की क्रूर भागीदारी रही है. ऐसी ही एक कहानी निकल कर आई है बी. के. गंजू की, जिसके बारे में यह फिल्म यह बताती है कि जिस बी. के. गंजू की हत्या के बाद उनके खून से सने चावल उनकी विधवा को जबरन आतंकियों द्वारा खिलाये जाने की बात दिखाई गई है, इस खून सने चावल खिलाने की किसी घटना से बी. के. गंजू के भाई ने अनभिज्ञता जताई है. यानी फ़िल्म में ये घटना सच नहीं थी.
अब पता चल रहा है कि इस फ़िल्म में ये दृश्य डालने की प्रेरणा अग्निहोत्री कहां से मिली होगी, जिसे अग्निहोत्री ‘रिसर्च’ और मोदी ‘सच्चा इतिहास’ बता रहा है ? पढ़िए कलंदर खटाना के साथ हुई घटना का ज़िक्र, जिसे देश की वैकल्पिक मीडिया ने उजागर किया है. कश्मीर में इस तरह की क्रूर हैवानियत की कहानियां भारतीय सेना द्वारा आम बात बना दी गई है. अब इस घटना को देखते हैं –
सन 1992 के शुरुआत की बात है. ‘कलंदर खटाना’ जो कि कश्मीर में लाइन ऑफ कंट्रोल के पास मौजूद एक गांव के रहने वाले हैं. कहते हैं कि एक रात भारतीय आर्मी के कुछ जवान मेरे घर का दरवाज़ा खटखटाते हैं और मुझे घर से खींचते हुए अपने साथ मोरी में मौजूद बीएसएफ के कैंप में ले जाते हैं. उन्होंने मेरे ऊपर उग्रवादियों को सीमा पार कराने का आरोप लगाया.
हम अपने एरिया में आज़ादी से घूमा करते थे और जंगल में कहीं भी चले जाते थे. वहां ऐसा कहने वाला कोई नहीं था कि हम कहां जा सकते हैं और कहां नहीं. फिर उन लोगों ने वहां हमारे जमीन के एक हिस्से पर बाड़ (फेंस) लगा दी और उसे बॉर्डर कहने लगे.
खटाना कहते हैं कि उनको और दूसरे गांव वालों को बीएसएफ वाले हमेशा बॉर्डर क्रॉस करने का इल्ज़ाम लगाते रहते थे लेकिन 1990 से पहले वहां कोई बॉर्डर था ही नहीं.
‘पकड़ने के बाद वो (भारतीय सेना के जवान) मुझसे सवाल जवाब करते, मुझे मारते और मुझे उल्टा लटका देते. मुझ पर हद से ज़्यादा ज़ुल्म करने के बाद वो मुझे एक कैंप से दूसरे कैंप ले गए. वहां भी मुझ पर बेइंतहां ज़ुल्म किए गए. खटाना बताते हैं कि वो मुझे पहाड़ के ऊपर ले जाते और मुझे लिटा कर नीचे की तरफ धकेल देते और मैं लुढ़कता हुआ नीचे जा पहुंचता.
‘6 महीने बाद मुझे श्रीनगर के पापा 2 टॉर्चर सेंटर ले जाया गया, जहां मेरे कूल्हे से और दूसरी जगह से मेरी चमड़ी को ब्लेड से काटा गया और वो चमड़ी मुझे खाने के लिए मजबूर किया गया. एक दिन मेरी टांगों को तोड़ने की भी कोशिश की गई.
‘मैं दर्द से बेहोश हो गया और जब होश आया तो मेरे घुटने खून में सने हुए थे और फटे हुए कपड़े उन पर लिपटे हुए थे. मैंने देखा कि मेरे साथ के कुछ लोगों की शर्ट की बांह फटी हुई थी और उन्होंने वो फाड़ कर मेरे घुटनों पर लपेट दी थीं, जिससे की खून रुक सके.’
‘इलाज न मिलने पर मेरे घुटनों के ज़ख्मों मैं कीड़े पड़ गए और आखिरकार डॉक्टर्स को मेरी दोनो टांगें काटनी पड़ी. मेरे परिवार के साथ इतनी ज़बरदस्ती की गई कि एक बीएफएस वाले ने मेरी बीवी के सीने पर लात मारी जिससे उसकी पसलियां टूट गईं और वो बिस्तर पर ही मर गई.’ आज तक इनको इंसाफ नहीं मिला है.
1992 की इस घटना के बारे में आपने शायद नहीं सुना होगा क्योंकि मुसलमानों पर जो ज़ुल्म हुए हैं, उन्हें बाहर आने नहीं दिया जाता है और न उन पर कोई फिल्म बनती है इसलिए हमें ही असली कश्मीर फाइल्स को सबके सामने लाना होगा.
इसी तरह की हजारों घटनाएं जिसमें भारतीय सेना ने हजारों कश्मीरी लोगों को बर्बर यातना देकर मार डाला अथवा सदा के लिए अपंग बना दिया. थानों के लॉक अप डालकर कश्मीरी युवतियों की इज्ज़त लूटी जाती है, उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया जाता है और विरोध करने पर आतंकवादी कहकर गोली मार कर हत्या कर दी जाती है.
भारतीय सैनिक कि तरह कश्मीरी लोगों को प्रताड़ित करती है, इसकी एक बानगी अनुपम खेर ने ही अपने एक फिल्म के एक सीन में फिल्माया है, जिसमें थाने लाकर एक पिता (अनुपम खेर) के सामने उसकी बेटी को नंगा किया जाता है और उसका सामूहिक बलात्कार किया जाता है. दिल दहला देने वाली भारतीय सेना की क्रूरता और हैवानियत से लबरेज इस दृश्य को भी देखिये और महसूस कीजिए –
हमें भूलना नहीं होगा, पुलवामा जिले में भारतीय सेना से भरी गाड़ी को विस्फोट से उड़ाकर 40 भारतीय सैनिकों को मौत की घाट उतारने वाले कश्मीरी युवक आदिल अहमद डार को भी भारतीय सेना ने गोली मारकर अपंग बना दिया था, जिसका बदला उसने 40 भारतीय सैनिकों के चिथरे उड़ा कर लिया.
कश्मीरी नागरिकों पर भारतीय सेना जितना ही जुल्म करेगी, उतनी ही ज्यादा भारत से कश्मीर दूर होता जायेगा. दमन से किसी मुल्क की आजादी की कामना को आप खत्म कर सकते. विदित हो कि कश्मीर की अनुमानित 15 लाख की जनसंख्या पर 7 लाख से अधिक भारतीय सैनिकों को तैनात किया गया है और ये 7 लाख सैनिक खूंखार भारतीय सैनिक कश्मीर में क्या गुल खिलाते हैं इसे हम छत्तीसगढ़ के जंगलों में तैनात सैनिकों को देखकर कर सकते हैं.
धन्यवाद विवेक अग्निहोत्री को जरूर देना चाहिए जिसने द कश्मीर फाईल्स जैसी झूठी और काल्पनिक अर्द्ध सत्य को फिल्मा कर देश का ध्यान कश्मीर की ओर खींचा. अब देश को जरूरत है कि कश्मीर की जमीन में दफन भारतीय सैनिकों की क्रूरता की कहानियों से देश को परिचित कराया जाये, ताकि कोई भी कश्मीरी युवा भारतीय सैनिकों की क्रूर संगीनों और बूटों तले न रौंदा जाये और न ही आदिल अहमद डार जैसे युवाओं को अपने अपमान का बदला लेने के लिए खुद की जान दांव पर लगानी पड़े.
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