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न्यू वर्ल्ड आर्डर की पहली बड़ी कम्पनी ‘मेटावर्स’

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न्यू वर्ल्ड आर्डर की पहली बड़ी कम्पनी 'मेटावर्स'

गिरीश मालवीय

न्यू वर्ल्ड आर्डर की पहली बड़ी कम्पनी कल रात को लॉन्च कर दी गयी है..फेसबुक इंक को अब मेटावर्स के नाम से जाना जाएगा. कुछ लोग यह सोच रहे होंगे कि आखिर इस नाम फेसबुक में क्या बुरा है जो उसे एक बिलकुल नया नाम दिया जा रहा है. दरअसल मेटावर्स एक पेरेंट कंपनी है, जिसके अंदर फेसबुक, वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम और कंपनी के दूसरे प्लेटफॉर्म आएंगे, ठीक वैसे ही जैसे गूगल की मालिक अल्फाबेट है.

फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग की निगाह भविष्य पर गड़ी हुई है. इंटरनेट का भविष्य वह मेटावर्स में देख रहे हैं. यह बिलकुल एक नयी दुनिया होगी जो कहने को तो आभासी होगी लेकिन जितना समय गुजरता जाएगा आभासी दुनिया ही वास्तविक बनती जाएगी, जिसमे आप न सिर्फ जिंदा लोगों से बात कर पाएंगे बल्कि अपने मृत परिजनों से भी बात कर पाएंगे.

आपको मेरी बात शायद मजाक लग रही होगी लेकिन यह सच है. बिल गेट्स की कम्पनी माइक्रोसॉफ्ट ने पिछले साल एक नई चैटबोट का पेटेंट कराया है. कंपनी का दावा है कि इस चैटबोट के जरिए आप मरे हुए लोगों से बातचीत कर सकते हैं. CNN की एक खबर के मुताबिक माइक्रोसॉफ्ट को एक ऐसे चैटबोट के लिए पेटेंट दिया गया है जो मरे हुए दोस्त, रिश्तेदार, अजनबी और सेलेब्रिटी से बातचीत करने में सक्षम है. इस चैटबोट में मरे हुए लोगों के सोशल प्रोफाइल से डेटा लिया जाएगा. उनके इस मौजूदा डेटा के आधार पर चैटबोट का प्रोग्राम तैयार होगा. मरे हुए लोगों से बातचीत इसी पर आधारित होगी.

इस तरह के चैटबोट प्रोग्राम मेटावर्स की ही तैयारी है. आप सोच भी नहीं सकते हैं कि इन टेक जायन्ट्स कम्पनियों ने आपके भविष्य को अपने कंट्रोल में करने के लिए किस कदर तैयारियां कर ली है ! क्या क्या पेटेंट करा लिए हैं ! फिलहाल आप मेटावर्स को ही ठीक से समझ लीजिये.

भास्कर में आए एक लेख के अनुसार फेसबुक का मानना है कि अभी मेटावर्स बनने के शुरुआती चरण में है. मेटावर्स को पूरी तरह से विकसित होने में 10 से 15 साल लग सकते हैं. साथ ही ये समझना भी जरूरी है कि मेटावर्स को केवल कोई एक कंपनी मिलकर नहीं बना सकती. ये अलग-अलग टेक्नोलॉजी का बड़ा-सा जाल है, जिस पर कई कंपनियां मिलकर काम कर रही हैं.

मेटावर्स एक तरह की आभासी दुनिया है. इस टेक्नीक से आप वर्चुअल आइंडेंटिटी के जरिए डिजिटल वर्ल्ड में एंटर कर सकेंगे. यानी एक पैरेलल वर्ल्ड, जहां आपकी अलग पहचान होगी. उस पैरेलल वर्ल्ड में आप घूमने, सामान खरीदने से लेकर, इस दुनिया में ही अपने दोस्तों-रिश्तेदारों से मिल सकेंगे.

मेटावर्स ऑगमेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी कई टेक्नोलॉजी के कॉम्बिनेशन पर काम करता है.

अगर आप आने वाले न्यू वर्ल्ड ऑर्डर और मेटावर्स की परिकल्पना को और भी बेहतर तरीके से समझना चाहते हैं तो ब्लैक मिरर नाम की वेबसीरीज देख लीजिए. इसके पांच सीजन है. इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि हर एपिसोड की कहानी बिल्कुल अलग है. यह नेटफ्लिक्स पर हिंदी सबटाइटल के साथ भी उपलब्ध है.

‘मेरे हाथों पर खून है’

यह बयान है फेसबुक में लगभग तीन साल तक डेटा वैज्ञानिक के रूप में काम कर चुकी सोफी झांग का. भारत का मुख्य मीडिया आश्चर्यजनक रूप से फेसबुक के बारे में आने वाली खबरों को दबा रहा है. सोफी झांग के अलावा अप्रैल में फेसबुक से इस्तीफा दे चुकीं डेटा साइंटिस्ट फ्रांसिस हाजेन ने भी पिछले दिनों कुछ बड़े खुलासे किए हैं लेकिन उन खबरों को भी मीडिया पचा गया.

एक व्हिलसब्लोअर के रूप में आ चुकी सोफी झांग ने खुलासा किया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने चुनावों को प्रभावित करने के लिए फर्जी अकाउंट नेटवर्कों का सहारा लिया. जिसके बाद सिर्फ बीजेपी सांसद से जुड़े नेटवर्क को छोड़कर सभी को फेसबुक से हटा दिया गया.

सोफी झांग फेसबुक में डेटा साइंटिस्ट के रूप में ‘फेक एंगेजमेंट’ टीम में थी. जब उसे नौकरी से हटाया गया तब फेसबुक में आखिरी दिन लिखे 8 हजार शब्द के मेमो में उन्होंने खुलासा किया कि कैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल जनता की राय जानने और चुनाव में हेरफेर करने के लिए किया गया और कैसे फेसबुक चुनावों पर असर डालने वाले फेक अकाउंट की पहचान और उन पर सख्ती को लेकर सुस्त है.

इसने करीब 25 देशों के नेताओं को प्लेटफॉर्म के सियासी दुरुपयोग और लोगों को गुमराह करने की छूट दी है. इसी मेमो में फरवरी में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव का भी जिक्र किया गया था.

झांग ने जब चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के संदर्भ में कंपनी से पूछा तो उन्हें कथित तौर पर फेसबुक में सीमित मानव संसाधनों का हवाला दिया गया. उसके बाद झांग को उसी महीने नौकरी से निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने एक नॉन-डिस्पैरेजमेंट समझौते पर हस्ताक्षर करने से बचने के लिए फेसबुक की ओर से 64,000 डॉलर का पैकेज ठुकरा दिया था. अगर वह पैसे लेती, तो वह सार्वजनिक रूप से फेसबुक या उसके कर्मचारियों की आलोचना नहीं कर पाती.

भारत के संदर्भ में जानकारी देते हुए एनडीटीवी से बातचीत करते हुए सोफी झांग ने बताया कि 2020 के जनवरी में मैंने हजारों ऐसे अकाउंटों के नेटवर्क का पता लगाया जो प्रो ‘आप’ मैसेज फैला रहे थे और ये अकाउंट खुद को बीजेपी समर्थक दिखा रहे थे और कह रहे थे कि उन्होंने पीएम मोदी को वोट दिया है लेकिन दिल्ली में वह आम आदमी को सपोर्ट कर रहे हैं.

चुनाव को प्रभावित कर रहे ऐसे कुल 5 नेटवर्क थे जिसमें से हमने कांग्रेस के दो और एक भाजपा के नेटवर्क को हटा दिया था. वहीं आखिरी को हटाने से तुरंत पहले कंपनी ने हमें रोक दिया क्योंकि उन्हें लगा कि चौथा नेटवर्क भाजपा के सांसद से जुड़ा हुआ है, जिसके चलते मैं कुछ नहीं कर सकी.

सोफी कहती हैं कि जानकारी करने पर पता चला कि यह पांचवां फर्जी नेटवर्क एक भाजपा सांसद से जुड़ा है. मैंने जब इस पर भी कार्रवाई करने की बात कही तो यह कहते हुए इनकार कर दिया गया कि यह भाजपा के एक बड़े नेता से जुड़ा हुआ है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह से भारत में काम किया जा रहा है.

इसे ऐसे भी देखा जा सकता है कि अगर कोई बैंक में डकैती डालता है तो उसे पुलिस पकड़ेगी लेकिन अगर कोई सांसद डकैती डालता है तो उस पर कार्रवाई करने से पहले सोचेगी क्योंकि उन्हें गिरफ्तार करने मुश्किल होगा. ऐसा ही कुछ फेसबुक पर भी हुआ.

आपको याद होगा कि अगस्त 2021 में अमेरिकी समाचार पत्र वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि फेसबुक इंडिया की एक वरिष्ठ अधिकारी ने भाजपा से जुड़े हुए चार लोगों और समूहों के खिलाफ फेसबुक के हेट स्पीच नियमों का लागू करने का विरोध किया था.

इस खुलासे के बारे में अधिक से अधिक लोगों को बताने की जरूरत है क्योंकि इससे पता चलता है कि फेसबुक भारत में हो रहे आगामी विधानसभा चुनावों में किस तरह से कार्य करने जा रहा है.

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