वर्ष 2013 में अहमदाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, जो आज पिछले आठ साल से देश का प्रधानमंत्री हैं, ने कहा था कि –
‘यूपीए सरकार और रुपये में गिरने का कंपटीशन चल रहा है. डॉलर के मुकाबले रुपये की सेहत तेजी से गिर रही है और कोई दिशा तय करने वाला नहीं है. रुपये का स्तर एक बार 60 तक पहुंच गया और सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है. जब भारत आजाद हुआ था, तब भी मुल्क की स्थिति आर्थिक रूप से सुदृढ़ थी लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि देश महज एक बाजार बन कर रह गया है. वह हैरान हैं कि यूपीए और रुपये में नीचे गिरने की होड़ लगी है. आज देश की जनता निराश है, क्योंकि केन्द्र को न तो अर्थव्यवस्था की चिंता है और न ही गिरते रुपये की, उसे तो सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने की फिक्र है. अगर रुपया इसी तरह से गिरता रहा तो अन्य देश भारत का फायदा उठाना शुरू कर देंगे.’
यह बयान तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण का वह ऐतिहासिक अंश है, जो आज की वर्तमान हालात में मौजूं है क्योंकि यह बयान देने वाला शख्स नरेन्द्र मोदी आज 8 साल से देश का प्रधानमंत्री है और आज रुपये गिरकर 83 के पास पहुंच गया है. लेकिन आज भी केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को ‘न तो अर्थव्यवस्था की चिंता है और न ही गिरते रुपये की, उसे तो सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने की फिक्र है.’
पत्रकार गिरीश मालवीय लिखते हैं – देश गहरे आर्थिक संकट में है और नीरो यानि मोदी चैन की बंसी बजाए जा रहे हैं. पिछले कुछ महीने से रुपए की वैल्यु बहुत तेज़ी के साथ घटी है, ये अपने आप में खतरनाक बनती जा रही परिस्थिती का बड़ा संकेत है. 9 महीने पहले 8 जनवरी को पहले एक डॉलर की कीमत 74 रुपए के आसपास थी, अब ये 83 रूपये के आसपास है. रुपए की वैल्यू 9 महीने में सीधे 9 रुपए घट गई. इतनी तेज़ी के साथ कभी रुपए की वैल्यू डाउन नहीं हुई थी.
अब एक और फैक्ट पर नजर डालिए. अक्टूबर, 2021 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर था, जबकि अब ख़बर आई है कि 30 सितंबर 2022 को समाप्त सप्ताह में अपना विदेशी मुद्रा भंडार 4.854 अरब डॉलर घटकर 532.664 अरब डॉलर रह गया. यानी, एक साल में 113 अरब डॉलर घटा है और पिछले 8 हफ्ते में यह गति और तेज हुई है.
विदेशी मुद्रा भंडार का पर्याप्त संख्या में होना हर देश के लिए महत्वपूर्ण है. इसे देश की हेल्थ का मीटर कहा जाए तो गलत नहीं होगा. विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे पहला उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि रुपया तेजी से नीचे गिरता है या पूरी तरह से दिवालिया हो जाता है तो RBI के पास बैकअप फंड मौजूद हो. इसमें विदेशी करेंसीज, गोल्ड रिजर्व, ट्रेजरी बिल्स आदि आते हैं और इन्हें केंद्रीय बैंक या अन्य मौद्रिक संस्थाएं संभालती हैं.
विदेशी मुद्रा भंडार में कमी की सबसे बड़ी वजह फॉरेन करेंसी एसेट्स (FCA) में गिरावट है, FCA कुल विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा और प्रमुख हिस्सा होता है, जो 30 सितम्बर को 4.406 अरब डॉलर घटकर 472.807 अरब डॉलर ही रह गया है. इसी के साथ देश का गोल्ड रिजर्व भी घट रहा है. इस हफ्ते देश के गोल्ड रिजर्व की वैल्यू 45.8 करोड़ डॉलर घटकर 38.186 अरब डॉलर पर आ गई.
रूपया गिरने से इंपोर्ट महंगा हो रहा है. कच्चे तेल का भाव बढ़ रहा है, जिसके कारण इंपोर्ट बिल ज्यादा हो गया है. विदेशी निवेश यहां से जा रहा है. यानी हम हर तरफ से पिटा रहे हैं.
भारत की अर्थव्यवस्था श्रीलंका बनने की ओर बहुत तेज़ी से बढ़ रही है. श्रीलंका 51 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज नहीं चुका पाया और कटोरा लेकर खड़ा हो गया था. इसी संदर्भ में क्या आप जानना चाहेंगे कि भारत को अगले छह महीने में कितना विदेशी कर्ज चुकाना है ? यह रकम है 267 अरब डॉलर ! जी हां यह सच है और यही रुपए के गिरने की सबसे बडी वजह भी है.
अभी भारत पर टोटल विदेशी कर्ज लगभग करीब 621 अरब डॉलर का है, उसका करीब 40 प्रतिशत हिस्सा, यानि 267 अरब डॉलर का विदेशी ऋण भारत सरकार को अगले 6 महीने में चुकाने हैं और देश की अर्थव्यवस्था के सामने ये एक बहुत बड़ी चुनौती है. अगर हम कहते है कि भारत की अर्थव्यवस्था श्रीलंका से पांच गुना बढ़ी है तो कर्ज भी तो पांच गुना बड़ा है.
दरअसल दो तरह के कर्ज लिए जाते है – एक है दीर्घकालीन और एक होते हैं अल्पकालीन. इस वक्त देश पर लंबी अवधि का कर्ज 499.1 अरब डॉलर का है, जो कुल बाहरी कर्ज का 80.4 प्रतिशत है जबकि 121.7 अरब डॉलर के साथ छोटी अवधि के कर्ज की हिस्सेदारी 19.6 प्रतिशत है.
एक और भयानक तथ्य जान लीजिए हमारे पास जितना विदेशी मुद्रा भंडार है उससे अब कर्ज की रकम कहीं ज्यादा बड़ी हो गईं हैं. 30 सितम्बर तक भारत के पास कुल 532.664 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार ही रह गया है, जिसमे फॉरेन करेंसी एसेट्स (FCA) तो मात्र 472.807 अरब डॉलर ही रह गया है. अब इसमें से आप अगले छह महिने में चुकाने वाली रकम 267 अरब डॉलर को घटा दीजिए तो असलियत आपके सामने खुद ब खुद आ जाएगी.
ऋण चुकाने के लिए किसी देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार होना चाहिए और वो बहुत तेज़ी से घट रहा है. जनवरी 2022 के पहले सप्ताह में भारत के पास 633 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जिसमें अब तक 100 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट आ चुकी है, यह पिछले एक दशक में सबसे अधिक है.
मीडिया यह विश्वास दिला रहा है कि भारत मंदी से निकल जायेगा लेकिन वो ये तो देख ही नहीं रहा है कि इस शताब्दी की पहली मंदी जो 2008 में आई थी, उस वक्त कुल ऋण अनुपात में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 138.0 प्रतिशत के आंकड़े के साथ सबसे उच्च स्तर पर था और अब ये -85% के आसपास है, जो मार्च 2023 तक तो इसमें से भी आधा साफ़ हो जायेगा.
इसके साथ विदेशी व्यापार घाटा भी दुगुनी तेजी के साथ बढ़ रहा है, ये भी ख़तरनाक हालात का संकेत हैं. हम जैसे लोग बार बार आगाह कर रहे हैं कि इकनॉमी के मोर्चे पर हालात बहुत खराब होने जा रहे हैं लेकिन अधिकांश जनता को ऐसी अफीम चटाई जा रही है कि उसे कोई होश ही नहीं है.
हम यहां एक बार फिर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के उसी बयान से मौजूदा हालात को समझेंगे, जो उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व को दिशाहीन करार देते हुए कहा था कि –
‘देश ने शायद कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि उसे ऐसे आर्थिक संकट से गुजरना पड़ेगा, लेकिन जब ऐसे संकट के दौरान नेतृत्व दिशाहीन हो तो ना-उम्मीदी बढ़ती है. सरकार ने लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. पिछले पांच वर्ष के दौरान हर तीन महीने में हम सरकार से यह सुनते आ रहे हैं कि कीमतें कम होंगी, मुद्रास्फीति पर अंकुश लगेगा लेकिन कुछ नहीं हुआ.’
वहीं, लोकसभा में बोलते हुए भाजपा की तत्कालीन सांसद सुषमा स्वराज ने कहा था कि ‘रुपया केवल एक कागज का टुकड़ा नहीं होता, रुपया केवल एक करेंसी नहीं होती, इस करेंसी के साथ देश की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई होती है और जैसे-जैसे करेंसी गिरती है, देश की प्रतिष्ठा गिरती है.’ लेकिन अब मौजूदा सरकार के रुख को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘रुपया केवल एक कागज का टुकड़ा है. रुपया केवल एक करेंसी होती है, इस करेंसी के साथ देश की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई नहीं होती है और जैसे-जैसे करेंसी गिरती है, देश की प्रतिष्ठा ऊपर उठती जाती हैं क्योंकि अब ‘टेपर टैंट्रम’ (लोकसभा में मोदी की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बयान) नहीं है.
नई नई शब्दावली गढ़कर लोगों को बरगलाने वाली केन्द्र की इस मोदी सरकार को केवल कुर्सी की चिंता होनी चाहिए, देश के अर्थव्यवस्था और गिरते रुपये की नहीं. ठीक यही बात गोदी मीडिया के जरिए मोदी सरकार इस देश की विश्वगुरु जनता को समझाने में सफल हो गयी है, अब क्या चाहिए. सरकार की निर्लज्जता के साथ-साथ जनता भी निर्लज्ज बन गई है.
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