Home गेस्ट ब्लॉग टेथिस समुद्र : हिमालय के बीच छुपा एक छोटा-सा समुद्र

टेथिस समुद्र : हिमालय के बीच छुपा एक छोटा-सा समुद्र

9 second read
0
1
3,248

Manmeetमनमीत, सब-एडिटर, अमर उजाला

क्या हिमालय कभी सच में एक विशाल समुद्र था ? क्या टेक्टोनिक प्लेट्स के आपसी टकराव की वजह से हिमालयन बेसिन विकसित हुआ ? क्या उत्तरी भारत पहले आस्ट्रेलिया महाद्वीप के निकट था ? यानी जहां अभी हम रह रहे हैं, वहां पहले बड़ी बड़ी ह्वेल मछली या तमाम बड़े समुद्री जीव रहते थे ?

ये तमाम सवाल है जो अक्सर किसी भी जिज्ञासु इंसान को सोचने पर मजबूर कर सकते हैं. आठवीं क्लास में जियोग्राफी की टीचर ने क्लास में ‘टेथिस सागर’ के बारे में पढ़ाया तो सहसा विश्वास ही नहीं हुआ. हम क्लास के बाद इंटरवल में बातें करते और मजाक बनाते कि ये कैसे संभव है कि जहां हमारा टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून है (पहले हमारे लिए धरती इतनी ही थी और आसमां भी) वहां समुद्र था ! बहरहाल, बात आई गई हो गई.

लेकिन, जब स्नातक की पढ़ाई कर रहा था तो एक सर्द सुबह धूप में बैठकर एक राष्ट्रीय अखबार पढ़ने में मशगूल था. अखबार के एडिटोरियल पेज पर किसी जियोलॉजिकल साइंसटिस्ट का एक लंबा लेख था, उसमें भी इस बात का उल्लेख था कि हिमालय टेक्टोनिक प्लेटों की टकराहट का परिणाम है. जहां पहले समुद्र था, वहीं अब हिमालय है. मैं फिर से हैरान परेशान हो गया.

बाद में जब देहरादून पहुंचा तो मैंने इंटरनेट पर इस बारे में बहुत पढ़ा. हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के लंबे थिसीस को पढ़ा. वहां वरिष्ठ वैज्ञानिक और भूकंप विशेषज्ञ डा. सुशील कुमार और वरिष्ठ भूगर्भीय वैज्ञानिक डॉ पीएस नेगी से भी लम्बी चर्चा हुई. वैज्ञानिक अक्सर बताते कि इंडियन प्लेट और यूरेशिया प्लेट दोनों एक दूसरे के नीेचे खिसक रही है. लिहाजा, हर दिन कहीं न कहीं छोटे भूकंप आते रहते है, जिन्हें रिक्टर स्केल पर दो से तीन तक मापा जाता है. ये प्रक्रिया हजारों साल पुरानी है.

टेथिस समुद्र का कुछ अंश अभी भी हिमालय के बीचों बीच बचा हुआ है, जैसे लद्दाख से 125 किलोमीटर ऊपर चीन-भारत बार्डर के बीचों-बीच स्थित पेंगोग झील. 134 किलोमीटर क्षेत्रफल में ये खारे पानी की एकमात्र टेथिस सागर का अंश है, जो टेथिस सागर का प्रतिनिधित्व आज भी करता है. जहां हिमालय की सभी झीलें मीठे पानी की है, वहीं पेंगोंग झील का पानी खारा है इसलिए इसमें कोई जीव भी नहीं पनपते. सात महीने ये झील पूरी तरह से ठोस में तबदील हो जाती है.

लहराता टेथिस सागर

4,350 मीटर (14,270) की ऊंचाई में स्थित झील का सत्तर फीसदी हिस्सा चीन में है जबकि शेष तीस फीसदी भारत में. झील इतनी विशाल है कि उसके किनारे खड़े होने पर ऐसा ही लगता है मानो समुद्र के किनारे खड़े हो. दोपहर दो बजे के बाद लहरें सिर तक आने लगती है. दिक्कत बस ये ही है कि आक्सीजन की मात्रा यहां काफी कम होती है.

कई सवालों को लेकर 2015 में लंबा सफर तय कर खुद जीप चला कर पेंगोग झील पहुंचा. वहां पहुंचने में ही मुझे चार दिन लगे. सीमांत इलाका होने के कारण कई परमिट भी आर्मी से बनाने होते है, जो लद्दाख में बनाये जाते हैं. झील अपने आप में अद्भुत है. अभी तक प्राकृतिक नैनीताल झील और अप्राकृतिक टिहरी झील ही देखी थी. पहली बार इतनी विशाल झील देखकर मैं अंचभित था. सबसे पहले सवालों के जवाब मिलने जरूरी था, जिसके लिए मैं आया था.

मैंंने जीप से एक कांच का गिलास निकाला. झील से पानी भर कर पिया तो वो इस कदर खारा था कि उससे मैं बीमार हो सकता था. पर्वतीय मीठे पानी के झीलों का ऐसा स्वाद नहीं होता. उसके बाद मैंंने कुछ पानी का सैंपल भरे, जो मुझे दून में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक को देने थे.

उसके कुछ साल बाद मैं उसी ऊंचाई पर स्थित उससे चार सौ किलोमीटर दूर स्थित चंद्रताल झील पहुंचा. ये झील हिमाचल के लाहोल स्पीति में है. झील पहुुंंचने में तीन दिन लगते हैं. झील का पानी पेंगोंग से बिल्कुल अलग था. इसी तरह ‘तिसो मोरी’ झील का पानी भी पेंगोग झील से अलग था. खुद झील का निरीक्षण कर अब मैं संतुष्ट था.

अब मैं संतुष्ट था कि हिमालय पहले एक सागर ही था. उस दिन पेंगोग झील के किनारे अपनी थर्मस से एक कप चाय निकाल कर, चुस्कियां लेते हुए मैं अपने स्कूल के समय की भूगोल की टीचर को याद कर रहा था.

Read Also –

माजुली द्वीप के अस्तित्व पर मंडराता संकट हमारे लिये एक चेतावनी है
रामसेतु का सच : रामसेतु या कोरल रीफ ?
जल संकट और ‘शुद्ध‘ पेयजल के नाम पर मुनाफे की अंधी लूट

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…