इस्लाम तलवार के बल पर भारत में स्थापित नहीं हुआ, सनातन धर्म में जात-पात के कोढ़ ने इस्लाम को भारत की धरती पर पांंव पसारने में भारी मदद की है.
“प्रभु” वर्तमान के कष्ट भविष्य में हर लेंगे, अपूर्ण मनोकामनाएं, भविष्य में जरूर पूरी होंगी.
“प्रभु की प्रभुता” में आपकी जितनी गहरी “आस्था” होगी, आपको अपना भविष्य उतना ही सुनहरा नजर आयेगा.
भारतीय सनातन दर्शन के सभी सम्प्रदाय “प्रभु की प्रभुता” में अटूट आस्था बनाये रखने की बात करते हैं.
हिदू समाज में “प्रभु की प्रभुता” में आस्था की गहरी जड़ें न सिर्फ जमी रहे, अपितु और मजबूत हों, इसके लिए आरएसएस ने भारतीय सनातन दर्शन के सभी सम्प्रदायों के संत समाज को साधा, एकजुट किया, साथ लिया और एक आध को छोड़ सभी को सदैव साथ ही रखा. यह जिम्मेदारी उसने अपने अनुषांगिक सङ्गठन विश्व हिंदू परिषद के कंधों पर डाली.
इस आस्था का “राजनैतिक” इस्तेमाल करने के लिए एक ऐसे “मुद्दे” को तलाशा गया जो “आस्था” की तरह दीर्धजीवी हो, बहुसंख्यक हिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरो सके और उसके दिल-ओ-दिमाग में यह बिठा सके कि हजारों सालों से जिस समाज ने हिंदुओं पर जुल्म ढाए हैं, उनकी उपासना के स्थलों को जमीदोंज किया है, उस समाज से बदला ले सके, ऐसी राजनैतिक सत्ता का राज देश में कायम होना जरूरी है.
“रामजन्म भूमि पर बने मंदिर को तोड़ कर मुगल शासक बाबर ने मस्जिद खड़ी कर दी थी”
यह एक ऐसा ही, दीर्धजीवी मुद्दा है, जिसका आधार सिर्फ आस्था है, जिसकी जड़ें बहुसंख्यक हिन्दू समाज में बहुत गहरी फैली हुई है. बाबरी मस्जिद के ढांचे को ढ़हा दिया गया. हजारों हिंदू इस अभियान की भेंट चढ़ गए. आज उनके परिवार और परिजनों की क्या स्थिति है ? इसका पुरसाहाल जानने की इच्छा शायद ही किसी हिन्दू में हो ? क्या कभी उन परिवारों की पहचान कर के सूची जारी की गई ? नहीं की गई. और परिजन किस स्थिति में हैं, उन्हें उस समाज से क्या अपेक्षाएं है, जिनके लिए इन अभिशप्त परिवारों के तत्कालीन मुखिया या नौनिहालों ने अपना सर्वस्व कुर्बान कर दिया ?
विश्व हिंदू परिषद जरूर उनका पुरसा हाल लेती होगी, पर आश्चर्य तो यह है कि तिल को ताड़ बता ढोल पीटने की मानसिक बीमारी से ग्रस्त इन लोगों ने कभी देश को यह नहीं बताया कि उन अभिशप्त परिवारों की विश्व हिंदू परिषद ने क्या मदद की ? कितने सैकड़ा करोड़ का दान, मन्दिर बनाने के लिए एकत्रित हुए, यह भी किसी को पता नहीं क्योंकि आरएसएस अपने सभी अनुसांगिक संगठनों की मात्र संस्था है और दान-चंदे की रसीद जारी करने की परंपरा उसमें नहीं है.
इन कार्यकर्ताओं की छोड़िये, उन नेताओं को जिन्होंने कभी बाबरी मस्जिद ढहाने के लिए कश्मीर से कन्या कुमारी तक पूरे भारत में हिंदुओं को जाग्रत किया वे सभी आज घोर उपेक्षा की पीड़ा झेल रहे है. राजनीति में उनको कोई भाव नहीं दे रहा.
चौथाई सदी से ज्यादा बीत चुका मुद्दा न इतना गर्म रह गया है, न किसी की कोई विशेष रुचि इसे गर्म रखने में है क्योंकि, जिस समाज ने हिंदुओं पर हजार साल जुल्म ढाए, उनकी उपासना के स्थलों को जमीदोंज किया, उस समाज से बदला ले सके ऐसी राजनैतिक सत्ता का राज देश में कायम हो चुका है, और सत्ता के शीर्ष पुरुष “मोदी” के प्रति लोगों में गहरी आस्था है कि सिर्फ और सिर्फ यही ऐसा दृढ़ संकल्पित देव पुरुष है, जो जुल्म ढाने वालों के वंशजों को धूल-धूसरित कर उनकी आत्मा को तृप्त करने के “असम्भव कार्य को सम्भव” कर दिखाने की हैसियत रखता है. मोदी का अनुसरण करने वाले सैकड़ों की जमात उनके पीछे “विष वमन” करती रहती है. आरएसएस कहती है कि इस देश में जन्म लेने वालों की एक ही नस्ल है, एक ही धर्म, राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक पहचान “हिंदू” ही है. समाज में द्वेष के बीज बोने वालों को आरएसएस के इस चिंतन से बल मिलता है.
वर्ष 2019 में लोक सभा और उनके साथ 12 राज्यों के चुनाव में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के सत्ता में प्रचण्ड बहुमत से वापसी के दावे, खोखले साबित होंगे, फिलहाल ऐसे राजनैतिक हालात नजर नहीं आ रहे. अपनी एक शंका भी यहां जोड़ देना चाहता हूंं. शायद 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद दूसरा चुनाव जब होगा नए संविधान के अंतर्गत ही होगा.
बहुसंख्यकों के दिल में कोई राजनैतिक पार्टी यह बात बिठाने की कोशिश करती भी नहीं दिख रही कि “हिंदुओं पर जुल्म ढ़ाने की बात अतिशयोक्तिपूर्ण है, छल है, छुट-पुट घटनाओं को द्वेषवश हजारों गुना बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है”. वरना सच तो यह है कि “मुसलमान बादशाहों ने अनेकों मंदिरों के जीर्ण उद्धार कराने में उदारतापूर्वक सहयोग दिया और हिन्दू मठों को राजकोष से सहायता भी दी है.”
सच तो यह भी है कि मुस्लिम शासकों के भारत में आने से लगभग 600 वर्ष पूर्व इस्लाम धर्म ने दक्षिण भारत में अपने पांंव पसारना शुरू कर दिया था. दक्षिण के कई सनातनधर्मी सम्राटों ने इस्लाम धर्म अंगीकार कर लिया था और उनके कारण प्रजा ने भी इस्लामधर्म स्वीकार कर लिया था. इस्लाम तलवार के बल पर भारत में स्थापित नहींं हुआ, सनातन धर्म में जात-पात के कोढ़ ने इस्लाम को भारत की धरती पर पांंव पसारने में भारी मदद की है.
सभी पार्टियों के नेता भयातुर हैं कि यदि वे ऐसा करते और कहते दिखेंगे तो हिंदुओं में उनका जो कुछ भी जनाधार है, वह खिसक जाएगा. जबकि यह सिर्फ एक भ्रम है. हमारे समाज मे एक कहावत प्रचलित है- सांंच को आंच कहांं. सच कहने में संकोच मत करो, वर्ना यही तुम्हारी मौत बन कर एक दिन तुम्हें निगल लेगा.
– विनय ओसवाल
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