विश्व इतिहास में न्यूटन, आइंस्टीन के पश्चात अगर किसी वैज्ञानिक ने लोगों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को झकझोरा है तो वे स्टीफन हॉकिंग थे. उन्होंने न केवल दुनिया भर में लोगों के बीच दुनिया और ब्रह्माण्ड की रचना को समझने का रास्ता ही बताया अपितु सीधे तौर पर ब्रह्माण्ड और विश्व की रचना में किसी ईश्वरीय शक्ति के हस्तक्षेप से इंकार करते हुए ईश्वर के अस्तित्व को ही नकार दिया. उनकी यही दृढ़ता उन्हें दुनिया के प्रगतिशील विचारकों गैलीलियो और कोपरनिकस के कतार में ला खड़ा करता है.
14 मार्च दुनिया के इतिहास में वह तारीख बन गई है जिस दिन ने दुनिया को एक महान वैज्ञानिक अल्वर्ट आइंस्टीन और गैलीलियो को जन्म दिया तो वहीं दुनिया के दो महान व्यक्तित्व को छीन लिया. कार्ल मार्क्स, जिन्होंने दुनिया को देखने का नजरिया ही बदल दिया और समाजवाद से होते हुए साम्यवाद तक जाने का रास्ता बताया, जिस पर चलते हुए तकरीबन दुनिया के आधे से ज्यादा समाजवादी देश का निर्माण हुआ तो वहीं स्टीफन हॉकिंग ने ब्लैक होल की खोज कर ब्रह्माण्ड के निर्माण में बिग बैंग जैसे सिद्धांत मानव जाति के हाथों में देकर तमाम दकियानूसी विचारों पर करारी प्रहार किये.
हमारे दौर के सर्वाधिक रहस्यमय, सर्वाधिक चर्चित, अपने आप में ब्रह्माण्ड के एक दुर्बोध तत्व की तरह सीमित, लेकिन असीम मेधा के धनी स्टीफन हॉकिंग का 76 साल की उम्र में देहांत हो गया. हॉकिंग, जिनकी देह का अंत तो तभी हो गया था जब उन्हें 21 वर्ष की उम्र में गंभीर ‘मोटर न्यूरॉन क्षय’ रोग से ग्रस्त पाया गया था. उन्हें जीने के लिए दो साल का वक्त डॉक्टरों ने दिया. उनकी मांसपेशियां हिलने-डुलने में अक्षम थीं. वे बोल नहीं सकते थे. उनकी आवाज़ कंप्यूटर-सिंथेसाइज़्ड थी. उन्होंने डॉक्टरोंं को अचंभित करते पूरे पांच दशक तक न केवल जीवित ही रहे वरन् मानव जाति का सिरमौर भी बन गये. न्यूटन के 300 साल बाद वे युनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज में ‘लुकाचियन प्रोफेसर ऑफ मैथेमैटिक्स’ के पद पर विराजे और देखते ही देखते दुनिया भर में खगोलविज्ञान का प्रतीक बन गए.
हॉकिंग हमारे समय में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने वाले भौतिकविज्ञानियों में सबसे अग्रणी रहे. उनकी शरीर तो 21 वर्ष की अवस्था में बेकार हो चुकी थी परन्तु स्टीफन हॉकिंग एक मस्तिष्क थे. स्टीफन हॉकिंग एक ऐसा मस्तिष्क थे जो पचास बरस तक खगोलीय रहस्यों में सेंध लगाता रहा. उन्होंने एक बार कहा था, ”मेरा लक्ष्य सहज है. यह ब्रह्माण्ड की पूरी समझदारी हासिल करने का है, कि वह जैसा है वैसा क्यों है और आखिर उसका वजूद ही क्यों है ?”
जिंदगी भर वे आइंस्टीन के सापेक्षिकता के सिद्धांत को क्वांटम भौतिकी के साथ मिलाकर समझते रहे और अंतत: उन्होंने एक किताब लिखी, “थियरी ऑफ एवरीथिंग” यानी सब कुछ का सिद्धांत.
स्टीफन हॉकिंग की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तक है “अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम” (1988) है, जो “समय का संक्षिप्त इतिहास” के नाम से हिन्दी भाषा में अनुदित हुई और हिन्दी भाषियों के बीच बेहद लोकप्रिय भी हुई. ब्रह्माण्ड निर्माण में बिग बैंग के सिद्धांत को जितनी आसानी से हॉकिंग ने इस पुस्तक केे माध्यम से आमजनों को समझाया है, वह अभूतपूर्व और अप्रतिम है. इस पुस्तक की लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं और इसका बीस से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है.
वे दुनिया भर में लेक्चर देते थे. उनकी उंगलियां की-बोर्ड पर चलती थीं और आवाज़ एक सिंथेसाइज़र से निकलती थी. एक मान्यता यह भी थी कि स्टीफन हॉकिंग आइंस्टीन का पुनर्जन्म हैं. वे इसे मीडिया का दुष्प्रचार मानते थे.
वे कहते थे, “लोगों ने पहले आइंस्टीन को हीरो बनाया, अब वे मुझे हीरो बना रहे हैं हालांकि इसमें उतना दम नहीं है.” वे अपने जीवन में चार नायकों को सम्मान देते थे- गैलीलियों, आइंस्टीन, डार्विन और मर्लिन मनरो. मनरो की तमाम तस्वीरें उन्होंने अपने कमरे में टांग रखी थीं.
अपनी मृत्यु से कुछ समय पूर्व स्टार टॉक में टायसन के जवाब में उन्होंने कहा था कि “बिग बैंग से पहले कुछ नहीं था. कुछ नहीं मतलब ‘कुछ नहीं’ भी नहीं था.” बिग बैंग के सिद्धांत को उनके रहते बहुत चुनौतियां मिलीं, लेकिन अपने वक्त में इस दुनिया में शायद वे अकेले इंसान थे जो दावा कर सकते थे कि उन्हें पता है कि समय से पहले क्या था. हॉकिंग की मानें तो ब्रह्माण्ड का न आदि था, न अंत है. जो है, निरंतर है.
हॉकिंग का अंत नहीं हुआ है. वे उस महान निरंतरता में समा गए हैं जिसे उन्होंने जिंदगी भर समझने की कोशिश की. यह हॉकिंग की आखिरी रिसर्च यात्रा है, जिसका कोई शोध पत्र नहीं मिलेगा.
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