शुक्रिया इमरान, जिसने देश को आपातकाल से बचा लिया और देर से सही भारत में लोकसभा चुनाव का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यह लोकतंत्र के समर्थकों के लिए एक राहत की बात थी. 2014 के लोकसभा चुनाव की घोषणा 4 मार्च तक कर दिया गया था. इस बार चुनाव आयोग ने देर की तो लोकतंत्र के समर्थकों की धड़कने बढ़ने लगी थी. पुलवामा में 44 जवानों की हत्या से उपजी हालत को बहाना बनाते हुए राष्ट्रवाद और आतंकवाद का आड़ लेते हुए देश में चुनाव को टालने की जद्दोजहद कर रहे थे.भाजपा-आरएसएस समर्थक सड़कों पर नारे लगाते जुलूस निकाल रहे थे कि चुनाव न हो. उत्तर भारत में भाजपा की ओर से लगाये जा रहे उन्मादी नारे कुछ ऐसा ही बयां कर रहे थे. ये नारे इस प्रकार लगाये जा रहे थे : हमें नौकरी नहीं बदला चाहिए’, ’हम भूखों रह लेंगे पर मोदीजी, बदला लो’, ’आम चुनाव रोक दो, पाकिस्तान को ठोंक दो’, ’पाकिस्तान की मां की …’ ’देश को बचाओ; मोदीजी को फिर से लाओ’ … वगैरह-वगैरह.
केन्द्र की सत्ता पर काबिज आरएसएस के एजेंट नरेन्द्र मोदी, जो न केवल हजारों लोगों के नरसंहार का अभियुक्त ही है, वरन् देश के जजों, बुद्धिजीवियों, अल्पसंख्यकों, दलितों और औरतों की हत्या और प्रताड़ना का भी प्रेरक है, पुलवामा हमले की आड़ में देश में देश में फर्जी राष्ट्रवाद का लहर पैदा करना चाहता था. मुख्यधारा की तलबाचाटू मीडिया के सहारे देश को भयावह युद्धोन्माद की आग में झोंकना चाह रहा था, जिसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने दूरदृष्टि अपनाते हुए और खुद को किसी भी तरह कमजोर साबित न करते हुए, इस फर्जी युद्धोन्माद की हवा निकाल दी. उसने भारतीय वायुसेना के पायलट अभिनन्दन को गिरफ्तार कर और फिर उसे स-समय सही सलामत रिहा कर शांति और भाईचारे का संदेश क्या दिया, सारा युद्धोन्माद घुटने पर आ खड़ा हुआ और आज देश में देर से ही सही, चुनाव की घोषणा हो गई.
देश में चुनाव का होना लोकतंत्र में एक पायदान होता है, अपने नेताओं को चुनने का, ताकि वह अगले 5 साल तक देश की जनता को लूटे-खसोटे या उसे तत्कालिक राहत देकर उसके दर्द को कम करने का प्रयास करे. यह अनायास नहीं है कि इस देश में चुनाव किसी को सत्ता पर बिठाने के लिए नहीं होती बल्कि सत्ताधारियों के कुकर्म से पीछा छुड़ाने के लिए होता है. इस बार भी ऐसा ही होगा. पर इस बार अंतर यह है कि सत्ता का भूखा यह सत्ताधारी भाजपा-आरएसएस यह जानता है कि उसके सत्ता से हटने पर उसके द्वारा देश को ब्राह्मणवादी आग में झोंकने का उसका प्रयास अधूरा रह जायेगा या देश पुनः प्रगति की राह पर चल देगा, जहां दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और महिलाओं की हिस्सेदारी का मांग उठने लगेगी. यही कारण है कि भाजपा और उसके प्रचारमंत्री जो संयोग से इस बार प्रधानमंत्री भी हैं, दिन-रात चुनाव प्रचार अभियान में लगे हुए हैं. उसके लिए इसके अलावा और कोई काम ही नहीं बच गया है. कहा जा रहा है कि चुनाव प्रचार के इस अवधि में नरेन्द्र मोदी तकरीबन 1000 रैलियों को सम्बोधित करेंगे.
परन्तु, जैसा कि पिछले 5 सालों में चुनाव आयोग द्वारा भाजपा की दलाली दिन की रोशनी की तरह साफ हो गई है, भाजपा द्वारा देश में चुनाव टालने का अथक प्रयास भी इस दलाल चुनाव आयोग के लिए संभव नहीं हो पाया. पर, चुनाव का ऐलान करने के लिए मजबूर चुनाव आयोग भाजपा की दलाली और उसके नमक का कर्ज चुकाना नहीं छोड़ा और चुनाव में भाजपा की खुली दलाली करते हुए चुनावों को 7 चरणों में होने का ऐलान कर दिया, ताकि भाजपा और आरएसएस अपने गुंडों के झुंडों को स-समय अलग-अलग चुनाव क्षेत्रों में भेज कर आम जनता को डरा-घमका सके. इससे से आगे बढ़कर ईवीएम के साथ सही तरीके से छेड़छाड़ कर सके.
एनडीटीवी के पत्रकार एंकर रविश कुमार ने इस प्रक्रिया को कुछ इस प्रकार दर्शाया है : आम चुनावों का एलान हो गया है. चुनाव आयोग ने जो चरण बांधे हैं उसे लेकर सवाल उठ रहे हैं. 2014 में बिहार में छह चरणों में चुनाव हुए थे. 2019 में 7 चरणों में होंगे. एक शांतिपूर्ण राज्य में सात चरणों में चुनाव का क्या मतलब है. 2014 में झंझारपुर, मधुबनी, दरभंगा को मधेपुरा, समस्तीपुर, बेगुसराय और खगड़िया के साथ चौथे चरण में रखा गया था. झंझारपुर, मधुबनी और दरभंगा एक दूसरे से सटा हुआ है. इस बार इन तीनों पड़ोसी ज़िले को अलग-अलग चरणों में रखा गया है. झंझारपुर में मतदान तीसरे चरण में यानी 23 अप्रैल को होगा. दरभंगा में मतदान 29 अप्रैल में हैं. मधुबनी में पांचवें चरण में 6 मई को होगा. चुनाव आयोग ही बता सकता है कि तीनों पड़ोसी ज़िले का वितरण अलग-अलग चरणों में क्यों रखा गया है. किसी की सहूलियत का ध्यान रखकर किया गया है या फिर आयोग ने अपनी सहूलियत देखी है.
उसी तरह महाराष्ट्र में 4 चरणों में चुनाव को लेकर सवाल उठ रहे हैं. योगेंद्र यादव ने सवाल किया है कि 2014 में उड़ीसा में दो चरणों में चुनाव हुए थे. इस बार चार चरणों में होंगे. पश्चिम बंगाल में 5 की जगह 7 चरणों में चुनाव होंगे. यही नहीं इस बार चुनावों के एलान में भी 5 दिनों की देरी हुई है. 2014 में 5 मार्च को चुनावों का एलान हो गया था. इन तारीखों के ज़रिए चुनाव प्रबंधन को समझने के लिए ज़रूरी है कि ये सवाल पूछे जाएं. यह वही चुनाव आयोग है जिसने पिछले विधानसभा में प्रेस कांफ्रेंस के लिए संदेश भिजवा कर वापस ले लिया था. पता चला कि उस बीच प्रधानमंत्री रैली करने चले गए हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि इस बार 100 सभाओं को समाप्त कर उनके दिल्ली लौट आने का इंतज़ार हो रहा था !
देश में चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग को मजबूर करने और देश में लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को एक बार फिर शुक्रिया, जिसने अपने सूझ-बूझ का परिचय देकर देश को आपातकाल से बचा लिया.
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