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एस.सी., एस.टी. के खिलाफ वह अपराध जिसे करने की अब खुली छूट दी केंद्र की भाजपा सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने

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एस.सी., एस.टी. के खिलाफ वह अपराध जिसे करने की अब छूट मिल गई है

भारत की मोदी सरकार देश के विशाल आबादी वाली अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ इस कदर नफरत से भरी हुई है कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989, जो भारत की संसद द्वारा 11 सितम्बर, 1989 में पारित किया गया था और जनवरी, 1990 में पूरे देश में लागू किया गया था, में बदलाव करने के लिए संसद के बजाय सुप्रीम कोर्ट में अपने बिठाये दलाल ब्राह्मणवादी मानसिकता वाले जजों के माध्यम से इस कानून के दुरुपयोग का कुतर्क देते हुए निष्प्रभावी करने का पुरजोर प्रयास किया है.

सुप्रीम कोर्ट के जजों के द्वारा जो इसी ब्राह्मणवादी व्यवस्था का प्रतीक हैं, के आदेश के खिलाफ देश भर में विरोध के स्वर उठने लगे. 2 अप्रैल को हुए विशाल भारत बंद की सफलता को देखकर अकबकाई भाजपा अनाप-शनाप बोलने लगी, जिसकी कोई कानूनी महत्ता या विश्वसनीयता नहीं रह गई है.

मसलन अमित शाह का यह कहना कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ कोई अत्याचार नहीं होगा. एक दलित सांसद व मंत्री रामविलास पासवान का कहना कि ‘केन्द्र सरकार जब सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर ही रही है तो विरोध क्यों कर रहे हो ?’ हलांकि पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करने गई केन्द्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई और अपने फैसले में कोई भी बदलाव लाने के लिए तैयार नहीं हुई जबकि सुप्रीम कोई का यह फैसला भारतीय संविधान के ही खिलाफ है. संसद के बनाये कानून को केवल संसद ही खत्म, निष्प्रभावी या संशोधन कर सकती है.

इस बात का कोई महत्व नहीं है कि कोर्ट क्या कहती है और मोदी सरकार क्या करती है. असल में दोनों ही देश की ब्राह्मणवादी व्यवस्था का प्रबल समर्थक है, जिसके माध्यम से भाजपा की केन्द्र सरकार और इसकी मातृ संगठन आर.एस.एस. देश के तमाम अनुसूचित जाति और जनजातियों पर जुल्म ढ़ाने की पुरानी परम्परा को फिर से जीवित करना चाहती है, जो इस कानून के बनने के बाद थोड़ी कम हुई थी.

इसी के साथ केन्द्र की मोदी सरकार आरक्षण के माध्यम से देश की सत्ता प्रतिष्ठानों और शिक्षण संस्थानों में आने वाले अनुसचित जाति और अनुसचित जनजातियों के युवाओं को रोकने के लिए आरक्षण को ही खत्म करने की प्रक्रिया चला रही है.

यहां हम अनुसचित जाति और अनुसचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के उन प्रावधानों का जिक्र करना चाह रहे हैं, जिसके विरूद्ध यह अधिनियम अनुसचित जाति और अनुसचित जनजातियों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है, जिसके खिलाफ आज केन्द्र की मोदी सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों है.

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989, उस व्यक्ति पर लागू होता है जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है और इस वर्ग के सदस्यों पर अपराध करता है. इस अधिनियम की धारा 3 (1) के अनुसार जो कोई भी यदि वह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है और वह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर इस प्रकार के अपराध करता है, तो वह अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989, के अनुसार दण्डनीय होगा. इस कानून के अनुसार ये अपराध इस प्रकार हैं –

1. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को जबरन अखाद्य (मल-मूत्र इत्यादि) पदार्थ खिलाना या पिलाना.

2. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को शारीरिक चोट पहुंचाना या उनके घर के आस-पास या परिवार में उन्हें अपमानित करने या क्षुब्ध करने की नीयत से कूड़ा-करकट, मल या मृत पशु का शव फेंक देना.

3. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के शरीर से बलपूर्वक कपड़ा उतारना या उसे नंगा करके या उसके चेहरे पर पेंट पोत कर सार्वजनिक रूप में घुमाना या इसी प्रकार का कोई ऐसा कार्य करना जो मानव के सम्मान के विरूद्ध हो.

4. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के भूमि पर से गैर-कानूनी ढंग से खेती काट लेना, खेती जोत लेना या उस भूमि पर कब्जा कर लेना.

5. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को गैर-कानूनी ढ़ंग से उनके भूमि से बेदखल कर देना (कब्जा कर लेना) या उनके अधिकार क्षेत्र की सम्पत्ति के उपभोग में हस्तक्षेप करना.

6. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को भीख मांगने के लिए मजबूर कना या उन्हें बंधुआ मजदूर के रूप में रहने को विवश करना या फुसलाना.

7. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को वोट (मतदान) नहीं देने देना या किसी खास उम्मीदवार को मतदान के लिए मजबूर करना.

8. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरूद्ध झूठा, परेशान करने की नीयत से इसे पूर्ण आपराधिक या अन्य कानूनी आरोप लगा कर फंसाना या कार्रवाई करना.

9. किसी लोक सेवक (सरकारी कर्मचारी/अधिकारी) को कोई झूठा या तुच्छ सूचना अथवा जानकारी देना और उसके विरूद्ध अनुसचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य कोक क्षति पहुंचाने या क्षुब्ध करने के लिए ऐसे लोक सेवक उसकी विधि पूर्ण शक्ति का प्रयोग करना.

10. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को जानबूझकर जनता की नजर में जलील कर अपमानित करना, डराना.

11. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी महिला सदस्य को अनादर करना या उन्हें अपमानित करने की नीयत से शीलभंग करने के लिए बल का प्रयोग करना.

12. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी महिला का उसके इच्छा के विरूद्ध या बलपूर्वक यौन शोषण करना.

13. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले जलाशय या जल-स्त्रोतों को गंदा करना अथवा अनुपयोगी बना देना.

14. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोकना, रूढ़ी जन्य अधिकारों से वंचित करना या ऐसे स्थानों पर जाने से रोकना जहां वह जा सकता है.

15. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपना मकान अथवा निवास स्थान छोड़ने पर मजबूर करना या करवाना.

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए यह विशेष कानून बनाने की जरूरत संसद को इसलिए पड़ी थी क्योंकि वास्तव में इस वर्ग से आने वाले सदस्यों पर सवर्ण तबके के ब्राह्मणवादी मानसिकता के लोग उपरोक्त तरीके के अत्याचार करते थे, और सत्ता में ऊंची पहुंच, पैसे का इस्तेमाल कर बच निकलते थे. ऐसे में देश की संसद ने जब उपरोक्त अपराधों के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के किसी   सुरक्षा के लिए ये कड़े प्रावधान किये तब सवर्ण तबकों को थोड़ी मुश्किलें आने लगी. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों को सवर्णों और ब्राह्मणवादी अपराधिक मानसिकता से राहत मिलने लगी, जिसकारण सवर्णों का वह स्वर्ण युग (सतयुग या रामराज्य) खतरे में पड़ गया.

हिन्दु धर्म शुरूआत से ही अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों पर अत्याचार करने का हिमायती रहा है. उस पर अत्याचार ढा कर आनन्द उठाने का चिरअभिलाषा रही है. ढ़ोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी पर तुलसी दास का कुख्यात पद यों ही नहीं लिखा गया है. आरएसएस सवर्ण हिन्दुओं के इसी चिरअभिलाषा का परिलक्षण रहा है, जिसकी एक शाखा बढ़कर आज जब केन्द्र की सत्ता पर विराजमान हुई है, तब उसने सुप्रीम कोर्ट के बिके हुए जजों की सहायता से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के खिलाफ होने वाले जुल्मों से बचाने वाली कानून को ही लगभग खत्म कर दिया है, जिससे सवर्णों और ब्राह्मणवादी ताकतों को एक बार फिर से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों पर मध्ययुगीन जुल्म ढ़ाने की आजादी मिल गई है.

यह अनायस नहीं है कि केन्द्र की सत्ता पर आरएसएस की शाखा भाजपा के काबिज होने के साथ ही अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों पर देश भर में जुल्मों सितम की बाढ़ आ गई है.

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One Comment

  1. Utpal Basu

    April 7, 2018 at 4:42 pm

    रोहित , नियमित रूप से खबर भेजते हो – – – – – – – – – भेजते रहना। और pratibhekdiary. com से मेरा लिंक करवा दो। बहुत बहुत बधाई और सुकिया लेना।

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