आज भारत में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. इस शिक्षक दिवस के अवसर पर हम सर्वहारा वर्ग के महान शिक्षक कार्ल मार्क्स को याद करेंगे क्योंकि वही एक मात्र हमारे प्रथम शिक्षक हैं, जिन्होंने सचमुच में मानव जीवन की सुन्दरता के लिए भविष्य की शानदार इमारत की नींव रखी है, जिस पर चलकर सर्वहारा ने अपना शानदार जीवन जिया है और दुनिया में मिसाल कायम किया है. यही कारण है कि आज इस शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने महान शिक्षक को याद कर रहे हैं. प्रस्तुत आलेख साथी सुधाकर ने लिखा है.
कार्ल मार्क्स (5 मई, 1818 – 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, राजनीतिक सिद्धांतकार, समाजशास्त्री, पत्रकार और वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता थे. इनका पूरा नाम कार्ल हेनरिख मार्क्स इनका जन्म 5 मई, 1818 को त्रेवेस के एक यहूदी परिवार में हुआ.
1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया. 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय जर्मनी में प्रवेश लिया, तत्पश्चात् उन्होंने बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया. इसी काल में वह हीगेल के दर्शन से बहुत प्रभावित हुए।
1839-41 में उन्होंने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् 1842 में मार्क्स उसी वर्ष कोलोन से प्रकाशित ‘राइनिशे जीतुंग’ पत्र में पहले लेखक और तत्पश्चात् संपादक के रूप में सम्मिलित हुए किंतु सर्वहारा क्रांति के विचारों के प्रतिपादन और प्रसार करने के कारण 15 महीने बाद ही 1843 में उस पत्र का प्रकाशन बंद करवा दिया गया.
मार्क्स पेरिस चले गये. वहांं उन्होंने ‘द्यूस फ्रांजोसिश’ जारबूशर पत्र में हीगेल के नैतिक दर्शन पर अनेक लेख लिखे. 1845 में वह फ्रांस से निष्कासित होकर ब्रूसेल्स चले गये और वहीं उन्होंने जर्मनी के मजदूर सगंठन और ‘कम्युनिस्ट लीग’ के निर्माण में सक्रिय योग दिया. 1847 में मार्क्स ने एंगेल्स के साथ ‘अंतराष्ट्रीय समाजवाद’ का प्रथम घोषणापत्र (कम्युनिस्ट मॉनिफेस्टो) प्रकाशित किया.
1848 में मार्क्स ने पुन: कोलोन में ‘नेवे राइनिशे जीतुंग’ का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया. 1849 में इसी अपराघ में वह प्रशा से निष्कासित हुए. वह पेरिस होते हुए लंदन चले गये और फिर जीवन पर्यंत वहीं रहे.
लंदन में सबसे पहले उन्होंने ‘कम्युनिस्ट लीग’ की स्थापना का प्रयास किया, किंतु उसमें फूट पड़ गई. अंत में मार्क्स को उसे भंग कर देना पड़ा. उनका ‘नेवे राइनिश जीतुंग’ भी केवल छह अंको में निकल कर बंद हो गया. 1859 में मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष ‘जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी’ नामक पुस्तक में प्रकाशित किये.
यह पुस्तक मार्क्स की उस बृहत्तर योजना का एक भाग था, जो उन्होंने संपूर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने के लिए बनाई थी. किंतु कुछ ही दिनो में उसे लगा कि उपलब्ध साम्रगी उसकी योजना में पूर्ण रूपेण सहायक नहीं हो सकती. अत: उन्होंने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे से लिखना आंरभ किया और उसका प्रथम भाग 1867 में दास कैपिटल (द कैपिटल, हिंदी में पूंजी शीर्षक से प्रगति प्रकाशन, मास्को से चार भागों में) के नाम से प्रकाशित किया.
‘द कैपिटल’ के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंगेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए. ‘वर्गसंघर्ष’ का सिद्धांत मार्क्स के ‘वैज्ञानिक समाजवाद’ का मेरूदंड है. इसका विस्तार करते हुए उसने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापनाएंं की. मार्क्स के सारे आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं.
1864 में लंदन में ‘अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ’ की स्थापना में मार्क्स ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. संघ की सभी घोषणाएंं, नीति, कार्यक्रम मार्क्स द्वारा ही तैयार किये जाते थे. कोई एक वर्ष तक संघ का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा, किंतु बाकुनिन के अराजकतावादी आंदोलन, फ्रांसीसी जर्मन युद्ध और पेरिस कम्यूनों के चलते ‘अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ’ भंग हो गया, किंतु उसकी प्रवृति और चेतना अनेक देशों में समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के अस्तित्व के कारण कायम रही.
‘अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ’ भंग हो जाने पर मार्क्स ने पुन: लेखनी उठाई। किंतु निरंतर अस्वस्थता के कारण उसके शोधकार्य में अनेक बाधाएंं आईं. मार्च 14, 1883 को मार्क्स के तूफानी जीवन की कहानी समाप्त हो गई. मार्क्स का प्राय: सारा जीवन भयानक आर्थिक संकटों के बीच व्यतीत हुआ. उनकी छह संतानो में केवल तीन कन्याएंं ही जीवित रही. उनका एकमात्र पुत्र एडगर अभावों के बीच बाल्यकाल में दम तोड़ दिये.
दास कैपिटल
दास कैपिटल एक पुस्तक है जिसकी रचना कार्ल मार्क्स ने 1867 ई. में की थी. इसमें पूंंजी एवं पूंंजीवाद का विश्लेषण है तथा मजदूर वर्ग को शोषण से मुक्त करने के उपाय बताये गए हैं. इस पुस्तक के द्वारा एक सर्वथा नवीन विचारधारा प्रवाहित हुई जिसने संपूर्ण प्राचीन मान्यताओं को झकझोर कर हिला दिया.
इस पुस्तक के प्रकाशित होने के कुछ ही वर्षों के बाद रूस में साम्यवादी क्रांति हुई. दास कैपिटल : राजनीतिक अर्थव्यवस्था (1867) की आलोचना, कार्ल मार्क्स का प्रस्ताव है कि पूंजीवाद के प्रेरित बल श्रम, जिसका काम अवैतनिक लाभ और अधिशेष मूल्य के परम स्रोत के शोषण करने में है, नियोक्ता लाभ (नई उत्पादन मूल्य) के अधिकार का दावा कर सकते हैं, क्योंकि वह या वह उत्पादक पूंंजी (उत्पादन के साधन) संपत्ति है, जो कानूनी तौर पर संपत्ति के अधिकार के माध्यम से कर रहे हैं.
पूंजीवादी राज्य द्वारा संरक्षित मालिक. पूंजी के उत्पादन में (पैसा) वस्तुओं (माल और सेवाओं) के बजाय, कार्यकर्ताओं लगातार आर्थिक स्थिति है जिसके द्वारा वे श्रम पुनरुत्पादन.कैपिटल “कानून के प्रस्ताव का” पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली के अपने मूल से, अपने भविष्य के लिए पूंजी, मजदूरी श्रम, कार्यस्थल के परिवर्तन के विकास के संचय की गतिशीलता का वर्णन करके एक विवरण, प्रस्ताव है, पूंजी का केन्द्रीकरण, वाणिज्यिक प्रतियोगिता, बैंकिंग प्रणाली, लाभ की दर की गिरावट, भूमि किराए, आदि.
भौतिकवाद
भौतिकवाद दार्शनिक एकत्ववाद का एक प्रकार हैं, जिसका यह मत है कि प्रकृति में पदार्थ ही मूल द्रव्य है, और साथ ही, सभी दृग्विषय, जिस में मानसिक दृग्विषय और चेतना भी शामिल हैं, भौतिक परस्पर संक्रिया के परिणाम हैं.
भौतिकवाद का भौतिकतावाद से गहरा सम्बन्ध हैं, जिसका यह मत है कि जो कुछ भी अस्तित्व में है, वह अंततः भौतिक हैं. भौतिक विज्ञानों की ख़ोज के साथ, दार्शनिक भौतिकतावाद भौतिकवाद से क्रम-विकसित हुआ, ताकि सिर्फ सामान्य पदार्थ के बजाए भौतिकता के अधिक परिष्कृत विचारों को समाहित किया जा सके, जैसे कि, दिक्-काल, भौतिक ऊर्जाएंं और बल, डार्क मैटर, इत्यादि.
अतः, कुछ लोग ‘भौतिकवाद’ से बढ़कर ‘भौतिकतावाद’ शब्द को वरीयता देते हैं, जबकि कुछ इन शब्दों का प्रयोग समानार्थी शब्दों के रूप में करते हैं भौतिकवाद या भौतिकतावाद से विरुद्ध दर्शनों में आदर्शवाद, बहुलवाद, द्वैतवाद और एकत्ववाद के कुछ प्रकार सम्मिलित हैं.
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