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सरकारी पुलिसिया हमले का विकल्प ‘आजाद गांव’

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सरकारी पुलिसिया हमले का विकल्प ‘आजाद गांव’

गढ़चिरौली में पुलिस ने चालीस आदिवासियों को मार दिया. उनके पास से पुलिस ने आठ बंदूकें बरामद होने का दावा किया है. मतलब बाकी के बत्तीस लोग निहत्थे थे. आदिवासियों की हत्या, दलितों की हत्या, मुसलमानों की हत्या इसी तरह से भारत की पुलिस करती है. क्यों करती है इसे समझना जरूरी है. अगर आप बीमारी से मुक्ति चाहते हैं तो अपनी बीमारी को समझना जरूरी है.

आपकी पुलिस क्रूर है. एक क्रूर समाज की पुलिस क्रूर ही होगी. जो समाज किसी से इसलिए नफरत करता है क्योंकि उसका जन्म किसी दलित मां के या मुसलमान मां के पेट से हो गया है, जो समाज किसी दलित के मूंछ रखने या शादी में घोड़ी पर बैठने की वजह से उसकी हत्या कर दे, जो समाज दलितों की जमीनें छीन कर ही बड़ा बना है, जो समाज मजदूर की मेहनत काट कर ही अमीर बना है, उस समाज की पुलिस क्रूर नहीं होगी तो क्या कानून के हिसाब से चलने वाली होगी ?

आपके घर की एक-एक ईंट खून में डूबी हुई है. आपके खाने का एक-एक निवाला किसान की आह से निकला है. आप उस इंसान को अपना प्रधानमंत्री बनाते हैं जो हत्याएं करवाता है ताकि आप खुद को बहुत महान धर्म वाले साबित कर सकें. आप क्या कानून और सही गलत को समझ सकते हैं ?

आप लूट नफरत और क्रूरता में डूबे हुए हैं. आपकी राजनीति आपका सामाजिक चिंतन आपकी अर्थव्यवस्था खून में तरबतर है. आपकी पुलिस जितनी हत्याएं करती है आप खुद को उतना सुरक्षित, उतना अमीर, उतना ऊंचा समझते हैं.

मैंने अपनी जीवन में बहुत लाशें देखी है. पुलिस द्वारा मारे गये आदिवासी बच्चों की लाशें, दलितों की लाशों के ढ़ेर देखे हैं. मुसलमानों के जलाए हुए घर और बिखरी हुई लाशें देखी हैं. यह सब आपकी जाति, साम्प्रदायिकता और आर्थिक लूट के शिकार लोग थे.

आपके सिपाही आपकी नफरत की शान की हिफाजत के लिए इस मुल्क के कमजोरों को मारने निकले हुए हैं. आपकी पूरी राजनीति इन सिपाहियों के साथ है. ये सिपाही ना हों तो ना आप अमीर रह पायेंगे, ना आप बड़ी जात के रह पायेंगे. आपकी सारी अमीरी और बड़ापन इन बन्दूकों के सहारे ही बचा हुआ है इसीलिये आपके इन सिपाहियों पर लोग हमला करते हैं क्योंकि वो एक दिन आप तक पहुंचना चाहते हैं ताकि आपका गिरेबान पकड सकें. वह दिन जरूर आयेगा.

– और वह दिन इस रूप में आ गया है –

एक बहुत जबर्दस्त घटना हो रही है, जिसके बारे में शहरी लोगों को पता नहीं है लेकिन इस घटना से सरकार बहुत डरी हुई है. आदिवासियों ने अपने गांव आजाद घोषित करने शुरू कर दिए हैं. मैंने गुजरात में जाकर इस तरह के गांव में आदिवासियों से मुलाकात करके पूरी जानकारी ली. आदिवासियों ने अपने गांव के बाहर सूचना लगा दी है कि भारत के संविधान की 5वीं अनुसूची के मुताबिक अब से इस गांव की जमीन, जंगल और विकास के बारे में इस गांव के आदिवासी खुद ही फैसला करेंगे. इस गांव में कोई भी सरकारी कर्मचारी, सरकारी अधिकारी, पुलिस वाले या वन विभाग के लोग प्रवेश ना करें. इस तरह की आजादी की घोषणा झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने भी करनी शुरू कर दी है. झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने अपनी परम्परा के मुताबिक आजादी की यह घोषणा पत्थर पर लिख कर गांव के बाहर लगा कर कर दी है. इससे सरकार पुलिस और कम्पनियां घबरा गई हैं.

भाजपा के लुटेरे नेता और गुंडे, कम्पनियों से रिश्वत खाकर काम करने वाले पुलिस के अधिकारी और उनके साथी भ्रष्ट अखबार के मालिक मिल कर आदिवासियों की इस घोषणा के खिलाफ मिल कर हमला बोल रहे हैं. हाल ही में कई आदिवासी कार्यकर्ताओं को पुलिस ने जेल में डाल दिया है. भाजपा के गुंडों ने पत्थरों को उखाड़ दिया है और आदिवासियों पर हमला किया और पुलिस ने घायल आदिवासियों को ही जेल में डाल दिया है. मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल ने इस घटना के खिलाफ और आदिवासियों के पक्ष में बयान जारी किया है. पूर्व कृषि मंत्री और आदिवासी नेता अरविन्द नेताम ने भी पुलिस के इस हमलों का विरोध किया है.

इस महान क्रांति को हो सकता है गर्भ में ही मार दिया जाय लेकिन यह तो तय है कि इतिहास आदिवासियों के इस विद्रोह और आजादी के इस उद्घोष को बहुत महत्वपूर्ण घटना के रूप में दर्ज करेगा.

हिमांशु कुमार के दो वाल पोस्ट से साभार

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ROHIT SHARMA

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