प्रधानमंत्री, कृषिमंत्री और भाजपा के दुमछल्लों द्वारा फैलाई जा रही झूठ का किसान आन्दोलन के नेतृत्वकारी संगठन अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) की ओर से लिखे पत्र में तथ्यपूर्ण जवाब दिया है. पाठकों के लिए यह पत्र प्रस्तुत है.
सेवा में,
श्री नरेन्द्र मोदी
प्रधानमंत्री, भारत सरकार
एवं
श्री नरेन्द्र सिंह तोमर,
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री,
भारत सरकार
दिनांक : 19/12/2020
महोदय जी,
बड़े खेद के साथ आपसे कहना पड़ रहा है कि किसानों की मांगों को हल करने का दावा करते-करते, जो हमला दो दिनों से आपने किसानों की मांगों व आंदोलन पर करना शुरू कर दिया है, वह दिखाता है कि आपको किसानों से कोई सहानुभूति नहीं है और आप उनकी समस्याओं को हल करने का इरादा शायद बदल चुके हैं. निःसंदेह, आपके द्वारा कही गयी सभी बातें तथ्यहीन हैं.
उससे भी ज्यादा गम्भीर बात यह है कि जो बातें आपने कही हैं वह देश व समाज में किसानों की जायज मांगों, जो सिलसिलेवार ढंग से पिछले 6 महीनों से आपके समक्ष लिखित रूप से रखी जाती रही हैं, देश भर में किये जा रहे शांतिपूर्वक आंदोलन के प्रति अविश्वास की स्थिति पैदा कर सकती है. इसी कारण से हम बाध्य हैं कि आपको इस खुले पत्र के द्वारा अपनी प्रतिक्रिया भेजें ताकि आप इस पर बिना किसी पूर्वाग्रह के गौर कर सकें.
आपने मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में आयोजित किसानों के सम्मेलन में जोर देकर कहा कि किसानों को विपक्षी दलों ने गुमराह कर रखा है, वे कानूनों के प्रति गलतफहमी फैला रहे हैं, इन कानूनों को लम्बे अरसे से विभिन्न समितियों में विचार करने के बाद और सभी दलों द्वारा इन परिवर्तनों के पक्ष में राय रखे जाने के बाद ही अमल किया गया है, जो कुछ विशिष्ठि समस्याएं इन कानूनों में थीं, उन्हें आपकी सरकार ने वार्ता में हल कर दिया है और यह आंदोलन असल में विपक्षी दलों द्वारा संगठित है.
आपकी ये गलत धारणाएं और बयान गलत जानकारियों से प्रेरित हैं और आपको निम्न सच पर गौर करना चाहिये.
- यह आंदोलन जून माह से ही एआईकेएससीसी के आह्वान पर शुरू हुआ, तभी से जब आपने 5 जून को ये परिर्वतन अध्यादेश के रूप में अमल किये. इन्हें रद्द करने की मांग को लेकर पूरे देश में अनगिनत जनगोलबंदियां हुईं, जिन सभी में आपको व राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजे गए. सबसे बड़ी गोलबंदी पंजाब से शुरू हुई, जहां पर पंजाब सरकार ने इन गोलबंदियों का साफ-साफ विरोध किया और सैकड़ों केस आंदोलनकारियों के विरुद्ध दर्ज किये. जैसे-जैसे आंदोलन बढ़ा और समाज के अलग-अलग तबकों का जन समर्थन आंदोलन को मिला, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों ने अपनी स्थिति बदली. पंजाब सरकार ने इन कानूनों पर पुनःविचार के लिए आपको लिखा और आंदोलनकारियों पर दर्ज कुछ केस वापस लिए. आपके सहयोगी दल, अकाली दल, जो लगातार आपकी भाषा में कानून के लाभ गिनाता रहा था, इनके विरोध में आ गया और एनडीए से बाहर हो गया. आप पार्टी ने भी इसी तरह से एक समय पर आकर अपना पक्ष जनता के साथ एकसार किया. खुद आपकी पार्टी के कई नेताओं ने पंजाब में भाजपा से इस्तीफा दिया. तो सच यही है कि किसानों के आंदोलन ने राजनीतिक दलों को अपना पक्ष बदलने के लिए मजबूर किया और जो आप कह रहे हैं कि राजनीतिक दलों ने इसको बढ़ाया है, वह गलत है.
- आपका दावा है कि इन कानूनों के बनने से पहले विभिन्न स्तरों पर विस्तार से चर्चा हुई है और सभी राजनीतिक दलों ने इन परिवर्तनों के पक्ष में मत अपनाया है. इस बात पर आपको स्पष्ट होना चाहिए कि खेती राज्यों का विषय रहा है और मंडियों में परिवर्तनों के विभिन्न पहलू राज्यों में चर्चा का विषय रहे, कुछ राज्यों में कुछ परिवर्तन भी हुए. केन्द्रीय स्तर पर आप ऐसे कानून बनाकर पूरे देश पर थोप देंगे, यह झटका एकाएक आप ही ने 5 जून को देश को दिया. आपने कभी भी इन बिन्दुओं पर किसान संगठनों से कोई चर्चा नहीं की और संसद में भी विरोध की आवाजों को सुने बिना इन्हें पारित घोषित कर दिया. आपके ही झटके की देन है कि किसान आन्दोलन इतने बड़े रूप में खड़ा होता जा रहा है. तथ्यों को गड्डमड्ड करने से इसका कोई समाधान नहीं निकलेगा.
- आपने यह भी दावा किया है कि विपक्षी दलों के घोषणा पत्रों में किसानों को विकल्प के रूप में बाजार से जोड़ने की सिफारिशें मौजूद हैं. हम नहीं जानते कि इसका क्या अर्थ है पर अगर इसका अर्थ है कि खेती के अन्दर बड़े कारपोरेट और विदेशी कम्पनियों को प्रवेश कराया जाए, मंडी व्यवस्था पर पूरा वर्चस्व जमाने और किसानों को ठेकों में बांधकर और अधिक कर्जदार बनाने का है तो किसानों का इससे कोई सरोकार नहीं है. अच्छा होगा कि आप ये चर्चा विपक्षी दलों से करें और अपने इस तर्क को लेकर किसानों के आन्दोलन को गुमराह करने का प्रयास न करें.
- आप लगातार किसानों की मांगों को हल करने से बचने के लिए इसे विपक्षी दलों द्वारा प्रेरित, प्रोत्साहित व संगठित बता रहे हैं. विपक्षी दलों के खिलाफ मोर्चाबंदी आपकी पार्टी का मसला हो सकता है और उनके द्वारा आपकी पार्टी के खिलाफ बोलना उनका मसला हो सकता है. आप गौर करें कि किसी भी संघर्षरत किसान संगठन/समन्वय/मोर्चा की कोई भी मांग किसी भी दल से जुड़ी हुई नहीं है. मांग बहुत साफ है – श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने जो तीन कानून बनाए हैं और बिजली बिल 2020 प्रस्तुत किया है, किसान कह रहे हैं कि इन्हें रद्द किया जाए. आपका जो प्रयास है कि इसे दलगत दिखा कर भटका दिया जाए, यह दलगत राजनीति के खेल की मजबूरी हो सकती है, देश के किसान व जनता इससे गुमराह नहीं होने जा रहे हैं.
- जो विशेष मसले, जिनका आपने जिक्र किया है उनका उत्तर कृषि मंत्री के पत्र के जवाब में हम दे रहे हैं.
माननीय श्री नरेन्द्र तोमर जी,
आपने इस 8 पृष्ठ के पत्र में बहुत सारे सवालों को सम्बोधित किया है, जिन पर हम निम्न स्पष्टीकरण प्रेषित करना जरूरी समझते हैं.
1. पत्र के अंत में किसानों की आड़ में कुछ ‘राजनीतिक दलों व संगठनों द्वारा रचे गये कुचक्र’ का हवाला देते हुए आपने ‘कांग्रेस पार्टी’, ‘आम आदमी पार्टी’, ‘हुड्डा कमेटी’, ‘अकाली दल’, ‘वोट बटोरने की राजनीति’, ‘पूज्य बापू का अपमान’, ‘दंगे के आरोपियों की रिहाई’, ‘62 की लड़ाई’, ‘भारत के उत्पादों का बहिष्कार’, आदि का लम्बा चौड़ा उल्लेख किया है, जिसका किसान आन्दोलन से कोई सरोकर नहीं है, न ही किसी किसान संगठन ने इस सम्बन्ध में या उससे जुड़े किसी बिन्दु पर सरकार से कोई मांग उठाई है. इसलिए हम विनम्रता के साथ आपसे यह कहना चाहते हैं कि इस तरह के असम्बन्धित मसलों पर आपके पत्र में उल्लेख न होता तो अच्छा था. स्पष्ट है कि आप संघर्ष के असली मुद्दे पर चर्चा से ध्यान हटाने के लिए इन सारी बातों का उल्लेख कर रहे हैं.
2. लगातार सभी किसान संगठनों ने आपसे आग्रह किया कि इन तीनों कृषि कानूनों और बिजली बिल 2020 को वापस लिया जाना इसलिए जरूरी है क्योंकि ये कृषि मंडियों, खेती करने की प्रक्रिया, लागत के सामान की आपूर्ति, फसलों का भंडारण, शीतगृह, परिवहन, प्रसंस्करण, खाने की बिक्री में बड़े कारपोरेट व विदेशी कम्पनियों को कानूनी अधिकार के तौर पर स्थापित कर देंगी. साथ-साथ आवश्यक वस्तु कानून के संशोधन खुलेआम जमाखोरी और कालाबाजारी को बढ़ावा देंगे, खाने की कीमतें कम से कम हर साल डेढ़ गुना बढ़ाने की अनुमति देंगे और राशन व्यवस्था को चौपट कर देंगे.
आपके कानून में यह भी लिखा है कि सरकार इन कम्पनियों को प्रमोट करेगी क्योंकि इस सबसे चल रही खेती बरबाद हो जाएगी और किसान खेतों से बेदखल हो जाएंगे, उनकी व जुड़े हुए सभी लोगों की जीविका छिन जाएगी, इसलिए आपसे आग्रह किया कि आप इन कानूनों को वापस ले लें.
3. आपने कुछ विशेष सवाल उठाकर कहा है कि आप भ्रम दूर करना चाहते हैं –
(क) आपका कहना है कि किसानों की जमीन पर कोई खतरा नहीं है, ठेके में जमीन गिरवी नहीं रखी जाएगी और ‘जमीन के किसी भी प्रकार के हस्तांतरण का करार नही होगा.’
हम आपका ध्यान ठेका खेती कानून की धारा 9 पर दिलाना चाहते हैं जिसमें साफ लिखा है कि किसान ने जो लागत के सामान का पेमेंन्ट कम्पनी को करना है, उसकी पैसे की व्यवस्था कर्जदाता संस्थाओं के साथ एक अलग समझौता करके पूरी होगी, जो इस ठेके के अनुबंध से अलग होगा. गौर करें कि कर्जदाता संस्थाएं जमीन गिरवी रख कर ही कर्ज देती हैं.
दूसरा यह कि ठेका खेती कानून की धारा 14(2) में लिखा है कि अगर कम्पनी से किसान उधार लेता है तो उस उधार की वसूली ‘कम्पनी के कुल खर्च की वसूली के रूप में होगी’, जो धारा 14(7) के अन्तर्गत ‘भू-राजस्व के बकाया के रूप में’ की जाएगी.
अतः आपका यह कथन कि ‘परिस्थिति चाहे जो भी हो किसान की जमीन सुरक्षित है’, आपके कानून के हिसाब से गलत हैं. अच्छा होता कि ये बात कानून में लिखी होती और तब आप ये बात कहते.
(ख) सरकारी मंडियां, एमएसपी व सरकारी खरीद पर आपका आश्वासन है कि ये जारी रहेंगे.
यह स्पष्ट है कि जब कानून की लेखनी के हिसाब से सरकार कारपोरेट को प्रोत्साहित करेगी तो स्पष्ट है कि अन्य व्यवस्थाएं निरुत्साहित होंगी और धीरे-धीरे बंद हो जाएंगी. यह बात इस बात से और भी स्पष्ट हो जाती है कि आपके नीति आयोग के सभी विशेषज्ञ लम्बे-लम्बे लेख लिख कर कह रहे हैं कि देश में अनाज बहुत ज्यादा पैदा हो रहा है, भंडारण की जगह नहीं है, सरकार कैसे इस सब को खरीद सकती है और किसानों ने जब आपसे पूछा तो आपने भी स्पष्ट किया कि एमएसपी और सरकारी खरीद का कोई कानूनी आधार नहीं दिया जा सकता. इस बात पर भी गौर करें कि आपकी शांताकुमार समिति के अनुसार मात्र 6 फीसदी किसानों को एमएसपी पर सरकारी खरीद का लाभ मिलता है, शेष वंचित रहते हैं. इन्हें यह लाभ मिले ये सवाल आपके आश्वासन के बावजूद बचा रहता है.
(ग) ठेका खेती पर विभिन्न स्पष्टीकरण आपने दिये हैं कि ठेके में उपज का खरीद मूल्य दर्ज होगा, भुगतान समय सीमा के भीतर होगा अन्यथा कार्यवाही व जुर्माना होगा, किसान कभी भी अनुबंध खतम कर सकते हैं, आदि.
आपके ये सभी दावे ठेका कानून में वर्णित धाराओं के विपरीत हैं. ये धाराएं स्पष्ट करती हैं कि किसान की उपज का भुगतान करने से पहले कम्पनी फसल व अन्य क्रियाओं का एक पारखी से मूल्यांकन कराएगी, तब उसकी संस्तुति व मूल्य निर्धारण के बाद भुगतान करेगी. भुगतान की समय सीमा में भी बहुत सारे विकल्प दिये हैं, जिनमें यह भी है कि पर्ची देकर फसल प्राप्त करने के बाद भुगतान 3 दिन बाद किया जाएगा, जिस तरह की व्यवस्था का ठोस परिणाम दशकों से गन्ना किसान भुगतते रहे हैं. यह भी व्यवस्था है कि निजी मंडी का खरीदार, किसान को तब भुगतान करेगा, जब उसे उस कम्पनी से पेमेंट मिलेगा, जिसको वो फसल आगे बेचता है.
(घ) आपने दावा किया है कि आपने लागत का डेढ़ गुना एमएसपी घोषित किया है, जो पूरी तरह से गलत है. आपने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया है कि आप सी2 का डेढ़ गुना नहीं दे सकते और पूर्व वित्तमंत्री स्व. अरुण जेटली ने बजट भाषण में कहा था कि आप ए2+एफएल का डेढ़ गुना दे रहे हैं. सच तो यह है कि 23 में से ज्यादातर फसलों का यह दाम भी एमएसपी में नहीं दिया गया.
(ङ) आपका यह भी दावा है कि किसान अपनी फसल कहीं भी बेच सकते हैं और अपना रेट खुद तय कर सकते हैं.
यह बात वही इंसान मान सकता है, जिसने कभी खेती न की हो, फसल न बेची हो, मंडी न देखी हो. हर मंडी में पास के किसान कई दिनों तक डेरा डाले बैठे रहते हैं ताकि उनकी फसल खरीद ली जाए, क्योंकि दूसरी किसी मंडी में फसल ढोकर ले जाने का आर्थिक बोझ वे नहीं सहन कर सकते. आप इस बात को भली भांति जानते हैं तब भी जानबूझकर देश के लोगों को गुमराह कर रहे हैं.
(च) आपने दावा किया है कि कृषि इंफ्रास्टक्चर फंड पर सरकार ने 1 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया है.
अच्छा होता कि इस फंड से आप सीधे तौर पर या सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को सिंचाई, ट्रैक्टर व अन्य मशीनरी, लागत की अन्य सामग्री, भंडारण, प्रसंस्करण के उपकरण, शीतगृह तथा बिक्री की व्यवस्था कराते, ताकि किसान इससे लाभान्वित होते. दु:ख का विषय यह है कि इस फंड का भी प्रयोग आप भारत की खेती में बड़े कारपोरेट घरानों व विदेशी कम्पनियों के हस्तक्षेप को बढ़ावा देने के लिए करने जा रहे हैं.
(छ) आपने लिखा है कि 80 फीसदी किसान 2 एकड़ से कम के मालिक हैं और आपकी नीतियों से ये लाभान्वित होते रहे हैं.
देश भर में हो रहे किसानों के संघर्ष में भाग लेने वाले यही 80 फीसदी किसान हैं जो भारी कर्ज में भी डूबे हुए हैं, जिनके सामने इन कानूनों के कारण जमीन से वंचित होने का खतरा बढ़ गया है।
(ज) आपने फसल बीमा, किसान सम्मान निधि, नीम कोटेड यूरिया, सोइल हेल्थ कार्ड आदि का हवाला दिया है.
सच यह है कि बीमा में निजी कम्पनियों में किसानों के खाते से हर साल करीब 10 हजार करोड़ रूपये कमाए हैं और सभी कल्याण योजनाओं में भ्रष्टाचार बढ़ा है.
4. आपने अपने पत्र में एक निराधार व झूठा आरोप संगठनों पर लगा दिया है कि इन्होंने वर्षों तक ‘सिंचाई का पानी किसानों तक न पहुंंचे, बिजली पहुंंचाने और बांधों के निर्माण में बाधक बने रहे और आज ये किसानों के हितैषी होने का पाखंड कर रहे हैं.
अच्छा होता कि आप सच के आधार पर ऐसा बोलते. इस संदर्भ में एक सच्चाई की जानकारी आपको जरूरी होनी चाहिए कि नर्मदा बांध खेतों की सिंचाई के लिए बना था. श्री नरेन्द्र मोदी की ही ये विशेष देन है कि उन्होंने यह पानी गुजरात के उद्योगों और धनाड्यों के लिए बनाए गये रीवर वाटर फ्रंट में हस्तांतरित कर दिया और हर साल किसानों सिंचाई के पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है.
5. ‘अन्नदाताओं को आश्वासन के नाम पर जो 8 बिन्दु आपने गिनाए हैं – एमएसपी पर लिखित आश्वासन, निजी मंडियों, खरीददारों व कृषि समझौतों पर राज्य सरकार को पंजीकरण करने का अधिकार, विवाद समाधान के लिए अदालत जाने का अधिकार, किसानों की जमीन न जाना, जमीन पर परिवर्तन न होना, आदि ये सभी आश्वासन लिखित कानून के स्पष्ट उल्लेख के विपरीत हैं और जाहिर है कि आप ये बातें कह कर देश की जनता के मन में भ्रम पैदा करना चाहते हैं. इस बात पर भी गौर कीजिए कि जो छोटे से सुधार आप सुझा रहे हैं उनका अधिकार तो राज्य सरकारों को दे रहे हैं और कम्पनियों को अधिकृत करने का कानूनी अधिकार केन्द्र सरकार के हाथ में रख रहे हैं ताकि अगर कोई दिक्कत कम्पनियों को हो तो आप केन्द्र द्वारा थोप सकें.
6. अंत में हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि आपने जो कानून बनाए हैं, इनसे किसानों के जीवन में एक ही परिवर्तन आएगा कि वे बेजमीन व बेदखल होकर भूमिहीन बन जाएंगे और बड़ी कम्पनियों का कब्जा पूरे ग्रामीण जीवन पर नजर आएगा. इनसे किसानों की जिन्दगी बेहतर नहीं होगी, क्योंकि ये सारे परिवर्तन कम्पनियों के विकास के और कम्पनियों को विकल्प देने के परिवर्तन हैं.
7. आपने अपने पत्र में गांधी जी और चंपारण आन्दोलन का उल्लेख करते हुए कहा कि किसान उनका अपमान करना चाहते हैं, जबकि सच यह है कि यह पूरा आन्दोलन चम्पारण सत्याग्रह से, जो कम्पनी राज द्वारा जबरदस्ती किसानों से नील की खेती कराने के खिलाफ था और पंजाब में जमीन हथियाने के खिलाफ भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह के नेतृत्व में 1907 के ‘पगड़ी सम्भाल जट्टा’ आंदोलन व विदेशी राज व कम्पनियों की लूट के खिलाफ चले सभी देशभक्त आंदोलनों से प्रेरित है. आपके द्वारा लाये गये कानून खेती में कारपोरेट नियंत्रण को मजबूत करने के लिए बनाए गये हैं इसीलिए किसान इन तीनों कानूनों को रद्द कराने के लिए संकल्पबद्ध हैं.
देश के कृषि मंत्री होने के नाते लोगों को आपसे उम्मीद यह थी कि 24 दिनों से चल रहे अनिश्चितकालीन आन्दोलन में शहीद हुए 32 किसानों को कम से कम आप श्रद्धांजलि देंगे, लेकिन आपने संवेदनहीनता की पराकाष्ठा दिखाते हुए उनका जिक्र करना भी आवश्यक नहीं समझा.
अतः हमारा आपसे पुनः आग्रह है कि आप इन किसान विरोधी कानूनों को तुरंत वापस लें और जिन सुधारों की मांग किसान करते रहे हैं, उन पर अमल करें.
हम यह भी आग्रह करना चाहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के बहुत सारे नेता दुर्भावनापूर्ण ढंग से किसान आन्दोलन को देश हित के विपरीत बता रहे हैं. हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है. अगर किसानों का हित देश हित में नहीं है और किसानों की बात नहीं सुनी जानी है, केवल बड़े कारपोरेट और उनके साथ आने वाली विदेशी कम्पनियों का विकास कराना देश हित है तो बात दूसरी है.
अंत में हम यह भी कहना चाहते हैं कि आपने मीटिंग बुलाकर समस्या को हल करने की जगह जो खुला पत्र लिखा है, इससे प्रतीत होता है कि आप आन्दोलनरत किसानों के खिलाफ गलत बातों को प्रचार कर रहे हैं.
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