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सरकार की हर योजना गरीब की जेब काट सरकरी खजाने को भरने वाली साबित हो रही है

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सरकार की हर योजना गरीब की जेब काट सरकरी खजाने को भरने वाली साबित हो रही है

आर्थिक या जाति से “दलित“ वर्ग के परिवार के राशनकार्ड, मनरेगा जॉबकार्ड, बृद्धा अवस्था पेंशन, विधवा पेंशन आदि-आदि में पहले से दर्ज सूचना और बैंक में दर्ज सूचना का आधार कार्ड में दर्ज सूचना से मेल न खाने पर उन्हें फर्जी लाभार्थी बता अब तक लाखों बेसहारा परिवारों को उन योजनाओं का लाभ लेने से वंचित किया जा चुका है.

सरकार और सरकार से हजारों गुना ज्यादा ताकत से उसकी पार्टी के एमएलए, एमपी, संगठन के जमीनी कार्यकर्ता से लेकर शीर्ष के नेता तक – करोड़ां रूपये की “लीकेज“ को रोकने में अपनी सरकार की सफलता का ढिंढोरा चारों दिशाओं में पीट-पीट थक नहीं रहे.

उंगलियों पर गिने जा सकने वाले मुठ्ठी भर उद्दोगपति और व्यापारी हजारों लाख करोड़ बैंकों की रकम डकार बैठे हैं, किसी आधार कार्ड की पकड़ में नही आये ? किसी जांच में उन्हें फर्जी नहीं ठहराया जा सका, क्यों ? क्योंकि वो तंत्र से मिलकर हेराफेरी करने में समर्थ हैं और वही तंत्र आर्थिक रूप से “दलित“ की गर्दन दबा उसे हेराफेरी का दोषी बताने में समर्थ है.

उज्ज्वला योजना में मुफ्त गैस कनेक्शन बांट अपनी पीठ थप-थपाने वाली सरकार जानती थी कि रोटी बनाने में खाली हुआ सिलेण्डर हर बार 900 रुपये का खरीदना आर्थिक रूप से “दलित“ परिवार के लिए, आसमान से तारे तोड़ने के समान है. आधे से ज्यादा मामलों में रिफिलिंग नहीं हो रही. जिन परिवारों ने सांठ-गांठ कर अपने को आर्थिक दलित बना लिया, अधिसंख्य वही रिफिल ले रहे हैं. उन्हें भी पहली तीन रिफिल बिना सब्सिडी वाली दी गयी है. इस तरह मुफ्त गैस कनेक्शन का ढिंढोरा सिर्फ गरीबों के साथ किया गया झांसा ही साबित हुआ.

सौभाग्य योजना में अब गांव के हर आर्थिक दलित की झोंपड़ी से मुफ्त में अंधेरा भगाने के ढोल पीटे जा रहे हैं. जिनकी झोंपड़ी का अंधेरा दूर हुआ मनमानी रकम के बिलों ने उन की जिंदगी को अंधकारमय बना दिया. वो कनेक्शन कटवाना चाहते है, उनसे कहा जा रहा है, ‘‘पहले बिल का भुगतान करो फिर कटवाने की बात करना.’’

स्वच्छ भारत योजना (ग्रामीण) इलाकों को खुले में शौच मुक्त यानी ओडीएफ घोषित करने के बाद अब उन गांव को “ओडीएफ प्लस“ बनाया जाना है. इस के अंतर्गत सूखा-गीला कूड़ा अलग-अलग करने, कूड़े से उपयोगी वस्तुओं को छांटकर बाजार में बेच गरीबों की आमदनी बढ़ाने के लिए जागरूक बनाने की बात हो रही है. उद्देश्य है “ओडीएफ प्लस“ घोषित गांव को स्वच्छता टैक्स के दायरे में लाना, यानी फिर गांव के “गरीबों की जेब तराशने“ की योजना.

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शिकारी जिस हुनर से दाना डाल कर चिड़ियों को फंसाता है, उसी हुनर से सरकार गरीबों की गाढ़ी खून पसीने की कमाई से अपने खजाने पिछले साढ़े चार सालों से भर रही है. पेट्रोल-डीजल को सस्ता खरीद कर और उस पर अनाप-शनाप टैक्स लगा कर सरकार ने सपना खजाना भरा है, ये सच सबके सामने उजागर हो चुका है.

ये तो चंद उदाहरण हैं जो यह बताने के लिए काफी हैं कि सरकार की ऐसी हर योजना गरीब की जेब काट सरकारी खजाने को भरने वाली साबित हो रही है.

कैसी विडंबना है ? कहीं कोई कांग्रेसी जमीन पर आर्थिक या जाति से “दलित“ के हक की लड़ाई कहीं लड़ता नहीं दीख रहा. कांग्रेस ने आज़ादी की लड़ाई लड़ने के बाद सड़क छोड़ दी और कुर्सी पकड़ ली. उनकी झप्पी इतनी गहरी है कि लगभग सारे कपड़े उतर जाने के बाद भी मूर्च्छा नहीं टूट रही.

– विनय ओसवाल

वरिष्ठ राजनीतिक विचारक एवं विश्लेषक
सम्पर्क नं. 7017339966

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