आज देश बहुत ही कठिन संक्रमण काल के दौर से गुजर रहा है. हम दावा तो करते हैं कि भारत दुनियां का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है परन्तु आज हमारी संवैधानिक संस्थायें, संसद, विधायिका, सुप्रीम कोर्ट ( न्यायपालिका), कार्यपालिका अपना वजूद खोती जा रही हैं. मीडिया जिसे हम चौथा खंभा कहते हैं, पूरी तरह सत्ता की रखैल बन चुकी है. हम एक वाईमर रिपब्लिक आफ जर्मनी बनने की तरफ बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं.
संसद, विधानसभायें अपराधी, गुंडे,मवालियों की ऐशगाह बनकर रह गयी है. पूरा देश खादी, खाकी और अपराधियों का अपवित्र फेडरेटेड गठबंधन बनकर रह गया है. सुप्रीम कोर्ट, सीबीआई, ईडी, कैग, चुनाव आयोग जैसी संस्थायें सत्ता की गुलाम बनकर रह गयी है. पुलिस सरकार के गुंडे की भूमिका में है. सरकार यानी सत्ता के विरोधियों को जगह-जगह टार्चर करना इसका काम रह गया है.
कानून नाम की चीज ही नही रह गयी है, बिना किसी ट्रायल के इनकाउंटर द्वारा न्याय कर रही है. बहुत ही विभत्स रूप है. स्थिति इतनी खराब हो गयी है कि अब लोकतंत्र का नाम लेने में भी शर्म महसूस होती है.
अब स्थिति ये हो गयी है कि कुछ संवैधानिक संस्थाओं जैसे कोर्ट पर ताला जड़ देना चाहिए. जब इनकी चौखट तक जाना ही नही है तो काहे यह चल रही हैं. बेकार ही जनता की गाढ़ी कमाई इनके रख-रखाव और तनख्वाह पर खर्च हो रहा है.
जब सब कुछ ऑन द स्पॉट पुलिस ही द्वारा ही तय होना है तो जज और वक़ील दोनों को घर बैठा दिया जाए. सभी कानून की डिग्री बांटने वाली कालेजों, विश्वविद्यालयों को बंद कर देने चाहिये, और उनसे कहा जाए कि कोई दूसरा काम ढूंढ लो भाई.
संविधान और कानून का कमज़ोर होना किसी भी देश के बिखराव के संकेत होते हैं. अफगानिस्तान में तालिबान ने न्यायालय खत्म करके अपनी सेना से तत्काल न्याय करने को कहा और उसकी नज़र का न्याय ही जनता के लिए अन्याय था. देखिये क्या हालत हो गई उस देश की ! सज़ाएंं ज़रूरी हैं मगर विधान से. न्याय होना ही नहीं दिखना भी चाहिये.
अपराधी और कानून के रक्षक में यही अंतर होता है कि अपराधी विधान से बंधा नहीं होता है और कानून का रक्षक विधान तोड़ नहीं सकता. जैसे ही यह महीन लकीर मिटेगी, दोनों का अंतर मिट जाएगा.
आज आप हंस लीजिये, खुशियां मना लीजिये, उनकी तफरीह उड़ा लीजिये, जो आपको संविधान और कानून याद दिला रहे हैं, मगर उस दिन का भी इंतज़ार कीजिये जब आपके सामने कोई रक्षक विधान को तिलांजलि देकर आपका ऑन द स्पॉट फैसला करेगा, यह बहुत जल्द होगा.
एक गिरह बांंध लें कि दुनिया का कोई भी अपराध ऐसा नहीं है, जिसकी सज़ा संविधान में न हो. अगर इस पर भरोसा नहीं है, तो यह आपकी कमज़ोरी है, संविधान की नहीं.
देश संविधान से चलते हैं. शासन कानून से स्थापित होते हैं और न्याय किसी भी शासक को सम्मान दिलाता है. जब हमें अपने संविधान, उसे चलाने वाले लोगों, उसमें होने वाली बहसों की ज़रूरत नहीं, तो यह ताला ज़रूरी हो जाता है. पहले बोलने वालों के मुंंह पर जड़ा जाए, फिर उन संस्थाओं पर भी जड़ दें जिनकी आपको अब ज़रूरत नहीं.
आजकल उत्तर प्रदेश इनकाउंटर प्रदेश बनकर रह गया है. खादी, खाकी और अपराधियों का अपवित्र गठजोड़ अपने स्वर्ण काल में है, जहां अपराधी बेखौफ सत्ता के गलियारे में, दिनदहाड़े मर्डर करके शरण लेते हैं. यहां तक कि बदनाम गिरोह पुलिस की भी ये हथियारों से दिन-दहाड़े सामूहिक हत्या कर देते हैं और पुलिस भी कुछ नहीं कर पाती, क्योंकि पुलिस स्वयं खादी, खाकी, अपराधी गठबंधन की पार्टनर है.
जब समाज में चारों तरफ सरकार की किरकिरी होने लगती है तब पुलिस अपना इकबाल कायम करने के लिये सबसे बड़ा गैर कानूनी हथियार इनकाउंटर का प्रयोग करके आतंकवादियों की तरह बिना ट्रायल, बिना आरोप तय किये ही त्वरित न्याय करने लगती है. और आज सरकार और पुलिस से बड़ा आतंकवादी कोई नहीं है. फासिज्म लोकतंत्र के दरवाजे पर खड़ा होकर नंगा नांच कर रहा है और आप जय श्रीराम का नारा लगाने में मस्त हो.
- डरबन सिंह
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