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‘संविधान से प्यार करते हैं अन्यथा तुम्हारी जुबान खींचने की ताकत है हममें’

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'संविधान से प्यार करते हैं अन्यथा तुम्हारी जुबान खींचने की ताकत है हममें'

लुच्चों का सबसे बड़ा शरणगाह बनकर उभरे सुप्रीम कोर्ट शाहीन बाग में एनआरसी-सीएए के खिलाफ शांतिपूर्ण आन्दोलन पर ही हमलावर हो गया है. इस आन्दोलन में भाग लेने वाली एक महिला का 4 साल का पुत्र ठंढ़ लग जाने के कारण शहीद हो गया है, इसके बावजूद उनकी मां इस आन्दोलन में शामिल हो रही है. सुप्रीम कोर्ट इसी सवाल पर बजाय केन्द्र की अपराधी सरकार को नोटिश जारी करने के, इस आन्दोलन को चला रही महिलाओं को ही कठघरे में खड़े करने की कोशिश कर रहा है.

आज सुप्रीम कोर्ट की बहस में कोर्ट ने शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘आप सार्वजनिक सड़कों को अवरूद्ध नहीं कर सकते हैं. इस तरह के क्षेत्र में अनिश्चितकाल के लिए विरोध प्रदर्शन नहीं हो सकता है. यदि आप विरोध करना चाहते हैं तो ऐसा एक निर्धारित स्थान पर होना चाहिए.’ सुप्रीम कोर्ट इससे पहले कहा था कि जबतक हिंसा बंद नहीं होती है, हम सुनवाई नहीं कर सकते. पहले हिंसा बंद करें. यह अजीब बात है कि जिस सुप्रीम कोर्ट को संविधान की रक्षा का दायित्व सौंपा गया है कि आज वह केन्द्र की सत्ता के सामने इतना निरीह बन गया है कि उसकी चापलूसी करता दीख रहा है. यह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में बेहद शर्मनाक वक्त है.

श्याम मीरा सिंह लिखते हैं : प्यारा बच्चा ‘मुहम्मद जहां’ अब नहीं रहा. शाहीनबाग के प्रदर्शनकारियों की गोद में खेलने वाला नन्हा बच्चा अब हमसे खो चुका है. उसकी आत्मा इधर कहीं ही आपके आसपास किसी एकांत में खड़ी होगी. पिछले दिनों से शाहीनबाग ही उसका ननिहाल बन गया था, वह हर रोज सड़क पर आता, एक-एक प्रदर्शनकारी उसे गोद में उठा लेते, कोई चूमता, कोई हाथ पकड़ता, अक्सर उसके गालों पर तीन रंग का तिरंगा होता था, ‘मुहम्मद जहां’ प्रदर्शनकारियों में सबका चहेता था लेकिन अब से वह प्यारा बच्चा कभी भी शाहीनबाग नहीं आ पाएगा. 31 जनवरी की रात, शाहीनबाग प्रदर्शन से लौटते समय उसे शीत ने जकड़ लिया था और 1 फरवरी, मुहम्मद जहां के लिए इस दुनिया में अंतिम दिन साबित हुई. मुहम्मद जहां के पिता, माता सभी इस देश के नागरिक हैं, इसी मुल्क से प्यार करते हैं, लेकिन NRC-CAA की राजनीतिक साजिश ने उन्हें लाखों अन्य लोगों की तरह सड़क पर खड़ा कर दिया है.

फ़ोटो में दिखने वाला बच्चा मुहम्मद जहां नहीं, उससे बड़ा बच्चा है

इसपर बहस हो सकती है कि प्रदर्शन में ले जाने का उनका फैसला कितना सही गलत था लेकिन अपने अस्तित्व, अपने बच्चों के अस्तित्व की लड़ाई में अगर हिस्सा लेना है तो नाजिया पर कोई अन्य विकल्प कहांं ही बचता था ?नाजिया अपने बच्चों, अपने पति के साथ एक प्लास्टिक कवर वाली झुग्गी में रहती है. शीत भी गरीबों को ही लगती है, कभी सुना है पहाड़ पर पिकनिक मनाने वालों को सर्दी लग गई हो ?

कोई मांं नहीं चाहेगी उसके बच्चे को शीत लग जाए, उसने खुद ही बहुत से इंतजाम किए रहे होंगे, लेकिन जहां की नियति में सड़क पर मर जाना ही लिखा था, किसे पता था, कोई ऐसा कानून आएगा, जो ऐसी मांंओं को भी मजबूर कर देगा, जिनके गर्भ में बच्चा हो, जिनकी गोदी में बच्चा हो. आखिर शाहीनबाग इन बच्चों के भविष्य को तय करने की ही लड़ाई है इसलिए तमाम तर्कों के बाद भी नाजिया को अपराधी नहीं कहा जा सकता. असल अपराधी नाजिया और जहां को सड़क पर बिठाने वाले लोग हैं.

पूरी कहानी परेशान और दुखी करने वाली है, लेकिन इसका एक हिस्सा ऐसा है जिस पर भारत माता भी नाज करे, अपने बच्चे के मरने के बाद भी, नाजिया ने फैसला किया है कि वह प्रदर्शन में हिस्सा लेंगी. वह वापस शाहीनबाग पहुंच चुकी हैं. न केवल अपने बच्चों के हित के लिए बल्कि हिन्दू-मुसलमान सबके बच्चों के लिए. CAA कानून धर्म के बेस पर लोगों से भेदभाव करता है और ऐसा कोई भी कानून देश के हित में नहीं हो सकता.

CAA-NRC हिन्दू-मुसलमानों को परेशान नहीं करेगा, नाजिया जैसे गरीब को कमजोरों को करेगा. अनुराग ठाकुर और अमित शाह जैसे व्यापारियों के लिए ये कह देना आसान है कि ‘गोली मारो सालों’ को, लेकिन पिछले 6 सालों में शायद ही किसी ने कहा हो ‘रोटी दे दो सालों को.’

प्यारे बच्चे मुहम्मद जहां, यदि मरने के बाद भी कोई दुनिया होती हो, और तुम वहां हो, तो माफ करना मेरे बच्चे, हम अपराधी हैं तुम्हारे, तुम्हारी मांं और पिता के.

हिमांशु कुमार लिखते हैं : एक थे बिशंभर नाथ पांडे, वे इतिहासकार थे. मेरे ताऊजी पंडित ब्रह्म प्रकाश शर्मा के मित्र थे. राज्यसभा के सदस्य रहे. मैंने उनके कई भाषण सुने. एक बार उन्होंने एक किस्सा सुनाया था.

मुंबई में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक जुलूस निकल रहा था. उस जुलूस में सबसे आगे आगे एक गोरी लंबी पंजाबी महिला चल रही थी. उस महिला की गोद में एक छह महीने का बच्चा था.

कुछ दूर आगे पुलिस लाठी चार्ज करने के लिए तैयारी करके मोर्चा जमाए हुए थी. बीबीसी का पत्रकार दौड़ता हुआ उस महिला के पास आया और उसने कहा ‘आप हट जाइए लाठी चार्ज होगा. आपके बच्चे की जान को खतरा हो सकता है.’

उस महिला ने जवाब दिया, ‘अगर इस बच्चे को आजादी का उपभोग करना है तो इसे कुर्बानी देना भी सीखना पड़ेगा, कोई भी आजादी कुर्बानी दिए बिना नहीं मिलती.’

अभी शाहीन बाग में एक 4 महीने के बच्चे की मौत हो गई और मौत के 4 दिन बाद वह मां फिर जाकर धरने पर बैठ गई. सोशल मीडिया पर बहुत सारे लोग उस मांं को कोस रहे हैं और कह रहे हैं कि वही इस बच्चे की मौत के लिए जिम्मेदार है.

मुझे इन लोगों के ताने सुनकर यह घटना याद आ गई. आज ये लोग जिस चीज के लिए लड़ रहे हैं उसमें बच्चे की जान जाने पर भी अगर मां नहीं टूटी है तो इस आंदोलन को कोई नहीं तोड़ सकता.

मुकेश असीम लिखते हैं : बीदर के स्कूल में बच्चों द्वारा पेश ड्रामे में 5वीं कक्षा की बच्ची का एक डॉयलॉग था, ‘कोई मुझ से दस्तावेज मांंगेगा तो उसे इन चप्पलों से मारूंंगी.’

इसी के खिलाफ एक एबीवीपी कार्यकर्ता ने प्रधानमंत्री के अपमान की शिकायत की और पुलिस ने तुरत-फुरत सिडीशन का केस दर्ज कर ‘अपराधी’ बच्ची की मांं और शिक्षक को तो गिरफ्तार किया ही, सिडीशन में प्रयोग होने वाले खतरनाक हथियारों, उन चप्पलों, को भी सबूत के तौर पर जब्त कर लिया है.

तब से चार बार आईपीएस स्तर तक के अधिकारी इन खतरनाक अपराधियों अर्थात ड्रामे में भाग लेने वाले बच्चों से पूछताछ कर चुके हैं कि डॉयलॉग किसने लिखे थे, रिहर्सल किसने कराई थी, वगैरह.

पूछे जाने पर कहते हैं कि जांंच के दौरान कोई टिप्पणी नहीं कर सकते. शायद ये प्रतिभाशाली पुलिस अफसर किसी गहरी वैश्विक स्तर की साजिश का पता लगा रहे हैं!

हांं, आतंकवादियों को दिल्ली पहुंंचाते गिरफ्तार हुए डीएसपी दविंदर सिंह, गोली मारो के नारे लगाने लगवाने वाले या गोली मार देने वाले किसी पर भी सिडीशन का मामला दर्ज नहीं किया गया है. भला रिवाल्वर राइफल एके-47 वगैरह से भी कभी देश को इतना खतरा हो सकता है जितना इन चप्पलों से !

श्याम मीरा सिंह लिखते हैं : सुन लो अमित शाह, रैली-रैली जितना तुम संविधान पर मूत रहे हो न, ये संविधान ही है जिसकी वजह से बचे हुए हो. कोई दूसरी कौम तुम्हारी कौम से कम बहादुर नहीं है, कोई दूसरी जाति तुमसे कम ताकतवर नहीं है. जितना खून तुम्हारी भुजाओं में फड़कता है, इस धरती पर पैदा होने वाले सभी नौजवानों की धमनियों में उतना ही गरम खून है. बहुत हल्के में कह रहा हूंं. संविधान का सम्मान कर लोगे तो चल लोगे कुछ और दिन, नहीं तो उसी संविधान की मदद से गद्दी से उतारकर औकात याद दिला दी जाएगी.

बहुत परीक्षा ली जा चुकी है इस मुल्क के कमजोर, किसान, पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों की. बहुत खून बह चुका है, मेरे मुल्क के निर्दोष नागरिकों का. हर मंच, हर माइक, हिन्दू-मुस्लिम करके, तुम जो एक दो जातियों, पांच-छः व्यापारियों का शासन स्थापित किए हुए हो न, सब ध्वस्त हो जाएगा एक दिन. वही दिन, आखिरी दिन साबित होगा तुम्हारी साम्प्रदायिक जुबान का. बता दे रहे हैं तुमसे. तुम्हारी जाति से, तुम्हारे बाप से नहीं डरते, लिहाज करते हैं संविधान का, प्यार करते हैं इस मुल्क से अन्यथा तुम्हारी जुबान खींचने की ताकत हममें है.

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