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रोज़गार देने का टाइम है तो हथकड़ी-बेड़ी बांटी जा रही है

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रोज़गार देने का टाइम है तो हथकड़ी-बेड़ी बांटी जा रही है

राजीव श्रीवास्तव लिखते हैं :

सड़कों पर घना अंधेरा था. कर्फ्यू लगा था पूरे कश्मीर में. सिर्फ कुछ बूटों की आवाज़ आ रही थी. अचानक 35 वर्षीय शोएब के घर के दरवाज़े पर दस्तक होती है. शोएब एक किसान था. फूल की खेती करता था. दरवाज़ा खोला तो सामने वर्दी में कुछ लोग खड़े थे. हाथ में हथियार भी थे. उन्होंने सिर्फ दो शब्द बोले – ‘जल्दी चलो.’ शोएब ने घबराते हुए जल्दी से चप्पल पांव में डाली और बाहर चला गया.

शोएब का 9 साल का बेटा उठा और उसने दरवाज़ा बंद करके अपनी मां से पूछा – ‘अब्बू इतनी रात में कहां गए ?’ मां ने बच्चे को देखा और बोली – ‘पता नहीं। तुमने देखा नहीं कौन थे ?’ शोएब का बेटा छोटा था. वर्दी का फर्क नहीं जानता था. सेना और पुलिस में फर्क नहीं समझता था. फिर अब तो आतंकी भी वर्दी में आते थे. मां ने डरे हुए बच्चे को सीने से चिपका कर सुलाने की कोशिश की. खुद उसकी नींद उड़ी हुई थी. तरह-तरह की आशंकाएं उसे घेर रही थी. सवेरे उठते ही वह पुलिस चौकी गई तो वहां किसी को कुछ खबर नहीं थी.

इधर पुलिस के कुछ जवान शोएब के घर पहुंचे और बताया कि ‘शोएब एनकाउंटर में मारा गया. वह आतंकियों के साथ था.’ यह कहकर पुलिस वाले उस बच्चे को अपने साथ ले गए. अब उसकी मां बच्चे को ढूंढ़ रही है. पहले जम्मू, फिर श्रीनगर, फिर पंजाब और आखिर में आगरा की जेल में मिला उसका बेटा. हाथ में हथकड़ी, पैर में बेड़ियां. कुसूर ? देशद्रोह. 9 साल के बच्चे पर देशद्रोह ? गांधी और पटेल ने दो-दो करवट ली अपनी अपनी समाधि स्थल में. गोडसे कुलाचे भरते देखे गए.

यह कहानी कल्पनिक हो सकती है लेकिन इस जैसी कई सच्ची कहानियां कश्मीर में पिछले एक साल में देखने को मिली है. बड़ों की तो छोड़िए, 9-16 साल के बच्चों पर देशद्रोह का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया है. क्यों ? क्योंकि 300 से ज्यादा एमपी वाली सरकार 370 हटाने के बाद समझ नहीं पा रही क्या करना है. जब रोज़गार देने का टाइम है तो हथकड़ी बेड़ी बांटी जा रही है. कर्फ्यू में बीच सड़क पर बिरयानी खाने के ‘मास्टरस्ट्रोक’ वाले देसी जेम्स बांड का अता-पता नहीं है. वह तो जमातियों में ही फंस गए.

कश्मीर हमारी जन्नत है. पाकिस्तान इसके पीछे पड़ा था. सरकारें पाकिस्तान से लड़ती चली आ रही हैं. 370 हटाना भाजपा के एजेंडे में था. हटा दिया. आप खुश हो सकते हैं लेकिन आप हिंदुस्तान को होने वाले कोई दो फायदे नहीं गिनवा सकते. नुक़सान आप ने देख ही लिया. पाकिस्तान और चीन ने हाथ मिला लिया. चीन भारत के अंदर घुस आया. पीएम ने मना किया – न कोई घुसा न कोई पोस्ट छीनी गई. ताज्जुब यह है कि झूठ इतनी बेबाकी से कैसे बोल जाते हैं पीएम साहब ?

पाकिस्तान ने नए नक्शे में पूरा कश्मीर ही अपना क्षेत्र बता दिया. चीनी खाने के बाद अब नेपाल को भी अक्ल आ गई. हमारी कुछ जमीन उसने भी हथिया ली. हमारे वाले कि अब तक हिम्मत नहीं हुई कि कुछ भी बोले. बस मन्दिर बनवा दिया और गोविन्द रामायण लिख दी. ऊपर से वह आतंकवाद जो नोट बंदी में ही खत्म हो गया था, वह अब बढ़ता ही जा रहा है. आप बोलेंगे की कश्मीरी आतंकवादी होते हैं. चलो मान लिया लेकिन उस हिसाब से चिन्मयानंद और सेंगर के बाद क्या सारे यूपी वाले बलात्कारी नहीं होते ?

मेरा दिल रोता है कश्मीर और कश्मीरियों के लिए, और आपका ? अगर नहीं रोता तो सोचिए, 5 महीने के लॉक डॉउन में भी आपको काफी रियायतें मिल रही हैं. कश्मीरी को कुछ नहीं मिल रहा. पर्यटन खत्म मतलब रोज़ी खत्म. सेब भी सड़ गया पिछले साल. मुकेश का गीत जीना यहां मरना यहां हमारे कश्मीरी भाइयों के लिए लिखा था ?

ये खत डॉक्टर कफ़ील ने मथुरा जेल से लिखा है :

5:00 बजे सुबह सिपाहियों की आवाज से नींद टूटती है – ‘उठ जाओ और सारे चल दो जोड़े में गिनती के लिए.’ जैसे ही गिनती पूरी होती है, सब दौड़ते हैं टॉयलेट / वॉशरूम के लिए. 534 कैपेसिटी के जेल में 1600 बंदी बंद हैं.

एक-एक बैरक में 125-150 क़ैदी और 4-6 टॉयलट. तो लाइन में लगना होता है फ्रेश होने के लिए अक्सर. मैं तीसरे से चौथे नंबर पर रहता हूंं. फिर इंतज़ार करिए कि दूसरा कब निकले ? कितनी बार में वो अपनी गंदगी साफ कर रहा. जैसे-जैसे अपना नंबर क़रीब आता है, पेट में दर्द बढ़ता जाता है.

आख़िर में जब टॉयलेट में एंट्री करते हैं, इतनी मक्खियां और मच्छर. इतनी गंदी बदबू कि कभी कभी शिट करने से पहले ही मुझे उल्टी हो जाती है. बहरहाल मक्खियां-मच्छर भगाते रहो और किसी तरह शिट कर बाहर भागो.

फिर हाथ अच्छी तरह धो कर ब्रश करता हूंं और नहाने के लिए लाइन में लग जाता हूंं. अक्सर आधे घेरे में नंबर आ जाता है. खुले में ही 3-4 टेप हैं. फर्श धोकर पहले कपड़े धोता हूंं, फिर नहाता हूंं. 7:30 से 8:00 बजे के क़रीब दलिया या चना आता है. उसके लिए फिर से लाइन. वहीं नाश्ता होता है, फिर टहलता हूंं.

आजकल इतनी कड़ी धूप और गर्मी से 10-15 मिनट में ही पसीने से भीग तो बनियान और शर्ट में ही टेप के नीचे बैठ जाता हूंं और अपने फटे कंबल पर चादर बिछाकर छोटी जगह जो आपको मिली है, झाड़ पोंछ कर बेड बनाया जाता है, पर बैठ जाता हूंं क्योंकि बहुत भीड़ होती है तो लोग सट-सट कर सोते हैं. सोशल डिस्टेंसिंग तो भूल ही जाओ.

लाइट अक्सर चली जाती तो में तो हर आधे या एक घण्टे पर अपने को भिगाकर आ जाता हूंं. पूरे बदन में घमोरियों से बदन जलता है फिर लाखों मक्खियां अपने ऊपर मंडराती रहती हैं. आप भगाते रहो और 5-10 मिनट के लिए रुक जाओ तो हजारों आपके बदन से चिपक जाएंगी.

11:00 बजे के क़रीब लंच/परेडी खाना आ जाता है. फिर लाइन में लग बर्तन/थाली धोकर पानी जैसी दाल और फूलगोभी, लौकी, मूली की उबली सब्ज़ी रोटी के लिए अलग लाइन में लगो. निगलो क्योंकि जीना है. पानी के साथ दो-तीन रोटी ही निगली जाती हैं. कोरोना की वजह से मुलाक़ात बंद है वरना फल फ्रूट्स आ जाते थे, उसी से पेट भर लेता था.

12:00 बजे बैरक फिर बंद हो जाता है. एक ही टॉयलेट है बैरक में. फिर 125-150 बंदी, लाइट ग़ायब, पसीने से भीगते लोगों की गर्म सांंसे और पेशाब-पसीनों की बदबू. वो तीन घण्टे जहन्नम/ नरक से बदतर लगते हैं. पढ़ने की कोशिश करता हूंं पर इतना सफिकेशन होता है कि लगता है कब ग़र्श खाकर गिर जाऊं. पानी पीता हूंं ख़ूब.

3:00 बजे बैरक ही खुलते सब बाहर भागते हैं, पर 45 डिग्री तापमान आपको बाहर ठहरने नहीं देती. दीवार के पास जहां छाया मिलती है वहीं खड़े होकर मिनट-मिनट गिनता हूंं. ज़ोहर की नमाज़. फिर से नहाने के बाद ही पढ़ता हूंं.

5:00 बजे के क़रीब डिनर आ जाता है. लगभग वही कच्ची-पक्की रोटी और सब्ज़ी दाल बस निगल कर पेट की भूख किसी तरह शांत कर लो. 6:00 बजे फिर बैरक बंद हो जाता है. नहाने के लिए वो भाग दौड़ होती है कि 10-10 लोग एक साथ नहाने की कोशिश करते हैं. बैरक बंद होने के बाद फिर वही सफिकेशन. सोने के लिए फिर से जद्दोजहद.

ग़रिब पढ़ने के बाद नॉवेल लेकर बैठ जाता हूंं पढ़ने लेकिन वहांं इतनी घुटन महसूस होती है जिसे में बयां नहीं कर सकता. और अगर लाइट चली जाए तो हम पढ़ भी नहीं सकते क्योंकि यहां बहुत शिद्दत की गर्मी होती. आप ख़ुद अपने पसीने से भीग जाएं.

कीड़े / मच्छर आपके जिस्म पर पूरी रात हमला करते हैं. पूरा बैरक मछली बाज़ार की तरह लगता है. घुटन इतनी बदबू से कोई खांंस रहा, कोई खर्राटे ले रहा, कोई हवा खारिज कर रहा, कुछ लोग लड़ रहे तो कोई बार-बार पेशाब करने जा रहा. अक्सर पूरी रात बैठकर ही गुज़ारनी होती है.

अगर नींद लगी तो पता चला किसी का हाथ पैर लगने से खुल जाती है फिर बस 5:00 बजे सुबह का इंतज़ार रहता है. कैसे बाहर निकलें इस जहन्नुम से ? किस बात की सज़ा मिल रही है मुझे ? कब अपने बच्चों, बीवी, मांं, भाई, बहनों के पास जा पाऊंंगा ? कब कोरोना की लड़ाई में अपना योगदान दे पाऊंगा ?

राम अयोध्या सिंह लिखते हैं :

मोदी सरकार जनता द्वारा संवैधानिक और लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित दुनिया की पहली ऐसी सरकार है, जो देश को लूटना और बेचना ही अपना संवैधानिक अधिकार समझती है. चुनाव खर्च का जिम्मा उठाकर भारत के पूंजीपतियों ने सरकार को बंधक बना लिया है, और सरकार उनकी मर्जी के बिना कुछ भी करने में असमर्थ है.

इन पूंजीपतियों के साथ-साथ संघ और भाजपा भी लूट की इस बहती गंगा में अपना हाथ साफ कर रहे हैं, और लूट के इस पैसे में संघ और भाजपा से जुड़े लोगों के अलावा केन्द्रीय मंत्रिमंडल, राज्य मंत्रिमंडल, विधायक और सांसद यथाशक्ति अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर रहे हैं, और इसी लूट की कमाई से देश भर में भाजपा के सात सौ आलीशान और आधुनिक कार्यालय बन चुके हैं, और चार सौ की संख्या में अभी बनने वाले हैं.

एक बात तो स्पष्ट है कि इतने कम समय में (छः साल) में आजतक किसी ने भी भारत को इतना नहीं लूटा था. इस लूट के आगे नादिरशाह और ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई लूट भी पासंग भर ही है. यही है हमारी राष्ट्रभक्त और धर्मरक्षक मोदी सरकार की चमत्कारिक उपलब्धि, जिस पर अंधभक्त ताली, थाली और शंख बजाते हुए जय-जयकार कर रहे हैं, और हर हर मोदी, घर घर मोदी के नारे लगा रहे हैं.

अगर जमीर जिन्दा हो तो सवाल उठाईये. अपनी नहीं तो अपने बच्चों खातिर. आखिर हम अपने बच्चों के भविष्य को खत्म होते देख खामोश कैसे रह सकते हैं ? जो खामोश नहीं रह सकते उन्हें मार दिया जा रहा है. बेड़ियों में जकड़ कर जेलों में मरने छोड़ दिया जा रहा है. आवाज उठाईये, वरना एक एक कर सब मारे जायेंगे. खत्म कर दिये जायेंगे. आज उनकी बारी है, कल हमारी बारी आयेगी. इससे पहले की मार डाले जाये – चिल्लाईये.

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