हंस लीजिये इन पर. इनका मज़ाक बना लीजिए, तब तक मज़ाक बनाइये जब तक आप खुद एक मज़ाक न हो जाएं. जब दिमाग हैक कर लिया गया हो तो आप वह देख ही नहीं सकते, जो देखना चाहिए. आप वह देखेंगे, जो आपको हैकर दिखाएगा.
खिसियाए हुए आप इनके कोई भी नाम रखिये, मगर यह रहेंगे राहुल गांंधी ही. अब जरा गौर कीजिए, क्या गलत कह रहे राहुल. यही तो कह रहें कि जांचे हों. लॉक डाउन एक व्यवस्था है, समस्या का हल नहीं. समस्या का हल अधिक जांचे और ईलाज है. कोरोना के साथ अर्थव्यवस्था पर भी ध्यान दें. मज़दूर किसान की तरफ अतिरिक्त ध्यान दें. इसमे क्या गलत बात कही है ? जब अपना स्वास्थ्य विभाग जागा भी नहीं था, उससे पहले से यह कोरोना पर सतर्कता और जागरूकता की ज़िम्मेदारी निभा रहे थे.
राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी : अंतर जो साफ नजर आया
अभी तक के कोरोनाकाल में राहुल या कांंग्रेस ने अपनी तरफ से एक रत्ती भी गलती नहीं की है. सरकार को सहयोग और सलाह की अपनी तरफ से कोई कमी नहींं होने दी. आप ताज्जुब करेंगे कि कांंग्रेस के कुछ कार्यालय में कम्युनिटी किचेन बनाकर लोगों को खाना पहुंंचाया जा रहा है, वह भी वहांं जहांं न वह सत्ता में हैं और न ही निकट भविष्य में सत्ता दिखाई दे रही.
हम इतना जानते हैं, यह राहुल गांंधी अपने विरुद्ध खड़े व्यक्ति को डराता बहुत है. वह लाख चीख-चीख कर कहें कि हमने इसे हरा दिया. उसका नाम मिटा दिया. उसे मज़ाक बनवा दिया लेकिन आप जानते हैं, इस हारे हुए, मज़ाक बनाए हुए व्यक्ति से सबसे ज़्यादा यही लोग डरते हैं.
राहुल के हर बोल को वह ध्यान से सुनते हैं, तब उनमें से एक लाइन पकड़ कर उसका मजाक उड़ाते हैं कि कहीं उसकी पूरी बात लोगों के कानों तक न पहुंंच जाए. वह जानते हैं, जिस दिन इस व्यक्ति पर जनता ने ध्यान देना शुरू किया, उसी दिन से उनकी उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी.
राहुल इन्हें ख्वाबों में डराते हैं. हम आप इन्हें गम्भीरता से भले मत लें, मगर राहुल के विरोधी राहुल को बेहद गम्भीरता से लेते हैं. उसके एक बोल बोलने पर घण्टोंं टीवी पर बहस करवाते हैं. लाखों ट्रोल्स से राहुल को ट्रोल करवाते हैं. तमाम बिकने वाले बुद्धिजीवियों को उसे बदनाम करने की क़ीमत देते हैं. जानते हैं क्यों, क्योंकि यही वह व्यक्ति है जो उनकी कुर्सी के चारों पाए एक साथ खींच सकता है. जिसे खरीदा भी नहीं जा सकता. डरवाया भी नहीं जा सकता, तो चलो बदनाम करो.
अगर यह राहुल गांंधी को सीरियस नहीं लेते तो राहुल के बोलते ही उसकी कमियों के फ़र्ज़ी ट्रिगर क्यों चलने लगते हैं ? बदनाम करने के ट्वीट रिट्वीट की भरमार क्यों हो जाती है ? वह जानते हैं कि जिस दिन देश ने राहुल की तरफ उम्मीद की नज़र दौड़ाई, उस दिन इनके बुरे दिन शुरू हो जायेंगे.
राहुल कांंग्रेस में भी कांग्रेसी सोच की आखिरी खेप हैं, इसलिए उनका मज़बूत होना ज़रूरी है. राष्ट्रीय स्तर पर एक यही व्यक्ति है जो सामने वाली विचारधारा को बर्बाद किये बिना, रोक सकता है. राहुल ही वह व्यक्ति हैं, जिनको दक्षिणपंथी निगल जाना चाहते हैं मगर यह उनके लिए असम्भव है.
खैर बातें तो बहुत हैं मगर नज़र रखिये. माहौल तो यह बना दिया गया है कि अगर इस लीडर की तारीफ में दो शब्द कहो, तो दिलजली सौतन की तरह चीखते-चिल्लाते लोग आ जाएंगे, हमें इनकी परवाह भी नहीं है. हम तो वह अन्दर से मजबूर और कमज़ोर और बाहर से तुर्रमखां टाइप लोगों को देखते हैं, जो राहुल की तारीफ इसलिए नहीं करते क्योंकि उन्हें अपने फैंस के खो जाने का डर है. वह बीच-बीच में राहुल पर मज़ाक बनाकर अपने फैंस को बांधे रखना चाहते हैं.
राहुल इनके लिए भी बड़े उपजाऊ हैं, इसका मज़ाक बनाओ और भीड़ बटोरो. मेरे लिए भीड़ की कोई अहमियत नहीं. अकेले रहने से आज तक घबराए नहीं. राहुल में तमाम खूबियांं हैं. उनकी डंके की चोट पर तारीफ करते हैं. कमियों पर सवाल उठाते हैं, क्योंकि हम फैंस या भीड़ के मोह में सच बोलने की आज़ादी को तिलांजलि नही दे सकते.
जिन्हें लगता है राहुल को अपने विरोधी की तरह बातों का जादूगर होना चाहिए, वह जान लें, झूठ का विकल्प हमेशा सच होगा, न कि और ज़्यादा झूठ. बातों का विकल्प सिर्फ काम होगा, न कि और ज़्यादा बातें. इस नज़र से राहुल ही एक विकल्प हैं, आज नहीं तो कल मानना तो पड़ेगा.
जो इन्हें हल्का कहते हैं, वही उन पर शाम के वक़्त टीवी पर बहस करते हैं. राहुल गांधी के दुश्मन, राहुल को दूसरों से ज़्यादा सुनते और समझते हैं. उसकी गम्भीरता को जानते हैं, तभी वाट्सएप के एक सिपाही से लेकर शीर्ष पर बैठे दिमागी हैकर तक उन पर टूट पड़ते हैं.
वह एक रत्ती भी जनता की नज़र में उसके लिए हमदर्दी नहींं पैदा होने देना चाहते हैं. वह जानते हैं इनके प्रति अगर लगाव बढ़ा, तो उनके लिए सत्ता का अलगाव शुरू हो जाएगा. वह सब इन्हें हराकर भी इनसे डरते हैं, यही तो इस व्यक्ति की जीत है.
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