[ दिल्ली पीपुल्स फाॅर एनसीआर दिल्ली में कार्यरत मजदूरों के एक संस्था द्वारा जारी किया गया एक पर्चा है, जो दिल्ली की मेहनतकश जनता की एकता को मजबूत करने और बेरोजगारी, भ्रष्टाचार व आम आदमी की समस्याओं को उठाने का कार्य करता है. हम यहां अपने पाठकों के सामने इसी पर्चे को आलेख के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं. ]
चुनाव के समय सभी राजनीतिक पार्टियां लोगों को रोजगार देने, महंगाई और भ्रष्टाचार खत्म करने का वादा करती हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद सब भूल जाती हैं. 2014 में लोकसभा चुनाव के समय नरेन्द्र मोदी ने कहा कि जब उनकी सरकार सत्ता में आयेगी तो हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देगी, मंहगाई कम करेगी, भ्रष्टाचार नहीं रहेगा और कालाधन आयेगा, जिससे प्रत्येक व्यक्ति को 15-20 लाख रूपये मिलेगा. एक आम आदमी के लिए इससे अधिक क्या चाहिए ? उसने मोदी पर भरोसा किया और भारी बहुमत के साथ सत्ता सौंप दी.
मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद रोजगार देने की जगह ‘स्टार्टअप’ की बात करने लगी. इसके लिए सरकार ने मार्च, 2019 तक 19 करोड़ लोगोंं को 8,93,000 करोड़ रूपया का कर्ज दिया है, यानी प्रत्येक व्यक्ति को 47 हजार रूपया का कर्ज. अब 47 हजार रूपया में कौन व्यक्ति स्टार्टअप कर सकता है ?
20-24 साल के नौजवानों के लिए रोजगार के अवसर कम हुए हैं, इनकी बेरोजगारी दर 32 प्रतिशत है. बेरोजगारी के दौर में सरकार मजदूर कानूनों में संशोधनकर मालिकों को मनमर्जी करने की छूट दे रही है. केन्द्र सरकार ने मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन 178 रूपया प्रतिदिन तय किया है. नये वेज-कोड के तहत सरकार काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 9 करने की तैयारी कर रही है और प्रचार कर रही है कि न्यूनतम वेतन में 18-24 प्रतिशत की वृद्धि की जायेगी, यानी 178 रूपया से बढ़कर मजदूरी 200-240 रूपया हो जायेगी.
फिलहाल भारत में मंदी की स्थिति आ गई है, जिसके कारण बड़ी से बड़ी कम्पनियों में छंटनी हो रही है. आईआईटी सेक्टर के इन्फोसिस 10 प्रतिशत कर्मचारियों की छंटनी करने की घोषणा कर चुकी है. भारत की मशहूर बिस्कुट कम्पनी पारले-जी ने बिक्री में गिरावट के कारण 10 हजार लोगों की छंटनी की बात कही है. होंडा कम्पनी ने 2,500 मजदूरों की छंटनी कर दी है, जिसके कारण मजदूर धरने पर बैठे हैं. पूरे भारत में कारों के शो-रूम बंद होने से 2.5 लाख लोगों की नौकरी जा चुकी है. तेलंगाना में ट्रांसपोर्ट को निजी हाथों में देने की तैयारी चल रही है, जिससे 50 हजार कर्मचारी 40 दिन से हड़ताल पर है. जो कम्पनियां छंटनी नहीं कर रही है, वह मजदूरों के वेतन या काम का समय बढ़ा रही है. यह सब एक बानगी भर है.
एक आंकडे़ के अनुसार देश में मार्च, 2014 तक 45 करोड़ लोगों के पास नौकरी थी जो कि 2019 में घटकर 41 करोड़ हो गई है, यानी 5 साल में 4 करोड़ लोग बेरोजगार हो गये. ऑटो पार्टस सेक्टर में 10 लाख नौकरी जाने की आशंका है. केयर रेटिंग एजेन्सी के वृद्धि दर 4.1 प्रतिशत थी जो 2018-19 में घटकर 2.8 प्रतिशत हो गई.
सेन्टर फाॅर माॅनिटरिंग इंडिया इकोनाॅमी की रिपोर्ट के मुताबिक अक्तूबर, 2019 में बेरोजगारी दर बढ़कर 8.45 प्रतिशत हो गई, जो कि 45 सालों में सबसे अधिक है. बीएसएनएल में 80 हजार और एमटीएनएल में 13.5 हजार कर्मचारी वीआरएस के लिए आवेदन कर चुके हैं. सूचना प्रोद्यौगिकी सेवा कम्पनियों (आई. टी. सेक्टर) में 40 हजार नौकरियां जाने का खतरा है. केन्द्र सरकार के श्रम विभाग एवं सीएमआईई के आंकड़ों के आधार पर यह खुलासा हुआ है कि नोटबंदी एवं जीएसटी के लागू होने के बाद 2016 से 2018 के बीच करीब 50 लाख लोगों की नौकरियां छिन गई हैं.
केन्द्र सरकार एयर इंडिया एवं कई सार्वजनिक उद्यमों का निजीकरण कर रही है. साथ ही, इसने सार्वजनिक बैंकों के विलय एवं निजीकरण की प्रक्रिया भी तेज कर दी है. सरकार के इस कदम के चलते लाखों कर्मचारियों को से निकाला जा रहा है या उन्हें वीआरएस के लिए बाध्य किया जा रहा है.
स्थिति इससे भी अधिक गंभीर है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में बताया कि 6.8 लाख कम्पनियों पर ताला लग चुका है. बेरोजगारी, मंदी के बीच मोदी सरकार कभी स्वच्छता अभियान, तो कभी फिट इंडिया, तो कभी योग-दिवस मनाने में व्यस्त रहती है. अगर हम इन सबके खिलाफ एक होकर आवाज नहीं उठाये तो आने वाले दिनों में हमें और अधिक बेरोजगारी, मंहगाई जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा और आने वाली पीढ़ी को हम अंधेरे में धकेल देंगे.
पूंजीपतियों के मुनाफे को बनाए रखने के लिए सरकार मजदूरों के श्रम की कीमत कम करती जा रही है और काॅरपोरटे टैक्स में छूट दे रही है. इन सबसे ध्यान हटाने के लिए भारत का शासक वर्ग एवं उनकी हिटलरवादी मोदी सरकार जनता को जातिवाद एवं धार्मिक भेदभाव में उलझाकर रखती है. जब उनका जाति और धर्म के हथकंडे से काम नहीं चलता तो वे पाकिस्तानी खतरे का हौआ खड़ा कर देते हैं. इन हथकंडों को अपनाकर मोदी सरकार न केवल शोषित-पीड़ित जनता की एकता को तोड़ती है, बल्कि उनमें धार्मिक उन्माद फैलाकर दंगा-फसाद करवाने में भी सफल होती है. ऐसी स्थिति में हम सभी का दायित्व बनता है कि मोदी सरकार द्वारा जनता की एकता तोड़नेवाली नीतियों का पर्दाफाश करें.
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