सुप्रीम कोर्ट ने शुरुआत से ही वेक्सीन की अलग-अलग कीमतों को लेकर सवाल पूछ-पूछकर नाक में दम कर दिया था. केन्द्र सरकार की स्थिति सांप छछुंदर की हो गयी थी. उससे न उगलते बन रहा था न निगलते. उधर ममता बनर्जी ओर भूपेश बघेल ने भी मौके का फायदा उठाते अपनी फोटो वेक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर छपवा दी, यह मोदी को बुरी तरह से अखर गया. इसलिए आज मोदी ने सोचा कि सबको मुफ्त वेक्सीन लग ही रही है, हम पर कीमतों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. 35 हजार करोड़ टीकाकरण हमें वैसे भी देना ही है तो टीकाकरण का श्रेय राज्य क्यों ले, हम ही ले ले. यही है आज के सम्बोन्धन का शार्ट में विश्लेषण – गिरीश मालवीय
सुब्रतो चटर्जी
अमूमन मैं किसी भाजपाई या संघी का चेहरा देखना या भाषण सुनना पसंद नहीं करता क्योंकि मुझे मालूम है कि वे झूठ के सिवा कुछ नहीं बोलेंगे और ज़हर के सिवा कुछ नहीं फैलाएंगे. कल संयोगवश मोदी का गंदा चेहरा टीवी पर दिख गया प्रलाप करते हुए. मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मुझे इस आदमी से पैथोलॉजिकल नफरत है, यद्यपि मैं नस्लवादी नहीं हूं और न ही नक्सलवादी.
आधे घंटे के अनर्गल प्रलाप को सुन कर मेरे मन में कुछ सवाल उठे जिन्हें आप से साझा करने का मन हुआ. क्या भारत में सार्वभौमिक मुफ्त टीकाकरण पहली बार हो रहा है कि मोदी इसका श्रेय लेने के लिए मरे जा रहे हैं ? हमलोग तो उस पीढी के लोग हैं जिनकी बांईं बांह पर अभी तक बचपन में लगाया गया चेचक के टीके के हल्के निशान मौजूद हैं. भक्त भी उस पीढ़ी के हैं जब उनकी मांएं उनको गोद में ले कर पल्स पोलियो की दो बूंद जिंदगी के पिला चुकीं हैं, फिर ये बयानबाज़ी क्यों ?
सबसे बड़ा सवाल है कि मुफ़्त या फ्री क्या होता है ? क्या कोई भी सरकार या प्रधानमंत्री अपने बाप के पैसों से जनता को वैक्सीन देता है, या जनता के टैक्स के पैसों का ही एक हिस्सा उन पर खर्च करता है ? फिर ये मुफ़्त कैसे हुआ ? दूसरी बात, मोदी कहते हैं कि 80 करोड़ से ज़्यादा लोगों को मुफ़्त राशन दीवाली तक दी जाएगी. सवाल फिर वही है कि क्या इस अनाज के भंडारण और वितरण में जनता के टैक्स के पैसों का इस्तेमाल नहीं हुआ है ? फिर ये मुफ़्त कैसे ?
क्या प्रधानमंत्री ये कहना चाहते हैं कि देश की दो तिहाई जनता मुफ़्तख़ोर है ? देश की आर्थिक समृद्धि में उनका योगदान शून्य है ? आत्ममुग्ध क्रिमिनल दिमाग के दिवालियापन का इससे बेहतर उदाहरण आपको पूरी दुनिया में नहीं दिखेगा. चलो, अगर मान भी लेते हैं कि हम दो और हमारे दो के सिवा देश के लिए कोई कुछ नहीं करता तो भी ये सवाल रह जाता है कि मोदी की किन नीतियों के परिणामस्वरूप देश की एक तिहाई जनता फ़्री राशन का मोहताज बन गई ? क्या इसके लिए नोटबंदी से लेकर लॉकडाउन तक और रेल से लेकर देश की सारी संपत्ति को बेचना ज़िम्मेदार नहीं है ?
क्या इसके लिए रिज़र्व बैंक की लूट, सरकारी ख़ज़ाने की लूट, पेट्रोलियम पदार्थों पर मिले क़रीब पांच लाख करोड़ रुपये के टैक्स और ड्यूटी की लूट, सेंट्रल विस्ता और Air Force 1 जैसे ऐयाशियों पर किये गये अनाप शनाप खर्च, विज्ञापनों पर लुटाए हुए खरबों रुपये ज़िम्मेदार नहीं हैं ? क्या इसके लिए जीएसटी के राज्यों के शेयर पर डाका ज़िम्मेदार नहीं है ? क्या इसके लिए कोरोना के फैलाव को रोकने की बनिस्पत ‘नमस्टे ट्रंप’ से लेकर चुनावी रैलियां ज़िम्मेदार नहीं हैं ?
सबसे बड़ी बात है कि क्या इसके लिए आप का बस दो बेईमान धंधेबाज़ों के हित को देश हित से उपर रखना ज़िम्मेदार नहीं है ? लेकिन आप नहीं मानेंगे. फ़्री वैक्सीन आपकी मजबूरी है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में आपने हलफ़नामा दायर किया है कि कोरोना के लिए बजट में रखे गए 35 हज़ार करोड़ रुपये का एक रुपया भी आपने वैक्सीन पर खर्च नहीं किया है. अब सुप्रीम कोर्ट के डर से आप वैक्सीन को फ़्री कर नियम को व्यतिक्रम साबित करने की निर्लज्ज लेकिन असफल प्रयास कर रहे हैं.
आपको मालूम है कि राज्य सरकारें वैक्सीन ग्लोबल मार्केट से क़ानूनन ख़रीद ही नहीं सकती, लेकिन आप ने राज्यों पर ये ज़िम्मेदारी डाल कर पहले अपनी ज़िम्मेदारी से भागने की भरसक कोशिश की. वो तो भला हो यूपी चुनाव का और बंगाल में मिली हार का कि आप अब मान रहे हैं कि वैक्सीन की ज़िम्मेदारी केंद्र की है.
अंत में, मैंने कल आपका गंदा चेहरा गौर से देखा. आपके गंदे चेहरे पर दिखावटी रौनक़ भी ग़ायब है. आप एक पराजित नायक हैं मोदी जी. यही समय है कि इस्तीफ़ा दे कर अपने भक्तों की नज़र में अपनी रही सही इज़्ज़त को बचा लिजिए. इससे बेहतर मौक़ा इतिहास आप को नहीं देगा, याद रखिए. अफ़सोस, क्रिमिनल इस्तीफ़ा नहीं देते.
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