निरंतर भ्रमणशील एवं नानाविध वस्त्रालंकार धारणकर्ता श्रीमान नरेंद्र ‘दामोदर दास’ मोदी जी !
आपको मैंने ‘मेरे-प्यारे’ इसलिये नहीं लिखा क्योंकि मैंने आज तक आपसे किसी प्रकार का कोई जुड़ाव महसूस नहीं किया. अर्थात मुझे आपसे लगाव नहीं है लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि जल्दी ही आपकी फोटो भूतपूर्व की कतार में टंगने वाली है. चूंकि मैं आपके विरोध में लिखता हूं इसलिये आपके भक्त हमेशा मुझसे नाराज रहते हैं और भारतीय नागरिक होते हुए भी मुझे पाकिस्तान भिजवाने की धमकिया देते हैं (ये बात अलग है कि आप नये कानून में अब पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता बिना शर्त के दे रहे हैं ). रोज देखता हूं ढेरों फेक अकाउंट वाले भक्त और गोदी-मीडिया वाले न्यूज चैनल आपकी तारीफ में कसीदे गढ़ते रहते हैं जिसका हकीकत से कोई लेना-देना तक नहीं होता. सच कहूं तो केवल दो बार (जब आपका राजतिलक हुआ था) के सिवाय मुझे आपमें प्रधानमन्त्री होने जैसा कुछ लगा नहीं क्योंकि आपके शासन में इस देश में इतना कुछ अघटित घट रहा है कि मुझे लगता ही नहीं कि आप देश के प्रधानमंत्री हैं (अगर वह आपकी शह से हो रहा हो तो बात अलग है. ये बात आप क्लियर कर देंगे तो बढ़िया रहेगा).
कितनी ही पुरानी योजनायें आपके हाथों से नये नाम को प्राप्त कर चुकी है. गाय तक आपसे समर्थन पाकर सचमुच मां बन गई है. ये भगवा गुंडे शायद अपनी खुद की जननी मां को तो पानी तक का ना पूछते हो, मगर गाय के लिये दुसरों का खून तक कर देते हंै और आप भी रुख पलटने के लिये लोगों को ‘मन की बात’ में उलझा लेते हैं. कॉलेजों में पिटती लड़कियों के साथ यौन अपराध हो या गौरक्षकों द्वारा गाय माता को बचाने के नाम पर की गयी हत्यायें या फिर नोटबन्दी से लेकर आज तक गिरती अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी हो या आम जनता की घटती आय, आप सभी मुद्दों को पाकिस्तान के नाम पर घुमाने में माहिर हैं और आपकी इस काबलियत से मैं सदैव हैरान होता हूं (सचमुच यह स्वीकार तो करना ही पड़ेगा कि आप बातें करके फंसाने में माहिर हो और अगर आप आज 20-25 साल के कॉलेजिएट लड़के होते तो 50 लाख की न सही मगर कम से कम 50 गर्लफ्रेंड तो आपकी जरूर होती).
आपको हमेशा शिकायत रही कि आदरणीय मनमोहन सिंह जी कभी बोले ही नहीं. मगर आपको सुनकर तो यही लगता है कितना बेहतर होता यदि आप भी बोलना भूल जाते. कम-से-कम पद की गरिमा तो बनी रहती. यह जो आपको अपनी वाणी (‘अनर्गल प्रगल्भ वार्ता’ नामक ‘लाइलाज बीमारी’) को दवा समझने का वहम हो गया है न, उस वहम का इलाज तो हकीम सुलेमानी के पास भी नहीं होगा !
क्या आप जानते है कि इस दुनिया में आप एक मात्र ऐसे इंसान हैं जिसके कारण इस दुनिया में सबसे ज्यादा रिश्ते टूटे हंै और खराब हुए हैं. ऐसा कोई भी उदाहरण न तो अतीत में था और न ही भविष्य में कभी होगा ! (कभी-कभी तो आपके कारण पारिवारिक रिश्तेदारों से और भावनात्मक संपर्कों के प्रति भी मन वितृष्णा से भर जाता है. जब वे अपने रिश्ते या भावनात्मक संपर्कों के बजाय मूर्खतापूर्ण तरीके से आपकी तरफदारी करते हैं और ये तक नहीं सोचते कि आपकी अपेक्षा निजी रिश्ते और संपर्क ज्यादा महत्वपूर्ण होते है).
आप भले ही प्रधानमन्त्री हैं मगर उस पिता की चिंता को आप कत्तई नहीं समझ सकते है जिसके बच्चे में आपने अपना राजनैतिक विद्वेष भर दिया है और वो युवा होकर भी कोई काम करके अपने पिता की मदद करने के बजाय उसी पिता के पर्स से पैसे चुराकर जिओ का रिचार्ज करवा लेता है और घर के एक कोने में पड़ा सारा दिन डेढ़ – दो जीबी डाटा प्रयोग करते हुए दुसरों को गालियां निकालने और आपके विरोधियों को कांग्रेसी साबित करने में और पाकिस्तान भिजवाने की धमकियों के साथ-साथ देशद्रोही और बलात्कार करके मार देने जैसी धमकियों को टाइप करता हुआ, अपने आपको दुनिया का सबसे खुशनसीब समझने लगता है क्योंकि आपका अपना तो कोई बच्चा है नहीं (आप तो रात के अंधेरे में घर-संसार छोड़कर भाग निकले थे).
मगर ऐसे लड़को के वे पिता अपने जवान बच्चे को इस तरह बर्बाद होते देख तिल-तिल घुटते हैं (ठीक वैसे ही जैसे आपके पिताजी तिल-तिल घुटते थे, मगर आप उनकी अपेक्षाओं और भावनाओं को कभी समझ नहीं पाये) और प्रार्थना करते हंै कि इससे तो अच्छा होता कि वे औलाद पैदा ही न करते. आप नहीं जानते मगर ऐसे में जीवन कितना मुश्किल हो जाता है, ये आप शास्त्रों की इस उक्ति से समझ सकते हैं, जिसमें बताया गया है कि पुत्र न हो तो पुरुष पिता न बन पाने के दुःख से व्यथित रहता है, मगर संतान कुपुत्र हो तो वो सतत उस पीड़ा का अनुभव करता है, जिस पीड़ा को एक कोढ़ी अनुभव करता है. पुत्र हो और वो लायक न हो तो सिर्फ खेद होता है लेकिन पुत्र हो और नालायक हो तो उस पिता के मन की व्यथा तो स्वयं देवराज इंद्र भी वर्णन नहीं कर सकते ! क्या आपने कभी विचार किया है कि उस माता-पिता पर क्या गुजरती होगी, जिसका बेटा भक्त बनकर नालायक और निकम्मा हो जाता है ?
राजनीति की बात और होती है और यथास्थिति की और. सोचकर देखिये कि – कोई ऐसा ही नालायक पुत्र जब बिना कारण आपके खिलाफ लिखने वाले को मारपीट करके आये अथवा जान से मार कर आये तो ? वो निकम्मा भक्त जब किसी की बहन-बेटी-बहु का बलात्कार सिर्फ इसलिये कर आये कि उसने आपके विरोध में लिखा तो ? वो निर्लज्ज भक्त आपका विरोध करने वाले अपने ही सज्जन रिश्तेदारों को गालियां निकाले तो ?
काश, आज आपका एक बेटा होता जो राहुल गांधी का भक्त होता या आपकी एक बेटी होती जो राहुल गांधी से आपके विरोध के बावजूद शादी कर लेती, तो शायद आप उस चीज को महसूस कर पाते जो 25 करोड़ भारतीय परिवार रोज करते हैं (देखा न, ऐसे विचार मात्र से आपकी रूह कांप गयी न ! बस यही डर वे सभी भारतीय महसूस करते है जिनके बेटे-बेटियां आपके भक्त बने हुए हंै). छव्ज्म् रू राहुल गांधी का नाम इसलिये लिखा है क्योंकि आप इस दुनिया में सबसे ज्यादा नफरत उसी से करते हैं तो सोचकर देखिये कि आपने ये जो नयी जनरेशन के दिमाग में गोबर भरकर उन्हें नफरत और घृणा से भर दिया है न, उससे भविष्य के भारत को जो नुकसान होगा, उसके लिये आपको मानवता कभी क्षमा नहीं करेगी !
आजादी के बाद से अब तक भारत में दो तरह के सत्ताधीश हुए हैं जिनमंे नेहरू जी, शास्त्री जी और इंदिरा जी जैसे ‘ए-ग्रेड’ वाले शासक थे (इनमे कुछ कमियां थी, पर ये कमीने नहीं थे). इसके बाद वाली जो श्रेणी है उनमें से किसी का नाम मैं लिखना उचित नहीं समझता लेकिन मुझे लगता है कि अगर आपने अपना रवैया नहीं बदला तो जल्दी ही आप दूसरी श्रेणी में शामिल हो जायेंगे क्योंकि आजाद भारत में ऐसा संकट पहले कभी नहीं उत्पन्न हुआ, जैसा आपने इन छह सालों में कर दिया है. जिस संविधान को साक्षी मान कर आपने प्रतिज्ञा ली थी, आप उसे भूल गये हंै क्या ?
शायद आपको याद नहीं कि आपने प्रतिज्ञा लेते वक्त दोहराया था कि ‘मैं नरेंद्र दामोदर दास मोदी विधि द्वारा स्थापित संविधान का पालन करूंगा और भारत की जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा करूंगा तथा भारत की अक्षुण्णता और एकता बनाये रखने के लिये सतत प्रयास करूंगा.’ लेकिन आप तो स्वयं ही नागरिकों के अधिकारों को खत्म करने पर आमादा हो चुके हैं और देश की अक्षुण्णता और एकता को खतरे में डाल रहे हैं. आपको शोभा देता है क्या कि संविधान की मनचाही व्याख्या करवाकर उसमें मनमाने संशोधन करवाते रहें ? क्या आप ऐसा करके लोकतंत्र को छिन्न-भिन्न नहीं कर रहे ? क्या आप भारत की आजादी के प्रतीक पितामह महात्मा गांधी के आदर्शों पर रोक लगाना चाहते हैं ?
आप ये न सोंचे कि मैं किसी पार्टी या नेता के बहकावे मे आकर यह लिख रहा हूं या मैं विपक्षी पार्टी का कार्यकर्त्ता हूं. मैं जानता हूं कि विपक्ष कोई भी हो वो हमेशा सत्ता में आग लगाकर दूर से हाथ सेंकते हैं (आप भी तो यही करते थे जब आप विपक्ष में थे. इसका सबूत आपके वो सारे वीडियो हैं इसलिये आप मुकर नहीं सकते). इसीलिये ये विचार तो कत्तई अपने दिमाग से निकाल दीजिये कि विपक्ष से संबंध रखता हूं. असल में मैं आपका विरोध कर रहा हूं. आपने कार्य ही इतना आलोचनात्मक किया है जिसके कारण मैं आपको ये पत्र लिखकर आपको सजग करने की कोशिश कर रहा हूं. आप इसे नजर करे या नजरअंदाज करे, ये आपकी इच्छा है !
मै आपको दोष इसलिये दे रहा हूं क्योंकि आप वर्तमान सत्ताधीश हैं और आपके रहते तमाम वो चीजें हुयीं हैं जिनके कारण आज दुनिया के सबसे निराले और मेरे प्यारे देश भारत में सभी लोग फिर से सड़कों पर उत्तर आये हैं (आपने एक बार पहले भी 2016 में लोगों को ऐसे ही सड़कों पर आने को मजबूर कर दिया था, जबकि उसका परिणाम सिर्फ और सिर्फ बर्बादी निकला और उस समय की आपकी वो गलती आज तक देश की अर्थव्यवस्था में डाऊन फॉल कर रही है).
आपने देश में एक दूसरे के धर्मों के प्रति लोगों में इतनी नफरत पैदा कर दी है कि मुझे लगता है कि इस प्रबलता के कारण भारत एक बार फिर से टूट न जाये इसीलिये भी मैं आपको आगाह कर रहा हूं कि आप इस नफरत की राजनीति का त्याग करें और भारत की भाई-चारे वाली राजनीति से भले ही आप सत्ता में बने रहे !
आज आप और आपकी पार्टी के नेता सरकारी खजाने का उपयोग अपने निजी विज्ञापनों में कर रहे हैं. पार्टी के प्रचार में कर रहे हैं. आपकी पार्टी के नेता तो मर्यादा को भूल आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं. इन सब में देश का नुकसान हो रहा है. देश में विकास रुक रहा है. देश में गरीबी बढ़ रही है. देश में संसाधनों की कमी हो रही है और इतना सब देखने के बाद भी आप मूक-बधिर से बने हुए हैं, क्यों ? आप क्यों अपनी पार्टी के लोगों द्वारा सदनों की मर्यादा को तार-तार होते चुपचाप देखते रहते हैं ? ये जानते हुए भी कि आपके शासनकाल में भ्रष्टाचार पहले की अपेक्षा बहुत ज्यादा बढ़ा है, फिर भी चुप क्यों रहते हैं ? क्यों आप सरकारी संस्थाओं को डुबाने वाले फैसले ले रहे हंै ? आप क्यों चंद पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने में मदद करने वाले कानून बनाकर संविधान का संशोधन कर रहे हैं ? आप के संघी परिवार और आईटी सेल ने तो देश में आज वो नौबत ला दी है कि वे जब चाहे देश को गृहयुद्ध की तरफ धकेल सकते हंै, फिर भी आप उन पर नियंत्रण क्यों नहीं कर रहे रहे हैं ?
आज अदालतों की साख पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं ? न्याय होने की जगह अदालतों में स्पष्ट अन्याय होता दिखाई देता है ? क्या माननीय न्यायाधीश भ्रष्टाचार में लिप्त हैं या फिर सरकारी दबाव अथवा किसी ‘खास डर’ की वजह से ऐसे फैसले दे रहे हैं, जो जनहित में नहीं होते ?
सवाल तो आपकी अपनी साख पर भी हो रहे हैं ? आप यह भी न सोचना कि भविष्य के इतिहास में इस गुनाह के लिये आपके साथ दुसरे गुनहगारों के नाम भी होंगे क्योंकि ‘इतिहास तो सदैव शासकों के नाम से ही दर्ज होता है, उनके मंत्रियों या संत्रियों और जनता को कोई याद नही रखता.’ इसलिये अभी भी मौका है, आप अपनी गलतियों को सुधार कर सही कदम उठा भविष्य के इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवा सकते हैं !
इसके लिये आपको लोकतंत्र और संविधान की गरिमा को वापस स्थापित करना होगा और जिस क्षण आप ऐसी घोषणा कर देंगे, उसी क्षण आपके विरोधी और आपको सामने रख माल उड़ाने वाले दोनो ही छटपटा जायेंगे लेकिन असहमति व्यक्त नहीं कर पायेंगे !
ये भी याद रखियेगा कि आपके पास नेहरूजी, शास्त्रीजी और इंदिराजी की तरह कोई गौरवपूर्ण उपलब्धियां नही हैं इसलिये जिस संघ की खातिर आपने इतनी बदनामी उठाई है, वह तो शायद बना रहेगा मगर आप इतिहास के पन्नों में तानाशाह के रूप में दर्ज हो गुमनाम हो जायेंगे क्योंकि जिस संघ के लिये आप ये सब कर रहे हैं वो समय आने पर आपको भी देशद्रोही बताकर पाकिस्तान भिजवाने का जुमला ही सुनायेगा (जैसे हमें सुनाता है). और तब आपकी जो फोटो टगेंगी उसमें इतने दाग लग जायेंगे कि आपका चेहरा भी किसी को नजर नहीं आयेगा (याद कर लीजिये सावरकर., अपने मतलब के लिये इस्तेमाल कर सावरकर की इमेज खराब करने में सबसे अहम रोल संघ का ही था. ये तो आप बखूबी जानते ही होंगे).
आज देश में जो हर तरफ इतना हाहाकार हो रहा है न, असल में ये सब संघ की आपके खिलाफ गहरी चाल है, जिसे आप समझ नहीं रहे हैं क्योंकि संघ अब आपका अस्तित्व समाप्त कर एक नये चेहरे को प्रोसेस कर रही है, ठीक वैसे ही जैसे आडवाणी के अस्तित्व को समाप्त कर आपको प्रोसेस किया था (आप एक बार सोचकर देखिये तो सही, सारी बात आपकी समझ में आ जायेंगी).
आपके अंदर लोकप्रिय होने का गुण है मगर शासक बने रहने के लिये आपको थोड़ा-सा अपना एटीट्यूड बदलने की जरूरत है इसलिये आप सवाल पूछने पर सवालों का सामना कीजिये क्योंकि सवाल तो शासकों से ही किये जाते हैं (उत्तरदायित्व तो उनका ही होता है न. आपके नीचे वाले तो आपको जिम्मेदार ठहराकर पतली गली से निकल लेंगे).
आप अपने भाषणों में संस्कृति की बातें करते हंै और भारत को विश्वगुरु बताते हैं लेकिन ये बताइये कि यह कैसी संस्कृति है जो हर रोज सैंकड़ों बहन-बेटियों का बलात्कार और सामूहिक बलात्कार तक कर लेती हैं या उन पर एसिड अटैक जैसी क्रुरतायें करवाती है ? क्या भारत को ऐसा विश्वगुरु बनायेंगे जिसमें पुरुषों की महिलाआंे पर क्रूरता को याद किया जाये ? आपने एक बार कहा था कि कोई पिल्ला भी गाडी के नीचे आ जाये तो दिल रो पड़ता है, फिर उन मासूम छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर वृद्धा स्त्रियों तक के साथ की गयी ऐसी क्रूर नृशंसता को आप कैसे सहन कर लेते हंै ?
जिस गीता को आप दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक बताकर पूरी दुनिया के नेताओं को उपहार में देते फिर रहे हैं उसी गीता में लिखा है कि भ्रूण हत्या से बड़ा कोई पाप नहीं है लेकिन क्या आप जानते हैं आपके शासन में सबसे ज्यादा भ्रूण हत्यायें हुई है ? क्या यह जघन्य अपराध नहीं है ? आपका भी तो सबसे प्रिय नारा है ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का, लेकिन बलात्कारों से, एसिड अटैकों से, भ्रूण-हत्या से और विभिन्न तरह की दूसरी क्रूरताओं से भी बेटियों को सरेआम मारा जा रहा है और ऐसे अपराधों को रोकने की कोई उचित व्यवस्था तक आप लागु नहीं कर पा रहे हैं. क्या इसके लिये आपकी कमजोर इच्छाशक्ति जिम्मेदार नहीं है ? क्या इसके लिये आपको शर्म महसूस नहीं होती ?
प्रतिदिन प्रायोजित ढंग से हिन्दू-मुस्लिम नफरत को बढ़ाते और चीखते-चिल्लाते इन पत्रकारों और एंकरों का अपराध कितना भयंकर है, ये तो आप जानते ही हैं मगर फिर भी उनके अपराधों के प्रति आप कोई कदम क्यों नहीं उठाते ? लोगों की आस्थाओं का नाजायज लाभ उठाते इन बाबाओं और धार्मिक ठेकेदारों के प्रति आपके मन में इतनी मृदुता क्यों है ? आप क्यों नहीं इन धर्म के नाम पर धंधा करने वाले बाबाओं पर सख्ती दिखाते ?
आपकी सख्ती सिर्फ मुस्लिमो के प्रति ही क्यों होती है ? तीन तलाक से लेकर एनआरसी और सीएए तक में सिर्फ मुस्लिमों को ही क्यों दरकिनार किया जा रहा है ? आखिर क्या करे एक आम आदमी ? आज घरों से लेकर विश्वविद्यालयों तक हर आम व्यक्ति के मन में खौफ भरा हुआ है कि पता नहीं कब क्या हो जाये. आप देश को आश्वासन क्यों नहीं देते कि उन्हें डरने की जरूरत नहीं है ! जिसे सिर्फ सोचकर ही मेरे रोंगटे खड़े हुए जा रहे हैं, उससे आपको सचमुच कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्या ?
बेउम्मीद होकर जीना बुरा नहीं होता, मगर उस बेउम्मीदी से भी खतरनाक होता है उसे स्वीकार करते हुए जीना. अवसाद से भरे हुए हम आम लोग बिना किसी पागलपन के कैसे जीते हैं ये सिर्फ हम जानते हैं. आज छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में जो निराशा है, उसमें आपकी राजनीति की सबसे ज्यादा अहम् भूमिका है क्योंकि आपके जिस वाक्-चातुर्य के पीछे लोग अपना व्यक्तित्व लुटाकर भीड़ में तब्दील हो जाते हैं, क्या आप बतायेंगे कि (उनके वोट बैंक बन जाने) आपके उस वाक्-चातुर्य में अब कितनी मधुरता बची है ?
सेना के जवानों की शहीदी के शोक को भी दरकिनार कर आपने चुनावी रैलियों के अपने भाषणों में ये दिखा ही दिया है कि एक नेता चाहे तो कितना नीचे गिर सकता है. आपको तो शायद याद ही नहीं होगा (यूं भी हर चुनावी सभा में बोलते वक्त आपको याद ही कब रहता है कि आप दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक राष्ट्र के प्रधानमन्त्री हैं). कभी-कभी तो मुझे यह संशय भी होता है कि प्रधानमन्त्री होना क्या महज एक पद पर होना है ?
व्यवहारिक रूप से आप भारत के दूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं, मगर जब आप चुनाव जीतने के लिये अपने विपक्षियों के प्रति ओछी भाषा का प्रयोग करते हैं तो बहुत दुःख होता है. क्या अपनी पार्टी के स्वार्थों के लिये या चुनाव जीतने के लिये इस पद की गरिमा को दरकिनार किया जाना चाहिये ?
आप भले ही खुश हो जाते होंगे उन दो कोड़ी के भक्तों की चापलूसी से या झूम जाते होंगे. उन दो टके के न्यूज एंकरों के लहजांे से अथवा भले ही आपका सीना हर बार और चैड़ा हो जाता होगा, ऊंची आवाज में विपक्षियों और विरोधियों को गरियाकर. मगर आप भूल जाते हैं कि हर बार आपकी भाषा में व्यंग्य का स्थान अक्सर गालियां ले लेती है. और जिस तहजीब और संस्कार का उपदेश आप दुसरों को देते हैं उस पर स्वयं अमल नहीं करते ! क्या ‘झूठ को प्रभावी तरीके से बोलना ही राजनीति’ है !
भले ही आप आरएसएस के लिये ‘रमी’ की वो दुग्गी है जो जोकर की तरह काम आती है और जिसे बाजी में कहीं भी फिट करके बाजी अपने हक में की जा सकती है, लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि जब दूसरा पत्ता खेलने में खेल फंसता है तो सबसे पहले कुर्बानी उस दुग्गी की ही होती है ताकि सामने वाला पत्तों से फायदा न उठा पाये (याद कीजिये एल. के. आडवाणी को जो आपकी ही तरह पहले संघ के लिये वोटों का सांप्रदायिकरण करते थे और अटल बिहारी बाजपेयी को जो कभी आपकी ही तरह भाषणों में कविताओं के माध्यम से गर्जना किया करते थे), लेकिन उनका अंत भी ध्यान में रखियेगा. और आपके साथ भी यही होना है. और जिस दिन ऐसा होगा तब न ये भक्त आपके काम आयेंगे और न ही ये चीख-चीखकर बोलने वाले न्यूज एंकर. राजनीतिक बाजार से आपकी डिमांड को खत्म करने का कार्य प्रसार पर है
क्योंकि संघ को अब मोदी की जरूरत नहीं है इसलिये वो आपकी कुर्बानी देगी ताकि वो खेल जीत सके (संघ को अब आपसे भी ज्यादा कट्टर छवि का आदमी चाहिये, जिसे वो लॉन्च कर चूका है इसलिये आपकी कुर्बानी तो निश्चित ही होनी है). मुझे ये देखने की प्रबल उत्कंठा रहेगी कि संघ कुर्बानी के बाद आपको सावरकर बनाती है या एल. के. आडवाणी !
आप सोच लीजिये अच्छे से क्योंकि आप इस वक्त शहंशाह हैं, सरकार हैं, मालिक हैं, मगर जिस दिन बाजार में आपकी डिमांड नहीं रहेगी तब ?
यह सब जो मैंने आपको उपरोक्त में लिखा है, हो सकता है यह आपको ठीक नहीं लगे किन्तु ये सब मैंने बहुत ही विवश होकर लिखा है. आप इसे समझ कर इस पर मेरे नजरिये से चिंतन कर लें. आशा है आप इसे मेरे नजरिये को समझेंगे. लिखना तो और भी बहुत कुछ है क्योंकि बहुत सारी बातें अभी शेष है. मगर पत्र कुछ लम्बा हो गया है और आपका समय कीमती है. अतः बाकी बातें फिर कभी. अभी तो विराम लेता हूं !
आपका शुभचिंतक (सही मायनों में असली हितचिंतक विरोधी ही होते हैं, चापलूस और भक्त नहीं).
एक आम भारतीय नागरिक
पं. किशन गोलछा (जैन)
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