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पुलिस अधीक्षक क़ी एक शिकायत मात्र पर जज को किया गया बर्खास्त

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सुकमा के जज प्रभाकर ग्वाल को बर्खास्त कर दिया गया है. उन्हें क्यों बर्खास्त किया गया ? क्योंकि सुकमा के जज साहब इतने ईमानदार हैं कि वे पूरी जिन्दगी साइकिल से कोर्ट आते-जाते थे. जज साहब जानते थे कि सरकार आदिवासियों की ज़मीन पर कब्जा करना चाहती है. जज साहब आदिवासियों का दर्द समझते थे. जज साहब को पता था कि इन ज़मीनों को विदेशी कंपनियों को दिया जायेगा. पुलिस इसके लिये कभी पचास तो कभी सौ निर्दोष आदिवासियों को पकड़ कर जज साहब के सामने लाती थी. पुलिस जज साहब से कहती थी कि ये आदिवासी नक्सली हैं इन्हें जेल भेज दीजिये. जज साहब मामले की पूरी जानकारी मांगते थे. जज साहब को पता चलता था कि ये आदिवासी तो बाज़ार जा रहे थे. जज साहब पुलिस को इस तरह की बदमाशी करने के लिये डांटते थे. इस तरह जज साहब सरकार की आंख का कांटा बन गये. भाजपा सरकार का मुखिया रमन सिंह कंपनियों से इतना पैसा ले चुका है कि उन्हें स्विस बैंक और पनामा में रख रहा है. निर्दोष आदिवासियों को जेलों में डालने और मार डालने पर पुलिस को नगद इनाम और तरक्की दी जाती है लेकिन यह ईमानदार दलित जज पूरा खेल बिगाड़ रहा था, तो सरकार ने सुकमा पुलिस अधीक्षक से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट को चिट्ठी लिखवाई कि जज साहब पुलिस को डांटते हैं. हाई कोर्ट ने सुकमा के इस ईमानदार जज साहब से उनका पक्ष भी नहीं पूछा और उन्हें फटाफट बर्खास्त कर दिया. छतीसगढ़ के बारे में कहा जाता है कि क्या पूरे राज्य में एक भी ईमानदार अधिकारी नहीं है ? छत्तीसगढ़ में भी ज़रूर हैं ईमानदार अधिकारी, ईमानदार जज और ईमानदार पुलिस कर्मी लेकिन इनमें से अगर कोई आदिवासियों का साथ देने की जुर्रत करता तो उसे उठा कर बाहर फेंक दिया जाता है जैसा कि इस मामले में किया गया है जज साहब को ही बर्खास्त करके.

छतीसगढ़ नयी गुलामी की प्रयोगशाला है. वहां सफल होने के बाद इस गुलामी को पूरे भारत में लागू किया जायेगा. छत्तीसगढ़ की तरह पूरे भारत में सरकार बन्दूक के दम पर चलाई जायेगी. जैसे छत्तीसगढ़ में हरेक आज़ाद सोच के इन्सान को सरकार नक्सलवादी या माओवादी कहती है, वैसे ही सरकार पूरे देश में आजाद सोच के इंसान को मुसलमानों का एजेंट तथा राष्ट्रद्रोही कह कर जेलों में ठूंंस देगी. विकास की लालच में अन्धे हो गये लोगों को आज आदिवासी का मारा जाना कोई समस्या नहीं लगता ?
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट को जरुरत है कि इस मामले में हस्तक्षेप कर न केवल सुकमा के बेहद ईमानदार दलित जज माननीय प्रभाकर ग्वाल को सम्मानपूर्वक बहाल करे बल्कि आदिवासियों पर आये दिन होनेवाले जुल्म को भी बंद किए जाए.

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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One Comment

  1. […] ही चरितार्थ होगी. शेखर सूबेदार. See also: पुलिस अधीक्षक क़ी एक शिकायत मात्र पर जज… सुकमा एन्काउंटर का माओवादियों […]

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