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पागल मोदी का पुष्पवर्षा और मजदूरों से वसूलता किराया

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असफल शासक समस्याओं से निपटने के वजाय नौटंकी ज्यादा करता है. दुनिया भर की सरकारें कोरोना वायरस से निपटने के लिए साजो समान और दवाइयां, जांच जैसे मोर्चे पर काम कर रही है तो वहीं भारत का नमूना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पागलपन का हद पार कर चुका है. इसके पास कोरोना क्या देश के सामने मौजूद किसी भी समस्या से निपटने का कोई विजन नहीं है.

स्वास्थ्यकर्मियों के द्वारा पीपीई किट वगैरह मांगने पर सरकार उसे जान से मारने या जेल भेजने की धमकी दे रही है, उसे नौकरी से निकाल रही है, दिल्ली के एक डॉक्टर को तो भाजपाई एमसीडी ने नौकरी से ही निकाल दिया है. आज जब ऐसे ही बदहाल स्वास्थ्यकर्मियों पर जब हजारों करोड़ रुपया खर्च कर पुष्पवर्षा की नौटंकी की जा रही है तब मोदी सरकार की विकृत मानसिकता पर सवाल उठाना लाजिमी हो गया है.

ईलु तेजान सोशल मीडिया पर लिखते हैं –

डॉक्टर- सर वो PPE किट्स चाहिए थी…

मोदी- जंगें हथियारों से नही, हौसले से जीती जाती है. PPE किट्स का आचार डालोगे तुम..? आओ तुम्हारा हौसला बढाऊंं. बोलो क्या लोगे.. ताली, थाली… या कुछ और..? आतिशबाजी करवा दूंं आसमान में बोलो..

डॉक्टर- अरे नही सर इसकी कोई जरूरत नही. अच्छा नही लगता ऐसे हालातों में ये. लोग मर रहे हैं, वेन्टीलेटर्स की भारी कमी है. वो भी मंगवा देते तो…

मोदी- बौरा गए हो क्या डॉक्टर..? एक बार में समझ नही आता तुम्हे..? कमी वेन्टीलेटर की नहीं तुम्हारे हौसले की है. बिना हौसले के काम करोगे तो ऐसे ही लोगों को मारते रहोगे. चलो तुम्हारे लिए हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश करवा देता हूंं. सब ठीक हो जाएगा.

वहीं दूसरी तरफ लाखों मजदूर देश भर में तिल तिल कर मर रहे हैं. भारी विरोध के बाद जब मोदी सरकार उन्हें घर वापस लाने के लिए तैयार हुई है तब उसने उस बदहाल मजदूरों से भी किराया वसूली शुरु कर दी, इसके बावजूद की सनकी मोदी सरकार ने लाखों करोड़ रुपया देश के लोगों से चंदा मांगकर अथवा नौकरी कर रहे लोगों के सैलरी से काट कर अपने गुप्त खाते में जमा कर लिया है. माना जा रहा है कि इस जमा लाखों करोड़ रुपये से भगोडे उद्योगपतियों और अंबानी अदानी का खजाना भरा जायेगा.

मैग्सेसे अवार्ड प्राप्त पत्रकार रविश कुमार की एक रिपोर्ट.

पागल मोदी का पुष्पवर्षा और मजदूरों से वसूलता किराया

पूर्ण विजय तो दूर, जीत आधी भी नहीं हुई और आसमान से कराई जा रही है पुष्प वर्षा. कोविड-19 के कारण पिछले 24 घंटे में 83 लोगों की मौत हुई है..इससे पहले 24 घंटे में इतनी मौतें नहीं हुईं. संक्रमण से मरने वाले मरीज़ों की संख्या 1300 से अधिक हो चुकी है. क्या यह हर्ष और उल्लास का समय है कि हम आसमान से पुष्प वर्षा करें और वो भी सेना को आगे करके ताकि सेना के नाम पर सारे सवाल देशद्रोही बताए जाने लगें ?

तालाबंदी के दौरान हमें ऐसा क्या हासिल कर लिया जिसके लिए हम पुष्प वर्षा कर रहे हैं ? संक्रमित मरीज़ों की संख्या धीमी गति से बढ़ रही है लेकिन बढ़ तो रही है लेकिन क्या वाकई गति इतनी धीमी है कि हम पुष्प वर्षा करने लग जाएं ?

3 मई की सुबह स्वास्थ्य मंत्रालय की बुलेटिन के अनुसार संक्रमित मरीज़ों की संख्या 39,980 हो चुकी थी. 24 घंटे में 2644 मामले सामने आए हैं. ज़ाहिर है शाम तो यह संख्या 40,000 के पार भी कर जाएगी. अगर दस दिनों में डबल होने का औसत ही देखें तो 13 मई तक हम 80,000 के आस-पास होंगे. क्या इसे कामयाबी कहेंगे ?

हर बार डाक्टर और हेल्थ स्टाफ के नाम पर यह सब किया जा रहा है लेकिन अभी तक हेल्थ स्टाफ को सारी सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गईं हैं. अलग से नहीं बताया जाता है कि देश भर में कितने हेल्थ स्टाफ संक्रमित हैं ? जिस अस्पताल के ऊपर फूलों की वर्षा हो रही है, उसके भीतर बैठा डॉक्टर या नर्स क्या बिल्कुल इस सच्चाई को नहीं देख पाएंगे ?

आईटी सेल की ताकत पर हर प्रश्नों को किनारे लगा देने से प्रश्न मर नहीं जाते हैं. क्या यह प्रश्न नहीं है कि इस वक्त पुष्प वर्षा की ज़रूरत ही क्या थी ? वो भी जिस दिन 2644 मामले सामने आने की खबर आई हो, उस दिन हम पुष्पवर्षा कर रहे हैं. मुझे पता है आईटी सेल लगा कर प्रोपेगैंडा होगा कि सेना का विरोध कर रहा हूं लेकिन यह सेना का विरोध नहीं है. सेना कभी भी आधी-अधूरी लड़ाई के बीच पुष्पवर्षा नहीं करती है. वो सलामी देती है संपूर्ण विजय की प्राप्ति के बाद.

आप इस प्रश्न को अर्थव्यवस्था के संदर्भ में देखिए. छोटे दुकानदार से लेकर मध्यमवर्ग परेशान है. किसी का धंधा चौपट हो गया तो किसी की नौकरी चली गई. किसी की सैलरी कम हो गई. हर सरकारी कर्मचारी से नए बनाए गए पीएम केयर फंड में पैसा लिया गया. सांसदों की सैलरी काटी गई इसीलिए न कि कोविड-19 से लड़ने के लिए पैसा चाहिए तो फिर बीच लड़ाई में पुष्प वर्षा पर पैसे लुटाने का क्या मतलब है ?

सेना की मदद लेनी ही थी और जब ये जहाज़ उड़े ही थे तो इनसे कुछ मज़दूरों को उनके ज़िलों तक पहुंचाया जा सकता था लेकिन फूल वर्षाए गए ताकि न्यूज चैनलों के लिए हर रविवार को प्रोपेगैंडा की सामग्री मिल सके और सवाल उठाने वाले को सेना विरोधी बता कर डिबेट की दिशा मोड़ी जा सके और सरकार को जवाबदेही से बचाया जा सके लेकिन मोदी समर्थकों को भी सोचना चाहिए कि क्या वाकई इससे कुछ हासिल हुआ है ?

शुक्रवार के दिन सुबह से दिल्ली में चर्चा थी कि कोई बड़ी ख़बर होने वाली है. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ भारतीय सेना के तीनों प्रमुख के साथ प्रेस कांफ्रेंस करेंगे. जब प्रेस कांफ्रेंस हुई तो उसमें पुष्प वर्षा की योजना के बारे में जानकारी दी गई. क्या ये जानकारी एक ट्विट और एक राज्य मंत्री से नहीं दी जा सकती थीं ? क्या ये इतनी बड़ी ख़बर थी कि इसके लिए सेना के तीनों प्रमुखों के साथ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ प्रेस कांफ्रेंस करें ?

अगस्त, 2018 में मेरठ में कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा हुई थी. मेरठ ज़ोन के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार ने पुष्प वर्षा की थी. उस वक्त हिन्दुस्तान टाइम्स की एक ख़बर छपी है. यह ख़बर दूसरी जगहों पर भी है. यूपी सरकार ने कांवड़ियों के दो रूट पर पुष्प वर्षा के लिए 14 लाख रुपये से अधिक की राशि मंज़ूर की थी. इससे आप हिसाब लगा सकते हैं कि देश भर में पुष्प वर्षा पर आज सरकार ने कितना ख़र्च कर दिया ? अगर पैसे की कमी नहीं फिर पूछ लीजिएगा कि तब नौकरियां क्यों जा रही हैं ? सैलरी क्यों कट रही है ? और ईएमआई क्यों नहीं भर पा रहे हैं ?

(वहीं दूसरी ओर) लालू प्रसाद ने कोसी के बाढ़ पीड़ितों के लिए मुफ्त ट्रेनें चलाईं और पीयूष गोयल ने किराया लेकर घर पहुंचाया. 2008 में बिहार के कोसी में बाढ़ आई थी. उस समय रेल मंत्री लालू प्रसाद थे. उन्होंने कोसी के बाढ़ पीड़ितों के लिए छह ट्रेनें मुफ्त में चलवाई थीं. सहरसा-मधेपुरा, पूर्णिया-बमनखी, सहरसा-पटना के बीच चार ट्रेनें और समस्तीपुर से सहरसा के बीच दो ट्रेनें. बाढ़ ने सबको आर्थिक रूप से उजाड़ दिया था इसलिए लालू प्रसाद ने मुफ्त में ये ट्रेनें चलवाई थीं.

बिजनेस स्टैंडर्ड की ख़बर में यह जानकारी अंतिम पैराग्राफ है. आज की मोदी सरकार होती तो ख़बर लिखने वाला इसी बात से शुरू करता कि सरकार मुफ्त में लोगों को घर पहुंचाएगी. उस वक्त ज़माना दूसरा था तो पहले यह छपी है कि लालू प्रसाद ने टीवी के किसी शो से मिला एक करोड़ रुपया बाढ़ पीड़ितों के लिए दान कर दिया है.

1 मई को जब यह ख़बर आई कि गृह मंत्रालय ने मज़दूर दिवस के मौके पर श्रमिक स्पेशल चलाने का फ़ैसला हुआ है. यह ख़बर न तो बताई गई और न ही किसी ने जानने का प्रयास किया कि श्रमिक स्पेशल में मुफ्त यात्रा होगी या मज़दूरों से किराया लिया जाएगा ? न ही पत्रकारों ने गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन में किराये की लिखी हुई बात पर ज़ोर दिया.

गृह मंत्रालय ने जिस नोटिफिकेशन में एलान किया था कि श्रमिक स्पेशल चलेगी उसमें लिखा था कि रेलवे पैसा लेगी. रेलवे गाइडलाइन तय करेगी कि टिकटों की बिक्री कैसे होगी. रेलवे के प्रवक्ता ने संवाददाताओं को मैसेज किया था कि मज़दूरों का किराया राज्य सरकार देगी. रेलवे यात्रियों से कोई किराया नहीं लेगी क्योंकि उसके लिए काउंटर खोलना पड़ेगा.

लेकिन द हिन्दू की ख़बर बताती है कि रेल बोर्ड के सर्कुलर के अनुसार श्रमिक स्पेशल के मज़दूर यात्रियों से किराया और 50 रुपये अतिरिक्त भार लिए जाएंगे. स्लीपर क्लास का किराया लेने की बात कही गई है. इसके अलावा 30 रुपये सुपरफास्ट चार्ज और 20 रुपए अतिरिक्त, कुल 50 रुपये.

मनीष पानवाला की रिपोर्ट है कि सूरत से उड़ीसा के ब्रह्मपुरी स्टेशन के लिए श्रमिक स्पेशल चली है, उसके लिए जब उन्हें पता चला कि 710 रुपये किराया लगेगा तो मज़दूर रिश्तेदारों और दोस्तों से मदद मांगने लग गए. केरल से भी इसी तरह की ख़बर आई है.

आपने बसों को परमिट दिए जाने की ख़बर सुनी होगी. बहुत से मज़दूरों ने 4000 से 5000 रुपये देकर बस यात्रा की है. एक परिवार पर 15 से 20 हज़ार का अतिरिक्त बोझ पड़ा होगा.

आईटी सेल ही एकमात्र राजनीतिक जमात है जो जनमत बनाता है. आप सभी आईटी सेल के लोगों से गुज़ारिश करें कि आईटी सेल मज़दूरों के हित के लिए लड़ें या फिर लालू प्रसाद के खिलाफ ट्रेंड कराए कि उन्होंने बिहार के बाढ़ पीड़ितों के लिए मुफ्त में ट्रेन चला कर रेलवे का नुकसान कर दिया. पीयूष गोयल के पक्ष में ट्रेंड कराए कि वे आर्थिक रूप से टूट चुके मज़दूरों से किराया लेकर रेलवे का फायदा कराया है. गोयल की मानवता लालू प्रसाद की मानवता से महान है ! सरकार दयावान महान है. किराया लेकर ट्रेन चलाती है. ख़बरें ऐसे छपती हैं जैसे मुफ्त में कृपा बरसाई गई है.

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