गिरीश मालवीय
जबलपुर के भाजपा विधायक अजय विश्नोई ने ऑक्सीजन की खपत को लेकर सरकारी डाटा पर सवाल खड़े किए हैं. वे लिखते हैं ‘शिवराज सिंह जी, प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी है. कृपया ध्यान दें. अप्रैल के पहले सप्ताह में महाराष्ट्र में 50 हजार मरीज थे और ऑक्सीजन 457 टन खर्च हुई लेकिन इसी अवधि में मध्य प्रदेश में मात्र 5 हजार मरीजों ही पाये गए लेकिन उन पर 732 टन ऑक्सीजन क्यों ओर कैसे खर्च हुई ?
देश के हर हिस्से से ऑक्सीजन की कमी की खबरें आ रही है, ऐसे में आप जानकर आश्चर्य में पड़ जाएंगे मोदी सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 की तीन तिमाहियों में लगभग 9,294 मीट्रिक टन ऑक्सीजन एक्सपोर्ट कर दी. यह मैं नही कह रहा हूं यह मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट बता रही है जो कल सुभयन चक्रवर्ती ने लिखी हैं, इस लेख में कहा गया है कि ‘Official figures show that in just the first three quarters of 2020-21, 9294 MT of oxygen was exported from the country, more than double the 4502 MT exports in the previous year. The vast majority of Oxygen headed to neighboring nation Bangladesh’ (आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 2020-21 की पहली तीन तिमाहियों में, देश से 9294 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात किया गया था, जो पिछले वर्ष में 4502 मीट्रिक टन से अधिक दोहरे निर्यात था. ऑक्सीजन का बड़ा हिस्सा पड़ोसी देश बांग्लादेश की ओर जाता है.)
निर्यात की जाने वाली ऑक्सीजन लिक्विड फॉर्म में होती है. यह वही लिक्विड आक्सीजन है, जिसे लेकर देश भर के हाइवे पर इस वक्त टैंकर दौड़ रहे हैं, तब भी पूर्ति नही कर पा रहे. दिल्ली जैसे राज्य में आक्सीजन शार्टेज हैं. मध्यप्रदेश, बिहार सब जगहों पर हॉस्पिटल में ऑक्सीजन कम पड़ रही है.
आपको याद दिला दू कि 1 अप्रेल, 2020 से नया वित्तवर्ष चालू हुआ था और तब से ही कोरोना बीमारी देश में तांडव मचा रही है. सब जानते थे कि ऑक्सीजन हॉस्पिटल में कितनी जरूरी है और ऐसे में 9,294 मीट्रिक टन (एमटी) ऑक्सीजन को निर्यात होने दिया गया.
अब सबसे बड़ा जोक और पढ़ लीजिए. 4 दिन पहले की खबर है कि मोदी सरकार ने यह निर्णय लिया है कि अब विदेश से 50,000 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन आयात की जाए, इसके लिए निविदा जारी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई हैं. इस बीच सरकार ने लगातार दावा कर रही है कि देश में पर्याप्त ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता है. अगर आपके पास क्षमता है तो आप इम्पोर्ट क्यो कर रहे हैं. सीधी-सी बात है कि आपको यह तैयारी कर के रखनी चाहिए थी कि अगर बीमारी तेजी से फैली तो ऑक्सीजन की आपूर्ति आप बढ़ती हुई मांग के हिसाब से तुरन्त कर पाओ, लेकिन आपने वह नही किया.
मनी कंट्रोल की इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जो ऑक्सीजन भारत से निर्यात हुई है उसे लिंडे बांग्लादेश ने खरीदा है. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह लिंडे कंपनी ढाका और चटगांव जैसे बड़े शहरों में 90 प्रतिशत मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति करती है. अब बताइये, क्या गजब की बेवकूफी है. आपने अपने यहां प्रोड्यूस की गई लिक्विड ऑक्सीजन बांग्लादेश भिजवा दी, अब आप दूसरे देशों से कह रहे हो आप हमें ऑक्सीजन भेजो.
देश के गृहमंत्री कहते हैं कि राज्य ज्यादा ऑक्सीजन मांग रहे हैं. ऑक्सीजन में राजनीति की जा रही है. केबिनेट मिनिस्टर पीयूष गोयल कह रहे हैं कि राज्य सरकारें ऑक्सीजन की मांग पर काबू रखें. कोरोना पर नियंत्रण राज्य सरकार की जिम्मेदारी है. अंधभक्तो को आईटी सेल ने मेसेज फॉरवर्ड करने का बोल दिया है कि ‘योगी जी ने हफ्ते भर में 10 ऑक्सीजन प्लांट लगा दिए हैं. उनसे सप्लाई शुरू हो गयी है. उध्दव ठाकरे क्या कर रहा है ?’ हकीकत यह है कि प्लांट लगाने भर की सिर्फ घोषणा हुई है.
मतलब कमाल की बेवकूफियां चल रही है देश मे. अब आप ही बताइए कि ऐसे महामारी के माहौल में ऑक्सीजन के एक्सपोर्ट को रोकने का फैसला महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे लेंगे या देश के प्रधानमंत्री मोदीजी लेंगे. समझ नही आता कि भारत अचानक इतने जड़बुद्धि लोग कहा से आ गए जो खुद तो सही सवाल नही पूछते बल्कि दूसरे को सही सवाल पूछने पर गाली बकने को तैयार रहते हैं.
आज देश मे कोरोना के 3.15 लाख से ज्यादा केस आए हैं, यह एक दिन मे किसी भी देश मे आए केसेस का वर्ल्ड रिकॉर्ड है. कई राज्यों में हस्पतालों में ऑक्सीजन 2 से 4 घण्टे की भी नही बची है, ऐसे में देश का गृहमंत्री क्या कर रहा है ? देख लीजिए. दो दिन पहले किसी चैनल ने पूछा कि आप रैलियां क्यो कर रहे है ? आप दूसरी पार्टियों की तरह इसे कैंसल क्यो नही कर रहे ? तो अमित शाह का जवाब था चुनाव प्रचार करना हमारा संवेधानिक अधिकार है.
ठीक बात है. यह आपका संवेधानिक अधिकार है लेकिन देश का गृहमंत्री होने के कारण आपकी ड्यूटी पहले देश के प्रति है. मुझे तो यह समझ नहीं आ रहा कि यह बात किसी को कहने की जरूरत ही क्यो पड़नी चाहिए. अब यदि ऐसे संकट के समय आपकी प्राथमिकता किसी राज्य विशेष की कुछ विधानसभा सीटे जीतना है तो हमे आप की समझ पर अफ़सोस नही होता है. हमे उस 38 प्रतिशत जनता की समझ पर अफसोस होता है, जिन्होंने आपको इस गद्दी पर बिठाने के लायक समझा. देश की 38 प्रतिशत जनता ऐसा ही गृहमंत्री और प्रधानमंत्री डिज़र्व करती है, पर दु:ख की बात यह है कि बची हुई 62 प्रतिशत जनता को भी 38 प्रतिशत द्वारा किये गए घोर पाप की सजा भोगनी पड़ रही है.
PM केयर्स फंड से वेंटिलेटर खरीदी की असलियत
आज देश भर के अस्पतालों में सबसे अधिक वेंटिलेटर बेड की कमी है इसलिए यह जान लेना समीचीन है कि PM केयर फंड से जो वेंटिलेटर खरीदे गए थे, उनका क्या हुआ.PMO ने 13 मई, 2020 को 3100 करोड़ रुपए के खर्च की जानकारी दी थी. उसके अनुसार, 2 हजार करोड़ रुपए से 50 हजार मेड इन इंडिया वेंटिलेटर खरीदने की बात हुई. उस वक्त देश में सबसे ज्यादा वेंटिलेटर की कमी थी.
PM केयर फंड से ऐसी कम्पनियो को ठेका दिया गया जिन्होंने खराब माल बनाया उसके वेंटिलेटर किसी भी काम के नही थे. यह रिपोर्ट देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने दी लेकिन तब भी समय रहते न कोई कार्यवाही नही की गयी और न ही दूसरा इंतजाम किया गया, नतीजा आज हम भुगत रहे हैं. ऐसी कम्पनी को ठेका दिया गया जिसे कोई अनुभव ही नही था. ऐसे लोगो को PM केयरर्स फंड के पैसे पर वेंटिलेटर्स बनाने का कॉण्ट्रैक्ट दिया गया जो बीजेपी नेताओं के करीबी थे.
गुजरात की एक कम्पनी ज्योति सीएनसी को वेंटिलेटर बनाने का ठेका दिया गया जबकि आप नाम से ही समझ लीजिए कि यह क्या कम्पनी होगी. ज्योति CNC को 121 करोड़ में 5000 वेंटिलेटर बनाने का ठेका दिया गया था. इस फर्म की तरफ से बनाए गए धमण 1 वेंटिलेटर्स में कई कमियां थीं और इनकी आलोचना भी हुई थी. इसने जो वेंटिलेटर बनाए उसके वेंटिलेटर्स को अहमदाबाद सिविल अस्पताल ने ही नकार दिया. उन्होंने कहा कि इससे गंभीर मरीजों को कोई राहत नही दी जा सकती.
अगस्त, 2020 में एक RTI के जवाब में हेल्थ मिनिस्ट्री ने बताया कि आंध्र सरकार की कंपनी AMTZ और गुजरात की निजी कंपनी ज्योति CNC के बनाए वेंटिलेटर्स क्लिनिकल ट्रायल में फेल हो गए हैं. बाद में अखबारों में भी आया कि ज्योति CNC कंपनी के प्रमोटर भाजपा के नेताओं के करीबी हैं. कंपनी के प्रमोटर्स उसी उद्योगपति परिवार से जुड़े हैं, जिन्होंने साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनका नाम लिखा सूट तोहफे में दिया था. मई महीने में कुल मिलाकर 22.5 करोड़ रुपए की एडवांस पेमेंट मिली, जो पीएम केयर्स के पैसे से आवंटित किये गए.
सिर्फ यही नही PM केयर्स फंड से नोएडा की AgVa को 10,000 वेंटिलेटर बनाने का कॉण्ट्रैक्ट दिया गया. बाद में खबर आई कि इस कम्पनी के बनाए गए वेंटिलेटर लगातार दो क्लिनिकल ट्रायल में फेल हो गए हैं. सरकार की क्लिनिकल इवैल्युएशन कमिटी ने कहा था कि इन्हें हाई एंड वेंटिलेटर का विकल्प ना माना जाए. इस सस्ते वेंटिलेटर्स को लेकर कई शिकायतें हैं लेकिन उसके बावजूद उसे लिस्ट से हटाया नही गया और कम्पनी ने वेंटिलेटर बनाना जारी रखा.
हाल ही में AgVa के CEO दिवाकर वैश ने कहा था, ‘सरकार के ऑर्डर पर हमने 10 हजार वेंटिलेटर बना दिए हैं लेकिन एक साल बाद भी सरकार पांच हजार डिवाइस ही उठा पाई है, पांच हजार अब भी हमारे गोदाम में पड़े हैं.’ इसी तरह से बाकी जिन कम्पनियो ने वेंटिलेटर बनाए वो ऐसी ही गड़बड़ियों के कारण रखे रह गए और जो अस्पतालों तक पुहंचे वो किसी काम के नही निकले. राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री ने हाल ही में कहा था कि केंद्र सरकार की ओर से राज्य को 1000 वेंटिलेटर भेजे गए थे, लेकिन इन्होंने दो-ढाई घंटे बाद ही काम करना बंद कर दिया. इसी तरह छत्तीसगढ़ में 69 में से 58 वेंटिलेटर खराब होने की बात सामने आई है.
एक और बात है, वेंटिलेटर दरअसल अत्याधुनिक मशीन होती है. इन मशीनों के इंस्टालेशन की जिम्मेदारी वेंटिलेटर निर्माता की ही होती है. इन्हें चलाने के लिए अस्पताल के कर्मचारियों को ट्रेनिंग देने की भी आवश्यकता होती है, वेंटिलेटर कोई भी नहीं चला सकता. यह ट्रेनिंग दिलवाने की जिम्मेदारी भी वेंटिलेटर निर्माता कम्पनी की है क्योंकि उसने इन नए वेंटिलेटर में क्या तकनीक इस्तेमाल की है, वही सबसे बेहतर बता सकता है.
अब ऐसी कम्पनियो को ठेके देंगे तो वो लोग क्या इंस्टालेशन, ट्रेनिंग ओर आफ्टर सेल्स सर्विस की गारण्टी लेंगे आप खुद सोचिए.
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