यौन हिंसा व दमन के खिलाफ महिलाएं (डब्ल्यूएसएस) द्वारा गठित, महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली छः एक्टिविस्टों की, एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने 24 मार्च से 26 मार्च, 2019 तक चले अपने दौरे में पाया है कि उड़ीसा के नियमगिरि और लांजीगढ़ क्षेत्र में आदिवासी और दलित समुदायों के अधिकारों का हनन और राज्य का दमन लगातार जारी है. जांच दल ने इस दौरे के दौरान बहुत से ऐसे तथ्यों का पता लगाया जो अभी तक हमारी आपकी नजरों से छुपे हुए थे. पेश है जांच दल की रिपोर्ट जिसका हिंदी अनुवाद अंकुर जयसवाल ने किया है :
यौन हिंसा व दमन के खिलाफ महिलाएं (डब्ल्यूएसएस) द्वारा गठित, महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली छः एक्टिविस्टों की, एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने 24 मार्च से 26 मार्च, 2019 तक चले अपने दौरे में पाया है कि उड़ीसा के नियमगिरि और लांजीगढ़ क्षेत्र में आदिवासी और दलित समुदायों के अधिकारों का हनन और राज्य का दमन लगातार जारी है.
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने लाखपादर, डांगामाटी और पाटनपधार सहित नियमगिरि पहाड़ों के आस-पास के अन्य गांवों के लोगों के अलावा लांजीगढ़ क्षेत्र के गावों – केंदुबुरुदी, त्रिलोचनपुर, जगन्नाथपुर, रेंगोपल्ली और छतरपुर के लोगों से मुलाकात की. टीम ने गांव के लोगों के साथ-साथ क्षेत्र में काम करने वाले सरकारी अधिकारियों, सामजिक कार्यकर्ताओं और लोगों के मुद्दों से जुड़े वकीलों से विस्तृत विचार-विमर्श किया.
हाल ही में हुए नियमगिरि सुरक्षा समिति (एनएसएस) के नेताओं की हुई तत्कालीन गिरफ्तारियों और 18 मार्च को वेदांता के लांजीगढ़ रिफायनरी प्रोजेक्ट से प्रभावित गांव के लोगों द्वारा नौकरी और बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की मांग के लिए किए जा रहे प्रदर्शन पर हुई हिंसक कार्यवाही से दो लोगों की दुःखद मौत के बारे में छान-बीन करने के लिए डब्ल्यूएसएस द्वारा यह फैक्ट फाइंडिंग आयोजित की गई. इस फैक्ट फांडिंग का उद्देश्य यह भी देखना था कि ‘भूमि अधिग्रहण और खनन के मुद्दों पर ग्राम सभाओं का फैसला ही सर्वोच्च रखने’ के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले क्रियान्वयन की मुख्य रूप से नियमगिरि पहाड़ों के आस-पास के इलाकों में क्या स्थिति है और वहारहने वाली दलित – आदिवासी जनता की फैसलों में भागीदारी क्या है.
यौन हिंसा व दमन के खिलाफ महिलाएं (डब्ल्यूएसएस) की फैक्ट फाइंडिंग टीम के इस दौरे की विस्तृत रिपोर्ट जल्द ही आएगी, लेकिन तब तक निम्नलिखित को उनकी अंतरिम टिप्पणियों में माना जा सकता है :
सबसे प्रमुख बात यह निकल कर आती है कि राज्य, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और अन्य भूमि सम्बंधित कानूनों के क्रियान्वयन में अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ चुका है, साथ ही साथ जनता की असल मांगों – ग्राम सभाओं से परामर्श लेना, परियोजना से प्रभावित परिवारों में पक्की नौकरी की व्यवस्था करना, भूमि आधारित पुनर्वास करना, गुणवत्ता शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था करना और उद्योगों द्वारा हो रहे प्रदूषण के उन्मूलन की व्यवस्था करना आदि जैसे मुद्दों पर राज्य का कोई जवाब नहीं मिलता, इसके विपरीत वह दमन, उत्पीड़न, धमकी, हिंसा और निगरानी का सहारा लेकर क्षेत्र में तनाव बढ़ाने में मदद कर रहा है और देश की कुछ हाशिए पर पड़ी और शांतिप्रिय समुदायों के जीवन में असुरक्षा पैदा कर रहा है.
आदिवासियों की स्थिति इस तथ्य से और ख़राब हो जाती है कि वेदांता, जो खुद को एक जिम्मेदार कॉरपोरेट के रूप में देखता है, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, प्रदूषण-विरोधी कानूनों के अनुपालन आदि की व्यवस्था करने में पूरी तरह विफल रहा है और नियामक अधिकारियों सहित राज्य मशीनरी ने कंपनी को जवाबदेह बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है. इसके बजाय राज्य सरकार ने ओडिशा औद्योगिक सुरक्षा बल (ओआईएसएफ) के माध्यम से वेदांता के हाथों को और मजबूत किया है जो इस क्षेत्र में मौजूदा तनावों के केंद्र में रहा है.
त्रिलोचनपुर में स्थायी सीआरपीएफ कैम्प की स्थापना
राज्य सरकार ने त्रिलोचनपुर पंचायत के बेलगुडा गांव में ग्राम सभा की लिखित सहमति के बिना ही एक स्थायी सीआरपीएफ कैम्प को स्थापित करने के काम को आगे बढ़ा दिया है और उस जमीन पर पीढ़ियों से खेती करने वाले चार आदिवासी परिवारों को जबरदस्ती बेदखल कर दिया है. त्रिलोचनपुर पंचायत कार्यालय को सब-कलेक्टर, ब्लॉक डेवेलपमेंट ऑफिसर और सिविल सप्लाई ऑफिसर के कहने पर सीआरपीएफ ने अस्थायी रूप से कैम्पिंग के लिए कब्जे में ले लिया है जबकि ग्रामवासियों से जो उस जमीन के असली मालिक हैं, से पूछा तक नहीं गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि चार आदिवासी परिवारों के लिखित शिकायत के बावजूद राज्य सरकार ने उनको जबरन हटाने के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया है. निर्वाचित प्रतिनिधियों और नियमगिरि सुरक्षा समिति (एनएसएस) के कार्यकर्ताओं को पुलिस अधीक्षक कार्यालय बुला कर कहा गया कि सीआरपीएफ कैम्प के लगने का ‘विरोध’ बंद कर दें, प्रशासन इसकी सुनवाई नहीं करेगा इसलिए जरुरी है कि इस मुद्दे पर आगे से कोई भी आवाज उठाने से बचें.
केंदुबुरुडी और जगन्नाथपुर में भूमि अधिग्रहण
पुलिस का दबाव बना कर 2005-2006 में केंदुबुरुडी और जगन्नाथपुर गांवों से पहले से ही अधिग्रहित एक हजार एकड़ जमीन के बाद अब सरकार के पास 50 एकड़ भूमि और अधिग्रहित करने का प्रस्ताव है, जिस पर रेंगोपल्ली, कोटदुआर और बांधागुडा से विस्थापित परिवारों के लिए पुनर्वास कालोनी बनाने के साथ साथ स्थायी सीआरपीएफ कैम्प स्थापित किए जाने की योजना है. ग्रामवासी इस प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि पिछले भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में अभी तक उनको न तो ठीक से मुआवजा दिया गया है और न ही ठीक से पुनर्वास दिया गया है. इस पर तहसीलदार ने ग्रामवासियों से कहा है कि यह जमीन अब सरकार की है इसलिए अब उनका कोई भी दावा अप्रसांगिक है. ग्रामवासी इस नए भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं पर उन्हें भय है कि इसके बदले में उन्हें पुलिस और सुरक्षा बलों के दमन का सामना करना पड़ सकता है.
रेंगोपल्ली में लाल मिट्टी तालाब का निर्माण
रेंगोपल्ली में हम उन तमाम महिलाओं से मिले जो अपनी पैतृक जमीन को छोड़ कर जाना नहीं चाहतीं. उनको विस्थापन के कारणों के बारे में नहीं बताया गया है, साथ ही उनके भविष्य के बारे में भी उन्हें अंधेरे में रखा गया है.उन्होंने बताया कि उनके गांव के करीब ही वेदांता द्वारा बनाए जा रहे लाल मिट्टी तालाब से उड़ने वाली धूल से उन्हें आंख और नाक में जलन, त्वचा में संक्रमण, खाने और पानी का दूषित होना आदि जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का लगातार सामना करना पड़ता है. महिलाओं ने बताया कि 18 मार्च, 2019 को उनके गांव के पुरुष वेदांता के गेट पर अपनी दो बुनियादी जरूरतों में कंपनी से सहायता मांगने के लिए गए थे. उनको अपने बच्चों को डीएवी स्कूल में पढ़ाने के लिए अधिक फीस देनी पड़ती है. उनकी मांग थी कि बच्चों की शिक्षा मुफ्त की जाए और गांव से स्कूल आने-जाने के लिए स्कूल बस की व्यवस्था की जाए. महिलाओं ने यह भी बताया कि उन्हें वेदांता की तरफ से कोई भी स्वास्थ्य सेवा नहीं मिलती है. कंपनी के अस्पताल में जाने पर न तो कोई ढंग का डॉक्टर मिलता है और न ही जरुरत की दवाइयां.
18 मार्च को हुई हिंसक कार्यवाही में दानी पात्रा की मौत
विरोध – प्रतिरोध :
1. छतरपुर के ग्रामवासियों के अनुसार, 18 मार्च, 2019 का धरना प्रदर्शन रेंगापल्ली, बांधागुडा और कोटदुआर के ग्रामवासियों द्वारा आयोजित किया गया था, जो 6ः30 बजे सुबह शुरू हुआ और 9ः30 बजे वेदांता के अधिकारियों द्वारा आश्वासन दिए जाने के बाद समाप्त कर दिया गया था. उसी समय फैक्टी में काम करने वाले ठेका मजदूर जिनमें छतरपुर के भी मजदूर थे गेट पर खड़े हो कर अन्दर जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे. तभी ओआईएसएफ कर्मियों से भरी एक बस और एक गाड़ी वहां आयी और सारे सुरक्षाकर्मी ग्रामीणों और मजदूरों पर टूट पड़े और बेरहमी से लाठियों से पीटने लगे. इस अव्यवस्था में दानी पात्रा, जो लाठियों की चोट से चोटिल थे, मार से बचने के लिए एक तालाब की तरफ भागे. लेकिन ओआईएसएफ कर्मियों ने उन्हें तालाब से निकाल कर बुरी तरह पीटा, हाथ-पैर तोड़ने के बाद उनके गुप्तांगों पर भी प्रहार किया और फिर वापस तालाब में फेंक दिया, जो उनकी मौत का कारण बनी. हालांकि उनकी पत्नी, सयिन्द्री पात्रा ने बताया कि वह अभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने का इंतजार कर रही हैं.
2. 18 मार्च, 2019 को हुए दानी पात्रा की मौत के बाद वेदांता के एचआर मैनेजर, एच.के. भाटिया ने सयिन्द्री को लिखित आश्वासन दिया था कि उनको 25 लाख का मुआवजा मिलेगा. सयिन्द्री ने बताया कि उन्हें 25 मार्च, 2019 तक कोई भी मुआवजा नहीं प्राप्त हुआ है.
3. 18 मार्च, 2019 की घटना के बाद वेदांता के आतंक का खौफ कंपनी के ही फैक्ट्री मजदूरों पर इतना है कि पिछले दस दिनों से वह भयवश फैक्ट्री में दुबारा काम करने नहीं जा रहे हैं. उन्हें डर है कि पुलिस सीसीटीवी फुटेज का इस्तेमाल कर मौके पर मौजूद उन सभी लोगों पर फैक्ट्री में आगजनी करने और धरना करने का झूठा केस लगा देगी. वेदांता ने घटना में लाठी चार्ज से बुरी तरह घायल हुए मजदूरों के बचाव की जिम्मेदारी से भी अपना पल्ला झाड़ लिया है. ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें यह जानकारी नहीं कि किसने कंपनी के ऑफिस और प्रोपर्टी में आग लगायी, जिसकी वजह से ओआईएसएफ कर्मी सुजीत मिंज की दुर्भाग्यवश जान चली गई. टीम को इन बातों कि पुष्टि वकीलों और अन्य सूत्रों से मुलाकात से भी हुई.
4. छतरपुर के ग्रामीणों से हुई मुलाकात में हमें पता चला कि कंपनी में लम्बे समय से बड़े स्तर पर मजदूर अधिकारों का हनन हो रहा है. फैक्ट्री के आस पास के 10-15 गावों के मजदूर पिछले 18 सालों से ठेका मजदूरी के तहत काम कर रहे हैं. इस वजह से मजदूरों द्वारा धरना और बंद लगातार होते रहते हैं और वेदांता के इन कृत्यों के वजह से ग्रामीण भी प्रभावित होते हैं.
धमकियां, झूठी गिरफ्तारियां और कथित झूठे मुठभेड़ :
1. फैक्ट फाइंडिंग टीम ताड़ीजोला, गोराता, डोंगामती, कंदेल, लखपदर, निसंगुडा, अंबाधुनी, निंगुडा, निंगुंडी और पाटनपधार में कथित धमकी, कथित झूठी गिरफ्तारियों और कथित झूठे मुठभेड़ों के बारे में विस्तृत सबूत जुटाने में सक्षम रही. लगभग इन सभी गांवों में पुलिस और सीआरपीएफ द्वारा लोगों पर माओवादी समर्थक होने का आरोप लगाते हुए अपहरण, जंगलों में अवैध रूप से बंदी बनाए जाने और पूछ ताछ करने के उदाहरण मिले हैं.
2. कुनि सिकाका के मामले में, जिसे मीडिया द्वारा भी कवर किया गया था, उसे पुलिस द्वारा 2017 में आधी रात को गोरता में उनके मायके के घर से महिला पुलिस द्वारा उठाया गया और हिरासत में रखा गया और माओवादी के रूप में आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया गया था. जब उनका परिवार उनकी रिहाई की मांग करने गया, तो उन्हें कोरे कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया और उनकी तस्वीरें खींची गईं और उन्हें नक्सलियों के आत्मसमर्पण के रूप में मीडिया को जारी किया गया. आज तक, कुनि सिकाका, उनके पति जगली पुसिका और ससुर दादी पुसिका को पता नहीं है कि कागज की खाली शीट पर क्या लिखा गया जिसे उन्हें रिहाई के लिए एक शर्त के रूप में हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया था.
3. जिन जिन गांवों में टीम ने भ्रमण किया उन सभी में ऐसे मामले सामने आए हैं कि पुलिस और सीआरपीएफ ने जंगलों में रह रहे ग्रामीणों को गैरकानूनी रूप से हिरासत में लेते हुए डरा-धमकाकर माओवादी के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की, जबकि इन ग्रामीणों के पास कोई भी जानकारी नहीं थी. ऐसे भी मामले सामने आए जहां निर्दोष ग्रामीणों को माओवादी या माओवादी समर्थक बता कर उनपर मनमाने केस जड़ दिए गए और गिरफ्तार कर लिया गया. जो मनमाने केस उनपर डाले गए उनमें हत्या, बलात्कार, घरेलू हिंसा जैसे तमाम झूठे और बेतरतीब आरोप लगाए गए. इसके अलावा, झूठे केस में गिरफ्तार कई लोगों को यह तक नहीं बताया गया कि उन्हें किस आरोप में गिरफ्तार किया गया है. ज्यादातर ग्रामीण जिन्हें धमकी दी गई, गिरफ़्तार किया गया, हिरासत में लिया गया, अपहरण या हत्या का आरोप लगा वह सभी नियामगिरी सुरक्षा समिति के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं. ग्रामीणों का मानना है कि यह पुलिस द्वारा डराने की चाल दरअसल उनके विरोध के आवाज को बंद करने के लिए है.
4. इन सारे गांवों में जिन लोगों पर झूठे आरोप या केस दर्ज किए गए हैं उसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं होती इसकी जानकारी उन्हें तभी हो पाती है जब पुलिस उन्हें उठाने आती है और हिरासत में लेकर पूछताछ करती है. नियमगिरि के ग्रामीणों के लिए जंगल और गांवों के बीच के रास्ते अब असुरक्षित हो चुके हैं. जंगलों में सीआरपीएफ की मौजूदगी से मुख्य रूप से महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं.
5. गिरफ्तार किए गए और जेल भेजे गए लोगों ने कस्टोडियल टॉर्चर का सामना करने की भी गवाही दी है, जिसमें एक बार में 7 दिनों से अधिक बिजली के झटके और एकांत कारावास शामिल हैं. जिन तरीकों से गिरफ्तारी हुई है, उनमें अपहरण, आंखों पर पट्टी बांधना, यातना देना, उन्हें स्टेशन पर ले जाने से पहले जंगलों में बंदी बनाना, गिरफ्तारी के कारणों या उन पर लगाए गए आरोपों की जानकारी न देना शामिल हैं. जेल में वर्षों बिताने के बाद भी किसी भी व्यक्ति ने अपनी एफआईआर, चार्जशीट या किसी अन्य मामले के दस्तावेजों की एक प्रति भी नहीं देखी थी, जो उनसे संबंधित थे. जमानत से बाहर हुए लोगों को जमानत की शर्तों के बारे में सूचित नहीं किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप वे बाजार या जंगलों में जाते समय लगातार आसन्न गिरफ्तारी के भय में रहते हैं.
6. फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पाया कि इन गाँवों में मौजूद सरकारी परियोजनाओं ने डोंगरिया कोंध जनजाति की पहचान और एजेंसी को छीनने का प्रयास किया है. उदाहरण के लिए, डीकेडीए ने पिछले 30 वर्षों में लगातार युवा दिमागों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों और पहचान से दूर करने और नए उपभोक्तावादी और मुख्यधारा की जीवन शैली अपनाने के लिए प्रभावित किया है. नतीजतन, कुछ ग्रामीणों ने जानबूझकर अपने बच्चों को स्कूल न भेजने का रास्ता चुना है.
अंतरिम सिफारिशें :
अनुसूचित क्षेत्रों के संरक्षक होने के बतौर उड़ीसा के राज्यपाल को, त्रिलोचनपुर में सीआरपीएफ कैम्प के निर्माण के लिए 4 परिवारों के जबरन निष्कासन के संबंध में एनएसएस द्वारा उन्हें सौंपे गए ज्ञापन पर कार्रवाई करनी चाहिए. 2013 और 2016 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप नियमगिरी में वन अधिकार अधिनियम और पेसा कानून को अक्षरशः लागू करना. संबंधित ग्राम सभा की स्पष्ट और सूचित सहमति के बिना किसी भी सीआरपीएफ कैम्प के निर्माण या स्थापित करने की सभी योजनाओं को तुरंत रोका जाए. नियामगिरि के निर्दोष ग्रामीणों पर अवैध हिरासत, अपहरण, अवैध गिरफ्तारी और झूठे मुठभेड़ों का आरोप लगाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए. नियामगिरि सुरक्षा समिति के परामर्श से एक स्वतंत्र जांच स्थापित की जाए. नियामगिरि सुरक्षा समिति के परामर्श से राज्य समर्थित हिंसा से प्रभावित परिवारों और ग्रामीणों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए.
फैक्ट फाइडिंग टीम के सदस्यों के नाम –
1. ममता दास, सोशल रिसर्चर, नई दिल्ली
2. पूजा, वकील और लीगल अकेडमिक, पटना
3. शोभा आर, थियेटर एक्टिविस्ट और रिसर्चर, बैंगलोर
4. अरुंधती वी, कल्चरल एक्टिविस्ट और शिक्षिका, कोडइकनाल
5. मीरा संघमित्रा, एनवायरमेंटल रिसर्चर और एक्टिविस्ट, हैदराबाद
6. शरन्या, सोशल एक्टिविस्ट, कोरापुट
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