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नियमगिरी में ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं पर पुलिस के हमले

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नियमगिरी में ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं पर पुलिस के हमले
हाशिए पर पड़े सम्प्रदायों की जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़नेवाले सामाजिक कार्यकर्त्ताओं पर समूचे देश में पुलिस द्वारा हमले किये जा रहे हैं. हाल ही में नियमगिरी सुरक्षा समिति (एनएसएस) के एक महत्वूपर्ण सदस्य लिंगराज आजाद इस हमले के शिकार हुए हैं. पिछली 6 मार्च, 2019 को उन्हें उड़ीसा के लांजीगढ़ से गिरफ्तार किया गया है. मालूम हो कि कुख्यात कॉरपोरेट संस्था वेदांता द्वारा नियमगिरी की पहाडि़यों में बॉक्साइट के खनन की गैर-कानूनी कोशिशें निरंतर जारी हैं. उपरोक्त संगठन और खासकर लिंगराज आजाद पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से इस गैर-कानूनी खनन का लगातार विरोध करने से लेकर स्थानीय आदिवासी जनसमुदाय पर राज्य और कॉरपोेट संस्थाओं द्वारा किये जा रहे दमन-उत्पीड़न का विरोध करने के एकाधिक मामलों में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे हैं.

गत 2017 की अप्रैल से मौजूदा फासीवादी शासक वर्ग ने एनएसएस के साथ-साथ माओवादियों की सांठ-गांठ का आरोप लगाकर इस संगठन के साथ-साथ अन्य अधिकार-रक्षा संगठनों के सदस्यों पर भी कई बार पुलिस द्वारा हमले करवाये हैं. मसलन, 2018 की 23 अक्टूबर को एनएसएस के एक दूसरे महत्वपूर्ण सदस्य लाडा सिकाका को रायगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार किया. फिर भूमि अधिकार सुरक्षा समिति नामक एक संगठन के सदस्य ब्रिटिश को भी कालाहांड़ी में गैर-कानूनी रूप से गिरफ्तार किया गया. और अब वेदांता अल्युमिनियम प्लांट के बाहर विक्षोभ-प्रदर्शन आयोजित करने के अपराध में 2017 की अप्रैल के पुराने एक एफआईआर और उसके साथ हाल के त्रिलोचनपुर के पंचायत कार्यालय में सीआरपीएफ कैम्प बिठाने के खिलाफ प्रतिवाद कार्यक्रमों में भाग लेने के अपराध का आरोप लगानेवाले 2019 फरवरी के एक एफआईआर के आधार पर लिंगराज आजाद को गिरफ्तार किया गया.




उड़ीसा पुलिस की ओर से बताया गया है कि लिंगराज की यह गिरफ्तारी दरअसल ‘2019 के आम चुनावों’ से पहले ‘असामाजिक तत्वों’ ‘माओवादी समर्थकों’ और जो लोग ‘नियमगिरी इलाके में बॉक्साईट खनन के विरोध में जन-कार्यक्रमों का आयोजन कर जिले में फसाद करवा रहे हैं’ उन सबकी थोक के भाव में की गयी गिरफ्तारियों का ही एक अंग है. हालांकि इसमें संदेह नहीं कि ये सामाजिक कार्यकर्त्तागण वेदांता के लिए सचमुच ही एक समस्या बन गये हैं. पर पुलिस का यह बयान यही साबित किये दे रहा है कि शासक वर्ग और कॉरपोरेट्स – दोनों की समस्याएं एक ही है.

समूची दुनिया के विभिन्न देशों में वेदांता द्वारा पर्यावरण संबंधी नियम-कानूनों का और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने जैसे कुत्सित कर्मों की तालिका काफी लंबी है. भारत में पिछले साल तमिलनाडु के थुथुकुड़ी में अवस्थित वेदांता के स्टारलाईट ताम्बे की फैक्ट्री के सामने प्रतिवाद कर रहे निहत्थे जनसमुदाय पर गोली चलाने की घटना भी इस तालिका में जुड़ गयी है. इस घटना में 15 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. इसी वेदांता के खिलाफ उड़ीसा के नियमगिरी में स्थानीय डोंगरिया कोंध आदिवासी जनसमुदय गत दो दशकों से संघर्ष करते आ रहे हैं.




यहां वेदांता ने पर्यावरण संबंधी नियम-कानूनों के उल्लंघन से संबंधित तथ्यों को छुपाये रखकर 2003 में लांजीगढ़ में अल्यूमिनियम के रिफाइनरी प्लांट तथा साथ ही में थर्मल पावर प्लांट बनाने की अनुमति के लिए आवेदन दिया था. पर सुप्रीम कोर्ट के तत्वावधान में चले अनुसंधान के जरिए दो वर्षों के भीतर ही वेदांता के कुकृत्यों की सच्चाई सामने आ गयी. मालूम हुआ कि यह रिफाइनरी बनाने के पीछे असली उद्देश्य लांजीगढ़ के नियमगिरी के ये पहाड़ स्थानीय डोंगरिया कोंध आदिवासी जनसमुदाय के लिए सिर्फ पवित्र अरान्दम देवता ही नहीं हैं बल्कि इन जंगलों में रहनेवाली इस जनता का समूचा जीवन और उनकी जीविका ही इन पहाड़ों से जुड़कर चलती रहती है. अतः इन पहाड़ों में बॉक्साईट का खनन उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर तो चोट करेगा ही, साथ-ही-साथ यह वहां के पारिस्थिक तंत्र और पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव छोड़ेगा.

इन सारी बातों पर विचार करते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने एक लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद स्थानीय अनुसूचित जनजातियों और परम्परागत रूप से जंगलों में रहते आये दूसरे-दूसरे जनसमुदायों (ओटीएफडी) के अधिकारों की रक्षा के पक्ष में निर्णय दिया था. नतीजतन बॉक्साईट खनन के मसले पर निर्णय लेने के लिए उड़ीसा सरकार को स्थानीय 12 ग्राम पंचायतों में जनता के आम सभाओं का आयोजन करना पड़ा था. देखा गया था कि सभी के सभी गांवों में जनता खनन के खिलाफ है. अंततः नियमगिरी की पहाडि़यों में वेदांता के बॉक्साइट के खनन से संबंधित आवेदन को नामंजूर कर दिया गया.

इस कानूनी लड़ाई में लिंगराज आजाद, लाडा सिकाका सहित पूरी एनएसएस ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी. पर नयी सरकार के सत्ता में आते ही वेदांता ने पुनः अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी है. उसने सुप्रीम कोर्ट में ग्राम पंचायतों के पिछले निर्णय फिर से समीक्षा करने की मांग करते हुए अर्जी लगाई है. इसके साथ ही साथ ग्रामीणों मेंं आतंक का एक माहौल बनाने की कोशिशें भी शुरू हुई हैं ताकि वे लोग डर जाएं और अपनी जल-जंगल-जमीनें वेदांता के हाथों में सौंप दें.




इस नये कृत्य में मौजूदा शासक वर्ग की पुलिस वेदांता के लिए किराए के गुंडों की भूमिका निभा रही है. रात-बिरात तलाशी अभियान, छापामारियां चलाने, खनन विरोधी डोंगरिया कोंद महिलाओं और अन्य सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को हैरान-परेशान करने, झूठे आरापों में गिरफ्तारियां करने और जेल के अंदर तरह-तरह की यातनाएं देने व अपहरण आदि से लेकर सभी कुछ किया जा रहा है. कोई कसर छोड़ी नहीं जा रही है. इन तमाम ‘दंगा फसाद करनेवाले’ ‘असामाजिक तत्वों’ को ‘ठीक’ करने के साथ-साथ उनके माओवादियों के साथ सम्बन्धों के आरोप उनपर लगाये जा रहे हैं. साथ ही एक कानूनी हथियार के रूप में अनलॉफुल एक्टिविटिज प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) जैसे काले काूननों का इस्तेमाल किया जा रहा है.

प्रसंगवश जिक्र करना जरूरी है कि त्रिलोचनपुर में जिस सीआरपीएफ कैम्प को स्थापित कने की जो कोशिश की जा रही है, वह भी पीईएसए कानून और एफआरए कानून का उल्लंघन है. अतः यह समझना मुश्किल नहीं है कि स्थानीय जनता के विरोध के वाबजूद ठीक-ठीक किन लोगों के हित में और किन कारणों से यह कैम्प बिठाया जा रहा है.

अभी इस वक्त इस क्षेत्र के ग्रामीण बासिन्दे वेदांता के सुरक्षाकर्मियों और पुलिस के मिले-जुले हमलों के शिकार हैं. हाल ही में अपनी जमीनें गंवा बैठे शरणार्थी बने जनसमुदाय जब अपने लड़कों-लड़कियों की शिक्षा की मांग पर लांजीगढ़ रिफाइनरी प्लांट के सामने विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे, तभी पुलिस ने नृशंसतापूर्वक उनपर लाठी-चार्ज किया. खबर मिली है कि इस लाठी-चार्ज के दौरान एक ग्रामीण की मौत हो गयी और 30 से भी ज्यादा लोग घायल हुए. इसके अलावा बसंतपाड़ा गांव में भी पुलिस ने हमला किया है. इस प्रकार आम जनता पर राज्य व कॉरपोरेट के गठजोड़ द्वारा रोज-ब-रोज जो हमले किये जा रहे हैं, आइए, उसके खिलाफ हम सभी एक होकर आवाज उठाएं और एक एकताबद्ध प्रतिरोध निर्मित करें.




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