गिरीश मालवीय
आपकी नई हैल्थ ID गुलामी की तरफ बढ़ाया जा चुका पहला कदम है. दो दिन पहले मैंने लिखा था कि स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व की बात करने वाली हमारी पीढ़ी आखिरी है, अगली पीढ़ी के लिए हम सिर्फ गुलामी छोड़कर जाने वाले हैं.
क्या आप जानते हैं कि चीन में कई शहरों में नागरिकों को सार्वजनिक परिवहन और काम करने के लिए स्वास्थ्य की स्थिति का क्यूआर कोड अपने फोन में प्रदर्शित करना होता है और उसमें भी कलर कोडिंग है. यदि हरे रंग में क्यूआर कोड दिख रहा है, तभी चीनी नागरिकों को एक्सेस मिलेगा और वे सभी जगहों पर जा पाएंगे. यदि क्यूआर कोड का रंग लाल हो जाता है तो वे कहीं नहीं आ जा सकते.
आज देश में हर व्यक्ति की हैल्थ ID बनाई जा रही है और यह बात उसे पता तक नहीं है. वैक्सीन लगवाने के बाद वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर हेल्थ आईडी दिखती है. यानी साफ है कि इसे वैक्सीन लगाने के साथ ही जेनेरेट किया जा रहा है. दरअसल यह एक वैश्विक एजेंडा है जिसे ID2020 के नाम से जाना जाता रहा है.
कुछ सालों पहले तक लोग कहते थे कि यह कांस्पिरेसी थ्योरी है लेकिन आज हम इसे सच होता देख रहे हैं ID 2020 में ही पहली बार वैक्सीनेशन के जरिये वैक्सीन कैंडिडेट की डिजिटल ID बनाने का विचार दिया गया. इस संगठन के पीछे गेट्स फाउंडेशन, रॉकफ़ेलर फाउंडेशन और GAVI जैसी संस्थाओं का हाथ था.
यह वैश्विक एजेंडा है डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदनोम घेब्येयूस कहते हैं, ‘सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों की शक्ति का उपयोग करना आवश्यक है.’
भारत में भी सरकार दरअसल WHO के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन (NDHM) लॉन्च किया है और इसी के अंतर्गत सबकी यूनिक हैल्थ ID बनाई जा रही है.
कल प्रधानमंत्री मोदी ने इस विशेष पर एक बैठक आयोजित की और कहा कि NDHM प्लेटफॉर्म के फायदे तब नजर आएंगे जब लोग डॉक्टर के साथ टेलीकंसल्टेशन करेंगे, लेबोरेट्री टेस्टिंग की बुकिंग जैसी सर्विस का फायदा उठाएंगे. मेडिकल कंस्लटेशन के साथ टेस्ट रिपोर्ट या हेल्थ रिकॉर्ड शेयर करना और इन सर्विस के लिए पेमेंट करना काफी जरूरी होगा.
दरअसल आने वाली दुनिया इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) की है. उस दुनिया में जिस तरह का तकनीकी विकास होगा, उसका हम सही-सही अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं. लेकिन ऐसी दुनिया में आपके हमारे जैसे लोगों को कैसे नियंत्रण में रखा जाएगा, इस पर सालों से काम चल रहा है.
कल भास्कर में एक इंटरव्यू छपा है जो कैलिफोर्निया के चैन-जकरबर्ग बायोहब के को-फाउंडर जो डेरीजी का है. वे कहते हैं कि ‘पारदर्शिता के लिए पूरे देश में एक राष्ट्रीय इन्फॉर्मेशन सिस्टम जरूरी है, जिसका एक्सेस देश-विदेश में सबके लिए हो. आज दुनिया में कई प्री-प्रिंट सर्वर बन चुके हैं, जहां दुनियाभर से कोविड का वैज्ञानिक डेटा आता है, जो सबके लिए उपलब्ध है. अगर भारत का डेटा ऐसे सर्वर पर आएगा तो उसे भी रणनीतिक रूप से फायदा होगा.’
सीधी बात है एक बार यह डेटा बन जाएगा, सबको वैक्सीन लग जाएगी तो सुरक्षा का नाम लेकर, आने वाली महामारियों का भय दिखा कर इस डेटा का एक्सेस UN या WHO जैसे संगठन को सौंपा जा सकता है.
वैक्सीन पासपोर्ट कुछ ही महीने में सामने आने वाला है, जिसमें वैक्सीन ले चुके लोगों को डिजिटल क्यूआर कोड अपने फोन में दिखाना होगा इसलिए यह तो होना ही है.
कोरोना के दौर में लोगों के दिमाग में यह अच्छी तरह से ठूंस दिया गया है कि वैक्सीन नहीं लगवाने वाला आदमी न केवल दूसरे लोगों के लिए बल्कि पूरी कम्युनिटी के लिए एक खतरा है, जबकि वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के बाद भी लोग पॉजिटिव हो रहे हैं, स्प्रेडर बन रहे हैं लेकिन उस पर ध्यान नहीं है. पूरा ध्यान बस इस पर है कि जल्द से जल्द दुनिया का हर व्यक्ति कोई न कोई वैक्सीन जरूर लगवा ले.
अच्छा एक बार भविष्य के बारे में कल्पना कीजिए कि दिल्ली में रहने वाले सभी लोगों की हैल्थ ID बन चुकी है. अब मान लीजिए कि कोई संगठन/पार्टी सरकार की नीतियों के विरोध में एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित करती है और जंतर मंतर पर जुटने का आव्हान करती है. सरकार को अब सिर्फ एक बटन दबाना है और सरकार की नीतियों के विरोध की मानसिकता रखने वालों का क्यूआर कोड ग्रीन से रेड कर देना है. सरकार को पूरी दिल्ली को बंद करने की जरूरत नहीं है. उसे बस उन लोगों को आइडेंटिटीफाई करना है.
हम यह सब देख रहे हैं. कुछ लोग समझ भी रहे हैं लेकिन इसे रोक नहीं पा रहे हैं. इसलिए ही लिखा था कि अगली पीढ़ी के लिए हम सिर्फ गुलामी छोड़कर जा रहे हैं.
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