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नकली राष्ट्रवाद का बाजार

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नकली राष्ट्रवाद का बाजार

नकली राष्ट्रवाद का ऐसा बाजार चढ़ा है कि लोगों में अपने को राष्ट्रभक्त दिखाने की होड़ लग गई है. कोई माथे पर भगवा पट्टी, कलाई और गले में देवी का बंधन बांधकर, तो कोई जयश्रीराम, तो कोई जय बजरंगबली, कोई वंदेमातरम तो कोई भारत माता की जय का नारा लगाकर फटाफट राष्ट्रभक्त बन जा रहा है.

इससे ऊपर भी राष्ट्रभक्तों की एक और श्रेणी है, जो बात-बात में मुसलमानों को कटुआ, जेहादी, आतंकी, गद्दार और पाकिस्तानी एजेंट कहकर राष्ट्रवाद की सबसे ऊंची मंजिल पर पहुंच जाते हैं. इसके ऊपरी पायदान पर तो सिर्फ वे ही पहुंच सकते हैं, जो मुसलमानों को मौत के घाट उतार सकते हैं, मस्जिदों को ध्वस्त कर सकते हैं, मजारों, मदरसों और दरगाहों को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं, उनके घरों में आग लगा सकते हैं और दुकानों को तहस-नहस कर सकते हैं. ऐसे लोग परमब्रह्म धर्मरक्षक के दिल में वास करते हैं, उनसे सीधे संवाद कर सकते हैं, और जो जीते-जी स्वर्ग की प्राप्ति करने की उम्मीद कर सकते हैं.

पर, सबसे ऊपरी मंजिल पर हैं धर्मरक्षक और ध्वजधारी बाबाओं, साधुओं, महंतों, पुजारियों, अध्यात्मिक आश्रमों के संचालकों, मठाधीशों, धर्माचार्यों और शंकराचार्यों का वह समूह जो परमब्रह्म के समकक्ष है, और जिन्हें किसी भी महिला या बच्ची के साथ बलात्कार करने का धार्मिक परमिट मिला हुआ है. परमब्रह्म और उनका समीपस्थ लोग इन्हीं में से किसी को विधायक, किसी को सांसद, किसी को मंत्री, किसी को मुख्यमंत्री, किसी को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री, तो किसी सौभाग्यशाली को प्रधानमंत्री का पद भी प्राप्त हो जाता है.

लेकिन, अगर आप ऐसा न कर राष्ट्रभक्ति के सच्चे प्रतिनिधि बन सामान्य मेहनतकश जनता के कल्याण या उनके हितों के लिए सरकार से सवाल पूछने, उनकी जनविरोधी नीतियों, निर्णयों और कार्ययोजनाओं की आलोचना करने, विरोध करने, या उनके खिलाफ जनांदोलन करने की कोशिश करते हैं तो आप राष्ट्रभक्त नहीं, देशद्रोही घोषित कर दिए जाएंगे. और आपके लिए दो ही विकल्प बचते हैं कि या तो आप जेल में सड़ते रहिए, या किसी गुंडे या पुलिस की गोलियों से मरने के लिए तैयार रहिए.

राजसत्ता को परमब्रह्म मानते हुए उसके आगे नतमस्तक होइए. राज्यादेश का आंख मूंदकर पालन कीजिए. जुबान पर हमेशा के लिए ताला लगा लीजिए और बलात्कारियों की जय-जयकार करते रहिए, तब तो आप राष्ट्रभक्त कहलाएंगे, अन्यथा राष्ट्रद्रोही.

शोषितों, दलितों, पिछड़ों, अतिपिछड़ों, जनजातियों और अल्पसंख्यकों के कल्याण, विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य और उनकी खुशहाली के लिए यदि आप आवाज उठाते हैं, नारा लगाते हैं या फिर सरकार विरोधी नारे लगाते हुए सड़कों पर उतरते हैं, तो फिर आपको कोई भी नहीं बचा सकता है. आपको सीधे यमलोक में भेज दिया जाएगा.

देश बिकता है तो बिकता रहे. गरीबी, बेकारी, भूखमरी, महंगाई, बेरोजगारी, मंदी, बंदी, किसानों, मजदूरों और बेरोजगारों द्वारा आत्महत्या होती रहे तो होती रहे. सारे सरकारी उद्योगों और लोक उपक्रमों, कंपनियों, कल-कारखानों और राष्ट्र की प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों के हाथों कौड़ियों के मोल भले ही बेच दिया जाए, और आप आंख मूंदकर चुपचाप तमाशा देखते रहें, यही राष्ट्रभक्ति का तकाजा है, नहीं तो आपको राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया जाएगा, और इसका परिणाम तो आप जानते ही हैं.

इंसानियत, आजादी, संविधान, संवैधानिक संस्थाएं, लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाएं, लोकतांत्रिक मूल्यों, आदर्शों, सिद्धांतों और परंपराओं को भूल जाइए. क्यों फिजुल की बातों में पड़ रहे हैं ? क्या मिलेगा आपको इससे ? सारे संवैधानिक संस्थाओं और न्यायालयों को केंचुआ बन जाने दीजिए. सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, उच्च पदस्थ अधिकारियों, नौकरशाहों, पत्रकारों, मीडियाकर्मियों, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, डाक्टरों, इंजिनियरों और अन्य पेशेवरों को बिक जाने दीजिए. इसमें आपका क्या जाता है ?

आपको सिर्फ जयश्रीराम, वंदेमातरम, गाय माता की जय, बजरंगी की जय और भारतमाता की जय कहना है, गोबर और गोमूत्र की महिमा का बखान करना है. गंगा आरती करना है, गीता, पुराण, रामायण और महाभारत का गुणगान करना है और मंदिर में घंटा-घड़ियाल बजाना है, और आपका राष्ट्रभक्तों में स्वत: चुनाव हो जाएगा. और क्या चाहिए आपको ? अगर आपको यह स्वीकार नहीं है, तो फिर आपके लिए दो ही रास्ते बचते हैं– जेल या गोली. आप खुद चुन लीजिए कि आपको क्या चाहिए.

  • राम अयोध्या सिंह

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