भारतीय सिविल सेवा परीक्षा, विश्व की कठिनतम परीक्षाओं में से एक है. इसमें सफल होने वाले अभ्यर्थियों के लिए हार्वर्ड युनिवर्सिटी में प्रवेश पाना, वैसा ही है जैसे किसी बगीचे में सैर पर निकलना. – लान्त प्रिटचेट, प्रोफ़ेसर, हार्वर्ड युनिवेर्सिटी
भारतीय सिविल सेवा परीक्षा के बारे में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने कहा होगा, लेकिन सरकार अब संयुक्त सचिव, वरिष्ठ सिविल सेवक के पद पर निजी क्षेत्र में कार्यरत् मेघावी और उत्साहित अधेडों (न्यूनतम आयु 40 वर्ष) की भर्ती, बिना किसी परीक्षा के, सीधी करने जा रही है.
एक अरसे से जारी भारतीय सिविल सेवा परीक्षा व्यवस्था को कंडम हो गयी बता, उपयोगी बनाने के नाम पर गहन मंथन किया जा रहा है. समझाया जाता है, यह राष्ट्र निर्माण को गति दे पाने में विफल साबित हो रही है. देश में ऐसी चर्चाएंं जोरों पर चल रही है.
सरकार में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों का मानना है कि देश में ऐसे अनुभवी प्रतिभाओं की कमी नही है, जिनकी सीधी भर्ती करके राष्ट्र निर्माण कार्य को गति प्रदान की जा सकती है. जबकि सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से चयनित नए युवक को उस स्तर तक उठने में 20 वर्ष का समय लग जाता है. केंद्र सरकार द्वारा जारी विज्ञापन से सारे देश ने जाना कि अब संयुक्त सचिव के पद पर निजी क्षेत्र में कार्यरत् मेघावी और उत्साहित अधेडों (न्यूनतम आयु 40 वर्ष) की भर्ती बिना किसी परीक्षा के सीधी की जायेगी.
भारतीय प्रशासनिक, पुलिस और विदेश सेवाओं जैसी देश की शीर्ष 20 सेवाओं में यदि राष्ट्रवादी परिवारों के होनहार बच्चे कुछ नंबरों से पीछे रह जाने के कारण या परीक्षा देकर चयनित न हो पाने के कारण, राष्ट्रनिर्माण जैसे “प्रतिष्ठा और महत्त्व” वाले कार्य में अपना योगदान न दे पायें तो राष्ट्र निर्माण कैसे गति पकड़ेगा ? ये बहुत बड़ा प्रश्न राष्ट्र के सामने खड़ा है.
प्रश्न इसलिए खड़ा है क्योंकि (UPSC) एक संवैधानिक संस्था है, जो IAS, IFS, IPS जैसी 20 सेवाओं में जाने के इच्छुक युवाओं की भर्ती परीक्षा आयोजित करती है. इसका गठन संविधान के अनुच्छेद 315 से लेकर 323 में वर्णित प्रावधानों के अंतर्गत किया गया है. अनुच्छेद 320(1) कहता है कि “यह केंद्र और केन्द्रीय सेवा आयोग (UPSC) का कर्तव्य होगा कि वह केन्द्र और राज्यों की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षा आयोजित करे.” इस प्रकार सिविल सेवा परीक्षाओं का आयोजन करना UPSC में निहित है. भारतीय सिविल सेवा परीक्षा (CSE), का आयोजन पूरे भारत में, यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन (UPSC) करता है. यह परीक्षाएं प्रति वर्ष, प्रारम्भिक और मुख्य, दो चरणों में आयोजित होती हैं.
केन्द्रीय सेवा आयोग (UPSC) और उसके सदस्य संवैधानिक पदधारी होते हैं. संविधान के अनुच्छेद 316 से, जहांं उनके कार्यकाल के अवधि की सुरक्षा और उनकी सेवा शर्तों में किसी भी प्रकार का बदलाव न किये जा सकने के बारे में जानकारी मिलती है, वहीं अनुच्छेद 319, आयोग का सदस्य न रहने पर किसी अन्य सेवा में जाने और किसी भी प्रकार का पदधारण करने पर लगाई गयी रोक के बारे में जानकारी देता है. संविधान द्वारा प्रदत्त ये सुरक्षा उन्हें “निडर रहकर पक्षपात रहित” कार्य करने की शक्ति देती है.
इसके बरबख्श फाउंडेशन कोर्स कराने वाली लालबहादुर शास्त्री एकेडेमी के निदेशक प्रतिनियुक्ति पर तैनात, सरसरी तौर पर स्थान्तरित किये जा सकने वाले, वेतनभोगी सिविल सेवा के अधिकारी होते हैंं. एकेडेमी में विभिन्न संकायों के सदस्य या तो सिविल सेवा के अधिकारी होते हैं या शिक्षाविद. इन्हें न तो वो संवैधानिक सुरक्षाएं मिली होती है, जो आयोग के सदस्यों को मिलती है और न ही एकेडेमी की सेवा से कार्यमुक्त होने के बाद कहीं दूसरी जगह सेवायें देने पर कोई प्रतिबंध होता है. इसका सीधा-सीधा निष्कर्ष है कि उनमें राजनेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव को झेल पाने की शक्ति नहीं होती. वे अपने भविष्य की उन्नति के लिए उन सभी को संतुष्ट रखना चाहेंगे. एक और बात यहांं ध्यान देने योग्य है, “पैसे के लिए परीक्षा में प्राप्त अंकों में हेरफेर” का खेल, खेले जाने की सम्भावनाओं से इनकार नही किया जा सकता.
वर्तमान में, परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों को सेवा सम्वर्ग और कैडर (राज्य सम्वर्ग) का आबंटन, CSE के परिणामों में प्राप्त रैंक और सेवा के लिए उनके द्वारा चयनित वरीयताक्रम के आधार पर किया जाता है. जो अभ्यर्थी IAS, IPS, IFS और केन्द्रीय सेवा ग्रुप A के लिए सफल होते हैं, उन अभ्यर्थियों को लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय एकेडेमी, मसूरी में 15 दिन का फाउंडेशन कोर्स पूरा करने के लिए भेज दिया जाता है.
सरकार ने अपनी मंशाओं को अंजाम देने के लिए सेवाओं और राज्य सम्वर्ग का आबंटन, CSE परीक्षा के आधार पर किये जाने की इस स्थापित व्यवस्था में एक परिवर्तन करने की ठानी है. अब सेवा सम्वर्ग और राज्य सम्वर्ग का आबंटन फाउंडेशन कोर्से में प्राप्त अंकों को CSE में प्राप्त अंकों के योग के अनुसार बनी मेरिट के आधार पर करने का प्रस्ताव सरकार के समक्ष विचाराधीन है. नई प्रस्तावित चयन प्रक्रिया के अनुसार अब अभ्यर्थियों को सेवाओं और राज्य संवर्ग आबंटन की जानकारी के लिए, फाउंडेशन कोर्स की परीक्षा परिणाम आने तक इन्तजार करना होगा.
यहांं संक्षेप में यह जान लेना जरूरी है कि UPSC जहांं एक संवैधानिक संस्था है वहीं लालबहादुर एकेडेमी पूरी तरह सरकार के नियंत्रण वाली संस्था है. उसके अधिकारी सरकार के दबाव या तरक्की की अभिलाषा में परीक्षा परिणामों को सरकार की मंशा के अनुसार उलटफेर कर सकते है, ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है.
UPSC परीक्षा में प्राप्त मात्र कुछ नंबरों के आगे-पीछे होने के कारण, IAS सम्वर्ग में चयनित होने से वंचित रह जाते हैं. यही कारण होता है कि IAS सम्वर्ग में ही चयनित होने को दृढ़प्रतिज्ञ अभ्यर्थी, परीक्षा परिणाम आने के बाद लालबहादुर शास्त्री एकेडेमी में फ़ाउंडेशन कोर्सोंं के लिए नहीं जाते. वह अगली परीक्षा के लिए अच्छी तैयारी करने में जुट जाते हैं. अब जब प्रस्तावित संशोधन के अनुसार UPSC का परीक्षा परिणाम ही फाउंडेशन कोर्स की परीक्षा परिणाम के बाद घोषित किया जाएगा, तो वे अभ्यर्थी कैसे ये जान सकेंगें की UPSC परीक्षा के परिणामों के अनुसार उनका चयन किस सेवा सम्वर्ग और राज्य कैडर के लिए हुआ है ? यह जानने के लिए उन्हें अब फाउंडेशन कोर्स के परिणाम आने तक इन्तजार करना होगा. इससे जो क्षति उन्हें उठानी पड़ेगी वह अपूरणीय होगी, यानी उसकी भरपाई किसी तरह नहीं हो सकती. हालांकि सरकार ने इस दिशा में कोई निर्णय लिए जाने से इनकार किया है.
– विनय ओसवाल
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विशेषज्ञ
सम्पर्क नं. 7017339966
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