20वीं सदी में तुर्की जो की एक कट्टरपंथी इस्लामिक देश था, वहांं एक राष्ट्रपति हुए ‘मुस्तफा कमाल अतातुर्क’. उन्होंने 10 साल के अन्दर तुर्की को एक कट्टरपंथी इस्लामिक देश से एक आधुनिक पढा-लिखा प्रगतिशील देश बना दिया.
सबसे पहले उन्होंने एक अभियान चलाया और टर्की को उसकी अरबी जड़ों से काट के तुर्की आत्मसमान को जागृत किया. उन्होंने देश में अरबी भाषा पर प्रतिबन्ध लगा दिया. अरबी लिपि को त्याग कर लैटिन आधारित नयी लिपि तुर्की भाषा के लिए विकसित की.
उन्होंने देश के शिक्षा विदों से पूछा, ‘हम कितने दिनों में पूरे देश को नयी तुर्की लिपि सिखा देंगे ?’ ‘3 से 5 साल में ?’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘3 से 5 महीने में करो ये काम …’.
उन्होंने कुरआन शरीफ को नयी तुर्की लिपि में लिखवाया.
मस्जिदों से अरबी अजान बंद कर दी गयी.
अब अजान तुर्की भाषा में होती थी. अतातुर्क ने कहा, ‘हमें अरबी इस्लाम नहीं चाहिए, हमें तुर्की इस्लाम चाहिए. हमें अरबी भाषा में कुरआन रटने वाले मुसलमान नहीं चाहिए बल्कि तुर्की भाषा में कुरआन समझने वाले मुसलमान चाहिए.’
उन्होंने तुर्की को इस्लामिक राज्य से एक सेक्युलर राज्य बना दिया. उन्होंने इस्लामिक शरियत की शरई कोर्ट जो सदियों से चली आ रही थी, उन्हें बंद कर दिया और तुर्की का नया कानून बनाया जो इस्लामिक न हो के आधुनिक था. इसके बाद उन्हें मुस्लिम सिविल कोड को abolish कर Turkish सिविल कोड बनाया.
मौखिक तलाक गैर-कानूनी कर दिया. 4 शादियांं गैर-कानूनी कर दी. परिवार नियोजन अनिवार्य कर दी गई.
अतातुर्क ने पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था बदल दी. नयी तुर्की लिपि में पाठ्य पुस्तकें लिखी गयी. मदरसों और दीनी इस्लामिक शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया. पूरी तुर्की में आधुनिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया. नतीजा ये निकला कि सिर्फ 2 सालों में देश में साक्षरता 10% से बढ़ कर 70 % हो गयी.
सबसे बड़ा काम जो अतातुर्क ने किया वो देश के इस्लामिक पहनावे और रहन-सहन को बदल दिया. इस्लामिक दाढ़ी, कपड़े, पगड़ी प्रतिबंधित कर दी. पुरुषों को पगड़ी की जगह हैट पहनने की हिदायत दी गयी. महिलाओं के लिए हिजाब नकाब बुर्का प्रतिबंधित कर दिया. देखते-देखते महिलाएं घरों से बाहर आकर पढ़ने-लिखने लगी और काम करने लगी.
पर्दा फिर भी पूरी तरह ख़तम न हुआ था. इसके लिए अतातुर्क ने एक तरकीब निकाली. वेश्याओं के लिए बुर्का और पर्दा अनिवार्य कर दिया. इसका नतीजा ये निकला कि जो थोड़ी बहुत महिलाएं अभी भी परदे में रहती थी उन्होंने एक झटके में पर्दा छोड़ दिया. अतातुर्क ने रातों-रात देश की महिलाओं को इस्लामिक जड़ता और गुलामी से मुक्त कर दिया.
उन्होंने महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा दिया. 1935 के आम चुनावों में तुर्की में 18 महिला सांसद चुनी गयी थी. ये वो दौर था जब की अभी बहुत से यूरोपीय देशों में महिलाओं को मताधिकार तक न था.
मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने सिर्फ 10 साल में इस्लामिक ऑटोमन साम्राज्य के एक कट्टरपंथी देश को एक आधुनिक देश बना दिया था !
– चौधरी एम एम हयात के एफबी वाल से (सौजन्य संजीव त्यागी)
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