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मोदी की ताजपोशी के मायने

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मोदी की ताजपोशी के मायने

2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की ताजपोशी में एक चीज जो बुनियादी तौर पर अलग है, वह है 2014 के लोकसभा चुनाव भाजपा लड़ रही थी, परन्तु, 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी चुनाव लड़ा रहे थे. मोदी का मतलब है बिना किसी लज्जा के झूठ बोलना और अंबानी-अदानी जैसे कॉरपोरेट घरानों का सेवा करना, इतिहास-विज्ञान को झूठा साबित कर देश में रामराज्य जैसे अनर्थकारी समाजव्यवस्था को मंहिमामंडित कर उसे स्थापित करना.

रामराज्य का चेहरा – 1

2014 में भाजपा के सत्ता में आने का कारण एक उम्मीद थी, जो कांग्रेस की विफलताओं पर बनी थी. परन्तु 2019 के चुनाव में भाजपा के विफलताओं पर मोदी की जीत थी. यही कारण है कि 2019 का चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा गया था, नीचता और बेशर्मी की पराकाष्ठा के तौर पर.




बहरहाल मोदी की चुनावी जीत ने यह साबित कर दिया है कि इस देश की समस्या रोटी, रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा नहीं है. इस देश के लोगों को इससे कोई मतलब नहीं है. उसे तो बस वह पुरानी धरोहर चाहिए जिसे अंग्रेजों ने और बाद में स्वतंत्रता सेनानियों ने मिटाने का प्रयास किया था. मसलन, जातिवाद, छुआछूत, दास व्यवस्था, अशिक्षा वगैरह जिसका उल्लेख मनुस्मृति में किया गया है.

मोदी का सत्ता में आना इसी बात का द्ध्योतक है कि देश में भारतीय संविधान को विस्थापित कर ‘मनुस्मृति’ को स्थापित किया जाये और मनुस्मृति के अनुसार देश में एक बार फिर से ढह रही सामंतकालीन वर्णीय व्यवस्था को मजबूती प्रदान कर मौजूदा चुनावी प्रणाली को खत्म कर रामराज्य लाया जाये. इसके लिए प्रयास भी तेज हो चुके हैं. आये दिन दलितों, शुर्द्रोंं, अछूतों, औरतों और अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हो गये हैं. उन्हें भारतीय संविधान के अनुसार नहीं, मनुस्मृति के अनुसार चलने के लिए बाध्य किया जाने लगा है. कौन जाने, फिर चुनाव हो ही नहीं. संविधान ही बदल दिया जाये. पूरे 5 साल तो अभी शेष है हीं.

रामराज्य का चेहरा – 2

रामराज्य का चेहरा – 3

बहरहाल चुनाव जीतने के बाद मोदी के जीत की बिसात बिछाने वाली निजी कंपनियां अब जनता का खून चूसने की तैयारी में जुट गई हैै. डी. पी. सिंह के एक संकलन के अनुसार, 2019 के चुनाव से पहले मोदी सरकार ने चुनाव प्रचार के नाम पर दो कानून बनाएं.

पहला, इलेक्टोरल बांड जारी करने का कानून, निजी कंपनियों द्वारा राजनीतिक पार्टियों को पैसा देने में पारदर्शिता लाने के नाम पर बनाया गया. इसके तहत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इलेक्टोरल बांड जारी करेगा. इसमें पैसा देने वालों के नाम नहीं जारी किए जाएंगे. यह कैसी पारदर्शिता है ?

दूसरा, इनकम टैक्स कानून में प्रावधान कर दिया कि विदेशी कंपनी की कोई शाखा जो भारत में स्थित है, वह भी देश के पूंजीपतियों की तरह चंदा दे सकती है. पहले इस पर कुछ अंकुश था अब चोर दरवाजे खोल दिए गए.

एक रिपोर्ट के अनुसार एसबीआई द्वारा जारी बॉन्ड का 99 फ़ीसदी पैसा अकेले बीजेपी को मिला. चुनाव के लिए कितनी बड़ी रकम देशी-विदेशी कंपनियों के द्वारा भाजपा को दी गई है, इसका अंदाज इस बात से लगता है कि कुल जितनी धनराशि 2014 के चुनाव पर खर्च की गई थी, उतनी तो 2019 के चुनाव के चौथे चरण तक ही चुनाव आयोग पुलिस द्वारा जप्त की जा चुकी थी. भाजपा की यह गुप्त धन राशि चलती रही और विपक्षी दलों की रोक दी गई.




चुनाव के पूर्व मोदी के चुनावी अभियानों में कॉरपोरेट घरानों ने जिस बड़े पैमाने पर धनों का निवेश किया है अब सरकार बनने की संभावना के साथ ही ‘जनता से वसूली करने’ के स्वर तेज हो गया है.

नरेंद्र मोदी के पूर्व वित्त सलाहकार भार्गव जो अब कई कृषि कंपनियों का भी सलाहकार है, बयान जारी करता है कि ‘कृषि क्षेत्र में सुधार तेज करना चाहिए’ (अर्थात, कंपनियों को किसानों की जमीन और कृषि पर कब्जे की छूट देनी चाहिए). ‘साथ ही समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म होनी चाहिए’ मतलब फसलों की सरकारी खरीद की व्यवस्था बंद होनी चाहिए. (अमर उजाला, 21 मई, 2019).

पंजाब नेशनल बैंक द्वारा ओरिएंटल बैंक ऑफ इंडिया कॉमर्स तथा इलाहाबाद बैंक इसी प्रकार बैंक ऑफ बड़ौदा के विलय के साथ 900 से अधिक शाखाएं बंद करने का फैसला किया गया, यह बैंकों को निजी कंपनियों को सौंप देने की तैयारियां हैं. (हिंदुस्तान, 22 मई, 2019).




भारत के नीति आयोग का पूर्व उपाध्यक्ष जो अब अमेरिका में विदेशी कंपनियों की सेवा में है, वाशिंगटन से ही मोदी सरकार को संदेश भेज रहा है, ‘सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण आक्रामक तरीके से करना होगा. रोजाना एक उपक्रम का निजीकरण करने की तरफ बढ़ना होगा.’

‘केंद्रीय मंत्रालयों की संख्या घटाकर 30 करनी होगी. राजकोषीय मजबूती के लिए ठोस प्रतिबद्धता दिखानी होगी, इसका अर्थ सरकारी खर्च में कटौती करनी होगी. गरीब जनता को मिलने वाली सब्सिडी व अन्य सहायता में कतरब्योंत करनी होगी.’ (हिन्दुस्तान, 22 मई, 2019)

निजी कंपनियों की वित्तीय विश्लेषक फर्म गोल्डमैन सॉक्स के अधिकारी ने कहा, ‘नई सरकार को आर्थिक सुधारों में तेजी लानी पड़ेगी.’ ‘श्रम और भूमि सुधार नई सरकार के एजेंडे में सबसे ऊपर होने चाहिए.’ ‘कृषि जमीन की पारदर्शी नीलामी, जमीन के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण, बैंकिंग और कृषि क्षेत्र में सुधारों के कारगर कदम उठाने होंगे.’ (हिंदुस्तान, 22 मई, 2019)




‘उद्योग मंडल फिक्की ने आगामी बजट में कारपोरेट कर में कटौती की मांग तथा न्यूनतम वैकल्पिक कर (मेट) को खत्म करने की मांग की है.’

‘जुलाई में पेश होने वाले पूर्ण बजट से पहले फिक्की ने राजस्व सचिव अजय भूषण पांडे से चर्चा की. (हिंदुस्तान, 25 मई, 2019)

वाहन उद्योग द्वारा सरकार पर वाहनों की बिक्री बढ़ाने के उपाय करने का दबाव बढ़ाया जा रहा है. वाहन उद्योग के संगठन सियाम के अध्यक्ष राजन वडेरा ने कहा कि ‘नई सरकार को वाहन उद्योग पर ध्यान देना जरूरी है.’ (हिन्दुस्तान, 25 मई, 2019)

‘देशी-विदेशी कंपनियांं ने देश के श्रम कानूनों में बदलाव करने, बैंकों के डूबे कर्ज को रफा-दफा करने, बैंकों में निजी निवेश बढ़ाने के लिए दबाव बढ़ाया है. (द हिंदू, 24 मई, 2019)

‘नई सरकार को भूमि अधिग्रहण कानून में ढील देनी होगी.’ – फिक्की, (हिन्दुस्तान, 25 मई, 2019)




‘हम मोदी सरकार के साथ मिलकर काम करेंगे. भारत को आर्थिक सुधारों में और तेजी लानी होगी. – अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (अमर उजाला, 25 मई, 2019)

‘भारत द्वारा ईरान से सस्ता तेल खरीदना बंद.’ देश को इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी. अमेरिकी कंपनियों से महंगा तेल खरीदना होगा. जनता के लिए तेल के दाम बेतहाशा बढ़ेंगे. (अमर उजाला, 25 मई, 2019)

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, वित्तीय सिस्टम में 15000 करोड़ की बड़ी रकम डालने जा रही है. जून में ओपन मार्केट ऑपरेशन के जरिए सरकारी द्वारा यह रकम डाली जाएगी – आरबीआई (द हिंदू, 25 मई, 2019)

अभी तो मोदी ने शपथ भी नहीं ली है. कंपनियों द्वारा जनता की गर्दन रेत ने की तैयारी पूरी हो चुकी है.




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