कई पूछते हैं कि आप ही बताइए कि मोदी जी का विकल्प कौन है ? मैं कहता हूं भैया, मोदी जी का विकल्प मोदी जी ही हो सकते हैं. जो प्रधानमंत्री हर साल दो करोड़ रोजगार पैदा करने का वायदा करके सत्ता में आए और जो 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी पैदा करके बाई- बाई करके चला जाए और इसे छुपाने में अपना पूरा दम लगा दे, उसका विकल्प ही चाहिए, वह नहीं. वैसे विकल्प तो जवाहरलाल नेहरू के भी मिल गये थे, शास्त्री जी, ये तो महज मोदी है. इसके तो विकल्प ही विकल्प हैं ! जो रोजगार दफ्तरों को बंद करवा दे, जो नोटबंदी करके लोगों की रोजी-रोटी छीन ले, उसके बारे में यह सवाल ही क्यों कि उसका विकल्प कौन है ?
जिसकी सरकार मई तक की मेहमान है और जो अंतरिम बजट में 15 लाख टाइप झुनझुना थमाकर चला जाएगा, उसका विकल्प तो कोई चुन्नीलाल भी हो सकता है. जो इतना उथला हो कि अपने पुराने राजनीतिक आका तक को इतना फालतू समझता हो कि बेचारा बूढ़ा हाथ जोड़कर इसके सम्मान में खड़ा रहे और यह पहचानने से इनकार करे, जो उसकी तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखे, उसके विकल्पों की कोई कमी हो सकती है क्या ? जो इतना ’वीर’ हो कि प्रेस का सामना न कर सकता हो, जो अपने विरोधियों से मुंहजबानी नहीं, सीबीआई आदि एजेंसियों के जरिए, वह भी आखिर में आकर निबटता हो, जिसे अपने विरोधियों का हर जुर्म अब याद आ रहे हों, उसका विकल्प तो अंधेरे में भी मिल सकता है-बिना टार्च की रोशनी क. ऐसे ’महान’ मोदी जी का विकल्प भी जिन्हें नहीं नजर आ रहा है, उन्हें शत- शत नमन ही कर सकता हूं.
वैसे मोदी जी को शायद मालूम नहीं कि उनके विकल्प तो उनकी मेहरबानी से पार्टी में ही कई-कई पैदा हो चुके हैं, जो उन्हें आडवाणी बनाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं. उनके सबसे ’योग्य’ विकल्प तो आदित्यनाथ हैं. जितना सर्वनाश करने में मोदी जी को पूरे पांच साल लग गए, मौका मिले तो यह बंदा इतना ’फास्ट’ है कि चुटकी बजाते ही इतना सबकुछ करके दिखा सकता है. यूपी में खम ठोंककर यही तो यह कर रहा है. अमित शाह इस काम में ज्यादा से ज्यादा छह महीने लगाएंगे और मुकाबला आदित्यनाथ से हो तो वह भी मिनटों में शत-प्रतिशत रिजल्ट दे सकते हैं.
जेटली साहब को भी ’अयोग्य’ समझने की गलती नहीं करनी चाहिए. उनकी ’विशेषता’ यह है कि वह चिकने-चुपड़े हैं और फटाफट अंग्रेजी भी बोलते हैं, जो ये बेचारे इस जन्म में तो नहीं बोल सकते. सालभर में देश का सवा सत्यानाश करवाने की नागपुर की इच्छा हो तो वह सबसे उपयुक्त विकल्प हैं. वह अपनी त्वरित सेवाएं बीमार होने के बावजूद दे सकते हैं और इस हेतु स्वस्थ होकर दिखा सकते हैं. वह बड़ी बेचैन आत्मा के स्वामी हैं. विदेश में बिस्तर में पड़े -पड़े भी देश की बर्बादी के नये- नये उपाय ढूंढते रहते हैं. सुब्रमण्यम स्वामी भी कब से बेकार बैठे हैं और ’देशसेवा’ करने के लिए वह भी बेकल हैं, क्योंकि मोदी जी ने उन्हें अवसर नहीं दिया. वह जेटली जी से तो खैर कंपीट कर ही सकते हैं, अगर जरूरत पड़े तो वह आदित्यनाथ और अमित शाह को भी कड़ी टक्कर दे सकते हैं. और भी बहुत से मोदी जी के कंपीटिटर हैं, उनके अनेक विकल्प हैं- भाजपा में. वह आराम से अपना फकीरी झोला उठाकर अहमदाबाद या हिमालय प्रस्थान कर सकते हैं.
और यह मत समझिएगा कि मोदी जी के सिर्फ इतने ही विकल्प हैं. राष्ट्रीय स्तर पर व्यापम ही क्या राफेल का बाप भी करवाना हो तो शिवराज सिंह चौहान मौजूद हैं. रमन सिंह भी खाली हो चुके हैं. आदिवासियों को बर्बाद करने और उनसे सहानुभूति रखनेवालों को ठिकाने लगाने का उनका रिकार्ड भी मोदी जी से बुरा नहीं है. घोटाला वगैरह करना तो खैर इन सबके लिए हाथ का मैल है, जब कहो, तब करके दिखा दें. यहां तक कि विपक्ष में रहकर कर दें !
और अगर नागपुर का इरादा इस बार कनिष्ठों को मौका देने का हो तो स्मृति ईरानी भी बुरी नहींं हैं और निर्मला सीतारमन भी कम अच्छी नहीं हैं. और हां, गिरिराज सिंह का नाम तो भूलने का पाप होने ही जा रहा था कि मैं बच गया. मुझे आशा ही नहीं, पूरा विश्वास है कि भाजपा में भाषण देने और झूठ बोलने में सक्षम संबित पात्रा टाइप असंख्य युवा प्रतिभाएं हैं इसलिए विकल्प तो भाजपा में ही कम नहीं हैं और किसी भाजपाई सज्जन या दुर्जन या अभिजन का नाम गलती से यहां छूट गया हो तो वह क्षमा कर दे. सुषमा जी और उमा भारती जी आदि भाजपा की महिला शक्ति बुरा न मानें. वे या कोई और चाहें तो सर्वनाशियों की सूची में अपना नाम स्वयं दर्ज कर सकते हैं. उन्हें इसकी पूरी छूट है और यह बारह महीने चलनेवाली सेल टाइप नकली नहीं, असली छूट है.
वैसे अपने विकल्प के रूप में मोदी जी भी खास बुरे नहीं हैं बल्कि अच्छे हैं. झूठ बोलने के मामले में डोनाल्ड ट्रंप फिलहाल विश्वगुरु भले नजर आ रहे हों मगर शर्तिया तौर पर वह हैं नहीं. हमारी कमी यह है कि अमेरिकी पत्रकार आदि, ट्रंप के झूठों का रिकॉर्ड रखते हैं, हमारे लिए मोदी जी का झूठ पर्यावरण प्रदूषण की तरह ही इतना नेचुरल है कि खयाल ही नहीं आता कि इसका रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए. रिकॉर्ड रखते तो ट्रंप जी के बुरा मानने का खतरा भी था कि मोदी जी से उन्हें कमतर दिखाने का षड़यंत्र भारतवासी कर रहे हैं. इससे द्विपक्षीय संबंधों पर बुरा असर पड़ सकता था. इस संकट से हमने देश को बचाया है. इसके लिए जोरदार तालियां तो बनती ही हैं. बनती हैं कि नहीं बनती हैं ? बनती हैं.
मोदी जी इसलिए भी अपना विकल्प स्वयं हैं कि यह बंदा है तो अद्भुत. नोटबंदी जैसे अपने सबसे भयानक कदम की तारीफ भी राष्ट्रपति के मुंह में घुसेड़ सकता है. भारत में सर्जिकल स्ट्राइक का तो जैसे यह पुरोधा ही बना हुआ है. खुदा के (सारी भगवान के) इस बंदे को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि चले थे पाकिस्तान को सबक सिखाने और नतीजा यह है कि हम अपने ज्यादा से ज्यादा सैनिकों और साधारण लोगों की जानें गंवाकर खुद ही सबक सीख रहे हैं.
56 इंच के इस सीने में अपनों के मरने का दर्द नहीं उठता, दूसरों को मारने की खुशी से सीना फूला- फूला रहता है. नहीं फूले तो पंप से हवा भरकर उसे यह फुला लेता है. हजारों करोड़ का घोटाला करवाकर भी बंदे के चेहरे पर एक शिकन तक नहीं दीखती और खुद को चौकीदार कहने से जरा नहीं शरमाता. अब बताइए लोग हैं कि ऐसे मोदी जी का विकल्प बाहर ढूंढते हैं, जबकि अंदर ही असंख्य विकल्प हैं इसीलिए मुझसे वह नारा भूला नहीं जाता, मेरा देश महान और उससे ज्यादा हमारा मोदी महान, ट्रंप से भी ज्यादा महान.
- विष्णु नागर
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