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नृशंस हत्यारे मोदी की हत्या के नाम पर देशवासियों के खिलाफ षड्यंत्र

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[ गुजरात में सैकड़ों की तादाद में निर्दोष लोगों की नृशंस हत्या के जिम्मेदार नरेन्द्र मोदी को जब भी अपनी अलोकप्रियता का अहसास होता है, वह फर्जी तरीके से खुद पर हमला होने या खुद ही हत्या होने का ढोंग करने लगता है. इसके लिए वह बिल्कुल प्लांटेड तरीके का इस्तेमाल करता है, और कुछ लोगों को जिम्मेदार ठहराकर सुरक्षा एजेंसियों के माध्यम से उनकी हत्या करवा डालते हैं. उनका यह सिलसिला तकरीबन हर चुनाव के पूर्व दोहराया जाता है और चुनाव जीतने के बाद अपने हत्यारे गुंडों के माध्यम से आम लोगों को दहशत में डालते हैं और उनकी हत्या कराते हैं. गौरी लंकेश, कलबुर्गी, पनसारे जैसे बुद्धिजीवियों की हत्या इसी का परिणाम है, तो वहीं सोहराबुद्दीन, नुसरत जहां आदि की हत्या अपनी अलोकप्रियता को ढंकने और जनता की सहानुभूति हासिल करने के लिए किया गया है. इसी कड़ी में माओवादियों द्वारा प्लांटेड उनकी हत्या साजिश में भी झलकता है, जिसके लिए  ‘अर्बन माओवादी’ जैसा एक शब्दाबली गढ़ा गया है.

मौत के भय से कांपता एक मोदी जैसे एक तानाशाह में हिटलर जैसे दुर्दांत हत्यारे की झलक दीखती है, जो अपने मौत के भय से इतना ज्यादा प्रकंपित हो गया था कि वह अपने सहयोगियों तक की हत्या पर उतारू हो गया था. मोदी जैसे हत्यारे भी फर्जी आंसु बहाना, खुद की हत्या किये जाने का अलाप लगाकर जनता की सहानुभूति हासिल करना आदि जैसे गिरे हुए हरकत पर उतर आया है. खूंख्वांर हत्यारे प्रवीण तोगड़िया द्वारा सरेआम प्रेस-कांम्फ्रेंस में अपनी हत्या की कहानी कहना और ढारे मार कर रोने को भी इसी रूप में देखा जा सकता है. कारवां में प्रकाशित तुषार धारा की यह रिपोर्ट हत्यारे मोदी के हत्या की प्रहसन की पूरी रिपोर्ट हैं, जिसके आलोक में इस नृशंस हत्यारे मोदी के दुर्दांता को समझा जा सकता है. ]

नृशंस हत्यारे मोदी की हत्या के नाम पर देशवासियों के खिलाफ षड्यंत्र

28 अगस्त को पुणे पुलिस ने पांच कार्यकर्ताओं- ट्रेड यूनियन नेता और वकील सुधा भारद्वाज, लेखक गौतम नवलखा और वरवर राव, वकील अरुण फरेरा और वर्नन गोंसाल्वेज- को गिरफ्तार किया और बहुत सारे दूसरे लोगों के घरों पर छापे मारे. पुलिस ने गिरफ्तारियों के अलग-अलग कारण बताए हैं, जिसमें जनवरी में पुणे में हुए भीमा-कोरेगांव में हिंसा, सरकार को हटाने के लिए एक एंटी फासिस्ट फ्रंट और पीएम मोदी की हत्या के एक और प्लाट का रचा जाना शामिल हैं. गुजरात के मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान, 2014 के अपने चुनावी अभियान से पहले और प्रधानमंत्री पद पर सेवा के दौरान मोदी इस तरह के ढेर सारे हत्या के प्रयासों और साजिशों को मात दे चुके हैं.

इस जून के शुरुआती दिनों में बहुत सारे राज्यों में इसी तरह के पुलिस आपरेशन के दौरान पुणे पुलिस ने पांच लोगों को शीर्ष शहरी माओवादी आपरेटिव बताकर ये कहते हुए गिरफ्तार किया था इन लोगों ने भीमा कोरेगांव हिंसा को हवा दी थी. गिरफ्तारी के दो दिन बाद पुलिस ने दावा किया था कि उसने गिरफ्तार किए गए एक प्रमुख कार्यकर्ता रोना विल्सन के कंप्यूटर से एक पत्र बरामद किया है, जिसमें मोदी की हत्या के लिए राजीव गांधी की तरह के प्लाट की चर्चा की गयी है. 31 अगस्त को एक संवाददाता सम्मेलन में हाल की गिरफ्तारियों को लेकर महाराष्ट्र पुलिस के एडिशनल डायरेक्टर जनरल परम बीर सिंह ने विल्सन के घर से मिले पत्र और दूसरे हजारों दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा कि कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस के पास पुख्ता सबूत हैं. 

हालांकि पुलिस ने इस बात को नहीं साफ किया कि अगस्त में गिरफ्तार इन कार्यकर्ताओं के खिलाफ कौन ऐसा सबूत है जो उनके प्लाट में शामिल होने की तरफ इशारा करता है. नरेंद्र मोदी के खिलाफ हत्या की सभी कथित साजिशों की परिस्थितियां दिलचस्प हैं- उन व्यक्तियों की पृष्ठभूमि के लिहाज से जिन्होंने कथित हत्या का प्लाट बनाया और उन राजनीतिक परिस्थितियों के लिहाज से भी जिनमें इनका खुलासा हुआ और उन मीडिया संगठनों के लिहाज से भी जिन्होंने इसका खुलासा किया. मोदी के राजनीतिक विरोधियों ने उनकी हत्या के इस तरह के किसी प्लाट को बकवास करार दिया है जो भीमा कोरेगांव मामले में कार्रवाई के बाद सामने आया है.

राष्ट्रीय जनता दल ने दावा किया है कि मोदी के जीवन के खतरे वाली स्टोरी बिल्कुल प्रायोजित है. नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के बुजुर्ग नेता शरद पवार ने कहा कि कथित पत्र का इस्तेमाल लोगों की सहानुभूति बटोरने के लिए किया जा रहा है. और कांग्रेस ने रिपोर्ट को मोदी की चाल कहकर खारिज कर दिया है. हत्या की एक धमकी की गंभीरता और विपक्षी राजनीतिक दलों की उस पर प्रतिक्रिया को देखते हुए मोदी की हत्या के प्रयास का प्लाट और उसके इर्द-गिर्द की परिस्थितियां एक बार फिर से समझने के लिए प्रेरित करती हैं. नीचे नरेंद्र मोदी की हत्या करने के इस तरह के 8 प्लाटों की सूची है.

इशरत जहां (2004)

15 जून 2004 को अहमदाबाद के बाहरी इलाके में गुजरात पुलिस के क्राइम ब्रांच के अफसरों ने चार लोगों की हत्या कर दी थी, जिसमें तीन पुरुष और एक महिला शामिल थी. इनके लश्कर-ए-तोएबा से जुड़े होने का संदेह जाहिर किया गया था. शीर्ष पुलिस अधिकारी और क्राइम ब्रांच ने दावा किया था कि इशरत जहां, जावेद गुलाम शेख, अमजद अली राना और जीशान जौहर तब के गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी को मारने के मिशन पर थे. ऐसा वो 2002 की सांप्रदायिक हिंसा का बदला लेने मकसद से कर रहे थे.

सितंबर 2009 में अहमदाबाद के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट एसपी तमांग ने घटना को बिल्कुल फेक एनकाउंटर करार दिया. 243 पेज की अपनी रिपोर्ट में तमांग ने कहा कि पुलिस अफसर मृत लोगों को मुंबई से अपहृत कर उन्हें 12 जून 2004 को अहमदाबाद ले आए और 14 जून की रात को ठंडे दिमाग से उनकी हत्या कर दी और उसके बाद मृतकों के शरीर पर हथियार और विस्फोटक रखकर पूरी कहानी गढ़ दी गयी. 2013 में सीबीआई ने इस केस में अहमदाबाद में स्थित मिर्जापुर की एक स्पेशल कोर्ट में चार्जशीट दायर की जिसमें सात पुलिस अफसरों के खिलाफ इस प्रायोजित एनकाउंटर में शरीक होने की बात कही गयी.

फरवरी 2016 में कारवां में पकाशित एक पीस में वकील वृंदा ग्रोवर जो 2008 से इशरत जहां के परिवार की तरफ से केस का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, ने बताया था कि सीबीआई चार्जशीट में इस बात का पर्याप्त साक्ष्य है कि एनकाउंटर के लिए राजनीतिक मंजूरी मिली थी. उन्होंने कहा कि “ये मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी और मौजूदा भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की जानकारी में था। लेकिन सीबीआई ने उन प्रमाणों की खोजबीन नहीं की.”

13 जून 2004 को जीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि गुजरात में हुए 2002 के दंगों के बाद मोदी को न हटाया जाना उसके बाद हुए आम चुनावों में बीजेपी की हार का एक प्रमुख कारण था. अपनी किताब “मोदी एंड गोधरा: दि फिक्शन आफ फैक्ट फाइंडिंग” में पत्रकार मनोज मिट्टा ने लिखा है कि “वाजपेयी के इस नये हमले से बचाव के लिए ये परिस्थितियां बेहद महत्वपूर्ण थीं: जिसमें गुजरात पुलिस का मोदी की कथित हत्या के मिशन में शामिल ग्रेटर मुंबई से 19 साल की एक छात्रा इशरत जहां और तीन दूसरे लोगों का सनसनीखेज एनकाउंटर था.” मिट्टा आगे लिखते हैं, “वाजपेयी के मोदी पर अपनी राय देने के दो दिन बाद 15 जून को बेहद शानदार तरीके से मोदी के भविष्य के हत्यारों की हत्या कर दी गयी थी.”

1 सितंबर 2013 को दिए गए एक त्यागपत्र में जिसे गुजरात सरकार ने लेने से इंकार कर दिया था, क्राइम ब्रांच के एक पुलिस अफसर डीजी वंजारा ने कहा था कि “हम फील्ड अफसर होने के नाते केवल सरकार की नीतियों को लागू करते हैं. हमारी कार्रवाइयों की निगरानी, देखरेख और दिशानिर्देश बहुत नजदीक से होता है.” इशरत जहां केस में वंजारा एक अफसर हैं जिनके खिलाफ मुकदमा चल रहा है. इस साल अगस्त की शुरुआत में मामले की सुनवाई करते हुए सीबीआई कोर्ट ने वंजारा और उनके पूर्व डिप्टी एनके अमीन (अमीन भी इस फर्जी एनकाउंटर के आरोपी हैं) के डिस्चार्ज आवेदन को खारिज कर दिया था. केस अभी भी सीबीआई कोर्ट में लंबित है.

सोहराबुद्दीन शेख (2005)

22 नवंबर 2005 को गुजरात और राजस्थान पुलिस के अफसर हैदराबाद में एक बस को रोकते हैं जिसमें कथित गैंगस्टर सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी यात्रा कर रहे होते हैं और फिर पकड़ कर उन्हें अहमदाबाद के पास स्थित एक फार्म हाउस पर ले जाते हैं. इस केस में पेश की गयी सीबीआई चार्जशीट के मुताबिक चार दिन बाद एक फेक एनकाउंटर में शोहराबुद्दीन की हत्या कर दी जाती है. चार्जशीट में आगे बताया गया है कि दो दिन बाद कौसर बी को भी मार दिया जाता है और उसके एक साल बाद दिसंबर में सोहराबुद्दीन के सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की भी हत्या कर दी जाती है.

गुजरात पुलिस ने बाद में दावा किया था कि सोहराबुद्दीन भी लश्कर-ए-तोएबा का आपरेटिव है जो मोदी की हत्या करने की योजना बना रहा था. लेकिन सोहराबुद्दीन के भाई रूबाबुद्दीन की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद मामले की जांच जनवरी 2010 में सीबीआई के हवाले कर दी गयी. उसी साल जुलाई में जांच एजेंसी ने एक सप्लीमेंटरी चार्जशीट पेश की जिसमें उसने दूसरों के अलावा अफसर डीजी वंजारा, एनके अमीन और राजकुमार पांडियन के साथ तब के गृहराज्य मंत्री अमित शाह को आरोपी बनाया. सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक गुजरात और राजस्थान के पुलिस अफसरों ने मिलकर “श्री सोहराबुद्दीन की अहमदाबाद में प्रायोजित एनकाउंटर में हत्या की”. चार्जशीट में आगे कहा गया है कि “ऐसा दिखाया गया था कि सोहराबुद्दीन अहमदाबाद एक प्रमुख राजनीतिक नेता की हत्या के लिए आया था. ”

सोहराबुद्दीन शेख, कौसर बी और तुलसी राम प्रजापति की हत्या के पीछे विभिन्न तरह की बातें और मंशा सामने आयीं. चार्जशीट के मुताबिक “सोहराबुद्दीन के खात्मे को आरोपी लोगों द्वारा फिरौती के लिए इस्तेमाल किया जाना था जिससे व्यवसायियों और दूसरे लोगों में भय पैदा किया जा सके.” लेकिन त्यागपत्र की पेशकश करने के बाद सीबीआई की पूछताछ के दौरान ऐसा बताया गया कि वंजारा ने सोहराबुद्दीन की हत्या को गुजरात के पूर्व गृह राज्यमंत्री हरेन पांड्या से जोड़ा था. गौरतलब है कि पांड्या की 2003 में हत्या कर दी गयी थी.

सोहराबुद्दीन की हत्या का केस अभी भी मुंबई की एक स्पेशल सीबीआई अदालत में जारी है. जहां तक कि अभी अगस्त तक की बात है तो 65 गवाह अपनी गवाही से मुकर चुके हैं.

आम चुनाव प्रचार-अभियान (2013)

27 अक्तूबर 2013 को पटना को गांधी मैदान और रेलवे स्टेशन पर मोदी, जो उस समय प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी थे, की रैली से पहले सीरियल बम ब्लास्ट होता है. ब्लास्ट में छह लोगों की हत्या होती है और तकरीबन 89 लोग घायल होते हैं. एक बम डिस्पोजल दस्ता दो गैरफटी आईईडी को मौके से बरामद करता है. एनआईए मामले में अप्रैल 2014 में चार्जशीट दाखिल करती है और उसके बाद अगस्त 2014 में एक दूसरी सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर होती है, जिसमें वो दावा करती है कि प्रतिबंधित संगठन सिमी ने हमले को अंजाम दिया था.

सप्लीमेंट्री चार्जशीट में कहा गया है कि “आरोपी लोग इस बात को मानते हैं कि गुजरात में गोधरा के बाद के दंगे के लिए श्री नरेंद्र मोदी जिम्मेदार हैं.” और उनके सुरक्षा इतंजामों का जायजा लेने के बाद वो इस नतीजे पर पहुंचे कि उन पर किसी आग्नेयअस्त्र से हमला कर पाना संभव नहीं है. इसलिए उन्होंने आईईडी का विस्फोट करने का फैसला किया जिससे रैली में भगदड़ मच सके और फिर नरेंद्र मोदी को आसानी से नजदीक से निशाना बनाया जा सके.

अक्तबूर 2017 में एक बाल न्यायालय बोर्ड द्वारा एक नाबालिग को सजा हुई और उसे रिमांड में तीन साल के लिए भेज दिया गया. एनआईए कोर्ट के सामने अभी भी केस जारी है.

ह्वाट्सएप हत्या की धमकी (2015)

मई 2015 में बीजेपी सरकार के केंद्र में एक साल पूरा होने के मौके पर उत्तर प्रदेश के मथुरा में मोदी का एक रैली को संबोधित करने का कार्यक्रम था. रैली से एक दिन पहले यूपी पुलिस, मीडिया के लोगों और जिला प्रशासन को एक ह्वाट्एप मेसेज मिलता है जिसमें पीएम मोदी की हत्या की धमकी होती है.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भेजने वाले की शिनाख्त रामवीर और उसके भाई लक्ष्मण सिंह के तौर पर की जाती है बाद में हिरासत में लेकर फिर उनसे पूछताछ होती है. जिलाधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि रामवीर पहले भी इस तरह का संदेश भेज चुका है. उसके खिलाफ आवश्यक धाराओं के तहत केस दर्ज कर लिया जाएगा. ह्वाट्सएप संदेश की मीडिया कवरेज पीटीआई द्वारा की गयी रिपोर्ट के जरिये समझा जा सकता है लेकिन उसके बाद मीडिया ने कभी भी ये जानने की जहमत नहीं उठायी कि बाद में उस रामवीर को गिरफ्तार किया गया या उससे पूछताछ की गयी या फिर उसे कोई सजा मिली भी या नहीं जिसने पीएम की हत्या की धमकी दी थी.

नोटबंदी के बाद (2016)

मोदी द्वारा 500 और 1000 के करेंसी नोटों को प्रतिबंधित करने की घोषणा के 10 दिन बाद 19 नवंबर 2016 को टाइम्स आफ इंडिया ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें दिल्ली पुलिस ने पीएम मोदी की हत्या के एक कथित प्लाट की फोन से सूचना मिलने की बात कही थी. जब पुलिस ने काल किए गए नंबर के जरिये उस शख्स की शिनाख्त की तो उसने कहा कि वो अपना सिम किसी रिश्तेदार को दे रखा था बाद में उस दूसरे शख्स ने पुलिस को बताया कि एक अजनबी ने एक अर्जेंट काल करने के लिए उसका फोन ले लिया था. कुछ मीडिया संगठनों ने इस कथित हत्या के प्लाट की रिपोर्टिंग की थी लेकिन उनमें से किसी ने भी उसको फालो करना जरूरी नहीं समझा. टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट में आखिर में कहा गया है कि “स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच अभी भी इस पर काम कर रहे हैं.”

उत्तर प्रदेश चुनावी रैली (2017)

फरवरी 2017 में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में मोदी की मऊ में रैली से ठीक पहले इलाके के एएसपी आरके सिंह ने कहा कि पीएम पर जानलेवा हमले के खतरे की रिपोर्ट पुलिस को मिली है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक वो धमकी रसूल पति की ओर से दी गयी थी जो हरेन पांड्या की हत्या के मामले में एक आरोपी है. सिंह ने इसमें आगे कहा कि मोदी के काफिले पर राकेट लांचर और विस्फोटकों से हमले की योजना थी. रैली में इस तरह का कोई हमला नहीं हुआ. इंडिया टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली पुलिस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के एक छात्र को मऊ पुलिस को एक झूठा फोन करने के लिए गिरफ्तार किया.

आईएसआईएस हत्या प्लाट (मई 2018)

कर्नाटक विधानसभा चुनाव से दो दिन पहले 10 मई को टाइम्स नाऊ ने रिपोर्ट किया कि नरेंद्र मोदी की हत्या का एक रेडिकल इस्लामिक प्लाट तैयार किया गया है. उसके दूसरे दिन जी न्यूज ने उसी तरह की एक रिपोर्ट प्रसारित की. दोनों रिपोर्टों में गुजरात एटीएस द्वारा राज्य के अंकेश्वर शहर में स्थित एक कोर्ट में दाखिल की गयी एक चार्जशीट का हवाला दिया गया था जिसमें पीएम की आईएसआईएस द्वारा कथित तौर पर हत्या के प्लाट की बात की गयी थी। विशेषकर दोनों रिपोर्टें ह्वाट्सएप संदेश की एक लाइन का हवाला दी थीं जिसमें लिखा गया था कि “हां, हमें मोदी को एक स्नाइपर राइफल से हटाना होगा.” हालांकि मोदी उस कथित इस्लामिक खतरे से बच गए लेकिन बीजेपी विधानसभा चुनाव हार गयी और चुनाव बाद कांग्रेस और जनता दल (सेकुलर) ने मिलकर वहां सरकार का गठन किया.

भीमा कोरेगांव गिरफ्तारी (जून 2018)

पुणे पुलिस द्वारा एक्टिविस्ट रोना विल्सन, जिन्हें भीमा कोरेगांव में हिंसा के संबंध में दूसरे पांच लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया है, के घर से बरामद किए गए कथित पत्र में कहा गया है कि “हम एक दूसरे राजीव गांधी की तरह की घटना के बारे में सोच रहे हैं.” इस पत्र के बहुत सारे पक्ष इसकी वैधता को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं. सभी तथ्यों के अलावा ये रेड सैल्यूट की घोषणा के साथ खुलता है जो परंपरागत कम्यूनिस्ट अभिवादन लाल सलाम का शाब्दिक अनुवाद है.

गिरफ्तारियों के साये में न्यूजलांड्री में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक ये पत्र विल्सन के घर इसी साल अप्रैल महीने में रेड के दौरान कथित तौर पर हासिल किया गया था. रिपोर्ट में इस बात को चिन्हित किया जाता है कि कोर्ट में पेश करने से पहले इसे मीडिया में जारी कर दिया गया. ये तब और परेशान करने वाला हो जाता है जब ये सच्चाई सामने आती है कि गिरफ्तार एक्टिविस्टों को रिमांड पर लेने के आवेदन में हत्या के इस कथित प्लाट संबंधी पत्र का जिक्र तक नहीं किया जाता है.

सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि कोई भी सुरक्षा एजेंसी जो माओवादी आपरेशनों से परिचित हो ये जानती होगी कि वो कोई नौसखिए संगठन नहीं हैं और ये भी जानते हैं कि वो अपने पत्रों में नाम तक का खुलासा नहीं करते हैं और अपने आपरेशन की डिटेल तो बहुत ही कम बताते हैं. लेकिन पहले बताए गए पत्र में प्रमुखता के साथ पूरा विवरण दिया गया है. ये “अरुण, वर्नन और दूसरों” का हवाला देता है. अरुण फरेरा, वर्नन गोंसाल्वेज और तीन दूसरे अगस्त महीने में गिरफ्तार किए जाते हैं.

ये समझना जरूरी हो जाता है कि ये कथित षड्यंत्रकारी पीएम की हत्या के प्लाट में बारीकियों पर ध्यान देने का प्रयास क्यों नहीं करते. शायद ये उतना चकित करने वाला नहीं होना चाहिए क्योंकि नरेंद्र मोदी की हत्या के इस तरह के पहले के प्लाट भी कई बार झूठे काल, मीडिया को संदेश औऱ यहां तक कि पुलिस द्वारा फर्जी तरीके से बनाए गए केस साबित हुए हैं.

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