तपन मिश्रा, वैज्ञानिक, इसरो
भारत की सत्ता पर काबिज ब्राह्मणवाद के पोषक आरएसएस का एक अंग भाजपा देश में एक बार फिर ब्राह्मणवाद का भरपूर प्रसार कर रहा है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस ब्राह्मणवादी प्रसार में दलितों के समाज के लोगों को मुखड़ा बनाया गया है. चाहे वह नरेन्द्र मोदी हो या रामनाथ कोविंद अथवा रामविलास पासवान. ये सभी ब्राह्मणवाद के प्रबल पोषक हैं और देश में निजी ब्राह्मणवादी गुंडों का समर्थक भी.
ब्राह्मणवाद धर्म का सबसे खतरनाक और विद्रूप रुप है, जो शोषण आधारित समाज का ढांचागत निर्माण इतने भयानक तौर पर करता है कि समाज का बड़ा हिस्सा (शुद्र, दलित, महिलाएं) खुद को मनुष्य तक मानने से इंकार कर देता है और खुद के शोषण के विरुद्ध सवाल या हथियार तक उठाने से बलपूर्वक न केवल विरोध ही करता है वरन् सवाल या हथियार उठाने वाले व्यक्ति या समूह को ही खत्म कर डालने को उद्धत हो जाता है.
मानव समाज के अग्रिम मोर्चे पर समाज के तीन तबके अथक परिश्रम करते हैं. किसान, मजदूर और वैज्ञानिक. इन्हीं तीनों समूहों के अथक परिश्रम और योगदान के कारण आज मानव समाज ब्रह्मांड के छोड़ तक छूने को प्रयासरत् है. परन्तु भारत की ब्राह्मणवादी भगवाधारी शासक देश के इन तीनों समूहों को खत्म करने के लिए तमाम जतन कर रहा है.
किसान जहां रोज आत्महत्या कर रहे हैं, तो वहीं मजदूर तबका बेरोजगार होकर भटक रहे हैं. वैज्ञानिक समुदाय भी भगवाधारी ब्राह्मणवादियों के हमले से रोज दो चार हो रहा है. इन ब्राह्मणवादियों का ताजा हमला इसरो के वैज्ञानिकों पर है जिन्होंने चांद और मंगल ग्रह को खंगालने की कोशिश की है. इस हमले का एक स्वरुप सोशल मीडिया पर फैलाये जा रहे एक सनकी का विडिओ देखा जा सकता है, जो पूरी बेहाई के साथ विज्ञान और उसके निष्कर्ष से न केवल इंकार ही करता है वरन् पृथ्वी चपटी होने और सूर्य के ही पृथ्वी का चक्कर लगाना बताते हैं. सोशल मीडिया जैसे वैज्ञानिक प्लेटफार्म का इस्तेमाल अवैज्ञानिक मूर्खता को फैलाने का माध्यम बना दिया है.
तो वहीं दूसरी ओर इसरो के वैज्ञानिक तपन मिश्रा का स्थानांतरण है, जो वैज्ञानिक समुदाय को हतोत्साहित करने के लिया किया गया है. मिश्रा का हस्तांतरण इसरो मुख्यालय में किये जाने के दो कारण हैं: पहला, उन्होंने एक प्रोजेक्ट में देरी का विरोध किया, और दुसरा, क्योंकि वह इसरो के निजीकरण के विरोधी थे. मिश्रा के स्थानांंतरण के विरोध मेंं राष्ट्रपति के नाम लिखे पत्र का हिन्दी अनुुुवाद यहां प्रस्तुत है, जिसे गौहर रजा नेे अनुुदित किया है.
सेवा में,
महामहिम राष्ट्रपति महोदय,
मान्यवर,
हमने हाल ही में इसरो वैज्ञानिक तपन मिश्रा के राजनीति से प्रेरित हस्तांतरण के विषय में विभिन्न समाचार पत्रों में पढ़ा, जो काफी चिंताजनक है. एक विशेष समाचार पत्र के अनुसार आधिकारिक हवालों से खबर है कि “स्पेस एजेंसी के मुखिया सलाहकार के रूप में उन्हें अब इस दौड़ से बाहर किया जा चुका है.” यह एक सलाहकार का पद है न की कार्यकारी अधिकारी का पद. चैयरमेन की नियुक्ति हमेशा ही कार्यकारी अधिकारियों में से ही की जाती है. इसके अलावा ऐसा कोई पद संस्था में पहले कभी नहीं था.” न तो सरकार और न ही इसरो ने इन रिपोर्ट्स पर कोई टिपण्णी की है. अंतरिक्ष अनुसन्धान में देश ने जिस तरह की उत्कृष्टता हासिल की है उसे देखते हुए देश आधिकारिक स्पष्टीकरण का इन्तज़ार कर रहा है.
मीडिया ने यह भी रिपोर्ट किया कि मिश्रा का हस्तांतरण इसरो मुख्यालय में किये जाने के दो कारण हैं: पहला, उन्होंने एक प्रोजेक्ट में देरी का विरोध किया, और दुसरा, क्योंकि वह इसरो के निजीकरण के विरोधी थे. अगर यह सच है तो मिश्रा का हस्तांतरण वैज्ञानिक समुदाय को व्यापक रूप से हतोत्साहित करेगा, क्योंकि यह एक साफ़ संकेत है कि या तो वैज्ञानिक उन विचारों के साथ सहमति रखे जो मौजूदा राजनैतिक सत्ता के साथ समानता रखते हैं या फिर इसके लिए तैयार हो जाये कि स्वतंत्र वैज्ञानिक जांंच करने के लिए दूसरे विकल्प तलाशें. ऐसा लगता है कि वैज्ञानिक उत्कृष्टता का अब कोई औचित्य नहीं बचा है.
हम इसे एक मात्र घटने वाली घटना की तरह नहीं देखते. एक राष्ट्र के तौर पर हमने इसरो, एटॉमिक एनर्जी कमीशन, सी.एस.आई.आर, डी.आर.डी.ओ, आई.ए.आर.आई और अन्य प्रायौगिक अनुसंधान के संस्थान बनाए, जहांं स्थिरता की संस्कृति, अनुसंधान की स्वतंत्रता एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का माहौल पैदा किया. पूरा देश इन 70 वर्षों में गठित किये गए भव्य वैज्ञानिक संस्थानों की तरफ आदर एवं उम्मीद के साथ देखता है. भारत के लोगों का दृढ़ विश्वास है कि यह सभी संस्थान ही देश की प्रगति की नींव हैं और इन संस्थानों ने ही देश का गौरव बढ़ाया है.
हमें विश्वास है कि इन संस्थानों ने देश के निर्माण में अहम् भूमिका इसलिए निभाई है क्योंकि इन्हें अब तक जोड़ तोड़ और संकीर्ण राजनैतिक हस्तक्षेप से दूर रखा गया है. इतिहास यह बताता है कि दुनिया में विज्ञान की प्रगति का आधार सोचने की आज़ादी, अभिव्यक्ति की आज़ादी और बिना डर के अनाधिकृत क्षेत्रों में खोजबीन करने की स्वतंत्रता रही है.
इसके अलावा विज्ञान की प्रगति के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण का माहौल भी अनिवार्य होता है. ऐसे समाज में जहांं विज्ञान और वैज्ञानिकों का आदर न किया जाता हो वहांं उचित वैज्ञानिक अनुसन्धान नहीं किये जा सकते. भारत का नागरिक होने के नाते यह हमारा संवैधानिक दायित्व है कि हम “वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाए एवं उसका प्रचार करें”, यही संविधान का अनुच्छेद 51 (Ah) कहता है और जिसका अनुपालन आपकी सरकार का भी दायित्व है.
हाल ही में हमें वैज्ञानिक संस्थाओं में हस्तक्षेप देखने को मिला है और इसके साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर लगातार हमले सामने आये हैं. ऐसे कई लोग जो आपकी सरकार में संवैधानिक पदों पर हैं अपनी निजि मान्यताओं पर आधारित अवैज्ञानिक बयान देते रहे हैं. हमारा यह मानना है कि एक तरफ हस्तक्षेप, दंडात्मक कार्यवाहियांं और प्रायोजित नियुक्तियां और दुसरी तरफ आम जनता में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार के विरुद्ध माहौल बनना देश की उन्नति के लिए हानिकारक साबित होगा. हम आपसे तत्काल हस्तक्षेप का आग्रह करते हैं.
सम्बंधित वैज्ञानिकों के नाम पद एवं संबंध
प्रो. मेवा सिंह, जे. सी. बॉस फेलो यूनिवर्सिटी, मैसूर
प्रो. श्यामल चक्रवर्ती, कलकत्ता यूनिवर्सिटी
प्रो. वसी हैदर, भूतपूर्व अध्यक्ष, भौतिकी विभाग AMU
प्रो. ई. हरबाबू, भूतपूर्व कुलपति, हैदराबाद यूनिवर्सिटी
प्रो. इरफ़ान हबीब, प्रोफेसर एवं वैज्ञानिक, NUPA
डॉ. सुबोध महंती, पूर्व अध्यक्ष, विज्ञान प्रसार
प्रो. गौहर रज़ा, पूर्व मुख्य वैज्ञानिक, CSIR
डॉ. पी.वी.एस. कुमार, पूर्व उच्च वैज्ञानिक, CSIR
दिनेश अब्रोल, पूर्व मुख्य वैज्ञानिक, CSIR
प्रो अमिताभ जोशी विकासपरक जीव वैज्ञानिक, JNCASR
प्रो के. कन्नन, सेवा निवृत्त प्रोफेसर एवं कुलपति, नागालैंड यूनिवर्सिटी
जय प्रकाश संयोजक, भोपाल गैस पीड़ित आंदोलन
डॉ. अनिकेत सुले रीडर, होमी भाभा सेण्टर फॉर साइंस एजुकेशन, मुंबई
डॉ. आर.डी. रिखारी, पूर्व संपादक, NRDC
अमिताभ पांडेय, आर्मेचर अस्ट्रोनॉमर, सलाहकार, विज्ञानं प्रसार
प्रो पार्थिव बासु, कलकत्ता यूनिवर्सिटी
डॉ. अहमर रज़ा, पूर्व सलाहकार, वैकल्पिक ऊर्जा मंत्रालय
प्रो गौतम गंगोपाध्याय, कलकत्ता यूनिवर्सिटी
डॉ. सुरजीत सिंह, NISTADS, CSIR
डॉ. कौसर विज़ारत, पूर्व सहायक प्रोफेसर, NUEPA
डॉ. अशोक जैन, पूर्व संचालक, NISTADS,CSIR
आर.एस. दहिया, सेवा निवृत्त प्रोफेसर, SUH, रोहतक
दीपक वर्मा, वैज्ञानिक लेख निर्माता
राकेश अदानिया, वैज्ञानिक लेख निर्माता
डॉ. ए.के. अरुण, लोक सेवा एक्टिविस्ट
प्रेम पाल शर्मा, वैज्ञानिक लेखक, रेलवे से सेवा निवृत्त
सतीश कालरा, सेवा निवृत्त प्रोफेसर
डॉ. एम.एस. नरवाल, सेवा निवृत्त वैज्ञानिक, हरयाणा कृषि यूनिवर्सिटी
ई. अनुज सिंहा, पूर्व हेड, एनसीएसटीसी, डायरेक्टर, विज्ञान प्रसार.
आज किसान, मजदूर समेत वैज्ञानिकों पर इन ब्राह्मणवादी भगवाधारियों के संगठित हमले का प्रतिकार समय की मांग है, बल्कि यही आज की तारीख में सच्ची देशभक्ति है.
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