22 हफ्ते के जिन्दा जुड़ुवां नवजात के इलाज के नाम पर 5 लाख रूपये की मांग पूरी न करने पर मैक्स अस्पताल ने दोनों नवजात बच्चे को मृत घोषित कर दिया. बैग में बंद रहने के कारण एक नवजात की मौत दम घुटने से हो गई बताया जाता है तो वही दूसरे नवजात बच्चे को दूसरे अस्पताल में इलाज कराने के बाद किसी तरह बचाया जा सका. दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार इस घटना के प्रकाश में आने के फौरन बाद हरकत में आ गई और तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन कर दिया. इस समिति ने अपनी प्राथमिक रिपोर्ट में साफ तौर पर अस्पताल को तय मेडिकल नियमों का पालन नहीं करने का दोषी पाया था.
दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने जांच समिति के इस रिपोर्ट के आधार पर निजी अस्पतालों के इन मनमानी और आम जनता को लूटने वाली इस निजी अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई की और उक्त दोषी मैक्स अस्पताल का लाईसेंस रद्द कर दिया. इससे देश भर में आम जनता में खुशी का माहौल छा गया क्योंकि संभवतः यह पहली बड़ी कार्रवाई थी, जिसका नेतृत्व देश की आम जनता के हितों का सेवा करने वाली एक वास्तविक सरकार ने अविलंब किया था.
परन्तु, जैसा कि होना था मैक्स अस्पताल के समर्थन में दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के साथ-साथ पूरी भाजपा तरह उठ खड़ी हुई और दिल्ली सरकार के निजी अस्पतालों के खिलाफ इस शानदार कार्रवाई के विरोध में जुट गई. जैसा कि होना ही था निजी कम्पनियों के टुकड़ों पर पलने वाली केन्द्र की मोदी सरकार और उसके जी-हुजूरी करने वाले दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने नये सिरे से इस मामले को कोर्ट आॅफ फाइनेंस कमिश्नर के पास भेज दिया. इस फाइनेंस कमिश्नर ने आनन-फानन में मैक्स अस्पताल का लाईसेंस रद्द करने के दिल्ली सरकार के फैसले पर रोक लगा दी, जिसके बाद से दिल्ली के मैक्स अस्पताल में फिर से नए सिरे से देश की आम जनता को इलाज के नाम पर लूटने-खसोटने का खेल एक बार फिर शुरू हो गया.
देश की जनता हर दिन इस निजी अस्पतालों के मनमानी और लूट-खसोट का शिकार होती रहती है. चंडीगढ़ में ही डेंगू जैसी बीमारी के इलाज के नाम पर मरीज के परिजन से 16 लाख रूपये वसूलने के बाद भी बच्चे को नहीं बचाया. पटना में ही मामूली इलाज के नाम पर लाखों रूपये के फर्जी बिल बनाकर उनके परिजनों को थमा दिया, जिसके बाद परिजन उक्त पैसों को इकट्ठा करने के लिए सड़कों पर भीख मांगने लगे तो वहीं उक्त महिला मरीज को अस्पताल में ही बंधक बना कर प्रताड़ित करने लगा.
ऐसी घटनायें देश भर में हर रोज निजी अस्पतालों में घट रही है, इसके बावजूद देश की किसी भी सरकार ने लूट-खसोट करने वाली इन निजी अस्पतालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. मामले के प्रकाश में होने के बाद भले ही एकाध मरीज को थोड़ी राहत दे दी जाती हो, पर इस निजी अस्पतालों के लूट-खसोट पर रोक नहीं लगाई जाती. इसका कारण क्या हो सकता है ? निःसंदेश इसका कारण इन निजी अस्पतालों के अरबों-खरबों के भारी लूट-खसोट में देश की सरकार और उसके तंत्र की सहभागिता है. भारी-भरकम धनराशि चंदे के नाम पर विभिन्न सरकारें और उसके अमला तंत्र इन निजी अस्पतालों से पाते हैं, बदले में उसके हर प्रकार के लूट-खसोट पर सरकारी मुहर लगाने और उसके खिलाफ उठे जनता के आक्रोश से बचाने का वचन देता है.
यही कारण है कि जब देश के बड़े निजी मैक्स अस्पताल के आपराधिक कारवाई पर दिल्ली की केजरीवाल सरकार कार्रवाई करते हुए उसके लाईसेंस को रद्द करती है, तब इन माफियाओं के संरक्षक मोदी सरकार और उसके पक्के पिठ्ठू उपराज्यपाल अनिल बैजल के माध्यम से उक्त मैक्स अस्पताल का लाईसेंस रद्द करने के केजरीवाल सरकार के फैसले पर रोक लगा दी है.
देश की जनता केन्द्र सरकार और उसके हित साधक लूटेरी निजी अस्पतालों के सांठगांठ को दिन की सफेद रोशनी में देख पा रही है. अब यह तथ्य कतई महत्वपूर्ण नहीं रह गई है कि मैक्स अस्पताल का लाईसेंस रद्द होता है अथवा नहीं, सबसे महत्वपूर्ण तथ्य तो अब यह हो गया है कि देश की आम गरीब-मध्यमवर्गीय जनता, जो देश की कुल आबादी का 80 प्रतिशत बनाती है, जिनके कथित वोट से सरकार बनती और बिगड़ती है, के पक्ष में कौन खड़ा है ? और कौन विरोध में. मैक्स अस्पताल के लाईसेंस रद्द होने के प्रकरण पर केन्द्र की मोदी सरकार और उसके दलाल उपराज्यपाल अनिल बैजल जनता के सामने एक बार फिर नंगे खड़े हो गये हैं. यह देश की जनता को तय करना होगा कि वह भाजपा और दलाल उपराज्यपाल बैजल को दण्डित करें.
S. Chatterjee
December 21, 2017 at 1:43 pm
लोगों को तय करना है वे किसके साथ खड़े हैं