आज देश की तमाम संस्थानों को भाजपा सरकार ने खरीद लिया गया है, अथवा उसे डरा दिया है. चुनाव अयोग, पुलिस महकमा, आयकर विभाग यहां तक अपेक्षाकृत स्वतंत्र होने का आभास कराने वाली न्यायापालिका यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट तक बिक चुकी है अथवा डर गई है. सीबीआई के मामले में लगातार सुप्रीम कोर्ट के जजों का एक के बाद एक पीछे हट जाना यही साबित करता है. सीबीआई की जो दुर्गति हुई है वह जो किसी जनाजे से कम नहीं है. वहीं जो नहीं डरे हैं या बिके हैं, उन्हें खुलेआम मार दिया जा रहा है. इस हत्या में बहुत हद तक पुलिस की भी सांठगांठ वाली भूमिका रही है.
सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने जब प्रेस काॅम्फ्रेंस करते हुए लोकतंत्र को खतरे में बताया था, तब चीजें इतनी भयावह नहीं लग रही थी. पर अब जब मीडिया संस्थानों को सूचनाओं का माध्यम होने के बजाय विज्ञापन के दलाल की भूमिका में धकेल दिया गया है, आम लोगों को गलत सूचनायें देकर गुमराह करने का माध्यम बन गया है, एक-एक कर निर्भीक लोगों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों को खत्म किया जा रहा है, या उन्हें चैनलों की नौकरी से निकालने के लिए मजबूर किया जा रहा है, तब यह सवाल असलियत में सामने खड़ी हो गई है कि सचमुच लोकतंत्र खतरे में है ?
जनवादी पत्रकार गौरी लंकेश को अपमानित करने के लिए इसी भाजपाईयों ने न्यायपालिका का सहारा लिया था. उन पर गलत तरीके से अवमानना मुकदमा दायर किया और जब वह इससे भी नहीं झुकी तो उनकी इसी भाजपाईयों ने गोली मार कर हत्या कर दी. इसी तरह पनसारे, कलबुर्गी की हत्या की गई. निर्भिक पत्रकारों और बुद्धिजीवियों को जान से मारने की धमकी लगातार दी जा रही है. मुकदमों में मनचाहा फैसला करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जजों तक पर दवाब डाला गया और उनकी हत्या तक की गई.
वहीं सैकड़ों-हजारों करोड़ के मानहानि जैसे मुकदमों पत्रकारों एवं मीडिया संस्थानों पर कर के देश भीर में न केवल न्यायपालिका की ही बल्कि यह कानून भी हंसी का पात्र बना दिया. न्यायपालिका किस तरह देश के पत्रकारों के खिलाफ काम कर रही है, इसका उदाहरण देश के सामने पेश किया है मेघालय की हाई कोर्ट ने. एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार लिखते हैं, ‘पिछले दिनों मेघालय हाई कोर्ट ने ‘दि शिलांग टाइम्स’ की एडिटर पैट्रिसिया मुखीम और प्रकाशक शोभा चैधरी को अवमानना का दोषी पाया और दोनों को दो-दो लाख रुपये जमा करने की सजा सुनाई. मेघालय हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद याकूब और जस्टिस सुदीप रंजन सेन की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत सजा सुनाते हुए ‘दि शिलांग टाइम्स’ की संपादक और प्रकाशक को कोर्ट खत्म होने तक बैठने को कहा. एक हफ्ते के भीतर दोनों को दो लाख रुपये जमा करने हैं. अगर नहीं दे पाए तो छह महीने की जेल होगी. अखबार को प्रतिबंधित कर दिया जाएगा.’
‘दि शिलांग टाइम्स ने 6 दिसंबर, 2018 को एक खबर छापी जिसका शीर्षक था “When judges judge for themselves” यानी जब जज ही अपने लिए जज बन जाएं. इस खबर में यह था कि जस्टिस एस. आर. सेन रिटायर चीफ जस्टिस, जज, उनकी पत्नियां और बच्चों के लिए कई तरह की सुविधाएं देने का फैसला किया है. मेडिकल की सुविधा, प्रोटोकोल की सुविधा, गेस्ट हाउस, घर पर अर्दली, मोबाइल इंटरनेट का बिल और फोन के लिए 80,000 रुपये इसमें शामिल हैं. इस खबर में यह लिखा था कि जस्टिस सेन मार्च में रिटायर होने वाले थे. संदेश ये गया कि वे रिटायर होने से पहले अपने लिए ऐसा चाहते हैं. जो कोर्ट की नजर में अवमानना हुई क्योंकि खबर लिखने वाले ने मंशा जोड़ दी. एक मार्च को पट्रिसिया और शोभा चैधरी ने कोर्ट में बिना शर्त माफीनामा जमा कर दिया. कोर्ट ने माना कि सजा से बचने के लिए ऐसा किया गया है. जब लगा कि आरोपों का बचाव नहीं कर पा रहे हैं तो आखिरी वक्त में बिना शर्त माफी मांग ली. नगालैंड पोस्ट की खबर से हमने ये लिया है.’
अब खबर आ रही है अहमदाबाद के पत्रकार चिराग पटेल को इसी आरएसएस-भाजपाईयों के गुंडों ने जिन्दा जला दिया गया है. पत्रकार चिराग पटेल का शरीर जला हुआ मिला है. पुलिस के अनुसार चिराग पटेल की मौत शुक्रवार को ही हो गई थी. मगर उसका जला हुआ शरीर शनिवार को मिला है. चिराग पटेल टी वी 9 न्यूज चैनल में काम करते थे.
अभी तक चिराग पटेल की हत्या के कारणों का पता नहीं चल सका है. पाकिस्तान में रात के अंधेरे में आतंकवादियों की लाशें गिन लेने वाला देश का संस्था चिराग पटेल की हत्या के कारणों का न तो कभी पता ही लगा पायेगा और न ही यहां की डरी या बिकी हुई न्यायपालिका कभी दोषियों को सजा ही दे पायेगी. यह अलग बात है कि इसकी जांच के खानापूरी के काम में इलाके के पुलिस उपायुक्त के अलावा 6 आई पी एस अफसरों की मदद ली जा रही है, जो बहुत हद तक दोषियों को बचाने का ही काम करेंगे.
इसी भाजपाईयों के दवाब में देश के नामचीन जनवादी पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी को एक बार फिर से चैनल से निकाल दिया गया है. वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार कहते हैं, ‘आखिर कौन है जो पुण्य के पीछे इस हद तक पड़ा है. एक व्यक्ति के खिलाफ कौन है, जो इतनी ताकत से लगा हुआ है. आए दिन हम सुनते रहते हैं कि फलां संपादक को दरबार में बुलाकर धमका दिया गया. फलां मालिक को चेतावनी दे दी गई. अब ऐसे हालात में कोई पत्रकार क्या करेगा. आपकी चुप्पी उन लोगों को हतोत्साहित करेगी जो बोल रहे हैं. अंत में आपका ही नुकसान है. आपने चुप रहना सीख लिया है. आपने मरना सीख लिया है.
याद रखिएगा, जब आपको किसी पत्रकार की जरूरत पड़ेगी तो उसके नहीं होने की वजह आपकी ही चुप्पी ही होगी. अलग-अलग मिजाज के पत्रकार होते हैं तो समस्याएं आवाज पाती रहती हैं. सरकार और समाज तक पहुंचती रहती हैं. एक पत्रकार का निकाल दिया जाना, इस मायने में बेहद शर्मनाक और खतरनाक है. प्रसून को निकालने वालों ने आपको संदेश भेजा है. अब आप पर निर्भर करता है कि आप चुप हो जाएं. भारत को बुजदिल इंडिया बन जाने दें या आवाज उठाएं. क्या वाकई बोलना इतना मुश्किल हो गया है कि बोलने पर सब कुछ ही दांव पर लग जाए ?’
देश की दलाल मीडिया के खिलाफ लड़ने का आह्वान करते हुए रविश कुमार आगे कहते हैं कि ‘अब वही बचेगा जो गोदी मीडिया होगा. गोदी मीडिया ही फलेगा फूलेगा. उसका फलना-फूलना आपका खत्म होना है. तभी कहा था कि न्यूज चैनलों को अपने घरों से निकाल दीजिए. उन पर सत्ता का कब्जा हो गया है. आप अपनी मेहनत की कमाई उस माध्यम को कैसे दे सकते हैं, जो गुलाम हो चुका है. इतना तो आप कर सकते थे. आप जिन चैनलों को देखते हैं, वो आपके ऊपर भी टिप्पणी हैं. आपका चुप रहना साबित करता है कि आप भी हार गए हैं. जब जनता हार जाएगी तो कुछ नहीं बचेगा.’ कहना नहीं होगा मोदी जैसे अपराधकर्मी गुंडे को देश का प्रधानमंत्री बनाने का खामियाजा देश लंबे समय तक भुगतेगा.
Read Also –
सोशल मीडिया ही आज की सच्ची मीडिया है
बताइये ! इस लेखक से मोदी जी की जान को खतरा है
सोशल मीडिया की जनवादी व्यापकता मुख्यधारा की मीडिया पर करारा तमाचा
संघ मुक्त भारत क्यों ?
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]