प्यारे मजदूर-किसान मेहनतकश आवाम, भारत में यूपीए और एनडीए की चरम प्रतिक्रियावादी सरकारों द्वारा माओवाद को उखाड़ फेंकने के नापाक मनसूबे से ऑपरेशन ग्रीन हंट नाम से 2009 से 2016-17 तक तीन चरणों में अमेरिकी साम्राज्यवाद की मंत्रणा से एलआईसी नीति के तहत चौतरफा युद्ध थोप दिया गया. जनता और क्रांति को बहुतों नुकसान देने के बावजूद वे अपने मनसूबे में नाकाम रहे.
इस विफलता से खिझलाया ब्राह्मणीय हिन्दुत्ववादी एनडीए सरकार का मुखिया नरेंद्र मोदी की योजना के अनुसार केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में सन् 2017 में उच्च स्तरीय बैठक की गयी और भारत के माओवादी आंदोलन को उन्मूलन करने के लिए नयी प्रतिक्रांतिकारी योजना- तथा रणनीति व कार्यनीति बनायी गयी. इस प्रतिक्रांतिकारी योजना के मुताबिक 2017 से 2022 तक के समय के अंदर देश में माओवादी आंदोलन का उन्मूलन करने का लक्ष्य रखा गया है. 2018 में इस योजना का नाम ‘‘समाधान’’ रखा गया है. इस योजना की मूल बात निम्नलिखित हैः
(क) माओवादी विरोधी अभियानों में हिस्सा लेने वाले पुलिस, अर्द्ध सैनिक व कमांडो बल आत्मरक्षात्मक तरीकों को छोड़कर पूरी तरह आक्रामक हमले करने
(ख) भारतीय वायुसेना और विभिन्न अर्द्ध-सैनिक बलों के एयर बोर्न (युद्ध विमान व हेलिकॉप्टरों से हमले करने वाले) बलों के हवाई हमले करने
(ग) खुफिया तंत्र को और विस्तारित और मजबूत करने
(घ) ह्यूमन इंटेलिजेंट (मानव आधारित खुफिया तंत्र) सहित विशेषकर टेक्नीकल और इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस को विस्तारित और मजबूत करने तथा यूएवी, ड्रोन, उपग्रह (सेटेलाइट), थर्मल इमेजिंग, इन्फ्रारेड टेक्नोलॉजी, सीसीटीवी कैमरा, रडारों का इस्तेमाल कर खुफिया सूचनाएं इक्ट्ठा करना-
(च) केंद्र व राज्य पुलिस बलों के बीच समन्वय में खामियों को दूर कर बेहतर समन्वय हासिल करने
(छ) साम्राज्यवाद और दलाल नौकरशाह पूंजीपति वर्ग के लूट के लिए जरूरी मौलिक सुविधाओं को स्थापना करने
(ज) काउण्टर इंसर्जेंसी और काउण्टर टेररिस्ट ऑपरेशनों में इजरायल की मदद लेने
(झ) माओवादी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए उनकी आर्थिक स्रोत पर चोट पहुंचाने इत्यादि-इत्यादि निर्णय लिए गये हैं.
सर्वविदित है कि दुश्मन अपने तरीके से लड़ता है और हम अपने तरीके से. हमने शत्रु की इस नयी तीति पर गंभीर विचार विमर्श किया. विश्व और अपना देश की परिस्थिति पर भी गहराई से अध्ययन किया. इस पर मुकम्मल सोच विचार के बाद हमने दुश्मन के इस रणनीति से संपूर्ण देश को अवगत कराते हुए अपनी मुकम्मल रण्नीति सशस्त्र कृषि क्रांति और दीर्घकालीन लोकयुद्ध में तेजी लाने हेतु दुश्मन के इस रणनीति का एक जवाबी रणनीति का निर्धारण किया है. जिसे हम ‘‘घमासान’’ कहेंगे. यह भी अंग्रेजी के आठ अक्षरों से बना है, जीएचएएमएसएएन ‘‘घमासान है. इसका अर्थ निम्न रूप है :
जी – जमीनी स्तर में संगठन को मजबूत करना.
एच – ह्यूमन वेल्यू (सच्चे मानवीय मूल्यों में आ रही गिरावट के खिलाफ निरंतर वैचारिक व व्यावहारिक संघर्ष चलाकर उसकी रक्षा करना).
ए – एक्टीवीटी (पार्टी, फौज और संयुक्त मोर्चा सहित आम जनता की क्रियाशीलता में निरंतर तेजी लाना.
एम – मास मोबलाइजेशन (प्रत्येक कार्यों में जन-भागीदारी को उतरोत्तर बढ़ाते जाना).
आई – आर्म्स पावर (जनता को हथियारबंद ताकत में उतरोत्तर वृद्धि लाना और समूची शोषित-उत्पीड़ित जनता को हथियारबंद कराना).
एस – स्ट्रगल (संघर्ष को नयी-नयी मंजिल में विकसित करना).
ए – एग्रीकल्चरल रेवल्यूशन (कृषि क्रांति को देशव्यापी बनाना).
छ – निगेटीवीटी टू पॉजिटीवीटी (नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने की कला में महारत हासिल करना).
हमारे उपरोक्त आठ सूत्र का वस्तुगत आधार संपूर्ण देश में मौजूद है. कोई सरकार आए और जाए, पर उसका एक मात्र उद्देश्य जनता को ठगना, धोखा देना, जनता के बीच फूट डालना व शासन करना और उनके अपने वर्ग- महाप्रभू साम्राज्यवाद और सामंतवाद व दलाल नौकरशाह पूंजीपति का कृपापात्र बने रहने के लिए उनकी लूट-खसोट में हर संभव मदद पहुंचाना ही उनकी नियती रही है. हम अब तक उनके अनगिनत ‘घेरा डालो, विनाश करो’ का अभियान झेला है और झेलेंगे, जबतक कि साम्राज्यवाद, सामंतवाद और दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों को कब्र में डालकर नवजनवादी क्रांति आगे नहीं बढ़ती.
भारत में जारी क्रांति दरअसल एक वर्ग युद्ध है.
वर्ग युद्ध जैसा निर्मम दुनिया में और कोई युद्ध नहीं होता. वर्ग युद्ध की अग्रणी कतार में सर्वहारा वर्ग और उसका अगुआ दस्ता कम्युनिस्ट पार्टी होती है. गांव-देहात में गरीब व भूमिहीन किसान और शहर में मजदूर वर्ग ही उसका जमीनी स्तर पर आधार होता है, जिसमें काम को यानी संगठन का मजबूती से विस्तार करने, सब समय के लिए जरूरी कार्य है. इसके साथ अन्य दोस्त समूह यानी निम्न पूंजीपति वर्ग तथा मध्यम वर्ग को भी साथ लाना जरूरी है.
शोषित-उत्पीड़ित मानव जाति का अंतरनिहित गुण शोषक वर्ग की मानवता पारस्परिक एकता, समानता, सहयोग, अपने दोस्त वर्गों के लिए सेवा, प्रेम, दया और भाईचारा के बल पर न केवल मनुष्य से बल्कि प्रकृति के अन्य जीवों से श्रेष्ठता का स्थान प्राप्त किया है.
सर्वविदित है कि समाज विकास की एक विशेष मंजिल में पहुंचते हुए वर्गों के उदय के बाद से ही मानव समाज में जो विद्वेष और शत्रु का स्थान बना. आज वर्ग विभाजित मानव समाज के उच्चतर मंजिल में पहुंचकर मानव समाज में सबसे बड़ा क्षरण अगर किसी चीज में हुआ है तो सच्ची मानवता में हुआ है.
आज वर्ग समाज में शोषक व उत्पीड़ित वर्ग द्वारा पैदा किया गया वर्गों में वैमनस्य, विरोध, प्रतिहिंसा, क्रूरता और मक्कारी, ठगी जैसी भावना उसकी मूल पहचान बन गयी है. साम्राज्यवाद के इस युग में तो यह चरम स्तर पर पहुंच चुका है. आज साम्राज्यवाद और उनके दलाल गांव-गांव तक अपनी पैठ राजसत्ता के माध्यम से बनाने में सक्षम हुए हैं. विश्व के और हमारे देश के जल-जंगल-जमीन और हर प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों पर शोषक-शासक वर्ग अपना एकाधिकार स्थापित करने हेतु उत्पीड़ित वर्ग, जनता और राष्ट्रीयताओं की जनता पर कहर बरपाने हेतु उसी वर्ग समुदाय के लोगों को स्व-नियंत्रित राजसत्ता का बल, सेना, अर्द्ध सेना और पुलिस व खुफिया तंत्र तथा अन्य कार्यबल के रूप में चंद रोटी के टुकड़ों पर सेवा दास बनाकर अपना उल्लु सीधा कर रहा है. उनके अंदर सच्चा मानवीय मूल्यबोध, इज्जत-आजादी, अधिकार और कर्तव्यबोध से पंगु बनाकर राज्य और अमीर वर्ग की चालाकी को देश व राष्ट्र की सेवा के रूप में चरितार्थ करवा रहा है. हमें इसके खिलाफ तीव्र वैचारिक संघर्ष चलाकर लोगों में शोषित वर्ग के मानवीय मूल्यों का फिर से अंकुरित करके उसे पल्लवित, प्रस्फुटित करके साम्राज्यवाद-सामंतवाद व दलाल नौकरशाह पूंजीपति के मुखर विरोध में शामिल कराना होगा.
साम्राज्यवाद-सामंतवाद और दलाल नौकरशाह पूंजीपति की पालतू मोदी सरकार तथा अन्य सरकारें जनता की लगभग सारी संपत्ति हड़प कर उसके अधिकार से उन्हें वंचित करके उसकी सारी क्रियाशीलता को मिटा देना चाहती है. हमें न सिर्फ अपनी पार्टी, पीएलजीए और संगठनात्मक शक्ति को बल्कि पूरी आबादी की क्रियाशीलता विस्तार करने और सरकार तथा उसके पालतू कुत्तों के खिलाफ लड़ने के लिए हर समय नये-नये उपाय और तकनीकी खोज के लिए प्रेरित और प्रोत्साहन देना तथा दुश्मन की हर राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक गतिविधि पर मुकम्मल तौर पर नजर रखकर उसका हर जवाब तत्काल देने के लिए तत्पर रहना, बल्कि जन भागीदारी को क्रमशः विकसित करना है तथा सभी कार्यों में पार्टी, पीएलजीए और संयुक्त मोर्चा समेत व्यापक जनता को हर प्रकार के आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और तकनीकी दक्षता प्राप्त करने और स्वयं को हर प्रकार के अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित सेवा के रूप में अपनी पहचान बनाने को प्रेरित करना है.
यह भी ज्ञात हो कि सशस्त्र कृषि क्रांति जिसे हम नवजनवादी क्रांति की धुरी कहते हैं, उसका दायरा आज विकसित व विस्तार हुआ है. जनता का जल-जंगल और जमीन छीन कर दलाल नौकरशाही पूंजीपतियों तथा कारपोरेटों को देकर इनकी पूंजी व संपत्ति का विकास, जिसे मोदी देश का विकास कहता है और ऐसा करने के लिए बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, बंगाल, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र से लेकर संपूर्ण देश के जंगल इलाकों में बड़े-बड़े पुलिस व अर्द्ध सैनिक बलों के कैम्प भारी से भारी संख्या में तैनात कर लगातार तोप, मोर्टार आदि के गोलों की बारिश की जा रही है.
ये सब पूंजीपतियों को जमीन एमओयू के तहत देकर जनता व किसान विस्थापित किये गये और किये जा रहे हैं. ये सब हमारा क्रांतिकारी विस्थापन आंदोलन के निर्माण के लिए महान दुर्ग हैं. इसे हम मुकम्मल तौर पर अपनी कार्यसूची में जोड़कर प्रत्येक सशस्त्र किसान आंदोलन में दायरा बढ़ायेंगे. समूची पार्टी के पार्टी कतार, जनमुक्ति छामामार सेना तथा जन संगठनों में शुद्धिकरण आंदोलन चलाकर अपने अंदर की सारी नकारात्मकता को दूर करते हुए सकारात्मक शक्तियों को तेजी से विस्तार करेंगे और इसमें हमें सफल होना ही होगा.
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पटल पर क्रांति के अनुकूल बढ़ती परिस्थिति का इस्तेमाल करते हुए दुश्मन के हमले को परास्त करें. अभी के समय में विश्व पटल पर नजर दौड़ाने से जो विशिष्ट पहलुएं दिखाई पड़ती हैं, खूब संक्षेप में वे हैंः
(क) एकल महाशक्ति के बतौर अमरीकी साम्राज्यवाद खुद की हेकड़ी वाली महाशक्ति की भूमिका को बरकरार रखने में अक्षम साबित हो रहा है और ‘नाटो’ गठजोड़ के देशों को शामिल किये बिना कोई भी आक्रामक कार्रवाई में नहीं उतर पा रहा है. फिलहाल, रूस-चीन को सबसे बड़ा दुश्मन के रूप में घोषित कर दुनिया के पैमाने पर आधिपत्य व वर्चस्व स्थापित करने के लिए प्रतिरक्षा व्यय में विशाल राशि की अनुमोदन की लफ्रफाजी कर रही है. इसके अलावा, अमेरिका व पूरे यूरोप में चरम दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी-फासीवादी विचारों की अभिव्यक्तियां जैसे- ‘नस्लवाद’, ‘उग्र राष्ट्रवाद’ व ‘फासीवाद’ का पुनः तेजी से उभार हो रहा है. ऐसा कि उसके चलते शारीरिक हमले व हत्या की घटनाएं भी दिखाई पड़ रही है.
2017 के दिसम्बर के पहला सप्ताह में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ‘जायनवादी-यहुदीवादी इजरायल का नयी राजधानी यरूशलम है’ कहकर फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ तथा ईरान के साथ कई साल पूर्व एटम बम से संबंधित सवाल पर जो अंतरराष्ट्रीय समझौता हुआ था, उससे निकल आने का चरम उकसावापूर्ण कदम की घोषणा की गयी है.
(ख) रूस और चीन दोनों शक्तिशाली साम्राज्यवादी देशों को बतौर एक गठजोड़ उभर आने और ‘शंघाई को-ऑपरेशन’ व ‘ब्रीक्स’ गठबंधन के नेतृत्वकारी ताकत होने के कारण अमरीकी साम्राज्यवाद के साथ प्रतिस्पर्धा व अंतरविरोध क्रमशः तीव्रतर होते जा रहा है.
(ग) पिछड़े देशों में पूंजी निवेश, संसाधनों व बाजारों को लूटने के लिए दुनिया को पुनर्विभाजित करने के लिए तमाम साम्राज्यवादी देशों के बीच जारी प्रतिस्पर्धा में काफी वृद्धि होना.
(घ) पिछड़े हुए देशों में अपनी पिट्ठू दलाल सरकार की स्थापना, प्रभावाधीन इलाकों को न केवल बनाये रखना बल्कि उसे विस्तार करने के लिए एक देश के साथ दूसरे देश को लड़वा देना, एक-एक देश में अपने-अपने सशस्त्र गिरोहों का निर्माण करते हुए पूरे तौर पर मार-दंगा की भयंकर स्थिति को पैदाकर लूट, बलात्कार, हत्या तथा नरसंहार कर लाशों के ढेर में बदल देना और कई स्थानों में स्थानीय युद्ध का संचालन करते हुए पूरे देश को खंडहर में बदल देना और अमरीकी साम्राज्यवाद का मदद पुष्ट यहुदीवादी इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी जनता पर लगातार हमलों का संचालन करते हुए उनके भू-भाग पर कब्जा जमाने का आक्रामक प्रयास जारी है.
उपरोक्त चर्चा से यह साफ जाहिर होता है कि मौजूदा विश्व में साम्राज्यवाद के साथ उत्पीड़ित राष्ट्रों व जनता के बीच- पूंजीवादी देशों में पूंजीपति और मजदूर वर्ग के बीच- तीसरा, साम्राज्यवादी देशों में साम्राज्यवादी देशों के बीच का आपसी अंतरविरोध- यानी ये तीन अंतरविरोध मौजूद हैं. इन तीनों मुख्य-मुख्य अंतरविरोध के अंदर साम्राज्यवाद के साथ उत्पीड़ित राष्ट्र व जनता का विरोध ही प्रधान व निर्णायक होने के कारण क्रांति तथा राष्ट्रीय मुक्ति युद्ध इत्यादि मौजूदा दुनिया में प्रधान रूझान के तौर पर दिखाई पड़ रहा है. यह हमारे क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति के अंदर अनुकूल पहलू होता है.
घरेलू परिस्थितिः यह बात सभी कोई भलिभांति जानते हैं कि मोदी सरकार यूपीए-1 व यूपीए-2 के नक्शेकदम पर ही चल रही है. साम्राज्यवाद खासकर अमेरीकी साम्राज्यवाद के साथ बहुत ही घनिष्ठ संबंध व सांठगांट बनाकर उसी के दिशा-निर्देशन में ही मोदी सरकार चल रही है. असलियत यह है कि सभी सरकारें साम्राज्यवाद और उसके खिदमतगार दलाल नौकरशाह पूंजीपति व सामंतों के पक्का दलाल होती है. मोदी सरकार भी ऐसा ही एक दलाल सरकार है. साफ जाहिर है कि भारत की केंद्रीय सत्ता में आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) भाजपा के नरेंद्र मोदी की सरकार ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी शासन चला रही है, जिसके फलस्वरूप एक ओर ‘उग्र राष्ट्रवाद’ और ‘धार्मिक व साम्प्रदायिक भेदभाव’ इत्यादि विचारों को बढ़ावा मिलना जारी है और दूसरी ओर अमीर और गरीब के बीच खाई क्रमशः और भयंकर रूप से बढ़ते ही जा रही है.
महंगाई, बेरोजगारी बहुत तीव्र रूप धारण कर गयी है. कालेधन पर अंकुश लगाने व भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के झूठा वादा कर मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी के जरिए सारे गरीब और मध्यम वर्ग की संचित धनराशि को साफ कर दिया. कुटीर उद्योग, छोटे व मध्यम उद्योग बंदी के कागार पर हैं. पशु हत्या बंद करने के नाम पर बूचरखाना बंद किया जा रहा है.
फलस्वरूप पशु खरीद-बिक्री, पशु मांस की खरीद-बिक्री व चमड़ा उद्योग बंदी के कागार पर हैं. उक्त सभी कामों में लिप्त आम जनता अभी बेरोजगार हो गयी है. साथ-साथ जाति भेद, धार्मिक मतांधता, कु-संस्कार, छुआ-छूत, साम्प्रदायिकता आदि धड़ल्ले से बढ़ाया जा रहा है. ‘हिन्दी-हिन्दु-हिन्दुस्तान’ के नारे के जरिए ब्राह्मणवादी अहंकार, बड़े जाति के जैसा घमंड को स्थापित किया जा रहा है. महिलाओं पर जुल्म-अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहा है. ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ के नारे की आड़ में विश्वविद्यालय के छात्राओं को छेड़खानी का शिकार होना पड़ रहा है व पुलिस की पिटाई खानी पड़ रही है. दरअसल सभी प्रकार की प्रतिवाद-प्रतिरोध की आवाजों को पुलिस के बूटों तले रौंदा जा रहा है.
मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, डिजिटल इंडिया, मैनुफैक्चरिंग हब, मोमेंटम भारत आदि नारे की आड़ में कार्पोरेट घराने को संसाधनों व सस्ते श्रम की लूट के लिए आमंत्रित किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि कार्पोरेट घराना यानी पूंजीपति लोग लाखों-करोड़ों बेरोजगारों को नौकरी देंगे.
फिलहाल में मोदी मंत्रीमंडल द्वारा लिया गया सिंगल (एकल) ब्रांड यानी खुदरा व्यापार व निर्माण क्षेत्र में सौ-प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति का निर्णय. साथ-साथ मजदूर-किसान विरोधी कानून बनाकर उनके आंदोलन को कुंद करने तथा पुलिस द्वारा मार-पीट, हत्या आदि द्वारा मजदूर-किसानों पर दमन करने की कार्रवाई चलायी जा रही है, जिससे लाखों मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं और किसान आत्महत्या कर रहे हैं. फिलहाल जीएसटी लागू करने के फलस्वरूप किसानों, छोटे-मध्यम किस्म के उद्योग-धंधे को झटका लगा है. इससे कृषि, औद्योगिक व सेवा क्षेत्र संकुचित होते जा रहा है.
इसके अलावा, भारत सरकार का विस्तारवादी मनसूबा मोदी के समय में चोटी पर है. पाकिस्तान, नेपाल, बंग्लादेश, श्रीलंका आदि सभी पड़ोसी देशों में आंतरिक मामले में अपना हस्तक्षेप व दखलंदाजी बढ़ाते जा रहा है. साम्राज्यवादी अमेरिका की ‘चीन को घेरो’ की योजना को साकार करने के लिए मोदी सरकार विभिन्न प्रकार की योजना व कार्यक्रम ले रही है. उसी सिलसिले में असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर लगभग 9 किलोमीटर का सेतु अरूणाचल प्रदेश को जोड़ने के लिए बनाया गया है.
अफगानिस्तान के मामले में भी भारत सरकार अमेरिका के साथ साझा कार्यक्रम चला रहा है. साथ ही साथ मोदी सरकार बड़े पैमाने का सैन्यीकरण करने के लिए विशाल धनराशि खर्च कर रही है व आधुनिक अस्त्र-शस्त्र, फाइटर प्लेन, मिसाइल हमले के जरूरतमंद साजो-समान आदि खरीद करना, विभिन्न साम्राज्यवादी देशों के सेनावाहिनियों के साथ साझा सैन्याभ्यास चलाना आदि कार्यक्रम चला रही है.
व्यापक युवकों को सेना व पैरा मिलिटरी में भर्ती कर रही है. माओवादियों को ध्वस्त करने के लिए पैरा-मिलिटरी बलों को उन्नत छापामार ट्रेनिंग, आधुनिक हथियार विभिन्न देशों से खरीदकर मुहैया करवाया जा रहा है. प्रदेश के पुलिस व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त करने के लिए डीजीपी को केंद्र से अलग धनराशि दिया जा रहा है. साम्राज्यवादियों के निर्देशन व देख-रेख में भारत के मौजूदा राष्ट्रयंत्र के सभी विभागों व शासन प्रणाली तथा अफसरशाही को फासीवादी नीति व तौर-तरीकों से लैस किया जा रहा है.
मोदी सरकार द्वारा विरोधी आवाजों पर पूर्ण विराम लगाने के लिए जिन सभी फासीवादी तरीके अपनाये गये हैं, वह इंदिरा गांधी की आपातकालीन स्थिति के दौरान अपनाये गये विभिन्न दमनात्मक तरीकों को भी पार कर गया है. एक बात में कहने से न्युनतम विरोधी आवाजों को भी पूरी तरह कुचल देने के लिए जो बर्बर फासीवादी तरीके अपनाये गये हैं, वह अभूतपूर्व है.
वस्तुतः घरेलू परिस्थिति के अंदर निहित मूल-मूल अंतरविरोधों के रूप में निम्नलिखित अंतरविरोध मौजूद हैं :
(क) साम्राज्यवाद के साथ भारतीय जनता का,
(ख) सामंतवाद के साथ व्यापक जनता का,
(ग) पूंजी व श्रम के बीच का,
(घ) शासक श्रेणियों के बीच का
जिसमें अभी-अभी के लिए सामंतवाद के साथ व्यापक जनता का अंतरविरोध ही प्रधान अंतरविरोध है.
आह्नवान :
इन वस्तुगत तथ्यों पर खड़े होकर हम अपनी ‘‘घमासान’’ नीति को सफल बनायेंगे. हम अपनी पार्टी के हर स्तर के कमेटियों, पार्टी सदस्यों, पीएलजीए के वीरों, तमाम जन संगठनों व आरपीसी को आह्नान करते हैं कि आप वर्ग-संघर्ष और आत्मनिर्णय के अधिकार की मांग लेकर लड़ते रहें, व्यापक जन-समुदाय यानी मजदूर-किसान, छात्र-नौजवान, बुद्धिजीवी, पत्रकार, महिलाएं, सांस्कृतिक कर्मियों, श्रमजीवियों के पास आह्नान है कि आप फासीवादी आक्रमण के खिलाफ तमाम फासीवाद विरोधी ताकतों को लामबंद करें. साथ ही साथ केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जनता पर थोपे गये आक्रामक बर्बर युद्ध का मुकाबला हेतु ‘‘घमासान’’ नीति को आत्मसात कर मुंहतोड़ जवाब दें तथा इस अर्द्ध औपनिवेशिक, अर्द्ध-सामंती व्यवस्था को कब्र में दफनाकर नव-जनवादी क्रांति सफल कर मजदूर-किसान, मेहनतकश जनता का नव-जनवादी राज्य स्थापित कर समाजवाद-साम्यवाद की दिशा में आगे बढ़ें.
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