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मानवाधिकार किसके लिए ?

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मानवाधिकार किसके लिए ?

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, गांधीवादी कार्यकर्र्ता

हम पर इलज़ाम लगाया जाता है, क्या मानवाधिकार सिर्फ नक्सलियों के ही होते हैं ? क्या पुलिस वालों के मानवाधिकार नहीं होते ? ये मानवाधिकार वाले कभी सुरक्षा बलों के मानवाधिकारों के पक्ष में क्यों नहीं बोलते ?

पहली बात तो यह कि मानवाधिकार वाले तभी बोलते हैं जब सरकार निहत्थे लोगों को जान बूझ कर मार डालती है इसलिये हमारे द्वारा नक्सलियों के मानवाधिकारों के लिये बोलने वाला वाला इलज़ाम खारिज-

दूसरी बात पुलिस वालों के मानवाधिकार की. चलिए आ जाइए मैदान में. दीजिए पुलिस और सुरक्षा बल वालों को उनके अधिकार –

  1. गलत आदेश का पालन ना करने का संवैधानिक अधिकार : ( जब बड़ा अधिकारी आदिवासियों के गाँव जलाने या बलात्कार के सबूत मिटाने का आदेश दे तब , या जब सिपाही को लगे कि सरकार का विरोध करने वाले शांतिप्रिय तरीके से अपनी बातें रख हैं उन पर लाठी या आंसू गैस नहीं छोडनी चाहिये , तब सिपाही को अपने अफसर के गलत आदेश का पालन ना करने का संवैधानिक अधिकार दीजिए )
  2. संविधान में दिये गये इस अधिकार को लागू करने के कारण बड़े अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किये जाने पर अदालत में अपने बड़े अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाये जाने का अधिकार दीजिए सुरक्षा बलों के सिपाहियों को.
  3. अपनी पारिवारिक ज़रूरतों के अनुसार छुट्टी का अधिकार (माँ मरे या पत्नी के बच्चा हो या बच्चा अस्पताल में हो तब छुट्टी मांगने पर बड़े अफसरों द्वारा बेइज्जती से बचाव का अधिकार दीजिए सिपाहियों को).
  4. आठ घंटे ही काम का अधिकार ( सिपाहियों से चौबीस- चौबीस घंटे ड्यूटी करवाना बंद करो आज से ही).
  5. सेवा शर्तों में वर्णित काम के अलावा दूसरे काम ना करने का अधिकार (वी आई पी ड्यूटी वाले सिपाही से घर का काम करवाया जाता है . साहब के घरों में रसोई का काम , झाडू पोंछा , सब्जी लाना बच्चे को स्कूल छोड़ने जाना , साहब के कुत्ते को टट्टी करवाने ले जाना आदि काम सिपाहियों से करवाना बंद करो).
  6. कार्यस्थल की सुरक्षा : सिपाहियों के बैरक के लिये जो पैसा आता है वह कहाँ जाता है ? उसकी बजाय जान बूझ कर उन्हें गाँव के बीच में सरकारी स्कूलों को कब्ज़ा करके उसमे रहने के लिये मजबूर किया जाता है. जहां उनका झंझट जनता के साथ होता है .बाद में सिपाहियों पर हमला भी कई बार इसी कारण से होता है.

आपको यह भी याद होगा कि पिछले साल जब अबूझमाड़ में पांच सिपाहियों को अगवा किया गया था तब उन्हें रिहा करवाने के लिये सरकार ने कोई भी कार्यवाही नहीं करी बल्कि उनकी रिहाई के लिये मानवाधिकार कार्यकर्ता ही गये थे और उन्हें रिहा करवा कर लाये थे

7. सिपाहियों की भरती में रिश्वत लेना बंद करो : क्या आप जानते हैं कि सारे टेस्ट और जांच पूरी होने के बाद सिपाही के नौकरी के लिये गरीब परिवार के युवाओं से बड़ी रिश्वत ली जाती है जिसे कई बार अपनी ज़मीन बेच कर और कई बार क़र्ज़ लेकर चुका कर युवक नौकरी में जाते हैं . बाद में यही युवक सिपाही बनने के बाद अपना दिया हुआ पैसा वसूलने के लिये गरीब जनता से रिश्वत मांगते हैं और उनके घरों में लूटपाट करते हैं .

चलिए दीजिए सिपाहियों को भी उनके मानवाधिकार.

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