रविन्द्र पटवाल, सामाजिक कार्यकर्त्ता
देश में 9 इंसान की सम्पत्ति देश के बाकी 50% गरीब जनता के बराबर करती है. ऐसी मजबूत सरकार से अच्छा है कि कोई गधा भी आ जाए वो बेहतर है. आपकी मजबूत सरकार सिर्फ अम्बानी अडानी जैसों के काम की है. गाय के कितने काम की है, यह गाय और किसान जानता है. उप्र में साधुओं के लिए पेंशन के रूप में हो सकती है. बाकी तो किसानों, मजदूरों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, छात्रों और युवाओं के लिए तो बिलकुल नहीं है.
हमें पता है कि महागठबंधन एक मजबूरी है, जब तक जनता के वास्तविक सवालों पर वैकल्पिक राजनैतिक ताकत नहीं उभरती लेकिन संघ समर्थक आपसे हर बार पूछ रहे हैं कि ऐसा गठबंधन जो आपस में ही लड़ता रहता रहा है आजतक, सिर्फ स्वार्थ के लिए एक जगह इकट्ठा हो रहा है.
लेकिन क्या यह सच है ? कुछ हद तक सच भी है, और काफी हद तक गलत.
यह गठबंधन वाकई में मजबूरी में बन रहा है क्योंकि भारत की आम जनता इसे करने के लिए मजबूर कर रही है. पिछले 5 सालों में जितना देश ने झेला है, शायद ही पिछले 20 साल मिलाकर झेला होगा और इसके साथ विपक्षी दलों NDA के घटक दलों तक ने किनारे बैठकर चुपचाप मोदी शाह अरुण जेटली की जबरिया मनमानी और अध्यादेश झेले हैं, इसलिए मजबूर हुए हैं. हर दल को बिना चूं-चपड़ किये मोदी के पीछे चलने और जरा भी हल्ला मचाने पर सीबीआई या सरकार गिरा देने या राज्य में दरार डाल खुद में शामिल करने के रूप में झेला है.
और सबसे बड़ी बात आप उनसे पूछ सकते हैं कि इस मजबूत सरकार का क्या अचार डालेंगे जो अपने पहले ही संसद काल के सत्र में भूमि अधिग्रहण कानून लाती है, मजदूरों के श्रम कानूनों को मजदूरों के लिए कमजोर करती है, मालया, नीरव मोदी, चौकसी को भागने में मदद करती है, बैंकों को बर्बादी के रस्ते पर धकेलती है, RBI, CVC, CBI, CAG, लोकपाल को तहस-नहस करती है, और देश में 9 इंसान की सम्पत्ति देश के बाकी 50% गरीब जनता के बराबर करती है. ऐसी मजबूत सरकार से अच्छा है कि कोई गधा भी आ जाए वो बेहतर है.
अभी हाल में राजस्थान,कर्नाटक,छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सरकारें बदली ही न. कौन-सा पहाड़ टूट पड़ा वहां की जनता पर. उल्टा बीजेपी ही धन-बल से कर्नाटक की जड़ खोदने का काम कर रही है.
आपकी मजबूत सरकार सिर्फ अम्बानी अडानी जैसों के काम की है. गाय के कितने काम की है, यह गाय और किसान जानता है. उप्र में साधुओं के लिए पेंशन के रूप में हो सकती है. बाकी तो किसानों, मजदूरों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, छात्रों और युवाओं के लिए तो बिलकुल नहीं है.
नेहरू गए तो लगा देश अँधेरे में चला गया, लेकिन एक छोटे कद के नेता लाल बहादुर शास्त्री ने चला कर दिखा दिया. शास्त्री गए तो राजनीती के हलकों में गूंगी-गुड़िया कही जाने वाली इंदिरा ने देश चलाया ही.
ये कोई वास्तविक विकल्प नहीं थे, लेकिन आप तो काल बन गए 90%आबादी के लिए. आपकी सरकार क्या आई, अल्पसंख्यकों-दलितों-बुद्धिजीवियों सहित देश के हर लोकतंत्र में आस्था रखने वाले व्यक्ति को अपनी देशभक्ति का सर्टिफिकेट आपके तिलकधारी अंगौछा लगाए जय श्री राम की दहाड़ लगाते लम्पट को देना पड़ा है. यही आपकी उपलब्धि है.
आपसे हाथ जोड़कर 100 कदम की दुरी बनाकर रहना चाहता है देश. बहुत झेल लिया. हम कमजोर से कमजोर सरकार से काम चला लेंगे, आप कृपया कर अपना बोरिया-बिस्तर समेटे और मेहुल चौकसी से पूछ लें, कैसे इंतजाम किया जाता है सात पीढ़ियों का. हम अपनी गरीबी में ही खुश हैं, बचेंगे तो लड़ेंगे और अपने देश को अपने हिसाब से बना लेंगे.
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