सोमवार को राजकोट में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “कांग्रेस मुझे इसलिए नापसंद करती है, क्योंकि मैं एक गरीब परिवार से हूं. क्या कोई पार्टी इतना नीचे गिर सकती है…? हां, एक गरीब परिवार का व्यक्ति प्रधानमंत्री बन गया है. वह इस सच्चाई के प्रति अपनी नाखुशी को छिपा नहीं पाते. हां, मैंने चाय बेची है, लेकिन मैंने देश को नहीं बेचा. मैं कांग्रेस से आग्रह करता हूं, वे गरीबों और मेरे गरीब मूल का मज़ाक न उड़ाएं”. ये हैं मगरमच्छ के वह आर्तनाद जिसके सहारे वह गुजरात चुनाव का बैतरणी पार करना चाह रहे हैं.
ये “गरीब” मूल के वही प्रधानमंत्री हैं, जिसने लाखों लोगों को बेरोजगारी के सड़क पर ला दिया. जिन्होंने नोटबंदी के नाम पर 150 से ज्यादा लोगों के मौत की कीमत पर 8.5 लाख करोड़ रुपये के महाघोटाले किये. जिन्होंने चंद हजार करोड़ रुपये के किसानों के कर्ज को माफ करने के बजाय औद्योगिक घरानों के लाखों करोड़ के कर्ज को माफ किया. जीएसटी जैसे अवैज्ञानिक टैक्स प्रणाली को वगैर किसी तैयारी के लागू कर रातों-रात देश की अर्थव्यवस्था का कमर तोड़ दिया.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के “गरीब” परिवार से आने और देश को दोनों हाथों से लूटने पर आमदा वह प्रधानमंत्री हैं, जिनकी निष्ठा दो कौड़ी की है. जिसकी निष्ठा को देश के दलाल औद्योगिक घरानों ने खरीद लिया है. नरेंद्र मोदी वह “गरीब” आदमी हैं जिसके खाने की एक थाली की कीमत 48 हजार रुपये होती है, पहनने के लिए 10 लाख का सूट आता है, लिखने का कलम 1.5 लाख रुपये की होती है. जिनके पांव जमीन पर नहीं टिकते और सारी दुनिया उपग्रह की तरह चक्कर लगा रहे हैं, ताकि अंबानी-अदानी के औद्योगिक घरानों के कारोबार को बढ़ा सके.
“गरीब” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के नीति आयोग की नजर में देश की हर समस्या का समाधान सरकारी सम्पत्ति को बेचकर निजी हाथों में देना हैं. उसका मानना है कि निजी हाथों में देश की सम्पत्ति बेच देने से देश का बेहतर विकास होगा. परिणामस्वरूप “गरीब” परिवार का बेटा नरेंद्र मोदी देश की हर सम्पत्ति को निजी हाथों में बेचना शुरू कर दिया है. रेलवे स्टेशन, इंडियन एयरलाइंस, गैस, माइंस, जल, जंगल, जमीन सहित शिक्षा और स्वास्थ्य तक को निजी हाथों में कौड़ी के भाव बेच रहे हैं. रक्षा के हथियारों व उपकरणों के विनिर्माण तक को अंबानी, अडानी और रामदेव जैसै लोगों की मिल्कियत बना रहे हैं.
देश की आम आदमी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हुए जब वह कहते हैं कि ‘वह चाय बेचते थे’, तब यह सवाल भी उठ खड़े होते हैं कि ‘वह चाय क्यों बेचते थे ?’ जिस जमाने में मैट्रिक परीक्षा पास करते ही सरकारी नौकरी दरवाजे पर दस्तक देने लगती थी, उस समय नरेन्द्र मोदी बीए पास कर चाय बेचते थे, यह देश की भावनाओं के साथ भद्दा मजाक है. वह चाय बेचते थे अथवा नहीं कोई नहीं जानता, पर वह देश को बेच रहे हैं, यह देश की जनता दिन की सफेद रोशनी में देख रही है.
इतना ही नहीं देश को निजी औद्योगिक घरानों के हाथों में सरकारी सम्पत्ति को बेचने की आतुरता इस “गरीब” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर इस कदर हावी है कि सारे नियम कायदों यहां तक की संविधान तक की धज्जियां उड़ाई जा रही है. विरोध करने वाले लोगों, बुद्धिजीवियों की सरेआम हत्यायें की जा रही है. जेलों में डाले जा रहे हैं. यहां तक कि न्यायपालिका के जजों तक को खरीदने, डराने, हत्या तक पर उतारू है. सीबीआई के जस्टिस लोया की हत्या सीधा न्यायपालिका पर हमला है, जो मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार कर रही है.
आज देश की जनता के सामने भाजपा सहित मोदी के सारे ढ़ोंग और झूठ का पर्दाफाश हो गया है. देश की आम आदमी इस बात को बखूबी समझ गई है कि नरेन्द्र मोदी किस प्रकार गरीब आदमी के हितों की कीमत पर अंबानी-अदानी जैसी कॉरपोरेट घरानों के मार्केटिंग एजेंट के तौर पर काम कर रही है.
चुनाव आयोग जो आज भाजपा का एजेंट बन गया है, की जादुई ईवीएम, जिसके जरिए भाजपा को जीत दिलाया जा रहा है, की असलियत देश की जनता के सामने आ चुकी है. आम जनता आज न केवल भाजपा और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ उठ खड़ी हुई है, वरन, चुनाव आयोग की दलाली और उसके ईवीएम-वीवीपीएटी के षड्यंत्रों के खिलाफ भी डट गई है. ऐसे में ऐन गुजरात चुनाव की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह भाषण मरते हूए मगरमच्छ के आर्तनाद के अतिरिक्त और कुछ नहीं है.