2014 में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बनी केन्द्र सरकार जिस प्रकार अपने किये वादों से ठीक उलट जाकर देश की तमाम संस्थाओं को जिस प्रकार पैरों तले रौंदना शुरू किया, उससे सारा देश कराह उठा है. और अब तो दिनदहाड़े दिल्ली की सड़़कों पर संविधान तक को जलाया जाने लगा है, वह आश्चर्य करने की बात नहीं है. नरेन्द्र मोदी देश की सत्ता केवल इसीलिए ही कब्जाया है ताकि वह इस देश के संविधान को बदल सके और इसकी जगह घोर अमानवीय ब्रह्मणवादी ग्रंथ ‘मनुस्मृति’ को स्थापित कर दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, महिलाओं को दासयुग में ढकेला जा सके, जिसे वह रामराज्य कहते नहीं अघाते. इसके लिए सबसे पहले उसने संविधान को बचाने वाली संस्थाओं को तबाह करना शुरू किया. उन संस्थाओं में अपने दल्ले बिठाये, उसके अपेक्षाकृत ईमानदारों को खरीदने या धमकाने का सिलसिला शुरू किया. जब इससे भी बात बनती नहीं दीखी तो उनकी हत्या तक करा दिया.
देश के संविधान की हिफाजत करने का सबसे बड़ा संस्था उच्चतम न्यायालय है. जब उच्चतम न्यायालय के जज संविधान की हिफाजत करने में खुद को असमर्थ पाने लगे, तब वह जनता की अदालत में आये और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर देश की जनता को आगाह कर दिया कि ’लोकतंत्र खतरे में है’.
परन्तु उनकी यह चेतावनी न केवल पूरे देश में बल्कि सारी दुनिया में गूंज उठी. यही कारण है कि देश की अन्य समूह व संस्था भी वक्त के साथ धीरे धीरे जनता की अदालतों में आकर अपने अपने तरीकों से अपनी पीड़ा का इजहार कर रहे हैं और देश में लोकतंत्र को बचाने की अपील कर रहे हैं.
अब जब देश में भारी थुक्का-फजीहत के बाद चुनाव आयोग ने देश में चुनाव कराने की घोषणा कर दिया है, तब समय रहते पहले तो देश के सर्वश्रेष्ठ 100 से अधिक फिल्मकारों और 200 से अधिक लेखकों ने देश में नफरत की राजनीति के खिलाफ देशवासियों से मतदान करने की अपील की है. वहीं अब देश के 150 से अधिक वैज्ञानिकों ने मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) से जुड़े लोगों को वोट न देने की अपील की है. इसके साथ ही असमानता, भेदभाव और डर के माहौल के खिलाफ वोट देने का निवेदन किया है.
वैज्ञानिकों के इन समूहों के द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि हमें ऐसे लोगों को खारिज करना चाहिए, जो लोगों को मारने के लिए उकसाते हैं या उन पर हमला करते हैं. जो लोग धर्म, जाति, लिंग, भाषा या क्षेत्र विशेष के कारण भेदभाव करते हैं. मौजूदा हालात में वैज्ञानिक, कार्यकर्ता और तर्कवादी लोग घबराए हुए हैं. असहमति रखने वाले लोगों को प्रताड़ित करना, जेल में बंद करना, हत्या कर देना जैसी घटनाएं हो रही हैं.
ऐसे में इन वैज्ञानिकों ने मतदाताओं से अपील किया है कि ऐसे माहौल को खत्म करने के लिए सोच-समझकर अपने मताधिकार इस्तेमाल करें. साथ ही मतदाताओं से वैज्ञानिक स्वभाव के प्रति अपने संवैधानिक कर्तव्य को याद रखने का भी जिक्र किया गया है. ’द हिंदू’ में छपी एक खबर के मुताबिक इस अपील में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर), इंडियन स्टैटिकल इंस्टीट्यूट (आईएसआई), अशोका यूनिवर्सिटी और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के वैज्ञानिक शामिल हैं.
वहीं भारतीय लेखकों के संगठन इंडियन राइटर्स फोरम की ओर से भी जारी की गई अपील में लेखकों ने लोगों से विविधता और समान भारत के लिए वोट करने की अपील की है. इन लेखकों में गिरिश कर्नाड, अरुंधती रॉय, अमिताव घोष, बाम, नयनतारा सहगल, टीएम कृष्णा, विवेक शानभाग, जीत थायिल, के सच्चिदानंदन और रोमिला थापर जैसे नामचीन बुद्धिजीवी हैं.
इन लेखकों ने आरोप लगाया है कि लेखक, कलाकार, फिल्मकार, संगीतकार और अन्य सांस्कृतिक कलाकारों को धमकाया जाता है, उन पर हमला किया जाता है और उन पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. जो भी सत्ता से सवाल करता है, या तो उसे प्रताड़ित किया जाता है या झूठे और मनगढ़त आरोपों में गिरफ्तार कर लिया जाता है. इसलिए लोगों को बांटने की राजनीति के खिलाफ वोट करें, असमानता के खिलाफ वोट करें, हिंसा, उत्पीड़न और सेंसरशिप के खिलाफ वोट करें. यही एक रास्ता है, जिसके तहत हम उस भारत के लिए वोट कर सकते हैं, जो हमारे संविधान द्वारा किए गए वादे को पूरा कर सकता है.
भारत के 100 से अधिक फिल्म निर्माताओं ने लोकतंत्र बचाओ मंच के तहत एकजुट होते हुए लोगों से भाजपा को वोट न देने की अपील की है. इनमें आनंद पटवर्धन, एसएस शशिधरन, सुदेवन, दीपा धनराज, गुरविंदर सिंह, पुष्पेंद्र सिंह, कबीर सिंह चौधरी, अंजलि मोंटेइरो, प्रवीण मोरछले देवाशीष मखीजा और उत्सव के निर्देशक और संपादक बीना पॉप जैसे नामी फिल्मकार भी शामिल हैं.
उनका मानना है कि भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए के शासनकाल में धुव्रीकरण और घृणा की राजनीति में बढ़ोतरी हुई है. दलितों, मुसलमान और किसानों को हाशिए पर धकेल दिया गया है. सांस्कृतिक और वैज्ञानिक संस्थानों को लगातार कमजोर किया जा रहा है और सेंसरशिप में बढ़ोत्तरी हुई है. साथ ही उन्होंने आरोप लगाया है कि 2014 में भाजपा सत्ता में आने के बाद से देश का धार्मिक रूप से धुव्रीकरण किया किया जा रहा है और सरकार अपने वादों को पूरा करने में पूरी तरह से विफल रही है.
बता दें कि पिछले दो-तीन सालों में मौजूदा भारतीय जनता पार्टी के शासन के दौरान वैज्ञानिकों ने कई ऐसे मुद्दों पर ऐतराज जताया जिसने उन्हें प्रभावित किया. इसमें सबसे मुख्य मुद्दा शोध एवं विकास और शिक्षा पर कम खर्च करना था. इसके साथ ही इसमें मूलभूत शोध के खिलाफ भेदभाव, पीएचडी और पोस्टडॉक्टरल शोधार्थियों को कम छात्रवृत्ति, विश्वविद्यालयों में नौकरशाही का हस्तक्षेप, अवैज्ञानिक मान्यताओं का निष्क्रिय पालन, छात्रवृत्तियों की समीक्षा, उच्च शिक्षा का निजीकरण और वैज्ञानिकों को पत्रकारों से बात करने से रोकना शामिल था.
ऐसे में देशवासियों से लगातार की जा रही लेखकों, फिल्मकारों, वैज्ञानिकों और सुप्रीम कोर्ट के जजों की अपील इस देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए है, जिसका आधार हमारा यह संविधान है, जिसे नष्ट करने की भाजपा-आरएसएस लगातार कोशिश कर रही है. वह तो संविधान और लोकतंत्र की आत्मा चुनाव प्रणाली तक को ही रद्द कर देने पर आमादा है. वह यों ही नहीं कहता है कि अगर हम चुनाव जीत कर सत्ता में वापस आये तो इस देश में फिर कोई चुनाव होगा ही नहीं. इसके पीछे उसका ठोस योजना है, ब्राह्मणवाद की स्थापना और लोकतंत्र की पराजय. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह संविधान, जिसके उपर लोकतंत्र की इमारत बनी है, लाखों शहीदों और क्रांतिकारियों के खून से लिखी गई है, जिसे नष्ट करना देशद्रोही भाजपा का प्राथमिक कार्य है.
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